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शांतनु - ७

शांतनु

लेखक: सिद्धार्थ छाया

(मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण)

सात

“भाई में सिरियस हूं| आपको भले ही लगता हो की में शायद सिरतदीप के साथ अपनी सेटिंग कर रहा था, पर मेरी नजरें सिर्फ़ आप दोनों पर ही थी, एन्ड यु नो समथिंग? आप दोनों की जोड़ी बड़ी प्यारी लगेगी|” अक्षय ने शांतनु के सामने ‘थम्ब्ज़ अप’ की साइन दिखाई|

शांतनु ने फ़िर से एक नर्वस स्माइल दी, वैसे उसको अक्षय की हर बात अच्छी लग रही थी|

“वैसे आप दोनों ने क्या बात की? कुछ तो बात की होगी ना? बताइये ना...प्लीज़?” अक्षय ने शांतनु से बिनती की|

“हममम... कुछ खास नहीं, बस दोनों कहाँ रहते है वगैरह वगैरह| वोही सब| पता है? वो बोपल में रहती है, प्यारेलाल एन्ड ब्रदर्स की ऑफ़िस के एकदम सामनेवाले रो हाउसीज़ में!” शांतनु की आवाज़ में अजीब सी ख़ुशी छलक रही थी|

“यु मीन, वो सूर्य संजय रो हाउस? वाओ, धेट्स ग्रेट, अब तो हमें उनके घर जाने का बहाना मिल गया हैं ना?” अक्षय एकदम एक्साईट हो गया|

“नहीं भाई, कामकाज के दिनों में तो वो यहीं, हमारी नज़रों के सामने ही होगी ना? तो वहां जा कर क्या फ़ायदा?” शांतनु ने अक्षय के उत्साह को ठंडा करते हुए कहा|

“हां यार, पर कभी तो जा सकते हैं ना? संडे? या फ़िर किसी छुट्टी के दिन?” अक्षय ने ऑप्शन दिया|

“सर जी, अब ख्याली पुलाव पकाना बंद कीजिये और वटवा का कुछ सोचिये|” शांतनु ने अक्षय को उसका काम याद दिलाया|

अक्षय मुंह बिगाड़ता हुआ खड़ा हुआ| दोनों ने अपनी अपनी बैग्ज़ उठाई और कॉफ़ी शॉप से बहार आये| वहां से जाने का दिल तो शांतनु का भी नहीं था, क्यूंकि उस जगह जहां वो अनुश्री को पहेली बार मिला, बातें भले ही कम हुई पर उसको वो करीबन आधे घंटे तक निहारता रहा, उस जगह को छोड़ कर वो कैसे जा सकता था? उसको अनुश्री के साथ बिताये हुए कुछ पल याद करने थे, पर ऐसे अपनी नौकरी के साथ कैसे अन्याय कर सकता था? इस लिये शांतनु ने अपने कदम तो तेज़ किये ही पर अक्षय का ध्यान भी काम पर लगा दिया|

दोपहर के समय दोनों अहमदाबाद के औद्योगिक विस्तार वटवा पहोंचे और अपने काम पर लग गये| शांतनु अक्षय के लिये उतनी ही लगन से मेहनत करता जितना वो ख़ुद के लिये करता| ऐसा भी नहीं था की अक्षय सिर्फ़ और सिर्फ़ शांतनु की मेहनत की कमाई खाता था, शांतनु बस उसे गाइड करता या जहां ज़रूरत हो वहां अक्षय की जगह खुद क्लाएंट के साथ बात करता, खासकर अगर कोई बड़ा या कोर्पोरेट क्लाएंट हो तब| आज भी शांतनु ने अक्षय को ही बोलने दिया और एक पालिसी ‘क्लोज़’ की| आज दोनों खुश थे क्यूंकि अक्षय का टार्गेट बस पूरा हो चूका था|

