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शांतनु - 5

शांतनु

लेखक: सिद्धार्थ छाया

(मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण)

पांच

“चलिये सीढियाँ ही उतर जाते हैं|” अक्षय बोला|

शांतनु ने शायद पहलीबार अक्षय की किसी बात पर बगैर सवाल किये उसके ‘आदेश’ का सन्मान किया और दोनों अत्यंत तेज़ गतिसे सीढियाँ उतरने लगे और जैसे ही ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचे की मेइन गेट की और दौड़े|

पार्किंग में आ कर आसपास देखा और जब सामने देखा तो ‘वो’ और एक और लड़की रास्ता क्रोस कर रही थी और डिवाइडर पर दोनों खड़ी थी| अब शांतनु या अक्षय को एक दुसरे से कुछ नहीं कहना था| दोनों ही स्वयं संचालित हो कर उन दोनों के पीछे भागे|

शांतनु और अक्षय जब तक डिवाइडर तक पहुँचते वो दोनों लडकियाँ रास्ता क्रोस कर चूकी थी और सामनेवाले शोपिंग सेंटर के ‘बिग कोफ़ी मग’ नामक कोफ़ी शॉप में घूस गई| ये दोनों भी रास्ता क्रोस कर वहां पहुंचे, पर अब शांतनु ने अक्षय का हाथ पकड़ा और उसे रोका|

“दो मिनट खड़ा रेह, उन दोनों को ऐसा नहीं लगना चाहिए की हम दोनों उसका पीछा कर रहे हैं| एक काम कर, ये चाबी ले और पार्किंग से मेरा बाइक ले कर आ और इधर पार्क कर दे, हम फिर अंदर जायेंगे|” थोडा हांफते हुए शांतनु ने अक्षय को चाबी देते हुए ऐसे कहा जैसे वो दोनों किसी क्रिमिनल का पीछा कर रहे थे|

“क्या बात है, बाय गॉड, बड़े भाई... आप तो एक्सपर्ट निकले!” अक्षयने शांतनु के सर पर हाथ रख्खा और तुरंत ही लक्ष्मण की तरह अपने राम का आदेश मानते हुए फिरसे रोड़ क्रोस कर अपनी ऑफ़िस के पार्किंग की और चल पड़ा|

शांतनु को ख़ुद को पता नहीं चल रहा था की वो ऐसा क्यों कर रहा है? बस, वो ऐसा करने के लिये मजबूर हो रहा था...अपनेआप| उस लड़की में कोई प्रचंड आकर्षण था जिसने शांतनु जैसे अपनी उम्र से भी मेच्योर लड़के को उसका पीछा करने को विवश कर दिया था| थोड़ी ही देर में अक्षय शांतनु की बाइक को आगे वाले चौराहे के सिग्नल से ‘यु टर्न’ ले कर शांतनु जहां खड़ा था वहीँ कोम्प्लेक्स के पार्किंग में उसके पार्क कर दी|

“अब चल|” अक्षय अभी हेल्मेट उतारे उससे पहेले ही अधीर बना हुआ शांतनु कोफ़ी शॉप की और चलने लगा|

“एक मिनट भाई...एक मिनीट, पहले आपको मुझे एक प्रोमिस देना पड़ेगा, और बाद में ही हम अंदर जायेंगे|” अक्षय ने पहेले तो शांतनु का कंधा दबा कर उसको रोका और फिर उसकी आँखों में आँख डाल कर बोला|

“कैसा प्रोमिस?” शांतनु को आश्चर्य हुआ|

“वो प्रोमिस की जब तक आप उसे मेरी भाभी नहीं बनाओगे, आप उसका पीछा नहीं छोड़ोगे|” अक्षय ने हल्की सी मुस्कान दे कर कहा|

“व्होट?” शांतनु की आँखे बड़ी हो गयी|

“बड़े भाई, कल से ले कर आज सुबह तक मैंने आपकी आँखों में उसके लिये एक तूफान महसूस किया है| मै तो ऐसे कई छोटे बड़े तूफान से खेल चूका हूं और इसीलिए मुझे पता है की आपके मन में...सोरी दिल में इस लड़की के लिये एक आंधी आकार ले रही है| बड़े भाई, इस दुनिया में अक्षय तो बहुत है, पर शांतनु सिर्फ इक्का दुक्का ही है| शायद भगवान चाहता है की उस लड़की को शांतनु का ही प्यार मिले और तभी उसने यह सब फिक्स किया हुआ है. प्रोमिस मी आप उसे अपनी बना कर ही रहोगे|” कोफ़ी शॉप की तरफ ऊँगली उठा कर अक्षय बोला|

