Kala Jaadu - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

काला जादू - 13

काला जादू ( 13 )

इस पर प्रशांत कुछ ना बोल सका उसने बस स्वीकृति में सिर हिला दिया ।

कुछ देर बाद चाय पीकर अश्विन प्रशांत की माँ को लेकर विंशती को लेने निकल पड़ा, अश्विन के जाने के कुछ देर बाद ही वह अश्विन के माता पिता प्रशांत के फ्लैट में उसकी देखरेख के लिए पहुँच गए।

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अश्विन एक कैब से प्रशांत की माँ के साथ विंशती को लेने उसकी मौसी के घर जाता है।

लगभग डेढ़ घण्टे के बाद अश्विन की कैब एक पीली बहुमंजिला बिल्डिंग के सामने रूकती है।

उस बिल्डिंग का मुख्य द्वार बड़ा सा काले रंग का था, जिसके बाईं तरफ एक छोटा सा चैम्बरनुमा कमरा बना हुआ था, उस कमरे के बाहर ही एक शख्स नीली कमीज काली पतलून की बाॅचमेन की वर्दी में एक कुर्सी और टेबल लगाकर बैठा था।

प्रशांत की माँ कैब में से उतरकर उस बाॅचमेन से कुछ बात करने लगती है, इस दौरान अश्विन कैब के अंदर था इसीलिए वह ढंग से उनकी बात नहीं सुन पा रहा था।

कुछ देर बाद प्रशांत की माँ से बात कर वह बाॅचमेन रजिस्टर में कुछ एन्ट्री करके वह बड़ा सा गेट खोल देता है।

गेट खुलते ही प्रशांत की माँ कैब के अंदर वापस बैठ जाती है और उसके बाद वह कैब अंदर की ओर बढ़ने लगती है।

अंदर एक साथ तीन बिल्डिंग बनी हुई थी, जो कि एक निश्चित दूरी पर बनी हुई थी, उन तीनों ही बिलडिंगों के चारों ओर मोटे मोटे सफेद पत्थर लगाकर चलने के लिए जगह बनाई गई थी, कुछ कुछ जगह पर छोटे छोटे घास के मैदान बने हुए थे, उन मैदानों में कुछ पेड़ पौधे भी लगाए हुए थे, इसके अतिरिक्त उनमें कुछ लोहे की बैंच भी लगी हुई थी ।

अश्विन की कैब उसमें से तीसरी बिल्डिंग के सामने आकर रूकती है ।

कैब के रूकते ही प्रशांत की माँ दरवाजा खोलकर उस बिल्डिंग में अंदर की ओर जाने लगती है , अश्विन भी उसके पीछे पीछे जाने लगता है।

वह पूरी बिल्डिंग अंदर से सफेद रंग में रंगी हुई थी, उस बिल्डिंग में सामने के तरफ ही एक लिफ्ट थी, प्रशांत की माँ उसके पास जाकर लिफ्ट का बटन दबा देती है, कुछ देर बाद लिफ्ट वहाँ आ जाती है, लिफ्ट के आते ही वो और अश्विन लिफ्ट के अंदर बढ़ जाते हैं।

लिफ्ट के अंदर आते ही प्रशांत की माँ 4th फ्लाॅर का बटन दबा देती है और उसके बाद उस लिफ्ट का दरवाजा बंद हो जाता है।

4th फ्लाॅर पर आकर जब लिफ्ट रूकती है तो प्रशांत की माँ और अश्विन लिफ्ट से बाहर निकल जाते हैं, लिफ्ट से बाहर निकलकर एक सीधा गलियारा बना हुआ था, जो कि सीधे एक काँच की खिड़की पर खत्म हो रहा था, उस गलियारे के दाईं और बाईं दोनों ओर ही लाइन से 3-3 फ्लैट बने हुए थे, उन सभी फ्लैट का मुख्य द्वार मटीले रंग का था।

