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शांतनु - 2

शांतनु

लेखक: सिद्धार्थ छाया

(मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण)

दो

हर सुबह ठीक नौ बजकर तीस मिनट पर सारे ‘बोस’ की कैबिन में इकठ्ठा होते और आज पूरा दिन सब क्या क्या करनेवाले हैं उसकी जानकारी देते और हर शाम अगर ‘मंथ एन्ड’ न हो तो साड़े सात बजे आज पूरा दिन क्या किया उसकी रिपोर्ट दे कर घर जाते| मंथ एन्ड में तो कई बार मध्यरात्रि तक रुकना पड़ता था|

पानी पी कर शांतनु जब अपनी जगह वापस पहुंचा तो कोई भी बोस की केबिन में नहीं गया था और सब अपनी अपनी जगह अपनी सिस्टम में डेटा एंट्री कर रहे थे, और इक्का दुक्का कर्मचारी बातचीत कर रहे थे|

“क्या हुआ? अंदर नहीं जाना?” शांतनु ने सबको सुनाई दे ऐसी ऊँची आवाज़ लगाई|

“बोस का अम्मा मर गया वो एक महीने के लिये कोलकाता गया|” शांतनु का सहकर्मी पिल्लई बोला|

“हें!! कब?” शांतनु के मुख से दुःख और आनंद मिश्रित आवाज़ निकल गई|

“कल रात को शांतनु| मैं आज सुबह ही उन्हें एअरपोर्ट पर छोड़ आया हूं|” सिस्टम में डेटा डालते शांतनु के एक और सहकर्मी सत्या दवे बोला|

“फिर तो मैंने खामखा इतनी भागादौड़ी की न? पता होता तो शांति से लिफ्ट में आता|” शांतनु ने निराशाजनक आवाज़ में कहा|

“बड़े भैया, सुबह से ही आपका फोन स्विच्ड ऑफ़ आ रहा है|” मेइन गेट से एंट्री करते ही शांतनु के खासमखास दोस्त और उसको अपना बड़ा भाई माननेवाला अक्षय परमार बोला|

“अरे ऐसा हो ही नहीं सकता!” शांतनु तुंरत अपने पोकेट्स देखने लगा और शर्ट के पॉकेट से मोबाइल निकाला और चैक किया, सचमुच उसका मोबाइल स्विच्ड ऑफ़ था|”

“अरे हां| सुबह बैटरी एकदम लो थी, तो स्विच ऑफ़ कर के चार्ज करने को रख दिया था, और फिर ऑन करना ही भूल गया|” अपना मोबाईल ऑन करते शांतनु ने कहा|

“होता है भाई होता है|” अक्षय ने अपनी जानी पहचानी मस्तीभरी मुस्कान के साथ कहा|

“तो अब एक महीने तक हु इज़ ध बोस?” शांतनु ने पूछा|

“आज तो कोई नहीं पर कल सुबह से ले कर जब तक मुखोपाध्याय सर वापिस नहीं आते तब तक मुंबई से कुरुष दाबु सर आ रहे हैं|” सत्या फिर से सिस्टम के सामने देख कर बोला|

“मतलब आज अनोफिशियली ऑफिशियल छुट्टी!!” अक्षय लगभग चिल्लाया और सत्या के अलावा सब के मुख पर मुस्कान आ गई|

सत्या मुखोपाध्याय की ही तरह वर्कोहोलिक था, इसीलिए वो उसके सबसे करीब था पर उसका चमचा नहीं था, ज़रूरत पड़ने पर अपने सहकर्मचारियो की मदद करने में कभी भी अपना हाथ पीछे नहीं करता था|

“चलिये भाई, सामने चलते हैं, आइसक्रीम बढिया है!” अक्षय आँख मारते हुए बोला|

“मतलब, की जनाब वहां ऑलरेडी एक बार पधार चुके हैं, सही?” शांतनु ने हसते हुए अक्षय की पीठ पर अपना हाथ मारते हुए कहा|

“जी, और दूसरी बार जाने की इच्छा भी है बड़े भाई|” अक्षय हंस रहा था|

“अच्छा, मतलब आइसक्रीम बहुत अच्छी होगी, कौन सी फ्लेवर की है?” शांतनु ने अपने टेबल से अपनी सेल्स फ़ाइल उठाते पूछा|