“व्होट रबिश, अक्षय ऐसा कुछ नहीं है|” शांतनु नर्वस हो रहा था|

“अहाँ, अगर ऐसा ही था तो फिर उसके पीछे इतनी लंबी दौड़ क्यों लगाई आपने? भाई, में फिर से कह रहा हूं, उपरवाला कोई ना कोई इशारा ज़रूर कर रहा है, उसको गधा मत समझो वरना बाद में आप खुद उसके निर्णय के सामने गधा बन जाओगे| प्लीज़ प्रोमिस मी, या फिर वटवा एज़ पर प्लान|” अक्षय ने मज़बूती से अपनी बात रख्खी|

“अरे यार| तू इतना सिरियस क्यों हो रहा है? मुझे वो सिर्फ पसंद ही आयी है, और कुछ नहीं|” शांतनु ने फिर से अक्षय की बात को अवोइड करना चाहा|

“दुनिया की हर एक प्रेमकहानी अट्रेक्शन से ही शुरू होती है भाई, लव एट फर्स्ट साईट यु सी?” अक्षय के इस प्रश्न का शांतनु के पास कोई जवाब नहीं था|

शांतनु ने जबसे ‘उसे’ देखा था उसके दिलोदिमाग और बाकी के शरीर में भी कुछ अजीब सी हलचल हो रही थी, और उसे भी रुपाली वाला किस्सा रिपीट नहीं करना था, यानी इस को भी मन ही मन में चाह कर फिर जाने देना नहीं था, अफकोर्स इफ लक परमिट्स|

“और आगे बढ़ने में हर्ज़ ही क्या है? ज़्यादा से ज़्यादा वो मना ही कर देगी ना? और वो दुनिया का अंत नहीं होगा| और अब तो रोज़ आमने सामने टकराएगी, कब तक अपने मन को उल्लु बनाता रहूँगा?” शांतनु ने मन ही मन सोचा और अक्षय की और देखा|

“ठीक है, पर तुझे भी मेरा विश्वास करना होगा| में पूरी कोशिश करूंगा पर अगर बात न बने तो ऐसा मत समझना की...” शांतनु ने हंस कर कहा|

“पक्का बड़े भाई, प्रोमिस| और थेंक्स, में आप के साथ ही हूँ...सदा के लिये|” अक्षय ने अपना हाथ लंबा किया और शांतनु ने तुरंत ही उसको पकड़ लिया|

“वो कहने की ज़रूरत नहीं है अक्षय, यु आर ऑलरेडी टेकन फॉर ग्रांटेड| चल अब अगर अंदर नहीं गये तो सारी मेहनत पर पानी फिर जायेगा|” शांतनु ने आँख मारी|

“ओह श्योर सर, व्हाय नोट? बट आफ्टर यु|” अक्षय ने एयर इण्डिया के महाराजा की स्टाइल में झुक कर शांतनु को कोफ़ी शॉप की और बढ़ने का इशारा किया और फिर दोनों हंस पड़े|

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कोफ़ी शॉप में घुसते ही उसके एसी की ठंडी हवाने दोनों को तरबतर कर दिया| अंदर घुसते ही दोनों की नजरें ‘उसको’ ढूंढने लगी, पर शांतनु से पहेले ‘चकोर’ अक्षय ने उसे ढूंढ लिया| उसने तुरंत ही शांतनु का कंधा दबाया, क्यूंकि शांतनु विरुद्ध दिशा में ‘उसको’ ढूंढ रहा था और उसने तुरंत ही अक्षय के सामने देखा| अक्षय ने आँख के इशारे से ‘वो’ जीस टेबल पर बैठी थी उधर की और शांतनु का ध्यान खिंचा और दोनों और कोई बात किये बगैर पास के टेबल पर बैठ गये|

इन मामलों में शांतनु अक्षय से बहुत कम अनुभवी था इसीलिये वो उस कुर्सी मैं बैठने जा रहा था जो शांतनु की पीठ ‘उसकी’ और कर देती, पर अक्षय ने तुरंत ही बाज़ी संभाली और शांतनु बैठे उससे पहेले ही वो उधर बैठ गया| शांतनु को आश्चर्य हुआ| अक्षय ने सामनेवाली कुर्सी पर बैठने का इशारा किया| कुर्सी पर बैठते ही शांतनु को पता चल गया की अक्षय ने क्यों उसको उस कुर्सी पर बैठाया है, क्यूंकि अब ‘उसका’ सुंदर चेहरा बिलकुल उसके सामने था| वो अब भी अपनी दोनों उंगलियो से अपनी लट को अपने कान के पीछे बारबार फंसा रही थी| शांतनु को देख अक्षय मन ही मन मुस्कराया, पर उसे शांतनु का मिशन पूरा करना था|