प्रशांत की माँ उस लिफ्ट से निकलकर उस गलियारे में आगे की ओर बढ़ने लगती है, इस दौरान अश्विन अपनी निगाहों से उस जगह का अवलोकन करते हुए उनके पीछे पीछे ही आ रहा था ।

कुछ देर बाद वह बाईं तरफ के सबसे आखिरी फ्लैट के दरवाजे के आगे आकर रूक जाते हैं, वहाँ आकर प्रशांत की माँ उस फ्लैट पर दाईं तरफ स्थित घंटी बजाती है।

घंटी बजाने के लगभग 10-15 सेकंड बाद एक भरे शरीर वाली गोरी महिला ने दरवाजा खोला, उनकी उम्र प्रशांत की माँ के आसपास लग रही थी, उनके बाल उनकी कमर तक आ रहे थे, वैसे तो उनकी उम्र काफी लग रही थी लेकिन फिर भी वह काफी सज सँवरकर रहती थी, उस महिला ने नीली कुर्ती के साथ नीला प्लाजो पहना हुआ था , उस महिला ने जैसे ही दरवाजा खोला सामने प्रशांत की माँ को देखकर उन्हें गले लगाते हुए बोली " शुमा केमोन आछे? ( शुमा कैसे हो? )"

इस पर वह बोली " अमी भालो आछे लोखमी .... और तुमी? ( मैं अच्छी हूँ लक्ष्मी.... और तुम? )"

" अमि भी खूब भालो.... प्रोशांतो ठीक आछे ना? .... " लक्ष्मी अब आगे कुछ कहती उससे पहले ही उनकी नज़र शुमा के साथ खड़े अश्विन पर पड़ी और उन्होंने आँखों ही आँखों में शुमा से पूछा कि " यह कौन है? "

इस पर शुमा ने अश्विन की ओर देखते हुए कहा " ये होमारा प्रोशांतो का बोन्धु है अश्विन.... ये हमारा शाथे विंशती को लेने आया है....ये बांग्ला बुझती पोड़ती ना... "

" क्या कोरता है तुम? " लक्ष्मी ने अश्विन की ओर देखते हुए पूछा।

" जी मैं प्रोडक्ट मैनेजर हूँ....और मुझे बंगाली समझ आती है बट बोलना और पढ़ना नहीं आता। " अश्विन ने मुस्कुराते हुए कहा।

" भीतारे आशो.... विंशती तौयार ही है... " लक्ष्मी ने कहा और उसके बाद अश्विन और प्रशांत की माँ शुमा उस फ्लैट में अंदर बढ़ने लगते हैं।

वह एक 2bhk फ्लैट था,जिसकी दीवारें हरे रंग में रंगी हुई थी, उस फ्लैट में सामने की तरफ दो कमरे बने हुए थे, उस फ्लैट के बाईं और दाईं ओर एक एक कमरे बने हुए थे, फ्लैट में बीचों बीच हाॅल में तीन सफेद आरामदायक सोफे लगे हुए थे , उनमें से एक बड़ा सोफा बाईं तरफ रखा हुआ था और बाकि दोनों छोटे छोटे सोफे उस बड़े सोफे के दोनों ओर आमने सामने की तरफ रखे हुए थे , उन तीनों सोफों के बीच में एक काॅफी टेबल रखी हुई थी जिसपर एक आधा खाली चाय का कप रखा हुआ था , उस फ्लैट में अलग अलग दीवारों पर अलग अलग पेंटिंगस् लगी हुई थी, दाईं तरफ की दीवार पर लकड़ी का एक बड़ा सा कपबोर्ड भी लगा हुआ था जिसपर कुछ सजावटी वस्तुएँ रखी हुई थी ।

लक्ष्मी शुमा और अश्विन को सोफे पर बैठाकर पीछे की तरफ स्थित पहले कमरे में बढ़ जाती है ।

लक्ष्मी के जाने के बाद अश्विन ने शुमा से पूछा " यहाँ से कब तक निकलना है? "

" बोस ओभी विंशती को लेकर चोलता है, वैशा भी प्रोशांतों को जोरूरत होगा और तुमको भी कोल काम पोर जाना होगा ना? "