“सिर्फ आइस ही नहीं भाई, क्रीम भी बहुत ही अच्छी है|” अक्षय ने फिर से मस्तीभरे अंदाज़ में कहा|

“मतलब बंदा पहेले से ही पूरा सरवे कर कर आये हैं|” शांतनु अभी भी उस फ़ाइल में अपना सर खपाये हुए खड़ा था|

“हां, कोई ट्रेवल एजंट का ऑफ़िस है और हम कहाँ बगैर निमंत्रण के जा रहे हैं? अभी अभी उसका प्यून आ कर सब को बोल कर गया, है न सत्या?” अक्षय ने सत्या से सर्टिफिकेट माँगा और सत्या ने जवाब में सिर्फ अपना सर हिलाया|

“ठीक है, पर मुझे पहेले कल का रिपोर्ट देख लेने दे, फ़िर जाते हैं|” शांतनु को सामनेवाली ऑफ़िस में जाने में, आइसक्रीम खाने में या लडकियों को ताड़ने में कोई इंटरेस्ट नहीं था|

लडकियों के मामले में शांतनु वैसे भी बहुत शर्मिला था| कोलेज में रुपाली भट्ट नाम की उसकी सहाध्यायी उसको बहुत पसंद थी, शायद रुपाली को भी शांतनु बहुत पसंद था, पर शांतनु तीन साल उसका दोस्त बन कर ही रहा, और उसको रुपाली बहुत पसंद है उस बात का इज़हार वो शरम के मारे रुपाली से नहीं कर पाया था|

“चल ना भाई!” अक्षय ने बिनती की|

शांतनु ने बगैर फ़ाइल में से मुंह उठाये एक हाथ की पांचो उंगलीयों को खोल कर फिर बंद किया और अक्षय को पांच मिनट रुकने को कहा|

“पांच मिनीट में तो आइसक्रीम पिघल जायेगी भाई|” अक्षय से अब रहा नहीं जा रहा था और उसने शांतनु का उपर उठाया हुआ हाथ ही पकड़ लिया और अपनी और खिंचा|

“तू नहीं मानेगा... चल|” शांतनु का मन तो नहीं था, फिर भी वो फ़ाइल को टेबल पर छोड़ अक्षय के साथ चल पड़ा|

***

दोनों अपनी ऑफ़िस से बहार आये और सामनेवाली ऑफ़िस की और आगे बढ़े| खासकर अक्षय बड़े ही तेज़ कदमों से आगे बढ़ रहा था और शांतनु यह देख मन ही मन मुस्करा रहा था| ‘पांचसो तीन’ में अब भीड़ कम हो गई थी| अभी तक कोई भी साइनबोर्ड नहीं लगा था, पर अक्षय के विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार यह एक ट्रेवल एजंट की ही ऑफ़िस थी|

पांचसो तीन में घुसते ही प्यून अक्षय को पहचान गया और दोनों से हाथ मिला कर उनका स्वागत किया| ऑफ़िस का फर्नीचर पूरा फ़िट हो गया था| जैसे आजकल होता है, यहाँ भी दो तीन बड़े बड़े कैबिन थे, और बाकी के हिस्से पार्टीशन्स से भर गये थे| ऑफ़िस में घुसते ही सामने रिसेप्शन काउन्टर था, पर फ़िलहाल खली था| इसी रिसेप्शन काउन्टर के पीछे सारे पार्टीशन्स और कैबिन्स थीं|

इतने सारे लोगों के बीच एक ‘पोश’ दिखने वाला इन्सान इस कंपनी का मालिक या डिरेक्टर हो ऐसा प्रतीत हो रहा था क्यूंकि वो सबसे हाथ मिलाता और हंस हंस कर बातें कर रहा था| शांतनु यह सब देख रहा था और तभी उसकी नज़र साड़ियों में सजी हुई पांच से छह लड़िकयों पर पड़ी| सारी लडकियाँ बड़ी ही सुंदर लग रही थी|

“अक्षय का कोई दोष नहीं है|” उन को देख शांतनु मन ही मन बोल पड़ा|

शांतनु यह सब सोच ही रहा था की...

