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सर्कस - 6

                                                                                                       सर्कस : ६  

         सुबह जब मैं नींद से जगा, तो आँगन में पेडों की डालियों पर खिले फुलों की सुगंध ओैर पेड पर बैठे पंछियों की चहचहाहट सुनकर मन प्रसन्न हो उठा। आज भी मन पर कोई बोझ नही था, तो सुबह खुशनुमा थी। कुछ देर तक मुझे उस माहोल में खुशी का एहसास होता रहा। फिर दिन भर के काम याद आ गए ओैर मैं वहाँ से उठकर चला गया। जब सभी लोग नाश्ते के लिए मेज पर एकत्रित हुए तो फिर से चर्चा शुरू हो गई। अंत में यह तय हुआ कि मैं चाचाजी के साथ मेडिकल चेकप के लिए जाऊँगा ओैर पिताजी-दादाजी उनके वकील मित्र के साथ क्टॉंट्रॅक्ट पर सल्ला-मसलत करेंगे। अभी एक हफ्ता मेरा घर पर आना-जाना चलने ही वाला था, इस कारण बॅग भरने की कोई जल्दी नही थी। माँ, चाची चर्चा कर रही थी कि गाँव छोडते समय ओैर कौन से व्यंजन इस के साथ भेज सकते हैं। माँ के आँखों में रह-रहकर आँसुओं की लगी माला, देखते सभी की आँखे नम हो जाती।

        चाचाजी ओैर मैं बाहर निकल गए। उन्होंने अपने जान-पहचान के डॉक्टर से अपॉइनमेंट ली थी। युवावस्था के कारण जादा टेस्ट नही थे। आँखों की जाँच पडताल, ईसीजी, हड्डियों का घनत्व, वजन, सुनने की क्षमता, फेफडों की कार्यक्षमता ऐसे कई तरह के टेस्ट करवाए। डॉक्टरजी को रिपोर्ट दिखाने के बाद, उन्होंने यह टेस्ट किस कारण करवाए इस बात का जिक्र किया ओैर वह कारण सुनकर हैरान रह गए। उन्होंने कहाँ “ श्रवण, भगवान ने हर किसी को कोई उद्दिष्ट, अपने-अपने काम से भेजा है। उसके विपरीत रास्ते पर हम चलना शुरू करेंगे, तो हमें बाधाओं, कठिनाईयों, निराशाओं आदि का सामना करना पडेगा। तब कोई गुरु, मार्गदर्शक आकर हम से मिलेंगे ओैर निर्धारित मार्ग पर हमारा मार्गदर्शन करेंगे। तब आपकी जीवनयात्रा सुचारू रुप से चलने लगती हैं। आप काम का आनंद लेना शुरू कर देते है तो जीवन में भी आनंद आने लगता है। ऐसेही आपको सभी का समर्थन मिलता रहे, अपना उद्दिष्ट पुर्ण करने की शुभकामनाएँ देते हुए आशिर्वाद देता हूँ।” ऐसा कहकर रिपोर्ट की  छान-बीन की। डॉक्टरजी ने जो कहा वह सब समझने की ओैर उससे सहमत होने की मेरी उम्र नही थी लेकिन कुछ बातें बाद में समझ आ गई। रिपोर्ट ओैर सर्टिफिकेट्स के साथ हम घर लौटे।

         घर पर हर कोई हमारा इंतजार कर रहा था। माँ ओैर चाची ने बडे चाव से खाना बनाया था। गरमी के दिन के कारण आमरस पुरी का पकवान सबका जी ललचाता, बडे मन से सबने खाना खाया ओैर विश्रांती के लिए अपने रूम में चले गए। चार बजे अरुणचाचाजी घर पर आने वाले थे। दादाजी ने कॉंट्रॅक्ट में थोडे-बहुत बदलाव सुझाए थे उनकी एक कॉपी अलग से रख दी। गद्दे पर लेटते ही नींद लग गई। अर्धस्वप्न जागृत अवस्था का खेल चल रहा था। कुछ अलग राह अपनाने का समय नजदिक आ गया। एक गुमनाम डर मन पर हावी होने लगा। स्वप्न में विचित्र घटनाएँ दिखाई देने लगी। मैं कहाँ हूँ इस बात का एहसास नही हो रहा था। किसी की आहट से मेरी नींद खुल गई, पिताजी मुझे जगाने आए थे। अरुण चाचाजी आने का वक्त हो रहा था। शरीर भारी हो गया, कुछ देर ऐसेही बैठा रहा। मुँह पर पानी की छिटे मारने के बाद मुझे बेहतर महसुस होने लगा। लेकिन दिल की धडकन अभी भी तेज थी। मैं ऐसे ही हॉल में आ गया।