" आप मेरे काम की बिल्कुल चिंता ना कीजिए.... मेरी तनख्वाह उससे ज्यादा नहीं कटती , जस्ट टेक यूअर टाईम आप जब बोले तब हम चलेंगे .... " अश्विन ने मुस्कुराते हुए कहा।

यह सुनकर शुमा ने कहा " एक तुम हो जो होमारा इतना हेल्प कोरता है और एक है वो अभिमन्नो.... " यह कहते हुए शुमा की आवाज़ में एक रोष आ गया।

यह सुनकर अश्विन ने आँखें भींचते हुए कहा " क्या मतलब है आपका? "

" अब बेटा होमारा प्रोशांतो के शाथे इतना कुछ होए गेलो और वो अभिमन्नो ने एक बार फोन कोरके हाल चाल पूछना भी जोरूरी नहीं सोमझा.... " शुमा से आक्रोशित स्वर में कहा।

" हो सकता है कि उसे इस बारे में पता ही ना हो.... "

" उशका बात होता रहता है विंशती से.... उशने बोताया भी होगा किंतु पैशा ना देना पोड़े इशका लिए वह फोन नहीं कोर रहा , अरे होम कौन शा उशशे पैशा माँग रहा था जो ऐशे दोस्तों का शाथे मोनाली चोला गया.... "

" अब छोड़िए ना इस बात को इससे अपना ही तो मन खराब होता है.... आप वैसे भी लड़की वालें हैं आपका इतना गुस्सा करना कहीं उन दोनों के रिश्ते को खराब ना कर दें इसलिए जाने दीजिए .....और वैसे भी विंशती को सुनाई देने में भी दिक्कत है ऐसे में भी आपको आपकी ही बिरादरी का लड़का मिल गया ये काफी किस्मत की बात है। " अश्विन ने शुमा को समझाते हुए कहा लेकिन उन दोनों की ये बात दरवाजे पर हरे सलवार सूट में खड़ी विंशती ने सुन ली थी।

विंशती को इस बात का बहुत दुख हो रहा था कि जिससे वह प्यार करती है उसे उसके परिवार की बिल्कुल भी चिंता नहीं है लेकिन फिर भी अपने आप को संभालते हुए वह शुमा के पास आई और गले लगकर रोते हुए बोली " माँ कि होए गेलो दादा को? ( माँ भईया को क्या हुआ?) "

" विंशती तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो क्योंकि भईया अब बिल्कुल ठीक हैं...." अश्विन ने मुस्कुराते हुए कहा।

" आश्विन ठीक बोलेछिलो विंशती... प्रोशांतों भालो आछे... ( अश्विन ठीक कह रहा है विंशती.... प्रशांत ठीक है.... " शुमा ने कहा।

" माँ बाड़ी चोलें? हमको दादा को देखना है.... " विंशती ने रोते हुए कहा।

" तुझे लेने ही तो आया है होम.... लोखमी ओ लोखमी....."

शुमा के इतना कहते ही कमरे के अंदर से लक्ष्मी एक 20-22 साल की लड़की के साथ बाहर आती है,उस लड़की के हाथ में एक काला बैकपैक भी था, उस लड़की ने नीली जींस के साथ बैंगनी टाॅप पहना हुआ था , उस लड़की के बाल उसके कंधे तक आते थे और वह काफी हद तक लक्ष्मी की तरह दिखती थी , वह बाहर आकर अश्विन को ही देखे जा रही थी ।

" लोखमी ओच्छा हुआ कि तुम आ गया.... अब होम चोलता है, प्रोशांतों घोर पोर अकेला है इसलिए यहाँ ज्यादा देर रूक नहीं पाएगा..... " शुमा ने कहा।

" ठीक आछे प्रोशांतों के लिए होम तुम्हें रोकेगा नहीं....अपना ख्याल रखना और घोर जाकर फोन जोरूर कोरना.... " लक्ष्मी ने कहा।