‘वो’ अपनी दोस्त के साथ बातों में मग्न थी और उसके टेबल को देख शांतनु ने अंदाज़ा लगा लिया की या तो उसने अभी तक कोई ऑर्डर दिया नहीं था या फ़िर उसका ऑर्डर अभी तक सर्व नहीं हुआ था|

“मुझे लगता है की हमें ऑर्डर दे देना चाहिये, कब तक हम ऐसे ही बैठे रहेंगे?” शांतनु ने धीरे से अक्षय को कहा|

“अभी थोड़ी वेइट करो भाई, ऐसा कुछ नहीं है की अंदर आये की तुरंत ही ऑर्डर देना ही चाहिये| फ़िलहाल भीड़ भी नहीं है, इक्का दुक्का लोग हैं तो ये लोग भी ऑर्डर के लिये फ़ोर्स नहीं करेंगे| उन लोगों का ऑर्डर आ जाने दीजिये, बाद में हम भी दे देंगे| पर तब तक आप मुझसे बात करते रहिये, उसको और इस कोफ़ी शॉप वाले को ऐसा नहीं लगना चाहिये की हम यहाँ सिर्फ टाइमपास करने या उसका पीछा करने के लिये यहाँ आये हैं|” अक्षय ने शांतनु के सामने अपना अनुभव निचोड़ कर रख दिया|

“हमम.. ठीक है, तुम्हारे वटवा के क्लायंट के बारे में बात करते हैं, टाइम भी पास होगा और किसी को डाउट भी नहीं जायेगा| ला उसकी फ़ाइल दे|” शांतनु ने एकदम निर्दोष भाव से कहा|

“धन्य हो बड़े भाई| ऐसे में भी आप को जमनादास एन्ड जेठालाल याद आ रहे हैं? हम लड़की पटाने आये हैं, क्लायंट्स पटाने नहीं|” अक्षय ने ज़रा गुस्से से कहा|

“ओक्के, ओक्के|” शांतनु ने अक्षय से हंस कर कहा| तभी उसका ध्यान ‘उसके’ टेबल की और गया और देखा तो वो उधर नहीं थी| शांतनु को शौक लगा, पर फिर ध्यान से देखा तो ‘उसके’ साथ जो लड़की आयी थी वो तो वहीँ बैठी थी इस लिये उसको थोड़ी शांति हुई, पर वो ‘उसको’ ढूंढने के लिये इधर उधर देखने लगा और तभी उसका ध्यान कोफ़ी शॉप के काउन्टर पर गया जहाँ वो पेमेन्ट कर रही थी|

“अक्षय...अक्षय...ऑर्डर...ऑर्डर...वहां...वहां...” शांतनु ने दबी ज़बान में आखों के इशारे से अक्षय को पीछे मुड़ कर देखने को कहा|

“ओके, अब आप ऑर्डर देने जाइये|” अक्षय ने हुकुम किया|

“क..क..क्या? मैं?” शांतनु थोडा गभराया|

“अरे, आपको खा नहीं जायेगी, जल्दी जाइये|” अक्षय ने फ़ोर्स किया|

“ठीक है!” शांतनु जैसे ही खड़ा हुआ और देखा तो केश काउन्टर तो ख़ाली था|

वहीं खड़े खड़े शांतनु ने ‘उसके’ टेबल की और देखा तो वो फिर से वहीँ बैठ गयी थी और उस लड़की के साथ बात करने लगी थी| फिर से उसका सुंदर चहेरा शांतनु के शरीर के सारे पुर्जे ढीले करने लगा था| एक असफल खिलाडी की तरह शांतनु अपनी कुर्सी में धंस पड़ा|

“क्यों? क्या हुआ?” अक्षय को अपनी पीठ के पीछे बदले नज़ारे का पता नहीं चला था|

“वो अपनी सीट पर वापस आ गयी है|” शांतनु ने फ़िर से दबे सूर में कहा|

“कोई बात नहीं, फिर कभी सही|” अक्षय ने शांतनु को सांत्वना देते हुए कहा|

पर शांतनु को लगा की उसने कोई बड़ा मौका हाथ से गंवा दिया है| जोरों से चल रहे एसी में भी शांतनु को नर्वसनेस के कारण पसीना हो रहा था| आज बहुत कुछ पहलीबार हो रहा था| आज शांतनु पहलीबार किसी लड़की के पीछे दौड़ा था, आज पहलीबार शांतनु ने किसी लड़की की आँखों में आँख डाल कर बात की थी, आज पहलीबार शांतनु अक्षय का हर हुकम आँखे बंद कर मान रहा था| क्या ये उपरवाले का वही इशारा है जिसके बारे में अक्षय अभी थोड़ी देर पहले बता रहा था?