लौटते समय नज़दीकी मणिनगर विस्तार में अपने एक पुराने क्लायंट से मिल अपना टार्गेट पूरा कर दिया और अब वो बाकी का महिना अपने मन की इच्छा के अनुसार कुछ भी कर सकता था| आज काम खत्म करते करते शाम हो गई और एक जगह रस्ते पर किसी चायवाले के ठेले पर जब शांतनु और अक्षय दोनों चाय पी रहे थे तब अक्षय के मोबाइल पर एक अनजान नंबर ने दस्तक दी|

“बड़े भाई, भाभी की ओर अपना एक और कदम बढ़ाने के लिये तैयार हो जाइए|” अक्षय हँसते हँसते बोला|

“मतलब?” शांतनुने चाय की चुस्की लेते हुए उसे पूछा|

“सिरतदीप|” अक्षय बस इतना ही बोला और बाद में अपने होंठ पर ऊँगली रख शांतनु को चूप रहने का इशारा किया और कोल रिसीव किया|

“हेल्लो?” जैसे वो अनजान हो की ये नंबर किसका है, अक्षय बोला|

“ओह, हां, हाई!! कैसे हो? जी, वाओ, धेट्स ग्रेट, पर अब आपको उसकी चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है, अभी अभी मैंने जयेशभाई से आपकी सेलरी की बात की और उनसे रिक्वेस्ट की एन्ड यु नो व्होट? वो मान गये और अब आपको आपकी पसंदीदा सेलरी ही मिलेगी, बस कल सुबह शार्प दस बजे उनकी ऑफ़िस पहुँच जाइएगा| शांतनु के सामने अंगूठा ऊँचा कर अक्षय ने एक ही साँस में पूरी बात कर ली|

उस तरफ सिरतदीप भी अक्षय की बातों से इम्प्रेस हो गई हो ऐसा उसके चेहरे पर से लगा| अक्षय ने दो तीन मिनीट और बात की और दो बार अनुश्री का नाम भी लिया| अब शांतनु को जल्दी होना लाज़मी था| आख़िरकार अक्षय ने कोल खत्म किया|

“अनु के बारे में क्या बात की?” जैसे ही अक्षय ने कोल कट कीया शांतनु ने तुरंत सवाल दाग दिया|

“ओहो! सिर्फ़ आधे घंटे की महफ़िल और अनुश्री से सीधी अनुऊऊऊ? सही जा रहे हो बड़े भाई!” अक्षय ने शांतनु को आँख मारी|

“अरे, ऐसे ही मुंह से निकल गया, तू बोल ना की क्या बात की उसने?” शांतनु से अब रहा नहीं जा रहा था|

“बिग ब्रो| वो दोनों हम दोनों से इम्प्रेस्ड हैं, आई मीन हमारी फ़र्स्ट इम्प्रेशन अच्छी रही और अब ये हम पर है की इस अच्छी इम्प्रेशन को हम अच्छी मित्रता में कैसे परिवर्तित करें|” अक्षय ने किसी ‘लवगुरु’ की अदा से शांतनु को कहा|

“मतलब?” शांतनु अब भी कन्फ्यूज्ड था|

“मतलब ये की सिरतदीप के कहने के अनुसार वो और अनुभाभी कैफ़े से जब ओटो में अपने घर जा रहे थे तब सारे रस्ते हम दोनों के बारे में ही बात की और उनके हिसाब से हम जैसे मैच्योर लड़के आज कल कम ही दिखाई देते है और हम दोनों का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट हेल्पफुल होना भी हैं| अक्षय अपनी खास स्टाइल में शांतनु से ये सब कह रहा था और शांतनु के दिल की धड़कने यह सब सुन कर तेज़ हो रही थी, उसके रोम रोम में आनंद सा छा रहा था|

“हममम... तो अब?” शांतनु ने ऐसे ही सवाल किया|

“अब? क्या अब?” अक्षय को शांतनु का सवाल समझ में नहीं आया|

“मतलब की आज का तो हो गया, वो दोनों इम्प्रेस भी हो गई, पर कल?” शांतनु जैसे अक्षय का विद्यार्थी हो वैसे उसको सवाल कर रहा था|