        सब अपने-अपने काम में मश्गुल थे। रसोईघर में कुछ खास व्यंजन पक रहा था। चाचाजी, पिताजी, दादाजी फिर आखरी बार कॉंट्रॅक्ट पर नजर फेर रहे थे। मुझे देखते ही विनीत मेरे पास आ गया, हम बगीचे की ओर चले गए।

 “ विनीत, मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही हैं ना? आज न जाने क्युं मुझे डर सा लग रहा हैं। अभी तक तो कल्पना में उडान भर रहा था, लेकिन अब वास्तव सामने आ गया वैसे मन का बोझ बढता जा रहा है। माँ-पिताजी ने काम करने की आदत तो लगा दी है, लेकिन घर में रहते हुए काम करना ओैर यहाँ पुरे दिन काम में लगाना अलग बात लग रही है। खान-पान की अलग-अलग आदतें तो नही है लेकिन घर का स्वस्थ, स्वादिष्ट भोजन ओैर वहाँ का भोजन इसमें मेल कैसे बैठेगा? वहाँ के लोग कैसे होंगे ? मेरा उनसे प्यार भरा रिश्ता तो हो जाएगा ना ? ऐसे विचारों से मैं पीडित हो गया हूँ।”  

      “ कोई बात नही श्रवण, ऐसे विचार मन में आना तो स्वाभाविक हैं। नये अनुभव से गुजरने तक यह डर मन में समा रहेगा। पर तू चिंता मत कर अपने लक्ष्य पर ध्यान रख, फिर मन की बाधाएँ कम सताएगी। वैसे देखा जाय तो व्यापक क्षेत्र तुम्हे काम करने के लिए मिला है। मानसिक, शारीरिक, आर्थिक बल तुम्हारे पिछे सही मायने में खडा है।”

     “ सही बात है विनीत, मुझे ही मन को दृढ करना चाहिये। अलग-अलग घटनाओं से सामना करने की उम्मीद रखनी चाहिये। मैं करूँगा, लढूँगा। तुम सब साथ मैं है तो मैं भी पिछे नही हटुँगा। चल अरुणचाचाजी आने का वक्त हो गया।

      पाँच ही मिनिट में अरुणचाचाजी उनके वकील के साथ आ गए। पिताजी ने घर के लोगों से उनका परिचय करवाया। अरुणचाचाजी का आकर्षक, धैर्यवान ओैर गंभीर लेकिन मुस्कुराते हुए व्यक्तिमत्व को देखकर सब महिलावर्ग को संतोष मिला। खुशी से उनके मन ने मुझे सर्कस में शामिल होने की हामी भर दी, ओैर पुरा माहोल अनुकूलता से भर गया। फिर कॉंट्रॅक्ट के बारे में चर्चा शुरू हुई। सही विचार-विनिमय हुआ, विकल्प पर सर्व सर्वसंमती से हस्ताक्षर किए गए। यहाँ मुझे शुरू से वेतन मिलने वाला था यह बात मुझे ओैर विनीत को बहुत आनंद दे गई। अब मन में एक जो डर था वह चला गया। सब होने के बाद अरुणचाचाजीने कहा “ श्रवण, अब तू सर्कस का एक हिस्सा बन गया है। सर्कस के सब लोग मेरा एक परिवार है। अभी वेतन के बारे में भी किसी से कुछ मत कहना। कल सुबह ऑफिस में आ जाना रात में तुम्हे घर छोडने की व्यवस्था मैं कर दुँगा।”

 मैंने भी आत्मविश्वासपूर्णता से सिर हिलाया। परिवार के समर्थन के साथ-साथ खुद की कमाई का एक नया अंदाज मिल गया। वेतन पाने के विचार के साथ मेरा मन दृढता से अपनी योग्यता साबित करने के लिए तैयार था। सभी को अलविदा करने के बाद अरुणचाचाजी ओैर उनके वकील दोस्त चले गए।

      फिर सबने अपना काम शुरू किया। एक बडा फैसला हो चुका था। पिताजी ओैर दादाजी एक दो दिन मेरे लिए रुकने वाले थे। सर्कस में, मैं ठीक तरह से समायोजित कर पा रहा हूँ यह जानने के बाद वह अल्मोडा जाएँगे, माँ, मैं सर्कस के साथ जबलपूर चले जाने के बाद यहाँ से जाएगी, चाचाजी ओैर विनीत मेरी जो कुछ भी तैयारी बाकी थी उसमें मदत करेंगे ऐसा सब तय हुआ। रात का खाना खाने के बाद सब सोने चले गए। बिस्तर पर लेटे-लेटे सो जाऊँगा ऐसा लग रहा था, लेकिन कल के नए अनुभव के खयाल से नींद जैसे कही चली गई। अनेक विचारों का तांडव दिमाग में चल रहा था। ऐसे में कब आँख लगी पता ही नही चला।

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