Mahavir Lachit Badfalun - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

महावीर लचित बड़फूकन - पार्ट - 8


जब लचित को शत्रु के सम्भावित आक्रमण की खबर मिली तो वह बीमारी की स्थिति में भी युद्ध के लिये तैयार हो गया। उसे 'आखोई फुटा' ज्वर था । इस भयावह ज्वर में रोगी के शरीर पर चावल का दाना रखते ही वह तुरंत फूलकर मुरमुरे की तरह बन जाता है। ऐसी गम्भीर हालत में भी वह हठ करके युद्ध नौका पर पहुँचा। उसने देखा कि मुगलों की अनगिनत युद्ध नौकायें गुवाहाटी की ओर बढ़ रही हैं। उसने बिना समय गँवाये अपनी जल सेना को आक्रमण के लिए तैयार रहने को कहा।

उस समय यह प्रथा प्रचलित थी कि आक्रमण करने से पूर्व राजा ज्योतिषी (देवधाई) से मुहूर्त निकलवाते थे। ज्योतिषी ने नक्षत्रों की जाँच पड़ताल करके कहा कि यह समय आक्रमण करने के लिए उपयुक्त नहीं है।

मुगल सेना कुछ समय बाद ही सराईघाट पर पहुँचने वाली थी। यह सब देखकर लचित चिल्लाया- “देवधाई, तुम्हारे कारण मैं यह लड़ाई हार जाऊँगा। मुझे शस्त्र उठाना ही है और केवल विजय के लिये।”

ज्योतिषी कुछ समय तक चुप रहा, फिर उसने अपना सिर हिलाते हुए कहा– “बड़फूकन! अब तुम आक्रमण कर सकते हो क्योंकि यह वही समय है जब भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई की थी। ”

1674 का वह विजयादशमी का दिन था। बड़फूकन ने आक्रमण करने का आदेश दे दिया। प्रत्युत्तर में मुगल सेना का आक्रमण इतना भयंकर था कि अहोम सेना उनके सामने नहीं टिक पा रही थी। सैनिकों में हाहाकार मच गयी। वे अपनी जान बचाने के लिए नदी में कूदने लगे।

लचित की युद्ध नौका की भी यही स्थिति थी। मल्लाह उसे उलटी दिशा में खेने लगे। जब लचित ने यह सब देखा तो क्रोध से काँप उठा। उसने अपनी नौका में उपद्रव मचाने वाले समूह को ब्रह्मपुत्र नदी में ढकेल दिया। तब लचित की युद्ध नौका में केवल वह स्वयं था। उसकी नौका जलधारा के साथ उसी ओर बढ़ने लगी, जिस ओर मुगल युद्ध नौकायें थीं।

इस दृश्य की कल्पना मात्र कितनी भयावह है कि एक युद्ध नौका में अकेला प्रमुख सेनापति व उसके सामने मुगल सेना की विशाल अस्त्रशस्त्र से भरी युद्ध नौकाएँ । ज्वरग्रस्त लचित अपने सैनिकों पर चिल्लाया– “कायरो ! जल्दी से वापिस भाग जाओ और अपने परिवार के साथ सुख से रहो। परंतु अपने राजा (स्वर्गदेव) से यह अवश्य कहना 'लचित जियाइ थका माने गुवाहाटी एरा नाइ', अर्थात 'जब तक लचित जीवित है उससे गुवाहाटी कोई नहीं छीन सकता।” यह सुनकर असमी सैनिकों को बहुत ग्लानि हुई और वे चौगुने उत्साह से मुगलों से लड़ने के लिए युद्ध नौकाएँ तैयार करने लगे। देखते ही देखते नदी में असंख्य नौकायें अपने नेता के आह्वान पर चल पड़ीं और असमिया वीर मुगलों पर कहर बन कर टूट पड़े।

उनका आक्रमण इतना भयंकर था कि मुगल सेना अपनी रक्षा के लिए भागने का प्रयत्न करने लगी। उन्होंने भागना चाहा परन्तु युद्ध नौकाओं ने अपना जाल कुछ इस तरह बिछाया कि मुगल सैनिक बेबस हो गये।

युद्ध का पासा पलटा देख शत्रु सेना स्तब्ध रह गई। उनके सैनिक जान बचा कर भागने लगे। उत्साहित असमियों ने उनका पीछा करके उन पर ताबड़तोड़ प्रहार किये। मुगल सेना बुरी तरह परास्त हुई।

गुवाहाटी विजय का स्वप्न संजोने वाला रामसिंह इस करारी पराजय से टूटे बाण की तरह शिथिल हो गया। वह दिल्ली लौट गया। वह गुवाहाटी के बारे में सोचने लगा –
“उस धरती पर ईश्वर की असीम अनुकम्पा है। उस पर विजय पाने का विचार करना भी मूर्खता है। वहाँ का प्रत्येक सिपाही निपुण तलवारबाज व धनुर्धारी, अच्छा तैराक और सामान्य से कहीं अधिक परिश्रम करने वाला है। वह देशभक्त, वीर एवं देश पर समर्पित होने वाला है। इसमें आश्चर्य नहीं कि यह धरती सदैव विदेशी आक्रमणकारियों की क्रूरतापूर्ण नीतियों व मनसूबों को कभी सफल नहीं होने देगी।”

इस असम्भव विजय के कुछ समय बाद ही लचित ने अंतिम साँस ली। उसकी बहादुरी, युद्धकला, निष्ठा और इन सबसे बढ़कर उसकी अथाह देशभक्ति के लिए असम के प्रत्येक घर में उसे स्नेह, श्रद्धा व सम्मान से याद किया जाता है। मुगलों के विरुद्ध सराईघाट के युद्ध में लचित के महापराक्रम से मिली विजय का स्मरण करते हुये असम राज्य में हर साल 24 नवम्बर को 'लचित दिवस' के रूप में मनाया जाता है। भारतीय सेना की राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Academy) के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को 'लचित मैडल' से अलंकृत भी किया जाता है।
भारत की वीर भूमि पर लचित बड़फूकन के शौर्य और साहस की गाथा इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखी जायेगी।