“देखिये शांतनु’दा अब हमें जल्दबाजी नहीं करनी है, अब जो भी होना है वो सामनेवाली पार्टी करेगी| लड़की के दिल में इम्प्रेशन जमाना बहुत ही कठिन काम होता है, वो तो उपरवाले की कृपा से हम ने बहुत अच्छी तरह से जमा ली है इसीलिए डैस्परेशन अब हमारा खेल बिगाड़ सकता है| अक्षय ने फ़िर से एक विद्वान लवगुरु की अदा दिखाई|

“हममम... और उसे कहां पता है की हमारा अल्टीमेट मोटिव क्या है?” शांतनु बोला|

“एक्ज़ेक्टली, इसीलिए उन दोनों को या उनमें से किसी एक को अब सामने से हमारा कोंटेक्ट करने दो| एक-दो दिन जाने देते हैं, अगर उनकी तरफ़ से कोई कोल नहीं आता तो फ़िर हम सामने से कोंटेक्ट करेंगे| और वैसे भी, सिरतदीप तो कल ही मुझे कोल करेगी जब उसे अपना अपोइंटमेंट लेटर मिलेगा, तो बाद में उसको और भाभी को हमें कैसे मिलना है वो मैं पार्टी के बहाने सेट कर लूँगा| और वैसे भी भाभी आप से कहाँ दूर है? सामने ही तो है?” ‘अक्षयवाणी’ जारी रही|

“वो तो में समझ गया, पर ये अचानक से हम हम क्या है? तू बीच में कहाँ से आया भाई? तू तो मेरी सेटिंग कर रहा था ना? शांतनु ने अपना मुंह फुला कर अक्षय की फ़िरकी लेना शुरू किया|

“हां, पर मुझे तब कहाँ पता था की भाभी के साथ सिरु भी इतनी स्मार्ट निकलेगी?” अक्षय ने आँख मारते हुए जवाब दिया|

“देखो मिस्टर लवगुरु, मैं स्वार्थी नहीं हूं पर उस लड़की के साथ ज़रा संभल के| दोपहर को जैसे तुमने मुझसे वचन लिया था, अब मैं तुमसे वचन ले रहा हूँ की अगर तू सिरियस हो तभी आगे बढ़ना|” शांतनु ने चेतावनी के स्वर में अक्षय से कहा|

“बस ना बड़े भाई? छोटे भाई की क़ीमत इतनी ही की ना आपने? नो! सिरियसली भाई, मैं उससे काफ़ी इम्प्रेस्ड हूं, पर में फ़िलहाल ज़्यादा अपनेआप को फ़ोर्स नहीं करूंगा, क्यूंकि वो भाभी की खास दोस्त है इसलिये अगर में...” अक्षय बोल ही रहा था की...

“ऐसा नहीं है अक्षु, पर अगर मेरा यह मानना है की अगर किसीको कोई लड़की वाकई अच्छी लगती है तो फ़िर उसके साथ गंभीरता से संबंध आगे बढ़ाना चाहिये| मैं तुम्हारी तरह अनुभवी नहीं हु, पर दो दिन से अनु की प्रति मेरी जो भी फीलिंग्स है उस बेज़ पर में ऐसा सोच रहा हूं| अगर तुम्हें सिरतदिप सचमुच अच्छी लगती हो तभी आगे बढ़ना, इसलिये नहीं की वो अनु की दोस्त है, पर इसलिये क्यूंकि वो एक अच्छी लड़की है|” शांतनु ने अक्षय की बात काटते हुए कहा|

“डोन्ट वरी ब्रो| पहेली नज़र में वो मुझे अच्छी लगी है, पर में कोई भी ज़ल्दबाज़ी में नहीं पड़ना चाहता| सच कहूँ तो मैं भी अब थक चूका हूं फ्लर्ट करते करते, लेट्स सी|” अक्षय की बात में, उसकी आँखों में बड़े दिनों बाद प्यार के मामले में सच्चाई दिखी जो शांतनु को अच्छी लगी|

