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संस्कारिक क्रांति का शंखनाद


भारत कि मूल संस्कृति के संस्कारिक क्रांति का शंखनाद
स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से प्रधान मंत्री के उदगार -

छिहत्तरवे स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से प्रधान मंत्री का सम्बोधन राष्ट्र के लिये नए सौभग्य एव सौगात का अवसर होता है जिसके कारण देश का प्रत्येक नागरिक इस विशेष अवसर कि प्रतीक्षा बड़ी स उत्सुकता से करता है ।

सभी प्रधान मंत्रियों द्वारा लगभग प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र कि जनता को कुछ ना कुछ सौगात देने कि परम्परा आम रही है।
मगर नरेंद्र दामोदर दास मोदी द्वारा इस स्थापित परम्परा से हट कर एक नव शुभारंभ का साहस प्रदर्शित किया गया है जो समाज राष्ट्र के विकास का मूल मौलिक सिद्धांत है।

अपने प्रथम संबोधन 15 अगस्त 2014 से किया गया स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को कुछ सौगात देने के बजाय संसास्कृतिक परिवर्तन के क्रांति का आवाहन किया गया।

अपने पहले स्वतंत्रता दिवस सम्बोधन द्वारा लालकिले कि प्राचीर से स्वच्छता संस्कार के संस्कारिक क्रांति का आवाहन किया जो सार्थक नेतृत्व कि सकारत्मक सोच कि दृढ़ता एव दूर दृष्टि कि प्रतिबद्धता के प्रति संकल्पित है।

सच्चाई भी यही है कि जब भी कोई राष्ट्र औपनिवेशिक जकड़न कि गुलामी से मुक्त होता है तो उस समय उसकी मूल सांस्कृतिक पहचान विलुप्त हो चुकी होती है और एक वर्णशंकर संस्कृति में आम जन भटकता है भारत भी इस सत्यता से अछूता नही था यह विडंबना है कि जिस स्वतंत्रता के संघर्ष में सम्पूर्ण भारत की जनता में स्वतंत्रता को लेकर एक राष्ट्र भारत की स्वतंत्रता का लक्ष्य था तो स्वतंत्रता मिलते मिलते धार्मिक विभाजन कि विभीषिका को धार्मिक उन्माद की संस्कृति के जन्म के कारण स्वीकार करना पड़ा ।

वर्तमान प्रधान मंत्री मोदी जी भारत को उसके मूल संस्कृत संस्कारो से युक्त कर सबल सक्षम सम्पन्न राष्ट्र बनाने के लिए कृत संकल्पित है उनके द्वारा प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस को लाल किले की प्राचीर से इसी इच्छा संकल्प को अपने प्रत्येक संबोधन में दोहराया गया है जिसके लिए आलोचना भी होती रही है ।

कुछ दिन पूर्व मेरी एक सज्जन से मुलाक़ात हुई जिनका संबंध दूसरे पश्चिमी देश से था भारत भ्रमण पर आए थे मुझसे मुलाकात हो गयी बातों ही बातों में उन्होनें परिहास अंदाज़ में अपनी भाषा लैटिन में कहा जिस देश में स्वच्छता किंतनी आवश्यक है को समझाने एव व्यवहारिक रूप से जन जन के आचरण में उतारने में करोड़ो व्यय हो जाते हो उस राष्ट्र का भगवान ही मालिक जबकि स्वच्छता तो मनुषय के जन्मार्जित संस्कारो में प्रमुख है उनके कहने का स्प्ष्ट तातपर्य था कि परतंत्रता से राष्ट्र का मूल चरित्र विकृत और संस्कार दूषित हो जाता है जिसके कारण अन्य समस्याओं के साथ साथ गरीबी ,भुखमरी ,बेरोजगारी आदि प्रमुख समस्याएं चुनौती के रूप में खड़ी हो जाती है।

मुझे उन महाशय कि बात भारत के परिपेक्ष्य में विल्कुल सही प्रतीत हुई प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का प्रायास भी यही है कि भारत को उसके मूल चरित्र एव संस्कृत संस्कार के माध्यम से सबल सक्षम विकसित बनाया जाय उनका संबोधन भी इसी संकल्प का शंखनाद था।