“देखा भाई? मैं न कहता था? अब बोलिये मेरा कोई दोष है क्या?” अक्षय ने शांतनु का कंधा दबाते हुए उसके कान में कहा|

शांतनु और अक्षय के बीच यह एक अद्भुत बंधन था जिन्हें वो ‘टेलीपथी’ कहते थे| हर बार उनके विचार मिलते, कभी तो सिर्फ आँखों के इशारों से वे एक दुसरे की बात समझ जाते और एक दुसरे को कुछ समझाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती|

“हमम... हमम..” शांतनु ने जवाब दिया|

तभी एक ऑफ़िस बॉय आइसक्रीम के दो कप ले कर आया और दोनों को एक एक कप दिया| शांतनु से ज़्यादा अक्षय को ‘आइस’ और ‘क्रीम’ दोनों में ज्यादा दिलचस्पी थी और इसीलिए शांतनु एकदम धीरेधीरे आइसक्रीम खा रहा था ताकी तभी अक्षय को ज़्यादा समय वहां रहेने को मिले और ‘क्रीम’ को निहारते हुए वो अपनी आँखे ‘आइस’ कर सके| पर कब तक? थोड़ी देर बाद दोनों के कप ख़ाली हो गए और यहाँ तो उन्हें कोई पहचाननेवाला भी नहीं था इस लिये यहाँ टाईमपास भी कैसे करते? पर अक्षय को ऑफ़िस वापस जाने की कोई जल्दी नहीं थी, और आज तो उसने खुद ऑफ़िस में ‘अनोफिशियली ऑफिशियल छुट्टी’ घोषित कर दी थी| पर यहाँ रुकने का कोई तो बहाना चाहिए!!??”

“पानी है पानी?” आइसक्रीम सर्व कर रहे एक अन्य ऑफ़िस बॉय को अक्षय ने पुछा|

उसकी नजरें सिर्फ उन पांच छ देवियों पर ही टीक गई थी| लगभग डेढ़ घंटे से लगातार आइसक्रीम परोस रहे उस ऑफ़िस बॉय ने ‘नफ़रतभरी निग़ाह’ से अक्षय के सामने देखा|

“क्या है, की मुझे आइसक्रीम खाने के बाद पानी चाहिए ही चाहिए|” अक्षय के पास जवाब तैयार था, पर उस बंदे की आँखों का खून बिलकुल कम नहीं हुआ|

लेकिन बेचारा करता भी क्या? उसको तो अपना फर्ज़ पूरा करना था, इसलिए वो आइसक्रीम के कप से भरी डिश ले कर उलटी दिशा में घूमा|

“हं हं हं... आराम से, इस डिश को सर्व कर लो, बाद में...” अक्षय ने जूठी संवेदना दिखाते कहा|

शांतनु के मुख पर मुस्कान आ गई क्योंकि वो अक्षय की रगरग से वाकिफ़ था| उसको पता था की अक्षय को एक घूंट पीने की भी प्यास नहीं थी, उसको सिर्फ टाईमपास ही करना था और उन देवियों को ज़्यादा समय निहारना था| अक्षय ने शांतनु की और देखा और उसको भी पता चल गया की उसकी पोल खुल गई है|

“हां, हंस लो बड़े भाई हंस लो, भलाई का तो ज़माना ही नहीं रहा|” अक्षय ने आँख मारते हुए कहा|

“चल अब चलते हैं| अब कोई गड़बड़ नहीं, और ये सब अब यहीं रहनेवाली हैं, कल से रोज़ निहारना|” शांतनु ने अक्षय का हाथ पकड़ते हुए कहा|

“पर कल से तो वो मुंबईवाले सर आ जायेंगे|” अक्षय ने मुंह बिगाड़ते हुए कहा|

“तुझे रोकनेवाला सर आज तक पैदा कहाँ हुआ है अक्षय? चल अब|” शांतनु ने वैसे ही अक्षय को खिंचा जैसे थोड़ी देर पहेले अक्षय ने यहाँ आने के लिये शांतनु का हाथ खिंचा था|

