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शांतनु - 4

शांतनु

लेखक: सिद्धार्थ छाया

(मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण)

चार

शांतनु ऐसा बिलकुल ही नहीं था, इतना अधीर और लडकियों के पीछे भागनेवाला... पर पता नहीं आज सबकुछ अपनेआप ही हो रहा था| लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पर आयी, लिफ्ट के दरवाज़े अपनेआप खुले और शांतनु का दिल करीब करीब उसके गले में आ गया| लिफ्ट में सिर्फ एक व्यक्ति को देख शांतनु आनंद से लगभग गदगद हो गया और मन ही मन में “येस्स!” बोल कर अपने बायें हाथ की मुठ्ठी बना कर उसे नीचे की और खिंचा|

लिफ्ट में जो एकमात्र व्यक्ति था वो लिफ्ट के दाहिने कोने में खड़ा था और ‘वो’ उसके सामनेवाले कोने में, मतलब की लिफ्ट मेन के बिलकुल पीछे खड़ी हो गई| शांतनु वो दाहिने कोनेवाले के ठीक साथ खड़ा हो गया, पर ‘उससे’ शांतनु ने फिरसे सलामत अंतर रख्खा| पर वो अपनी आँख के कोने से उसको निरंतर देख रहा था, पर ‘उसको’ अपनी इस हरकत का पता न चले उसका पूरा ख्याल रख कर|

लिफ्ट सीधी दुसरे तल पर रुकी और वो दाहिने कोनेवाला वहीँ उतर गया| अब लिफ्ट में शांतनु, लिफ्ट मेन और ‘वो’ बस तीन लोग ही थे| ‘उसकी’ नज़रें लिफ्ट के दरवाज़े पर टिकटिकी लगाये हुए थी|

पता नहीं पर क्यूं, शांतनु का दिल आज खूब ज़ोरों से धड़क रहा था| वो भी लगातार ‘उसको’ देख रहा था| ऐसा कठोर आकर्षण तो उसको रुपाली के लिये भी नहीं हुआ था| परंतु आज उसके साथ सबकुछ नया हो रहा था और प्राकृतिक रूप से भी|

आख़िरकार पांचवा तल आया, लिफ्ट के दरवाज़े खुलते ही ‘वो’ चल पड़ी| शांतनु तो ‘उसीको’ देख रहा था|

“आपको नहीं उतरना?” लिफ्टमेन को आश्चर्य हुआ, वो शांतनु को जानता था इस लिये स्थिर खड़े शांतनु की और मुड़ कर उसने पूछा|

“अरे हां!” शांतनु जागा|

शांतनु को थोड़ा आश्चर्य भी हुआ की ‘वो’ भी पांचवे तल पर ही क्यों उतर गई?? वो अपने कदम तेज़ कर ‘उसके’ पीछे चलने लगा| वो पैसेज में मुड़ कर शांतनु की ओफिस की और ही बढ़ रही थी| शांतनु के दिमाग में हज़ारों ख्यालात आने लगे| जैसे की, कल ‘उसने’ शांतनु को बीड़ी के साथ देख लिया था तो उसकी कम्पलेंट करने जा रही है क्या? या फिर कल वो इसी कोम्प्लेक्स में आयी थी और शांतनु की ऑफ़िस के किसी बंदे ने उसके साथ कोई छेड़खानी की होगी क्या?

बस ऐसे ही मन गढंत सवाल शांतनु के दिमाग में आ ही रहे थी की उसने टर्न लिया और शांतनु की ऑफ़िस के सामने कल जिस ऑफ़िस का उद्घाटन हुआ था उस ‘पांचसो तीन’ का दरवाज़ा खोल उसमें घुस गई|

उस ऑफ़िस का दरवाज़ा अपनेआप बांध हो गया| शांतनु का ध्यान उस कांच के दरवाज़े पर गया जिस पर अब चमकीले अक्षरों से ‘नवयुग इंटरनेशनल टूर्स एन्ड ट्रेवल्स’ लिखा हुआ था|

