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गंगाजल

"गंगा- जल"


बारह वर्ष का चिंटू पिछले दस सालों से अमेरिका में रह रहा था। दो साल का था, जब उसके माता-पिता उसे लेकर अमेरिका आ गए थे।यूँ तो चिंटू अमेरिकी संस्कृति में ही बड़ा हुआ पर उसका दिल पूरी तरह से भारतीय था। भारतीय व्यंजन, भारतीय पोशाक,भारतीय गांव की कहानियाँ- यह सब उसे बहुत लुभाया करती थीं। भारतीय संस्कृति के प्रति उसकी अनन्य रुचि का सबसे बड़ा कारण थे,उसके दादा-दादी, जो हर साल दो-तीन महीने के लिए अमेरिका अपने बेटे,बहू और पोते से मिलने आया करते थे। दादा दादी जब भी आते, एक छोटे से डिब्बे में गंगा जल लाया करते थे। दादा जी की पोशाक और दादी के पूजा पाठ करने का तरीका चिंटू को बड़ा ही आकर्षक लगता था। जब दादा जी घर पर होते तो धोती कुर्ता पहनते और सिर पर साफा बांधा करते.. दादी भी पूजा पाठ के समय चंदन, रोली, आदि लगातीं, आरती गातीं और चिंटू के ऊपर गंगा जल छिड़का करतीं। चिंटू के ऊपर जब पानी का छींटा पड़ता तो उसे बड़ा मजा आता-"गंगा जल..? यह क्या है दादी..थोड़ा और पानी फेंको न…"वह अक्सर दादी के सामने मचलता।दादी उसे प्यार से समझाया करतीं-- "अरे लल्ला,यह खेलने के लिए नहीं है बेटा...यह गंगाजल है….. गंगाजल...इधर उधर गिरेगा तो पैर के नीचे लगेगा...तेरे घर तो मांस मच्छी भी पकती है... यह तो भगवान का पानी है, बड़ा पवित्र है, इधर उधर नहीं गिरा सकते... समझे मेरे बबुआ…" और फिर प्यार से उसके गालों पर चुम्मियाँ जड़ देतीं.. चिंटू खिलखिला कर हंसता हुआ भाग जाता। उसे सबसे ज्यादा हैरानी इस बात की होती कि इस पानी में ऐसा क्या है कि उसे इतना पवित्र मानते हैं और इतना संभालकर रखते हैं... बिना हाथ धोए दादी उसे छूने भी नहीं देती हैं? पूछने पर दादी ने बताया---"बेटा,यह गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र नदी है... हमारी संस्कृति का प्रतीक है… हम भारतीय इसे 'गंगा माता' के रूप में देखते हैं ।भगवान शिवजी की जटा से धारायें निकलतीं हैं इसकी और इसकी बड़ी धार्मिक कहानियाँ हैं…"फिर गंगा नदी की कई बातें चिंटू को बताया करती---"गंगा नदी के स्नान से सारे पाप धुल जाते हैं।गंगा का धार्मिक महत्व के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है। इसका जल अपनी शुद्धता और पवित्रता को लंबे समय तक बनाए रखता है। इसका जन्म विष्णु जी के पैरों से हुआ और यह भगवान शंकर की जटाओं में निवास करती है ।इसके नियमित प्रयोग से रोग दूर होते हैं... अध्यात्म में इसको सकारात्मक उर्जा का चमत्कार कह सकते हैं। यह कुल मिलाकर 2525 किलोमीटर की दूरी तय करती है और हिमालय से निकलकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक के विशाल भूभाग को सींचती है।देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं जनमानस का भावनात्मक आधार भी है यह गंगा..।" चिंटू हैरानी से आँख फाड़े सारी बातें सुनता और तब गंगा नदी को देखने की ललक उसके मन में तीव्र हो जाती।

अमेरिका के जिस शहर में चिंटू रहता था, वहाँ

बड़ी बड़ी बिल्डिंगें थीं, एक से एक आधुनिक घर थे, शॉपिंग मॉल थे, तरह-तरह के साइंस म्यूजियम थे, परंतु, कोई नदी नहीं थी।एक छोटी सी लेक थी, जहां टूरिस्ट अपने बच्चों को घुमाने और बोटिंग कराने ले जाया करते थे। उसी लेक को देखकर चिंटू गंगा नदी की कल्पना कर लिया करता था। उसका बड़ा मन करता था कि भारत जाकर गंगा नदी को पास से देखे।

ईश्वर ने उसकी यह मनोकामना जल्दी ही पूरी कर दी। उसके पापा को कंपनी ने किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में 6 महीने के