दोनों दरवाजे की और आगे बढ़े, अक्षय अभी भी पीछे मूड मूड कर देख रहा था| आख़िरकार दोनों बहार निकले और अपनी ऑफ़िस में घूस गये| शांतनु ने ऑफ़िस के वोटर कूलर से एक ग्लास भर कर अक्षय के सामने रख्खा| अक्षय अभी भी ऑफ़िस के पारदर्शक दरवाज़े को चीर कर ‘पांचसो तीन’ की और ही देख रहा था|

***

“ये लो!” अक्षय का ध्यान खिंचने के लिये शांतनु थोड़ा ज़ोर दे कर बोला और पानी का ग्लास उसकी आँखों के सामने रख्खा|

“क्या?” अक्षय ‘पांचसो तीन’ की तरफ देखते हुए बोला|

“पानी... तुझे आइसक्रीम खाने के बाद चाहिए ही चाहिए ना?” शांतनु ने जवाब दिया|

“किसने कहा?” अक्षय अब शांतनु के सामने देखते हुए हंस रहा था|

“क्यों? तुमने उस ऑफ़िस बॉय को नहीं कहा था? वहां, आइसक्रीम खा कर?” अब शांतनु भी हंसने लगा|

अक्षय की हंसी फूट पड़ी और सत्या के अलावा ऑफ़िस के सारे कर्मचारी अक्षय की और देखने लगे|

“बड़े भाई, अब क्या आप भी इस बच्चे की जान लोगे?” अक्षय फिर से उतनी ही ज़ोर से हंस पड़ा|

“नहीं यार, ये तो मुझे पीना था इस लिये तुम्हें पूछ लिया| चल मेरा एक कोल है, तू आ रहा है मेरे साथ?” शांतनु ने पानी पी कर ग्लास कूलर पर रखते हुए कहा|

‘सेल्स’ में होने से और मंथली टार्गेट का टेन्शन सदा अपने सर पर होने से शांतनु और अक्षय एक साथ ही सेल्स कोल पर जाते और अपने अपने क्लायंट्स की जानकारी एक दुसरे से शेयर करते| शांतनु तो वैसे भी अपना टार्गेट महीने की शुरआत में ही अचीव कर लेता और इस लिये बाकी का महिना वो अक्षय की मदद करने में ही निकालता|

“हां, भाई जल्दी चलते हैं, मेरी तो अभी तक एक भी पालिसी क्लोज़ नहीं हुई|” अक्षयने अपनी बेग उठाते कहा|

“सत्या, में जा रहा हूँ, अब शाम को नहीं आऊंगा, बोस नहीं है ना इस लिये...” शांतनु ने सत्या को कहा|

सत्या ने हर बार की तरह कम्प्यूटर के सामने देखते हुए अपना सर हिलाया और शांतनु और अक्षय ऑफ़िस से निकल गये| बहार निकलते ही अक्षय ‘पांचसो तीन’ की और मुड़ा और शांतनु ने ज़ोर से उसका हाथ अपनी और खिंचा|

“बस, अब बहुत हुआ अक्षय, मैंने तुम्हें कहा था ना की अब वो कहीं नहीं जायेंगी?” शांतनु ने बनावटी गुस्सा चहेरे पर लाते हुए कहा|

अक्षय जानता था की शांतनु का गुस्सा बनावटी है, पर वो शांतनु को अपना मित्र ही नहीं परन्तु अपना बड़ा भाई समझता था और उसको भगवान की तरह पूजता था, इस लिये वो बगैर कुछ कहे उसके साथ चल दिया|

***

लिफ्ट का इंतजार करने के बजाय दोनों सीढ़ियों से ही नीचे उतर गये और शांतनु की नज़र पार्किंग पर पड़ी| अब सारा पार्किंग लगभग ख़ाली पड़ा था और शांतनु की फेवरिट पार्किंग प्लेस भी| अब शांतनु को शांति हुई| वो अक्षय के साथ मेइन गेट के पास खड़े मातादीन की और चल पड़ा|

“का हो भैया?” शांतनु ने मातादीन के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा|

मातादीन का सारा ध्यान अब कोई नया व्यक्ति बिल्डिंग के ऑफिशियल पार्किंग में घूस कर अपना वाहन पार्क न कर जाये उस पर था, क्यूंकि सुबह से उसने काफ़ी गालियाँ खा ली थी, इस लिए शांतनु का हाथ अचानक उसके कंधे पर पड़ने से वो चौंक उठा|