“हमम... कल दोपहर बाद ही पेंट करवाया होगा... मेरे जाने के बाद|” शांतनु सोचते सोचते अपनी ऑफ़िस की और मुड़ा और अंदर चला गया|

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ऑफ़िस में अब तक सत्या और प्यून के अलावा कोई नहीं आया था| घड़ी अभी ८.५५ दिखा रही थी| शांतनु को ख़ुद को अचंभा हो रहा था की वो उस लड़की के पीछे क्यों भागा? ऐसा क्या है उसमे? उसने कूलर में से पानी पिया और थोड़ीदेर अपनी कुर्सी पर ऐसे ही बैठा| थोड़ीदेर बाद उसको अपना काम याद आया, उसने बैठे बैठे ही नीचे झुक कर अपनी सिस्टम ऑन की|

कल क्लोज़ की हुई सब पॉलिसियों के फॉर्म्स, डोक्युमेन्ट्स और चेक्स सब उसने अपनी बैग में से इकट्ठा किये| सिस्टम ऑन होते ही उसने अपनी कंपनी का सॉफ्टवेयर चालू किया और उसमें सब डिटेल्स भरने लगा| पर उसके मन के किसी कोने में अभी भी ‘वो’, उसका सुंदर सा चेहरा, उसकी दो उंगलियो से अपनी लट को कान के पीछे सरकाने की अदा, या उसका गोगल्स उपर चड़ा कर उनको अपने सर पर ही रख देना, लिफ्ट में शांति से अपनी जगह खड़े रहना... ये सब एक फ़िल्म की रील की तरह चल रहा था|

शांतनु का दिल अभी भी ज़ोरों से धड़क रहा था, उसके हाथ और पैर कुछ अजीब सी कमज़ोरी महसूस कर रहे थे| फिर भी शांतनु ने जैसे तैसे अपनी सारी भावनाओ को इकठ्ठा किया और उनको मन के किसी और कोने में ले जा कर लोक कर दिया और अपने काम में मन लगाना शुरू कर डेटा एंट्री करने लगा|

“गुड मोर्निंग बड़े भाई|” ठीक सवा नौ बजे पीछे से अक्षय की आवाज़ आयी|

अब ऑफ़िस अच्छीखासी भर गयी थी, पर शांतनु का ध्यानभंग तो अक्षय की आवाज़ से ही हुआ| उसने सिस्टम के स्क्रीन के सामने देखते हुए ही अक्षय की और अपना हाथ खड़ा कर उसके गुड मोर्निंग का जवाब दे दिया| पर इस तरफ अक्षय ने अपनी किलकारी जारी रख्खी|

“बम्बई वाले साहब नहीं आये सत्या?” अक्षय ने पूछा|

“शाम की फ्लाईट से आयेंगे|” सत्या ने आदतन काम करते करते ही जवाब दिया|

“वाऊ, तो आज फ़िर अनोफिशियली ऑफिशियल छुट्टी राईट?” अक्षय कल की तरह ही चिल्लाया|

“काम कर बेटा काम|” शांतनु अपनी कुर्सी से उठ कर स्टेपलर लेने सत्या के टेबल की और जाते जाते अक्षय के सर पर टप्पू मारते हुए और अक्षय के ही शब्दों में अपना ‘टिपिकल स्वीट स्माइल’ देते हुए बोला|

“क्या बात है? क्या बात है? क्या बात है? आज तो आप बड़ा मुड़वा दिखा रहे हो बड़े भाई?” अक्षय ने मस्तीभरे अंदाज़में शांतनु को कहा|

शांतनु की मुस्कान से ही अक्षय को पता चल गया था की आज उसका खास दोस्त – कम – बड़ा भाई एकदम बढ़िया मूड में है और अब उसको शांतनु के इस बढ़िया मूड का असली कारण जानना ही पड़ेगा!