प्रधान मंत्री के सम्बोधन का शुभारंभ उपलब्धियों और प्राथमिकताओं पर केंद्रित था उन्होंने आने वाले भारत के लिये तकनीकी शिक्षा, रोजगार परक शिक्षा को संदर्भित नई शिक्षा नीति ,रक्षा क्षेत्र में आत्म निर्भरता कि दृढ़ता के संकल्प को राष्ट्र के समक्ष रखा तो सहकारिता आंदोलन कि आवश्यकता अपेक्षाओं का उल्लेख किया।

नारी शक्ति के सम्मान संवर्धन सहभगिता और सुरक्षा पर मोदी जी के स्वर भरत वासियों के हृदय के हृदय को स्पंदित कर गए।

वर्तमान समय मे वैश्विक एव राष्ट्रीय दोनों ही अनिवार्यता है राष्ट्र जन एव समाज का सांस्कारिक दायित्व भी है कि आधी आबादी नारी शक्ति निर्भय निडर होकर प्रत्येक क्षेत्र में अपनी सहभागिता सुनिश्चित मजबूत इरादों के साथ कर सके।

प्रधान मंत्री द्वारा जिन दो महत्त्वपूर्ण सांस्कारिक परिवर्तन के परिपेक्ष्य में आवाहन किया गया था उसमें पहला था शासन एव जनता के अपने अपने कर्तव्यों का ईमानदारी पूर्वक निर्वहन उनके सम्बोधन में प्रमुख आकर्षण था उनका आवाहन कि यदि घर घर बिजली पहचाना सरकार कि प्राथमिकता तो बिजली का अपव्यय रोकना आम जन का दायित्व है यदि स्वच्छ जल घर घर और सिंचाई के लिए खेत खेत पहुंचाना सरकार का दायित्व है तो जल की प्रत्येक बूंद का सदुपयोग करना एव दुरपयोग रोकना आम जन का कर्तव्य है।

इस प्रकार से परोक्ष रूप से लोक तंत्र में जन सत्ता कि भागीदारी को भी परिभाषित कर दिया उनका स्पष्ट मत था कि सरकार एव जनता के कर्तव्य एव दायित्व बोध कि ईमानदार भागीदारी ही राष्ट्र को विकास के उत्कर्ष पर स्थापित कर सकने में सक्षम है।

राष्ट्र की जनता द्वारा अपव्यय कि संस्कृति को त्यागने का सांस्कारिक आवाहन ही प्रधान मंत्री जी द्वारा किया गया जो याथार्त के संदर्भ में था।

उनके सम्बोधन में आयात पर निर्भरता को कम करने एव आद्योगिक एवं तकनीकी विकास के परिपेक्ष्य में लाल बहादुर शास्त्री द्वारा जय जवान, जय किसान, में स्वर्गीय अटल जी के द्वारा जोड़े गए जय विज्ञान में एक और कड़ी जय अनुसंधान जोड़ कर जय जवान जय किसान जय विज्ञान जय अनुसंधान के माध्यम से आउद्योगिक विज्ञान एवं बैज्ञानिक क्रांति के आधुनिक निर्माण एव विकास की अनिवार्यता पर बल दिया जो महत्वपूर्ण है साथ ही साथ विदेशी उत्पादों पर निर्भरता कम करने एव भारतीय उत्पादों को प्रोत्साहित करने की पुरजोर वकालत कि जो प्रासंगिक एवं अनिवार्य है।

भारतीय खिलौनों के प्रति भारतीय बच्चों के आकर्षण को उद्गृत करते हुये खिलौनों के आयात में भारी कमी भारतीय कौशल शक्ति के वास्तविक बैभव को जागरूक करने का प्रधान मंत्री जी द्वारा सबसे प्रमुख सांस्कारिक आवाहन कर्म क्रांति का शंखनाद था।