शायद हाँ, क्यूंकि शांतनु को अक्षय की ‘इशारे वाली’ बात को मानने पर मजबूर होना पड़े ऐसा एक पल यहीं कहीं आसपास ही था|

“हेय!” शांतनु ये सब सोच ही रहा था की सामने से एक आवाज़ आई और उसने देखा तो ‘वो’ उसको अपना हाथ हिला कर कुछ कहना चाहती थी|

शांतनु को अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हुआ, अक्षय भी उसकी आवाज़ सुन कर पीछे मुड़ कर आश्चर्य से सब देखने लगा क्यूंकि उसने अपनी जिंदगी में कई बार कोशिश की पर कभी भी किसी लड़की ने उसे सामने से नहीं बुलाया था| शांतनु तुरंत अपनी कुर्सी पर से खड़ा हुआ पर उसके लेपटोप की बैग जो उसकी गोद में थी वो नीचे गीर गई, वो कुर्सी हटा ‘उसके’ सामने जैसे ही आगे बढ़ा, तभी उस बैग का बेल्ट शांतनु के पैरों में आ गया और अब शांतनु से एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा रहा था, अगर बढ़ता तो वो वहीँ गीर पड़ता|

“व्हाय डोन्ट यु गाय्ज़ ज्वाइन अस?” ‘उसने’ फिर से अपना हाथ हिला कर थोड़ा ज़ोर से कहा|

“श्योर व्हाय नोट? वेइट अ मिनीट प्लीज़|” शांतनु से पहले अक्षय ने जवाब दे दिया, पर उसे अभी शांतनु की मुश्किल दूर करनी थी जो उसके पैरों में थी| अक्षय नीचे झुका और शांतनु के पैरों में से बैग का बेल्ट निकाल उसे मुक्त किया| टेबल पर पड़ी अपनी बैग और शांतनु की बैग दोनों अपने कंधो पर लाद शांतनु को इस बार महाराजा की तरह नहीं परंतु ऐसे ही आगे बढ़ने का इशारा किया|

‘वो’ और उसकी दोस्त जहाँ बैठे थे वो कोफ़ी शॉप का कोना था और उस कोने को कवर करने के लिये शॉपवालों ने उधर अर्धगोल सोफ़ा रखा था और उसके सामने एक टेबल और कुर्सी रखे थे| ‘वो’ इस सोफ़े पर बैठी थी और उसकी दोस्त जो सामनेवाली कुर्सी पर बैठी थी वो पीछे मुड़ कर शांतनु और अक्षय को देख रही थी|

“प्लीज़ हेव अ सीट!” शांतनु और अक्षय जैसे ही उनके करीब पहुंचे, उसने अपनी लंबी सी मुस्कान से शांतनु को अपने सामनेवाली सीट पर बैठने को कहा और अक्षय को दूसरी और|

शांतनु अपने नसीब का धन्यवाद करता रहा| उससे अब तक तो एक ही बार बात हुई थी| उसकी आवाज़ नोर्मल लड़कियों से अलग थी पर बहुत मीठी थी|

“सिरु, ये मेरे ऑफ़िस के सामने ही जॉब करते हैं| हम आज सुबह ही मीले| यु नो, हमारे यहाँ अभी सब कुछ मेस्सी है, यु वोन्ट बिलीव, पर हमारे यहाँ स्टेपलर जैसी मामूली चीज़ भी नहीं आयी, इसीलिए मैं उनके ऑफ़िस में स्टेपलर लेने गयी थी|” ‘उसने’ शांतनु की पहचान अपनी दोस्त से करवाई|

जवाब में शांतनु ने ‘सिरु’ की और फीकी मुस्कान दी, क्यूंकि उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था... आवाज़ के साथ|

“ओह ओके|” ‘उसकी’ दोस्त ने हंस कर जवाब दिया तो अक्षय का ध्यान उसकी और चला ही गया|

“हॉप, हम आपको डिस्टर्ब नहीं कर रहे हैं|” शांतनु ने विवेक किया, अब वो नोर्मल हो रहा था|

“अरे ना ना... गुड कंपनी इज़ ओल्वेज़ वेलकम, है ना सिरु?” बाय ध वे यु आर मिस्टर...? ‘उसने’ शांतनु से उसका नाम पूछा|

“शांतनु...शांतनु बुच, ये मेरा कलीग और खास दोस्त अक्षय परमार और आप?” शांतनु ने जीस हिसाब से अपना नाम कहा और तुरंत उसका नाम पूछा उस लहज़े में शांतनु को उसका नाम जानने की उत्सुकता दिख रही थी|

“शी इज़ सिरतदिप बाजवा, मेरी खास दोस्त और मैं अनु... अनुश्री मेहता|” कह कर अनु ने अपना हाथ शांतनु की और बढ़ाया|

== क्रमशः ==