दोनों ने अपनी बातें और चाय खत्म की और शांतनु के घर की ओर निकल पड़े, शांतनु ने पहले अक्षय को उसके घर छोड़ा और फ़िर अपने घर पंहुचा|

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घर के बिल्डिंग के नीचे पार्किंग में बाइक पार्क कर शांतनु मन ही मन में वो सोच रहा था की क्या आज का दिन उसके जीवन का सबसे बढ़िया दिन था? शायद हाँ, क्यूंकि अनुश्री के किस्से में एक ही दिन में वो इतना आगे बढ़ जायेगा वैसी तो उसको कल्पना ही नहीं थी| कल तक जिसे उसने देखा भी नहीं था पर जब उसे देखा तो पागलों की तरह वो उसके पीछे दौड़ पड़ा, उसका नाम जानने के लिये वो कितना उतावला हो रहा था, और उसने भी तो ऐसे ही उसका नाम बता दिया और सिर्फ़ आधे घंटे की बातचीत में वो उससे इम्प्रेस्ड भी हो गई? अनबिलीवेबल!

इतने में उसका घर आ गया और उसने डोरबैल बजाई| दरवाज़ा खोलते ही ज्वलंतभाईने मुस्कान के साथ अपने ही अंदाज़ में शांतनु को वेलकम किया|

“अरे आइए आइए शांतनुभाई, आज तो बड़ी देर भई? घड़ी में जब देखे साड़े सात तभी मैंने सोचा की आपसे फ़ोन पर पहेले बात क्यूँ नहीं की गई?” ज्वलंतभाई ने प्रासानुप्रास शुरू किया|

“बटवा गया था पार्टी से मिलने, तभी घर आने का समय होने लगा घटने|” शांतनु ने बड़ी महेनत के बाद प्रास मिलाया|

शूज़ उतार कर शांतनु सीधा ही अपने कमरे के बाथरूम में नहाने चला गया और फ्रैश हो कर उसने टीवी के चैनल्स बदलते सीधी सादी भाषा में ज्वलंतभाई से पुरे दिन का रिपोर्ट कार्ड दिया पर उसमें अनुश्री कहीं भी शामिल नहीं थी|

“अक्षय महाराज बड़े दिनों से गायब है, शांतनु उनसे ज़रा पूछियेगा की अंकल से कोई भूल हुई है क्या?” ज्वलंतभाईने अक्षय के बारे में शांतनु से पूछा|

“आप ही कोल कीजिये न पप्पा?” शांतनु ने अपना सैलफोन ज्वलंतभाई की ओर बढ़ाते कहा|

“आज नहीं, कल करूँगा और सरप्राइज दूंगा, पर तब तक आप उसको कुछ भी मत बताइयेगा|” ज्वलंतभाई मुस्कुराये|

“श्योर|” शांतनु ने भी हंस कर जवाब दिया|

डिनर खत्म करते ही दोनों फ़िरसे टीवी देखने लगे और हररोज़ की तरह साढ़े दस बजे ‘गुड नाईट’ कह के दोनों अपने अपने कमरों में सोने चले गये| कमरे में घुसते ही शांतनु की नज़रो के सामने अनुश्री छाने लगी, उसके साथ की हुई हर एक बात, उसकी बात करने की स्टाइल, उसकी अलग अलग अदायें, उसकी वो बड़ी सी मुस्कान| ये सब याद करते ही शांतनु के चेहरे पर भी एक मुस्कान आ गई|

शांतनु ने अपना मोबाइल उठाया और उस में अलार्म चेन्ज करने लगा क्यूंकि कल उसे ऑफ़िस जाने की कोई जल्दी नहीं थी, जो भी काम था वो अक्षय को करना था| शांतनु ने अपना अलार्म सात से बदल कर साढ़े सात कर दिया, पर अचानक ही उसे याद आया की आज जब वो ऑफ़िस जल्दी गया था तब करीब पौने नो बजे अनुश्री उसे ऑफ़िस के बिल्डिंग के नीचे मिली थी|