भारत-प्रवास का कार्यक्रम दे दिया। चिंटू की तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा ।सबसे ज्यादा उसे इस बात की खुशी हो रही थी कि वह दादा दादी के साथ खुसरुपूर में जाकर रहेगा, जहाँ थोड़ी ही दूरी पर गंगा नदी बहती है…"कितना मजा आयेगा न...कितनी कहानियां बताती है दादी गंगा नदी के बारे में,... गंगा नदी में क्या भगवान शंकर भी दिखाई देते हैं?... कितनी प्यारी,निर्मल, नीली, खूबसूरत होगी गंगा नदी..अहाsss... मैं तो रोज वहाँ जाकर किनारे खेलूँगा…" मन ही मन चिंटू उत्साह से भर उठा। "कितनी प्यारी-प्यारी बातें बतायीं हैं दादी ने…. क्या सचमुच गंगाजल में इतनी शक्ति है कि हर बीमारी ठीक कर देती है?"--चिंटू का उतावलापन बढ़ने लगा।

आखिर वह दिन भी आ गया जब वह भारत की धरती पर खड़ा था।पापा को प्रोजेक्ट के सिलसिले में कई बड़े शहरों में घूमना था,

इसलिए तय हुआ कि पहले सब लोग खुसरूपुर जाएंगे फिर चिंटू और उसकी मां वहीं रह जाएंगे और पापा आते जाते रहेंगे। खुसरुपुर एक छोटा सा शहरनुमा कस्बा था, जहाँ चिंटू के दादा-दादी की काफी जमीनें थीं और दादाजी वहाँ के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में गिने जाते थे।अंततः वे लोग खुसरूपुर पहुंचे।रास्ते भर चिंटू गंगा नदी की मनोहर कल्पना करता रहा। लेकिन जब तक वे पहुँचे, रात हो चुकी थी ।इसलिए अगली सुबह तक के लिए चिंटू को मन मसोसकर रहना पड़ा ।

सुबह जब चिंटू की नींद खुली तो वह दादा जी से गंगा नदी के पास चलने की जिद करने लगा। नाश्ता वगैरह समाप्त कर वह दादा जी के साथ नदी देखने के लिए निकल पड़ा। आँखों के आगे लहराता गंगा का पानी,कल- कल करता, खूबसूरत नजारा लिए चिंटू के मन में हिलोरें ले रहा था ।नदी के पास पहुंच कर चिंटू की चीख निकल गई-- "अरेsss...यह क्या..?क्या यही गंगा नदी है..?यह तो नाले जैसा गंदा दिख रहा है...ऐसा कैसे हो सकता है यह...गंगा नदी…? नहीं... नहीं..यह नहीं हो सकता... दादी ने तो कुछ और ही बताया था.."चिंटू हैरत में पड़ गया…"चारों तरफ पानी में प्लास्टिक, पॉलिथीन, खाने पीने की चीजें... नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता... दादी गंगाजल की स्वच्छता का कितना ध्यान रखती हैं... पांव के नीचे तक नहीं आने देतीं.. और यहां इतना गंदा नजारा…"चिंटू का मन एकदम से बुझ गया।वह क्या सोच कर आया था और यहाँ क्या देखने को मिल रहा था। एक छोटा सा घाट बना हुआ था,जहाँ पानी तक पहुँचने के लिए 4-5 सीढ़ियाँ थीं, परंतु सीढ़ियों पर काई जमी थी.. इधर-उधर कोल्ड ड्रिंक की बोतलें, पॉलिथीन, कागज,सूखे पत्ते वगैरह बिखरे पड़े थे। ऐसा लगता था मानो वर्षों से यहां किसी ने सफाई नहीं की हो ।चिंटू का मन रो पड़ा।उदास होकर उसने दादा जी से पूछा--"दादा जी यही गंगा नदी है क्या…? यह तो नदी जैसी नहीं लग रही है... कितनी बदबू है... यहाँ चारों तरफ कचरा और गंदा फैला हुआ है.. दादी जी तो कहती थी कि गंगा नदी बहुत पवित्र और अच्छी है, फिर इतनी गंदगी यहां पर क्यों है..?" दादाजी ने चिंटू को समझाया--"बेटा यहाँ पहले ऐसा नहीं था... बड़ी चौड़ी नदी हुआ करती थी और पानी बहुत ही साफ था। परंतु, अगल बगल की फैक्ट्रियों से आने वाली गंदगी और लोगों द्वारा फेंके जाने वाले कचरे की वजह से यह नदी नाले जैसी हो गई है...लोग ध्यान ही नहीं देते हैं... उनकी लापरवाही और गंदा फैलाने के संस्कार ने आज गंगा मां की यह हालत कर दी है।" चिंटू का मन रो पड़ा-- "इतनी पवित्र नदी और उसका यह हाल..? शंकर भगवान भी देखकर कितने दुखी होते होंगे".. उसके भोले से मन ने सोचा । कहाँ तो चिंटू सोच रहा था कि नदी के तट पर ही वह खूब खेलेगा पर यहाँ की बदबू से तो खड़ा रहना भी दूभर हो रहा था। पास ही कुछ बच्चे पानी में कूद-कूद कर नहा रहे थे, कुछ बच्चे इधर-उधर से गंदी चीजें,पत्थर, मिट्टी आदि उठा उठा कर पानी में निशाना लगा रहे थे।यह सब देखकर अचानक चिंटू को ख्याल आया कि "बेचारी मछलियाँ और अन्य जीव जंतु जो गंगा नदी में रहते हैं,वे बेचारे कितनी मुश्किल में रहते होंगे पता नहीं जीवित भी रह पाते हैं या नहीं"-- चिंटू का मन भर आया।