“ये ले रहा हूँ!” सत्या की मंजूरी लिये बगैर ही शांतनु ने उसके टेबल से स्टेपलर उठा लिया|

सत्या को अपनी सारी चीजों पर बहुत प्यार था और वो किसी को इनको छूने भी नहीं देता था सिवाय शांतनु, क्यूंकि शांतनु उसकी कोई भी चीज़ लेता तो अपना काम खत्म कर बगैर भूले उसे ज़रूर लौटा देता| शांतनु को फिर से उसने अपने चितपरिचित अंदाज़ में सर हिला कर अनुमति दे दी|

शांतनु को रिपोर्ट फ़ाइल करने की भी जल्दी थी और आज उसको अक्षय के लिये भी काम करना था| वो जल्दी जल्दी अपने डेस्क की और बढ़ा और ऑफ़िस के मेइन डोर के बिलकुल करीब से गुज़र ही रहा था की वो खुला|

“एक्सक्यूज़ मी| एक मीठी सी आवाज़ शांतनु के कान को छू गई और उसने दरवाज़े की और देखा और उसकी नजरें उधर ही चिपक गई| मेइन डोर को आधा खुला रख ‘उसने’ सिर्फ अपना चेहरा ही अंदर किया हुआ था, उसका हाथ शांतनु की और बढ़ा हुआ था और बाकी का शरीर उस दरवाज़े की दूसरी और था|

“केन आई हेव अ स्टेपलर प्लीज़?” ‘उसने’ एक जबरदस्त मुस्कान शांतनु की और फेंकी और शांतनु फिरसे सर से पैर तक धीरेधीरे टूटने लगा|

फ़िलहाल तो ‘उसका’ खूबसूरत चेहरा शांतनु से सिर्फ दो फीट की दूरी पर ही था| स्टेपलर तो शांतनु के हाथ में ही था, पर शायद ‘उसको’ उसकी ज़्यादा ज़रूरत थी...

“हें? ह्ह्ह..हां हाँ.. यस...यस..व्हाय नोट? श्योर...क्यों नहीं? अभी देता हूँ| अरे अक्षय, इनको वो..वो स्टेप..स्टेप..स्टेपलर तो दे!!” शांतनु हक्काबक्का हो रहा था|

अक्षय अपनी सीट से खड़ा हो कर सारा ताल देख रहा था|

“ओर केन आई टेक दीस?” अब ‘वो’ दरवाज़ा खोल कर अंदर आई और शांतनु के हाथ में रहे स्टेपलर की और अपनी ऊँगली बढ़ाई|

“हें? हां... जी...जी... क्यों नहीं? क्यों नहीं? हां तो ले लीजिये ना, प्लीज़!” शांतनु ने स्टेपलर उसकी और बढ़ाया|

वो लगातार उसका चेहरा देख रहा था, उसके हाथ-पैर एकदम कमजोर हो गए थे, दिल की धड़कने सो गुना ज़ोर से धड़क रही थी| ‘वो’ और अंदर आयी और अपनी पहेली दो उंगलियों और अंगुठे की मदद से ही शांतनु के हाथ से स्टेपलर का उपरी हिस्सा खिंच उसको ले लिया|

“मैंने सामने ही नयी जॉब ली है... अभी भी ढेर सारी स्टेशनरी आनी बाकी है... इसको में दस मिनीट में मनीष के हाथों वापिस भिजवा देती हूँ, ओके?” बस इतना कह कर ‘वो’ शांतनु को अपनी एक पावरहाउस स्माइल दे कर चली गयी|

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शांतनु तो उसके जाने के बाद वहीँ, किसी हिमशिला की तरह खड़ा रहा| ‘उसको’ स्टेपलर के लिये वैसे तो शांतनु को हां ही बोलना था, पर उसने तो शांतनु को कोई मौका ही नहीं दिया!! सिर्फ आधे घंटे पहेले शांतनु जिसके पीछे पागलों की तरह दौड़ा था, वो बस कुछ ही मिनटों पहले उसके सामने कब आई और कब चली गई उसका शांतनु को पता भी नहीं चला, और उसने शांतनु से बात भी की|