“अरे आवा आवा सांतनु भैया, आज बड़ी देर कर दी? सुबह तो इक घंटे में आये रहे बोलत रहे, और अभी तो दुईठो घंटा हो रहा|” मातादीन ने मीठे स्वर में फरियाद की|

“अरे भैय्याजी, उपर वो नया नया ऑफ़िसवा खुला है ना वहां हम आइसक्रीमवा खाने गये थे|” शांतनु कुछ बोले उससे पहेले अक्षय बोल पड़ा|

अक्षय को ऐसा वहम था की वो अच्छी खासी भोजपुरी बोल लेता है, पर दरअसल वो जब भी मातादीन के साथ बात करता वो ज्यादातर शब्दों के साथ ‘वा’ लगा कर उसको भोजपुरी बना देता था|

“चलो चाय पीते हैं|” शांतनु दोनों को बिल्डिंग के बहार आई पान व् चाय की दुकान की और ले गया|

“दो चाय, तीन भागवा में... मतलब भाग में|” अक्षय ने अपनी ‘भोजपुरी गलती’ सुधार कर चायवाले को ऑर्डर दिया|

“और मातादीन भाई के लिये ३०२ का पैकेट भी|” शांतनु ने दुकानवाले की और देख कर कहा|

थोड़ी ही देर में चाय और बीड़ी का पैकेट दोनों आ गये|

तीनो ही चाय की चुस्की ले रहे थे| शांतनु को आराम से फूंक फूंक कर मज़े से चाय पीने की आदत थी, जबकि अक्षय को चाय में कोई खास इंटरेस्ट नहीं था इस लिये वो चाय की प्लास्टिक की प्याली हाथ में पकड़ आती जाती लडकियों को देख रहा था| उस तरफ मातादीन ने चाय की प्याली हाथ में लेते ही चाय को मुंह में उड़ेल दी| शांतनु को मातादीन की यह आदत बिलकुल ही पसंद नहीं थी क्यूंकि उसके लिये चाय किसी अम्रित से कम नहीं थी| मुंह में चाय उड़ेल कर मातादीन ने उसको डस्ट बीन में फैंका और बीड़ी सुलगाने लगा, शायद उसको चाय से ज्यादा बीड़ी की तलब ज़्यादा थी| मातादीन ने अभी बीड़ी सुलगाई ही थी की वो चिल्लाया...

“अरे ओ ससुर का... सांतनु बाबा तनीक इ बीड़ी तो सम्हालो, कौनो अजनबी फ़िर से अपनी पार्किंग में आ गवा है..” इतना बोल कर मातादीन पार्किंग की और दौड़ पड़ा|

अब शांतनु के एक हाथमें चाय की प्याली और दुसरे हाथ की पहेली दो उँगलियों के बीच मातादीन की बीड़ी सुलग रही थी| अक्षय अभी भी चाय से भरी प्याली हाथ में पकड़े, इधर उधर देख रहा था|

“अब पी ले भाई, ठंडी हो गई होगी|” शांतनु से रहा नहीं गया|

“होने दो बड़े भाई, ज़रा सामने तो देखो, अब तो गर्मी और बढ़ेगी|” सामने से रास्ता क्रोस कर रही लड़की की और इशारा करते अक्षय ने शांतनु को धीरे से कहा|

अक्षय ने जिस की और इशारा किया था उसकी तरफ शांतनु अपनी पीठ गडाए था और ‘वो’ अक्षय का ध्यान उसकी और था फिर भी शांतनु की और ही मुड़ी...

“एक्सक्यूज़ मी!!” उसने शांतनु से पूछा, जो उसकी और पीठ दिखा रहा था|

“येस?” शांतनु एक हाथ में चाय की प्याली और दूसरे हाथ में बीड़ी के साथ उसकी और मुड़ा|

‘उसको’ चाय के साथ बीड़ी पीनेवाला स्मार्ट लड़का पहलीबार देख कर शायद हैरानी हुई, और शायद ‘उसको’ बीड़ी से भी नफ़रत है ऐसा उसका चहेरा साफ़ दिखा रहा था|

“सृजन पांच... यही है?” ‘उसने’ पूछा|

क्रमशः