" विंशती ओपना बैग तो ले ले.... " उस 20-22 साल की लड़की ने विंशती से मुस्कुराते हुए कहा।

" अरे मैं ले लेता हूँ.... " कहते हुए अश्विन ने उस लड़की से विंशती का बैग लिया इस दौरान वह लड़की उसे देखकर मुस्कुरा रही थी अश्विन को उस लड़की का यूँ उसे मुस्कुराते हुए देखना कुछ अजीब लगा इसलिए उसने उस लड़की से बैग लेकर शुमा से कहा " मैं लिफ्ट के पास आप दोनों का इंतजार कर रहा हूँ। "और यह कहकर वह दरवाजे से बाहर की ओर चला गया , इस दौरान वह लड़की उसे यूँ ही जाता हुआ देखती रही।

" ओच्छा अब होम भी चोलता है... दोबारा जोरूर आएगा मिलने.... " शुमा ने हाथ जोड़कर अभिवादन करते हुए कहा।

बदले में लक्ष्मी ने भी उनका हाथ जोड़कर अभिवादन किया और उसके बाद शुमा विंशती के साथ वहाँ से चली गई।

उन तीनों के जाने के वह 20-22 साल की लड़की लक्ष्मी से बोली " माँ कि भालो मानुष ना? ये था कौन? "

" प्रोशांतों का बोन्धु है , ओच्छा कोमाता भी है.... रूपा ओगर तुम कहो तो तुम्हारा और उसका शादी का बात चोलाएं? " लक्ष्मी ने कहा।

" माँ किंतु उशको तो बांग्ला नहीं आता और कहीं उशका माँ हुआ तो? ना बाबा ना हमको शाश नहीं चाहिए..... " रूपा ने कहा।

" अरे ओगर उशका माँ हुआ तो उशे उशशे दूर तो होम ही कोर देगा... बोस तू हाँ कोर.... " लक्ष्मी ने एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा।

" फिर तो होमारा हाँ है....होम अभी अपना पहला बॉयफ्रेंड को मोना कोर देता है.... " रूपा ने मुस्कुराते हुए कहा।

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अश्विन विंशती और शुमा के साथ वापस से उनके फ्लैट में आता है, वहा विंशती प्रशांत को देखकर उसके गले लग कर रोने लगती है, तभी प्रशांत उसके सिर पर हाथ फेरते हुए मुस्कुराते हुए कहता है " विंशती रोता क्यों है पागोल? अभी तो होम जिंदा है ।"

यह सुनकर विंशती हल्के से प्रशांत के सीने पर एक मुक्का मारती है ,उसके बाद प्रशांत मुस्कुराते हुए विंशती के सिर पर हाथ फेरते हुए अश्विन से कहता है " शुक्रिया दादा..... "

" शुक्रिया कैसा? मेरे दोस्त हो तुम .....अच्छा आप लोग आराम कीजिए मैं चलता हूँ। " अश्विन ने कहा और उसके बाद वह वापस अपने फ्लैट की ओर बढ़ गया।

" अच्छा अब हम भी चलते हैं.... " आकाश ने कहा और उसके बाद वह और ज्योति भी वहाँ से अश्विन के फ्लैट में चले गए।

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रात करीब 1 :00 या 1:30 बजे के आसपास अश्विन उठकर अपनी बाल्कनी में जाता है, वह वहाँ आकर ताजी हवा ले ही रहा था कि तभी अचानक उसकी नजर विंशती की बाल्कनी पर पड़ी, रात होने के कारण वहाँ काफी अंधेरा था लेकिन इस अंधेरे में भी अश्विन को वहाँ कोई साया दिखाई दे रहा था ।

लेकिन वह साया स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था, इसलिए अश्विन ने अपनी आँखें मली तो उसे याद आया कि उसने अपना नजर का चश्मा नहीं पहना था ।

" कौन है वहाँ? " अश्विन ने कड़क आवाज में कहा, अश्विन की आवाज़ सुनकर उस साये में हरकत हुई।

क्रमश:......
रोमा.........