भ्रष्टाचार भाई भतीजा बाद के संदर्भ में प्रधान मंत्री जी ने जिस दृढ़ता संकल्प शक्ति साहस का आवाहन किया जो भारत कि जड़ो को खोखला करता जा रहा है जिसके कारण प्रतिभाएं दम तोड़ देती है या विकसित होने के अवसर से वंचित हो जाती है भ्रष्टाचार एक ऐसी सच्चाई है जो स्वतंत्रता को परतंत्रता से भी बदतर हालात कि ओर धकेलने कि कोशिश है भ्रष्टाचार जो भारत मे एक सांस्कारिक प्रदुषण कि तरह घर कर गया है जिसके कारण राष्ट्र में मौजूद संसाधनों के न्यायोचित वितरण की प्रणाली ने दम तोड़ दिया है छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर तक भ्रष्टाचार एक भयानक कैंसर कि तरह बढ़ता ही जा रहा है जिसके भयानक एव विकृत रूप विराटम होते जा रहै है भ्रष्टाचार का ही एक विस्तार भाई भतीजा बाद है जिसके कारण राजनीतिक भ्रष्टाचार जन्म ले रहा है और जिसके कोख से संकीर्ण मानसिकता कि क्षेत्रीयता के बर्चस्व के लिए जातीय धार्मिक समीकरणों का बेमेल भयानक सामंजस्य स्वतंत्रता कि अवधारणा ही समाप्त कर देता है और उसके अंतर्मन से भाई भतीजा बाद का दंश दानव ही जन्म लेता है क्षेत्रीयता अवसरवाद के धरातल कि उपज है जिसमें राष्ट्र या समाज के कल्याण की कल्पना नहीं कि जा सकती सिर्फ व्यक्तिगत महतवाकांक्षाओ का किसी स्तर तक पोषण ही मूल होता है भ्रष्टाचार यदि जन्म लेता है तो निश्चय ही उसका श्रेय राष्ट्र के आम जन को भी जाता है जो जानते हुए भी भ्रष्टाचारीयो को फलने फूलने देते है एव उसका महिमा मंडित करते है भ्रष्टाचार के कारण भय भूख जन्म लेता है अपराध बाहुबली उसके दो प्रमुख महत्वपूर्ण अवयव है आदरणीय प्रधान मंत्री जी ने बहुत भावुक होकर भारत की जनता को भ्रष्टाचार भाई भतीजा बाद के कैंसर से देश के भविष्य को बचाने के लिये आम जन से सांस्कारिक क्रांति का आवाहन अतीत एव भविष्य के बहुत प्रश्नों का उत्तर एव समाधान है जिसकी एक मात्र आवश्यकता भारत के जन जन का भ्रष्टाचार एव उससे जन्म लेने वाली बीमारियों के समूल नाश के लिए सांस्कारिक जागरण किजन क्रांति का शंखनाद सुखद वतर्मान और भविष्य के लिए एक अनिवार्यता है।

रक्षा क्षेत्र में आत्म निर्भरता और और खेलो में भारत कि उपलब्धि प्रधान मंत्री जी द्वारा राष्ट्र कि उपलब्धियों एवं अभिमान के रूप भारत कि जनता के साथ साझा करते हुए जन आकांक्षाओं के अनुरूप मूल भारतीय अवधारणा के सांसकारिक चेतना जागरण का आवाहन उनके उद्बोधन का सार तथ्य तत्व था।
प्रधान मंत्री जी के उद्बोधन का सारांश भारत कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के अमृत् महोत्सव एवं 76 स्वतंत्रता दिवस पर अमृत काल में प्रवेश के साथ ही स्वतंत्रता के शातब्दी वर्ष के मध्य उद्देश्यों के संकल्प एवं उसकी प्राप्ति का ऐतिासिक उद्बोधन सिद्धि के सिद्धांत के रूप में प्रेषित किया संवादित। किया जो महात्मा गांधी,नेता जी सुभाष चन्द्र बोस,लोकमान्य तिलक, सरदार बल्लभ भाई पटेल एवं भगत सिंह,चन्द्र शेखर आजाद ,असफाकउल्लाह ख़ा पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल,लाला लाजपत राय उधम सिंह लक्ष्मी बाई,मंगल पांडेय भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दो सम उद्देश्य विचारो के समन्यवक उद्देश्यों का सांस्कारिक चिंतन का ही सानसकारिक क्रांति का आवाहन है वर्तमान कि अनिवार्यता तो भविष्य कि आवश्यकता है।।

नन्दलाल मणि त्रिपठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।