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टकटकी

लघुककथा
टकटकी

बंधे - बंधाए ढर्रे पर एक बलात्कार और हुआ ।
हमेशा की तरह यह भी वहशी दबंगों का ही एक सुगलमेला था और इलाके की पुलीस के लिये रूटीन तहकीकात।
विपक्षी दलों के लिए यह एक मौका था। राजनितिक पर्यटन जरुरी हो गया। उनके सारे नेता एक - एक करके उस स्थान पर गये जहाँ लड़की के जिस्म और जान दोनों को रौंदा गया था । पसंदीदा पत्रकारों की एक टोली भी अपने महंगे कैमरों के साथ उनके साथ थी।
लड़की और उसका परिवार सब के सामने लड़की के लहू - लुहान अधनंगे शरीर को लेकर तड़प रहा था ।
मामले को गरम रखने के लिए विपक्षियों ने एक साथ मिलकर टेंट लगाया , कुर्सियां बिछाईं , माईक वाले से माईक लगवाया। जबान में कीचड़ भर - भर कर सरकार को गालियां दी । क्रन्तिकारी नारे " बेटियों के हत्यारोंको फांसी दो - फांसी दो " , इस्तीफा दो - इस्तीफा दो " खूब लगे ।
चुनाव सिर पर थे । उम्मीद पक्की थी कि वोट भी भर - भर कर मिलेंगेंं क्योंकि मिडिया में प्रचार खूब मिला था । भीड़ भी खूब जुटी थी ।
इसी बीच एक होनी और हो गयी। बलात्कार फिर से हुआ ओर वैसा ही हुआ। किया भी उन्हीं दरिदों ने l पर इस बार शहर वो था जहां सरकार खुद विपक्षिओं की थी।
सारे विपक्षियों में खलबली तो मची पर उन्होंने एक - दूसरे को भरोसा दिया कि घबराने की जरुरत नहीं है। लोकतंत्र में ये सब चलता रहता है। कभी वो नीचे हम ऊपर , तो कभी वो ऊपर तो हम नीचे।
सरकार ने राहत की सांस ली। पर अब मौका उनके लिए बन चुका था। जनता के व्यापक हित में इसे खोया नहीं जा सकता था । एक नए पर्यटक दल का गठन जरुरी समझा गया।
सांपों की तरह अपनी - अपनी बिलों में घुसे हुए सारे भोपुओं को बाहर निकाला गया। अवसर बड़ा था, भले ही चेहरे बदले हुए थे। इस बार पहले से भी ज्यादा बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई।
टेंट वही थे पर उनके झंडों का रंग बदला हुआ था। नारों की भाषा भी बदल गयी थी।और पत्रकारों का दल भी दूसरा ही था। खूब शोर मचा। लानत - मलामत हुई। पीड़ितों के लिए मुआवजे की मांग और सरकार द्वारा उसकी स्वीकृति के साथ मेला समाप्त हो गया ।
परिणाम ये रहा कि बलात्कार की शिकार दोनों घरों की लड़कियाँ और उनके परिवार बिलबिलाने को मजबूर रहे । और थाने के सभी कर्मचारी शहर की कानून व्यवस्था को मजबूती से मजबूत करने में पहले से जुटे थे , अब भी जुटे रहे । इसी बीच चुनावों की घोषणा हो गई ।
दबंगों को कुछ दिन के लिए नया काम मिल गया । समाज के जागरूक लोग नई सरकार में जीत - हार के मुश्किल काम में जुट गए ।
दोनों जगहों के पीड़ित परिवार पहले की तरह बिलबिलाने को मजबूर थे । उनकी टकटकी इस बात पर लगी थी कि घोषित किया गया मुआवजा कब मिलेगा और कौन देगा ।

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सुरेंद्र कुमार अरोड़ा , डी - 184 , श्याम पार्क एक्सटेंशन , साहिबाबाद - 201005 ( ऊ. प्र. ),मो : 9911127277