दादी की बताई हुई बात़ें सुनकर उसने गंगा जल की जो छवि अपने ह्रदय में बसा रखी थी, चिंटू उसे टूटने नहीं देना चाहता था।थोड़ी देर तक तो वह अन्यमनस्क सा खड़ा रहा फिर अचानक मन ही मन उसने कुछ निश्चय किया और घर जाकर एक टोकरी ले आया। नदी घर से ज्यादा दूर नहीं थी,इसलिए थोड़ी देर में ही वह वापस आ गया ।अभी दादा जी कुछ समझते या पूछते, चिंटू ने अपने हाथ में ग्लव्स पहने, जिन्हें वह हमेशा अपने किट में रखा करता था, और एक-एक कर बिखरी बोतलें,

प्लास्टिक, फूल, पत्तियां उठा-उठा कर टोकरी में रखने लगा ।उन्हें ऐसा करते देख कर दादाजी ने पहले तो चिंटू को गंदगी छूने से मना किया पर नदी के प्रति उसकी पवित्र भावना देख कर मन ही मन बहुत खुश हुए और वह भी चिंटू का हाथ बँटाने लगे। उन्होंने अगल-बगल खेल रहे बच्चों को भी सफाई के लिए प्रेरित किया।उन्हें ऐसा करते देख अगल -बगल खेल रहे बच्चे पहले तो उन पर हँसने लगे परंतु एक विदेश से आए हुए सुंदर से बच्चे और एक प्रतिष्ठित व्यक्ति को ऐसा करते देख कर वे भी उनके साथ लग गए।

चिंटू के दादाजी वहाँ के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और आसपास के सभी लोग उनकी बड़ी इज्जत करते थे। खुसरूपुर बहुत बड़ा कस्बा नहीं था,अतः आते-जाते लोगों ने जब उन्हें और उनके विदेश में रह रहे पोते को सफाई करते देखा तो धीरे-धीरे वे भी साथ आने लगे। अगले दिन से अगल बगल के भी लोग आकर उनका हाथ बँटाने लगे। देखते ही देखते गंदा और बदबूदार किनारा बिल्कुल साफ सुथरा दिखने लगा ।सीढ़ियों की सफाई करके उन्हें भी रंगवा दिया गया। पानी में जितनी दूर तक संभव था सारा कचरा,प्लास्टिक की बोतलें, पत्ते, फूल मालाएँ वगैरह सब निकाल दिए गए। नदी के किनारे-किनारे सुंदर फूल पौधे लगा दिए गए।

चिंटू की सलाह के हिसाब से दादाजी और अन्य बड़ों ने मिलकर वहां एक बोर्ड लगवा दिया कि यदि कोई कचरा फेंकता हुआ पाया गया तो उसे हजार रुपए जुर्माना देना होगा। इसके अतिरिक्त, नदी की देखरेख के लिए एक गार्ड रख दिया गया जो घाट पर हर आने-जाने वालों पर निगरानी रखता था। धीरे-धीरे वहाँ की स्वच्छता और सुंदरता की चर्चा सारे कस्बे में फैल गई ।

सभी चिंटू की सोच और उसकी आस्था से प्रभावित थे। किसी ने वहां की तस्वीर खींचकर सोशल मीडिया पर डाल दी। फिर क्या था..देखते ही देखते चिंटू की सूझबूझ और मेहनत से बनाई नदी के आसपास की सुंदरता और स्वच्छता सभी बच्चों के बीच वायरल हो गई और उसे देखकर अन्य शहरों में भी बच्चे प्रेरित होने लगे तथा अपने-अपने शहरों की नदियों की सफाई और तटों को सुंदर बनाने में योगदान करने लगे।गंगाजल के आशीर्वाद ने अपना रंग दिखाया और नन्हा चिंटू सब के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया। शहर के सबसे बड़े स्कूल में चिंटू को अवार्ड देने के लिए बुलाया गया जहां चिंटू ने सबसे नदी और उसके किनारों को साफ रखने की अपील की।छोटा सा बच्चा और इतनी बड़ी सोच-- सारे माता-पिता और सभी बच्चे बहुत ही प्रभावित हुए। सभी बड़े और बच्चे नदियों के महत्व को समझने और उन्हें स्वच्छ रखने की प्रतिज्ञा लेने लगे।नदियों का महत्व वे जानते तो पहले भी थे परन्तु इस ओर उन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया था। चिंटू के भोलेपन ने हर बच्चे और बड़े के दिल में नदी के प्रति स्वच्छता और सुंदरता की मशाल जला दी थी।

…… अर्चना अनुप्रिया