“इसका मतलब यह हुआ की अनुश्री अब हररोज़ शायद इसी वक्त ऑफ़िस आयेगी, और कल भी... और अब तो उससे पहचान भी हो गई है इसलिये पार्किंग से ले कर, लिफ्ट में और फिर पैसेज से हो कर ऑफ़िस पहोंचने तक उससे बात होगी... राईट|” शांतनु ने सब सोच लिया और अलार्म फ़िरसे सात बजे पर फ़िक्स कर दिया|

शांतनु ने तकिये पर सर तो रखा पर आज उसे नींद कहाँ आनेवाली थी? जैसे ही आँखें बंद करता, अनुश्री दिखने लगती| कभी दाहिनी और तो कभी बायीं और घुम घुम कर सोने की कोशिश करते करते शांतनु की आँख मध्यरात्रि के नज़दीक आते ही लग गई|

तीसरे दिन भी शांतनु को सुबह सात बजे जागा हुआ देख ज्वलंतभाई को आश्चर्य तो हुआ पर मन ही मन सोच लिया की आज कल उसको ऑफ़िस में काम ज़्यादा होगा| शांतनु भी फटाफट तैयार हो कर ब्रेकफास्ट करने टेबल पर पहुँच गया| ज्वलंतभाई के पास आज उसके लिये सरप्राइज था, आज उन्हों ने शांतनु के लिये नये टोस्टर में सेंडविच बनाई थी|

“वाओ! मस्त मस्त पप्पा|” शांतनु के चेहरे पर उसकी ख़ुशी साफ़ झलक रही थी, बस उसकी ये ख़ुशी ही ज्वलंतभाई का एक किलो खुन बढ़ा देती| उन्होंने भी जवाब में मुस्कुरा दिया|

नाश्ता खत्म करते ही शांतनु अख़बार पढ़ने लगा और थोड़ी देर बाद एक पन्ना घुमाते हुए शांतनु का ध्यान घड़ी पर गया और आठ बीस देख कर ही उसे अनुश्री दिखने लगी और अख़बार का बंडल बना कर उसको सोफ़े पर फ़ैंक, अपने शूज़ ले आया और शूज़ पहनते ही बोला...

“पप्पा, जा रहा हूँ, बाय|” शांतनु की जल्दबाजी देख ज्वलंतभाई को थोड़ी फ़िक्र होने लगी|

“बहुत काम है क्या? अपना ख्याल रखियेगा|” दरवाज़े की और शांतनु को दौड़ते हुए देख ज्वलंतभाईने कहा|

“हां, बम्बई से सर आने वाले हैं, आज जल्दी पहुंचना है|” शांतनु जल्दी जल्दी सीढिया उतरने लगा|

“संभालना!” चिंतातुर ज्वलंतभाई बोले|

ज्वलंतभाईने आज तक शांतनु को ऐसी जल्दबाजी करते हुए नहीं देखा, पर उन्हें कहां पता था की उनका समझदार पुत्र किसी लड़की के प्यार में पागल हो कर उसके पीछे दौड़ रहा है?

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बाइक को किक मार करीब पंद्रह मिनट में शांतनु अपने ऑफ़िस के बिल्डिंग में पहुँच गया और अपने पार्किंग प्लेस में बाइक पार्क कर दी| वहीँ मातादीन उसकी राह देख रहा था|

“का हो सांतनु बाबा? आज कल कौनो जल्दी में औफिसवा आ रहे हो? लागत है कौनो बड़ा काम मिल गवा है|” मातादीन को लग रहा था की शांतनु अभी उसको चाय पिलाने की बात करेगा इस लिये वो दरवाज़े की और चलने लगा|

पर शांतनु का आज का प्लान कुछ अलग ही था| आज उसको चायवाले के स्टोल के पास खड़ा नहीं रहना था| अनुश्री को भी उसको नहीं बताना था की वो उसकी राह देख रहा है, सबकुछ अपनेआप हो रहा है वैसा ही कुछ उसको अनुश्री को जताना था, पर अभी तो सिर्फ़ आठ चालीस हो रही थी और कल के अनुश्री के आने के समयमें अभी भी दस मिनट बाकी थे|

