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देह के दायरे - 31

देह के दायरे

भाग - इकत्तीस

करुणा के चित्र को अपने सामने रखकर पंकज बड़े ध्यान से उसे देख रहा था | जब से उसने यह चित्र पूरा किया था, उसे यह विश्वास हो गया था कि करुणा भी उसे उसीकी भाँती खामोश प्यार करती है | वह उसका पहले से अधिक ध्यान रखने लगी थी | एक तरह से उसने ही तो उसकी देखभाल का उत्तरदायित्व पूरी तरह से अपने ऊपर ले लिया था |

करुणा उसके पीछे खड़ी काफी देर से उसे देखे जा रही थी |

“पंकज, आप प्रतिदिन इस चित्र को इतने ध्यान से क्यों देखते हो?” करुणा की आवाज ने पंकज को चौंका दिया |

“इस चित्र की सुन्दरता मुझे आकर्षित करती है करुणा |”

“आपने इस चित्र को सचमुच ही बहुत सुन्दर बना दिया है | इतनी सुन्दर तो मैं नहीं हूँ |”

“आप अपनी सुन्दरता को स्वयं कैसे देख सकती हैं? मेरी आँखों ने उसे देखा तो चित्र में ढाल दिया | यह चित्र झूठा नहीं है करुणा |”

“पंकज!” करुणा भावावेश में कह उठी |

“हाँ करुणा |” कुछ ठहरकर पंकज ने कहना प्रारम्भ किया, “बहुत दिनों से एक बात तुम्हें कहता चाहता हूँ |”

“क्या?”

“आप स्वयं समझती हैं करुणा जी |”

“मेरे कलंक को जानकर भी आप ऐसा सोचते हैं?”

“वह कलंक नहीं, तुमपर अत्याचार था |” आवेश में पंकज ने कहा |

“यह कौन देखता है?”

“यह मैं देख सकता हूँ करुणा | हाँ करुणा, बहुत सोच-समझकर ही मैं यह सब कुछ कह रहा हूँ | मैं तुम्हें पवित्र मानता हूँ |” ‘आपकी’ दीवार ढह गयी |

“मुझे विश्वास नहीं हो रहा हैं पंकज |” करुणा की आवाज जैसे कहीं बहुत दूर से आ रही थी |

एक झटके से पंकज उठ खड़ा हुआ और उसने करुणा को अपनी बाँहों का सहारा देकर कुर्सी पर बैठा दिया |

“आप बहुत महान् हैं पंकज बाबू!” करुणा ने उसके पाँव पकड़ लिए |

“मैं भी एक मनुष्य हूँ करुणा | तुम्हारे प्यार ने शायद मुझे महान् बना दिया हो |” पंकज ने उसके हाथ पकड़कर चूम लिए |

किसी के आने की आहट से दोनों ख्यालों की दुनिया से बाहर आए | पूजा उसे दोनों के सामने खड़ी थी | दोनों ही उससे दृष्टि नहीं मिला पा रहे थे |

“पंकज मैंने तुम्हारे लिए एक लड़की देख ली है |”

“लेकिन...!” संकोचवश वह कुछ न कह सका |

“मैं अब शीघ्र ही तुम्हारी शादी कर देना चाहती हूँ |” कुछ कठोरता से पूजा ने कहा |

करुणा यह सुनकर वहाँ न ठहर सकी |

“मैं शादी नहीं कर सकता पूजा |”

“क्यों, क्या कोई लड़की तुमने पसन्द कर ली है?”

“हाँ! मैं करुणा...”

“मैं जानती हूँ पंकज! मैंने भी उसे ही तुम्हारे लिए चुना है |”

“पूजा...!”

“लेकिन एक बात सुन लो पंकज | करुणा के विषय में तुमसे कुछ भी छिपा हुआ नहीं है | उसने जीवन में बहुत कष्ट उठाए हैं | कहीं ऐसा न हो...|”

“नहीं पूजा, मुझपर विश्वास करो | मैं करुणा को पवित्र मानता हूँ | जो कुछ भी हुआ उसमें उसका कहीं भी कुछ दोष नहीं है |”

“तो ठीक है, शादी कोर्ट में होगी |” पूजा ने कहा |

“आप भी कल हमारे साथ कोर्ट चलना |” पंकज उत्सुकता में कह गया |

“इतनी जल्दी है शादी की!” पूजा ने हँसकर कहा तो पंकज झेंप गया |

“ठीक है, हम तीनों कल ही कोर्ट में चलेंगे |” कहकर पूजा वहाँ से चल दी |

बाहर निकली तो उसकी दृष्टि एक ओर खड़ी करुणा पर गयी | शर्म से उसकी दृष्टि झुकी हुई थी | शायद वह वहाँ छुपकर उनकी बातें सुन रही थी | पूजा हँसकर सीढ़ियों की ओर बढ़ गयी |