यह सब घट रहा था तब ऑफ़िस के दो तीन मनचले शांतनु के नसीब को गाली दे रहे थे| पर अक्षय ने तो पार्टी ही बदल दी थी| शांतनु की हालत देख कर इस अनुभवी रोमियो को अंदाज़ा हो गया था की अब उसको अपने ‘बड़े भाई’ को सपोर्ट करना है और अब से उस लड़की को कल की तरह लाइन नहीं मारनी है|

“ओये होये बड़े भाई... क्या बात... क्या बात... क्या बात! ये कब हुआ?” अक्षय ने शांतनु के कंधे पर हाथ रख कर पूछा|

“क्या? क्या? क्या? कुछ भी तो नहीं हुआ यार!” शांतनु जैसे किसी गहरी नींद से जागा हो उस तरह से अक्षय को जवाब देते हुए अपने डेस्क की और चल पड़ा, पर अक्षय अब शांतनु का पीछा छोड़नेवाला नहीं था|

“बोल ना भाई! ऐसा मत कर| ये ‘कलवाली’ ही थी ना?” अक्षय भी शांतनु के पीछे पीछे ही चलने लगा और शांतनु के साथ ही उसके डेस्क तक पहुँच गया|

शांतनु को कुछ भी छिपाना पड़े ऐसा तो उसने कुछ किया ही नहीं, पर फिर भी वो अक्षय को टालने की कोशिश कर रहा था| और ‘कलवाली’ शब्दने उन तीन मनचलों का ध्यान भी शांतनु और अक्षय की ओर आकर्षित कर लिया था इस लिये शांतनु और भी ज़्यादा शरमा रहा था| शांतनु अक्षय के ‘क़ातिल’ सवालों से वो कैसे बचेगा यह सोच ही रहा था की सत्या ने उसको बचा लिया|

“वो स्टेपलर तो वापिस दे देगी ना?” सत्या ने ज़ोर से आवाज़ दी| उसको तो अपनी ऑफ़िस का कोई साथी भी अपनी किसी वस्तु को ले जाये वो पसंद नहीं था और ये तो सामनेवाली ऑफ़िस की कोई अनजान लड़की उसका प्रिय स्टेपलर ले गई थी, वो उसको कैसे सहेन होता भला?

“हां, हां, क्यों नहीं देगी? ज़रूर लौटाएगी|” शांतनु ने अपनी कुर्सी सत्या की और घुमा कर कहा और मन ही मन में भगवान का शुक्रिया अदा किया क्यूंकि अब अक्षय का ध्यान उसकी और से कहीं और जाएगा|

पर ये तो अक्षय था, उसने तुरंत ही गूगली फेंकी|

“हां सत्या ज़रूर देगी, बड़े भाई थोड़ी देर में जब उसके साथ जब डेट पर जायेंगे ना तब तुम्हारा स्टेपलर उससे मांग कर वापस लायेंगे ठीक है? तूम चिंता मत करो, फिलहाल तो अपने काम पर ध्यान दो बेटा|” अक्षयने फिर से शांतनु की फ़िरकी ली|

“अक्षय.....” शांतनु ने गुस्से से अक्षय की और देखा और जवाब में अक्षय ने सिर्फ आँख मारी|

“थोड़ी देर वेइट कर सत्या, अभी थोड़ीदेर बाद मैं कोल पर जा रहा हूं अगर तब तक नहीं लौटाएगी तो मैं खुद उसकी ओफिस से ले कर आऊंगा| अक्षय तब तक तू मुझे अपना स्टेपलर तो दे, मुझे सारे रिपोर्ट्स सत्या को देने हैं| शांतनु ने बात को शांत करने का प्रयास किया पर अक्षय कहां माननेवाला था?

“एक शर्त पर, आप मुझे भी पूरा रिपोर्ट देंगे|” अक्षय ने हंसते हुए कहा और इस बार तो शांतनु ने भी हंस कर हां भरी|

अक्षयने जैसे ही शांतनु को अपना स्टेपर दिया, शांतनु ने फटाफट अपने रिपोर्ट्स की प्रिन्ट आउट्स ले कर और उसको तमाम पालिसी और चैक्स के साथ अटेच किये और सत्या को दे दिये| यह सब काम खत्म करते शांतनु को करीब आधा घंटा लग गया और सत्या को अपना स्टेपलर याद आ रहा था इस लिये वो बार बार शांतनु की और देख रहा था|

अपना काम करते करते शांतनु ने दबी आवाज़ में अपने हिसाब से सुबह से अब तक क्या हुआ उसका पूरा वर्णन अक्षय को दे दिया| पर हां, शांतनु ने ‘उसके’ पीछे दौड़ लगाई थी वो बात अक्षय से छिपाई और सिर्फ उतना ही कहा की दोनों लिफ्ट में एक साथ हो गये वो मात्र ‘को-इंसीडेंट’ था| ‘को-इंसीडेंट’ शब्द पर शांतनु ने विशेष ध्यान दिया, पर अक्षय इन मामलों में एक्सपर्ट था, उसने अपनी मस्तीभरी स्माइल दी|

ऐसे ही बातें करते पूरा एक घंटा बीत गया| शांतनु ने अपनी बात खत्म कर अक्षय और वो आज पूरा दिन क्या करेंगे उसका प्लान बनाने लगे|

अक्षय के लिये तो इस चर्चा का कोई खास महत्व नहीं था क्यूंकि उसके क्लायंट्स के सामने शांतनु ही बोलनेवाला था| अक्षय को उस बात में खासी दिलचस्पी थी की शांतनु और ‘वो’ लिफ्ट में एकसाथ थे फिर भी एक दुसरे से आँख क्यों नहीं मिला पाये, और अगर ऐसा हुआ था तो ‘वो’ अभी एक घंटे पहेले किसी प्रकार की मंज़ूरी लिये अधिकार पूर्वक शांतनु के हाथ से स्टेपलर कैसे ले गई?

“तू समझा ना?” शांतनु की आवाज़ ने अक्षय का ध्यानभंग किया|

“हां बड़े भाई, आप हो फिर मुझे क्या फ़िक्र?” अक्षयने हंसते हुए कहा|

“सुधर जा अक्षु...” शांतनु अक्षय को सलाह देने ही वाला था की ‘पांचसो तीन’ का प्यून उसकी ऑफ़िस में आया|

“ये... स्टेपलर|” दरवाज़े के सबसे करीब डेस्क पर उसने स्टेपलर रख्खा और बोला| अक्षय अपनी जगह से उठा और दौड़ कर स्टेपलर को अपने कब्जे में ले लिया|”

“थेंक्स मनीष|” अक्षय ने उसको कहा|

ये वोही प्यून था जिसको अक्षय ने कल आइसक्रीम खाने के बाद पानी लाने को बोला था, और वो गुस्सा हो गया था|

“मैं मनीष नहीं हूँ|” उसने कल वाली गुस्सैल नज़र से अक्षय की और देखा और बोला|

“ओह... ओके, पर मैडम ने तो कहा था की स्टेपलर मनीष आ कर दे जायेगा?” अक्षयने बात बढ़ाते हुए कहा|

“मनीष तो स्टेशनरी लेने गया है|” अब उसने थोड़ी नर्मी से जवाब दिया| उसकी उम्र भी कम थी, शायद १८-१९ से ज़्यादा नहीं थी|

“तो आप का नाम क्या है जनाब?” अक्षय ने इन्क्वायरी करना बंद नहीं किया क्योंकि उसके मन में कोई और ही योजना आकार ले रही थी|

सत्या को अपना स्टेपलर उससे ज़्यादा समय अब दूर रहे वो खल रहा था, इसलिये वो तुरंत ही अपनी सीट से खड़ा हुआ और इस चर्चा के दौरान अक्षय के हाथ से अपना स्टेपलर छीन ही लिया|

“मनोज|” अब उसका सूर ठीक हो गया था|

“अरे हां, मनोज या मनीष दोनों में से कोई आ कर दे जायेगा, मैडम ऐसे ही बोली थी, अब याद आया मुझे...अम्म....मैडम का नाम क्या था? भूल गया... उन्होंने कहा तो था|” अक्षय ने अपनी इन्क्वायरी जारी रख्खी|

पूरा स्टाफ अक्षय के स्वभाव को जानता था| लड़कियों की इन्फोर्मेशन निकालने में अक्षय का जवाब नहीं था, इसीलिए सारे मूछ में हंस रहे थे, जो इस चर्चा को सीधे देख रहे थे वो भी और जो अपनी अपनी सिस्टम में काम कर रहे थे वे भी|

पर शांतनु बेचैन हो रहा था, उसको लग रहा था की कहीं अक्षय की इन्क्वायरी ‘उसके’ सामने अपनी छबी खराब न कर दे, क्यूंकि अक्षय की इस इन्क्वायरी का पता अगर ‘उसको’ चल गया तो एक ही फ्लोर पर काम करते हुए अगर उसका सामना रोज़ होनेवाला हो तो पहेले दिन ही शांतनु की इम्प्रेशन डाउन हो जानी थी| पर वैसे देखा जाये तो अक्षय शांतनु का ही काम कर रहा था, क्यूंकि ‘उसका’ नाम तो शांतनु को भी जानना था|

“मैडम ने आज ही ज्वाइन किया है| मैं तो अभी अभी ऑफ़िस आया और उन्हों ने मुझे ये स्टेपलर पकड़ा कर आपको देने को कहा|” मनोज ने अपनी मजबूरी जतायी|

“अच्छा... ओक्के|” अक्षय ने निराश हो कर कहा|

“तो में अब जाऊ?” मनोज को वापस जाने की जल्दी थी|

“हां, बिलकुल और कुछ मेरे लायक काम हो तो बेटा बता देना ठीक है?” अक्षय ने मुस्कुरा कर कहा|

पर अक्षय से ज़्यादा शांतनु निराश हुआ था, पता नहीं क्यूं पर अब शांतनु को ‘उसका’ नाम जानने की जल्दी हो रही थी| रुपाली भट्ट के बाद ये पहली लड़की थी जिसने शांतनु को सर से पैर तक झकझोर दिया था...शायद रुपाली से भी ज़्यादा|

“चलो बड़े भाई, वटवा जाना है, काफी दूर... निकलें?” अक्षय ने शांतनु का विचारभंग किया|

“हाँ, चल!” शांतनु ने अपनी निराशा छिपाते अपना बैग उठाया और दोनों ऑफ़िस के दरवाज़े की और चल पड़े|

“सत्या, हम कल की तरह आज भी शाम को नहीं आयेंगे, ओके?” अक्षय ने शांतनु से बगैर पूछे ही अपना निर्णय दे दिया|

दोनों ऑफ़िस के बहार निकले| अक्षय की शाम को ऑफ़िस न आने का निर्णय शांतनु को ज़रा भी पसंद नहीं आया था, और बहार आते ही उसने अक्षय को डांट दिया|

“शाम को नहीं आएँगे ऐसा क्यों कहा? एक बार मुझसे पूछ तो लिया होता? मुझे शाम को कल की प्लेनिंग करनी थी|” पेसैज में आते ही शांतनु ने अपना गुस्सा दिखाया|

“बड़े भाई, अबी कल परसों की प्लानिंग के साथ लाइफ की प्लानिंग भी करना शुरू करिये|” अक्षय शांतनु की विरुध्ध दिशा में देख कर बोल रहा था|

“मतलब?” शांतनु अभी भी अक्षय के सामने देख रहा था|

“मतलब, उस तरफ देखिये|” अक्षय ने लिफ्ट की और इशारा किया|

उसी फ्लोर पर खड़ी लिफ्ट में ‘वो’ अंदर जा रही थी| शांतनु उसी को देखता रहा| लिफ्ट मैन ने दरवाज़े बंद किये और लिफ्ट नीचे की और गयी| अक्षय दौड़ कर लिफ्ट के दरवाज़े पर पंहुचा, शांतनु ने करीब उतनी ही तेज़ी दिखाई और अक्षय के साथ खड़ा हो गया|

लिफ्ट का इंडिकेटर ‘G’ पर अटक गया|

== क्रमशः ==