“चलिये मातादीन भैया, आज आपको चाय और बीड़ी पिलाता हूं, मेरी आज चाय पीने की इच्छा कुछ कम ही है|” शांतनु ने मातादीन को कहा|

शांतनु की सोच यह कह रही थी की अगर अनुश्री के आने में अभी भी दस मिनट है तो मातादीन को वो चाय पिला कर और बीड़ी का बंडल खरीद कर दे देगा और फिर वो बिल्डिंग के किसी कोने में छीप जायेगा और अनुश्री की राह देखेगा|

“का बबुआ, अगर आप चाय नहीं पियोगे तो हमें अच्छा नाही लगेगा ना?” मातादीन ने विवेक किया|

“अरे ऐसा मत सोचो, मुझे थोड़ा ज़रुरी काम है|” शांतनु ने चायवाले और पानवाले को रोज़ की तरह पैसे दिये| हररोज़ का क्रम होने से उन दोनों ने मातादीन को चाय और बीड़ी का बंडल दिया| शांतनु मातादीन से छुप सके ऐसा कोई कोना ढूंढने लगा, घड़ी ऑलरेडी आठ पचास दिखा रही थी|

शांतनु ने बिल्डिंग की बायीं और जहाँ बड़ा सा ट्रांसफोर्मर था उसके पीछे शरण ली| यहाँ से वो बिल्डिंग की मेंइन एंट्री साफ़ देख सकता था और किसी और का उस पर ध्यान भी नहीं पड़ सकता था| घड़ी अब आठ पचपन दिखा रही थी और शांतनु हद से ज़्यादा व्याकुल हो रहा था|

जैसे जैसे वक्त और बढ़ता चला शांतनु को भले बुरे ख्यालात आने लगे, उसने तो यहाँ तक सोच लिया की कहीं अनुश्री ने इस्तीफा तो नहीं दे दिया होगा? क्यूंकि अब तो नौ बज चुके थे और अनुश्री कल आठ पचास को आ गई थी|

“अरे सांतनु बाबा? उपर नहीं गये का? और इधर कौनो छुप्पम छुपाई खेल रहे हो का?” मातादीन ने शांतनु की टांग खिंची|

“नहीं नहीं एक इम्पोर्टेंट कोल करना था और लिफ्ट में नेटवर्क नहीं आ रहा था तो कट हो गया, अब मैं उसके कोल की राह देख रहा हूं|” मातादीन का पीछा छुड़ाने के लिये शांतनु ने जो मन में आया बक दिया|

“ठीक है, ठीक है|” मातादीन ने भी ज़्यादा कुछ नहीं पूछा क्यूंकि इस समय उसको पूरे बिल्डिंग का एक राउंड लेना होता है| वो दो कदम आगे बढ़ा और फ़िर उसे कुछ याद आया और वो शांतनु की ओर वापस आया|

शांतनु को उसका वापस आना ज़रा भी अच्छा नहीं लगा, पर मातादीन को कुछ कहने के लिये या फ़िर उसे अवोइड करने के लिये उसके पास कोई कारण भी तो नहीं था? इसीलिए शांतनु ने अपनी एक नज़र एंट्रंस पर रखी और जैसे की वो किसी को कोल कर रहा हो ऐसी एक्टिंग करने लगा| सिर्फ चौबीस घंटे, और कितना बदल चूका था शांतनु?

“अरे सांतनु बाबा, उ कल आप हमसे पूछत रहे न उ मैडम के बारे में? जो परसों आई थी? अरे उ तो आप के सामने पांचसो तीन में ही नोकरी मा लगी है!!” अनुश्री के बारे में बात कर मातादीन ने जैसे की एटम बम शांतनु के सामने फोड़ दिया और शांतनु भोंचक्का रह गया|

क्रमश: