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अंधविश्वास

अंधविश्वास

बात उन दिनों की है जब मैं पांचवी कक्षा में पढ़ता था। हमारे परिवार में सिर्फ चार प्राणी रहते थे। मम्मी-पापा, मैं और दादी माँ। मम्मी-पापा मुझसे बहुत प्यार करते थे और मैं भी उन्हें बहुत प्यार करता था, पर दादी माँ को मैं सबसे ज्यादा प्यार करता था और वे भी मुझे उतना ही चाहती थी। स्कूल समय के अलावा मेरा अधिकांश समय उन्हीं के साथ बीतता था।
वे ही मुझे खिलातीं, नहलातीं, होमवर्क करातीं और स्कूल के लिए तैयार करती थीं। घर से स्कूल की दूरी महज आधा किलोमीटर होने के बावजूद दादी माँ उंगली पकड़कर मुझे रोज स्कूल छोड़ने और लेने जाती थीं। रात को भी मैं उन्हीं के साथ सोता और रोज नई-नई कहानियाँ सुना करता।
दादी माँ को ज्योतिषियों पर बहुत विश्वास था और उनकी बातों को वे ब्रह्म वाक्य की तरह मानती थीं। एक बार एक ज्योतिष दोपहर के समय हमारे घर आए। दादी माँ ने उनका आदरपूर्वक स्वागत-सत्कार किया और मुझे गोद में लेकर उन्हें अपना हाथ दिखाते हुए पूछा- ‘‘महाराज कुछ भविष्य की बातें बताने का कष्ट करें।’’
ज्योतिष बहुत देर तक दादी माँ का हाथ पढ़ता रहा पर बोला कुछ नहीं। शायद कुछ सोच रहा था।
दादी माँ ने उसकी गंभीरता का कारण पूछा तो उसने बताया- ‘‘माताजी, बात ही कुछ ऐसी है। आज तक मेरी ज्योतिष विद्या कभी असत्य प्रमाणित नहीं हुई है, इसलिए सत्य बताने से डरता हूँ।’’
दादी माँ किसी आशंका से एकदम डर गईं। हाथ जोड़कर बोली- ‘‘महाराज ! जल्दी बताइए, मेरा दिल बैठा जा रहा है।’’
‘‘आपके हाथ की रेखाएँ बता रही हैं कि तीन दिन के भीतर आपको पुत्र शोक होगा। एक दुर्घटना में आपका बेटा आपसे हमेशा के लिए बिछड़ जाएगा।’’ ज्योतिष की बात सुनकर दादी माँ एकदम परेशान हो गयीं। मम्मी ने तो रोना ही शुरु कर दिया।
दादी माँ मुझे गोद में उतारकर ज्योतिष के पाँवों में गिर कर लगभग रोते हुए बोलीं- ‘‘महाराज, इससे बचने का कोई तो उपाय होगा। अब आप ही का सहारा है। मेरे बेटे को किसी भी तरह से बचा लीजिए महाराज।’’
‘‘धीरज रखिए माताजी, धीरज रखिए। अब मैं आ गया हूँ न। आपके बेटे को कुछ नहीं होगा। आप निश्चिन्त रहिए। आपको बस एक छोटा-सा शांति पाठ करना होगा। आप तो जितनी जल्दी हो सके आवश्यक सामग्रियों की व्यवस्था कीजिए।
दादी माँ कुछ पूछतीं इससे पहले एक कड़कदार आवाज गूंजी -‘‘रूक जाओे माँ।’’ आवाज पिताजी की थी जो पुलिस विभाग में इंसपेक्टर थे और आज अचानक समय से पहले घर आ गए थे।
पिता जी ने ज्योतिष से पूछा- ‘‘तो आप भविष्यवक्ता हैं ?’’
ज्योतिष बोला- ‘‘जी हाँ।’’
पिता जी ने फिर पूछा- ‘‘अच्छा तो आप मुझे ये बताइए कि अब मैं आपको जूते से मारूँगा कि डंडे से ?’’
ज्योतिष सकपकाया, बोला- ‘‘जी.... जी.... आप मुझे क्यों मारेंगे...... ? मैंने क्या अपराध क्या है ?’’
पिता जी ने उसे दो डंडे लगाने के बाद कहा- ‘‘तुमने इन भोले-भाले लोगों को झूठमूठ की बातों से भयभीत कर ठगने का अपराध किया है। इस जुर्म में तुम्हें जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है।’
जेल का नाम सुनते ही ज्योतिष की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। वह अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर भाग खड़ा हुआ। पिता जी बहुत देर तक मम्मी तथा दादी माँ को समझाते रहे कि ऐसे लोग ठग होते हैं, जो भोले-भाले लोगों को झूठमूठ की बातों से भयभीत कर देते हैं और पूजा-पाठ के नाम पर ठगते हैं। ऐसे लोगों के झाँसे में नहीं पड़ना चाहिए।
पर दादी माँ कहाँ मानने वाली थी। अड़ गईं कि ‘‘तुम तीन दिनों की छुट्टी ले लो और घर में रहो।’’
पिता जी ने समझाया कि ऐसा कुछ नहीं होगा और जो होना है वह घर-बाहर कहीं भी हो सकता है। पर दादी माँ तो दादी माँ थीं-पिताजी की मम्मी। वह भला कहाँ मानने वाली थीं। नहीं मानीं। हारकर पिताजी को तीन दिनो की छुट्टी लेनी पड़ी। लेकिन तीन दिन बीतने पर भी जब कुछ नहीं हुआ तो दादी माँ को अपनी गलती का अहसास हुआ। बोली- ‘‘बेटा, मुझे माफ कर देना। मेरे अंधविश्वास के चलते तुम्हें परेशान होना पड़ा। पर क्या करूँ, माँ हूँ न। लेकिन अब जान गई हूँ कि ये सब बेकार की बातें हैं।‘‘
और सचमुच दादी माँ जब तक जीवित रहीं, उन्हें कभी किसी ज्योतिष से बातें करते नहीं देखा।
- डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़