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असफलताएं सीमित हैं

असफलताएं सीमित हैं


मानव जीवन मे उतार चढ़ाव सुख दुख की ही तरह सफलता और असफलता भी अभिन्नता से जुड़ी हुई है।
हम सभी को ज्ञात है कि इनसे मुख नहीं मोड़ा जा सकता ना ही पीछा छुड़ाया जा सकता है। ये शाश्वत हैं, सत्य हैं।

कर्म करते हुए यदि परिणाम असफलता के रूप मे प्राप्त हो तो हताशा को मन मस्तिष्क मे स्थिरता ना दें।

बल्कि असफलता के परिणाम को स्वीकार करें।
हमेशा ध्यान मे रखिए कि असफलताएं सीमित हैं,अतः उन्हें स्वीकार लो।

आशाएं अनंत हैं, उन्हें उन्हें कभी छोड़ो ना।
ये आशाएं ही होती है जो हमे पुनः प्रयास करने को प्रेरित करती है।

असफलताएँ, सफलता का ही एक भाग होती हैं । हमारे जीवन में जो असफलताएँ आती हैं वह हमारी नियति का हिस्सा होती है, जो पुनः प्रयास करने की प्रेरणा देती है और प्रयास दर प्रयास सफलता के निकट पहुंचाती है।
यदि असफलता मिले तो भी किसी को दोष मत दीजिए, यह प्रारब्ध है।

दोषारोपण के बजाय मंथन करिए अपनी कार्य समापन रूप रेखा /रणनीति (प्लानिंग) का, कार्य करने के तरीके का, समय पाबंदी का, और सबसे महत्वपूर्ण है कि किस कारण कार्य असफल हुआ, उस कारण का मंथन कर बदलाव करें, और पुनः प्रयास करें।

हमारा मनोबल ना टूटे, साहस क्षीणता की ओर ना अग्रेषित हो इसी लिए हमारे पूर्वजों ने कहा है कि, -
हानि , लाभ, जीवन, मरण (मृत्यु) , जस (यश /प्रसिद्धि), अपजस (अप्रसिद्धि) विधि हाथ (विधाता /ईश्वर के हाथ) ।

एक उदाहरण प्रस्तुत है -
आप सभी भारत के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न ए पी जे अब्दुल कलाम जी के बारे मे अवश्य जानते होंगे। वैसे इनके ऊपर एक रचना पूर्व मे मैने लिखी है, जिसे आप मेरे मातृ भारती पेज पर पढ़ सकते हैं।

एक बार अपने आरंभ काल मे भारतीय वायुसेना में सेलेक्ट न हो पाने पर डाॅ. अब्दुल कलाम जी ने असफलता का सामना किया और उसे स्वीकार भी किया।

कलाम साहब एक एयरोनाॅटिकल इंजीनियर थे।
कैरियर के लिए उनके पास दो ही विकल्प थे - एक एयर फोर्स और दूसरा डी.टी. डी. & पी. (Directorate of Technical Development and Production (air) जो रक्षा मंत्रालय भारत सरकार के अंतर्गत है।

उन्होंने दोनो में आवेदन किया और उनके पास दोनो ही ओर से इंटरव्यू कॉल आए।
उन्हें एयर फोर्स भर्ती अधिकारी विभाग की ओर से देहरादून बुलाया गया और D.T.D. & P. के साक्षात्कार के लिए दिल्ली आने को कहा गया। इंटरव्यू के लिए गये और इंटरव्यू अच्छा रहा।

प्रश्न हमेशा की तरह सामान्य थे और विषय के अनुरुप उन्हें किसी प्रकार से उनके ज्ञान प्रश्नो ने उन्होंने चुनौती नहीं दी।
किन्तु परिणाम उनके अनुकूल ना हो कर विपरित आया।

अर्थात असफलता। 25 पदों की बैच मे 8 का चयन होना था, और उनका स्थान 9 वाँ आया था। वे समझ चुके थे कि अब ये नौकरी हाथ से खिसक चुकी है।
असफलता की खिन्नता से वे शांति के लिए ऋषिकेश चले गए, गंगा स्नान किया, किंतु मन था कि स्थिर होने को तैयार ना थे।

ऐसी परिस्थियों मे स्वाभाविक ही मन अध्यात्म मे शान्ति खोजने का प्रयास करता है। वह भी समान्य मनुष्य ही थे, हमारे आपके ही जैसे।

पास के एक आश्रम मे गए। जहां कई साधुओं के बीच ही स्वामी शिवानंद से मुलाकात हुई।
उन्होंने अपने व्यथित मनोदशा को स्वामी जी के सम्मुख रखा।

स्वामी जी ने शांत चित्त मुस्कान के साथ उन्होंने बड़े स्नेह से समझाया - " इच्छा जब वह ह्रदय तथा आत्मा में उठती है तब वह शुद्ध और तीव्र होती है , उसमें आश्चर्य भरी विधुत - चुम्बकीय ऊर्जा होती है ।

यह ऊर्जा हर रात को वायुमंडल में मुक्त कर दी जाती है , जब मस्तिष्क नींद की अवस्था में होता है । प्रत्येक सुबह सचेत अवस्था में वह उर्जा ब्रम्हांड से और शक्ति प्राप्त कर वापस आती है, जिसकी कल्पना की गई है , छवि बनाई गयी है , वह निश्चित रूप से प्रकट होगा ।
नौजवान ! तुम इस सार्वकालिक वचन पर उतना ही भरोसा कर सकते हो , जितना कि तुम रोज सूर्योदय होने और वसन्त ऋतु के आने पर करते हो ।"

स्वामी जी ने समझाते हुए आगे कहा -
" अपनी नियति को स्वीकार कर लो और जीवन में आगे बढ़ो , तुम एक वायुसेना के पायलट बनने के लिए नहीं बने हो - तुम क्या बनोगे यह अभी प्रकट नही है पर वह पहले से ही निश्चित है ;इस असफलता को भूल जाओ क्योकि यह तुम्हें अपने नियति के पथ पर ले जाने के लिए अत्यावश्यक थी।
इसके बजाय " अपने अस्तित्व के सच्चे उद्देश्य को खोजो अपने आपसे एकाकार हो जाओ पुत्र ! ईश्वरेच्छा के प्रति समर्पण कर दो "

इस विषय पर उन्होंने एक साक्षात्कार और अपनी पुस्तक मे भी वर्णित करते हुए कहा था कि, जब शिष्य तैयार होता है , तो गुरू प्रकट होते हैं । कितना सत्य है ! यह वह शिक्षक था जो एक पथभ्रष्ट विधार्थी को राह दिखला रहा था।

वे पुनः दिल्ली वापस आए और डी.टी. डी. & पी.(D.T.D. & P.) मे हुए साक्षात्कार का परिणाम पूछा।
उन्हें एक सीनियर साइंटिफिक असिस्टेंट के पद पर नियुक्ति पत्र दिया गया।

उन्होंने इसके बाद कभी भी एयरफोर्स (वायुसेना) में जाने के लिए नहीं सोचा।

और अंत मे उन्हीं का एक विचार -

"एक असफलता सफलता की और ऊँची राह पर ले जाती है, नियति के रास्ते निराले होते हैं।
कहते हैं असफलता का अर्थ है कि सफलता
का प्रयास पूरे मन से नहीं किया गया
इसलिए निराश मत होइए, असफलता से सबक लीजिए,और फिर से कोशिश कीजिए ,
हो सकता है इस बार आपको सफलता मिल जाए।


✍🏻संदीप सिंह (ईशू)