Prem, Rishta, dost, bhavnaye books and stories free download online pdf in Hindi

प्रेम, रिश्ता, दोस्त, भावनाएं

प्रेम
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याद तुम्हें होगा प्रिय! दिल से अस्सी घाट, शरद ऋतु का।
गाये थे जो नग़में मिलके, बैठी' साइकिल पर थी तुम।।

भावनाओं के सिगरेट की तुम सुलगती धुआँ थी।
या पानामा के कश से तुम, चोटिल धुंधली कुआँ थी।।
सुराहीदार गर्दन के तिल, रखती कुर्ती के शर थी तुम।
गाये थे जो नग़में मिलके, बैठी' साइकिल पर थी तुम।।(१)

कभी कचौड़ी गली गुजरता, तो कहती रंगबाज है।
अगर तुम्हारे काँधों पे सिर रखता पूछती क्या? राज है।।
मेरे सीनें पर जो घूमें, अँगुली सी सहचर थी तुम।
गाये थे जो नग़में मिलके, बैठी' साइकिल पर थी तुम।।(२)

रोटी के पर्थन हाथों में, लगा खोलती दरवाजा।
दाँत दिखा कर कह देती थी, चल जल्दी अंदर आजा।।
चाक चढ़ी कोई मूर्तित थी, या मिट्टी आखर थी तुम।
गाये थे जो नग़में मिलके, बैठी' साइकिल पर थी तुम।।(३)

खाली क़मरा खाली बोतल, पर नशा तुम्हारा सिर पर।
गांजा, अफ़ीम फीका था पर, झूम रहा था गिर-गिर कर।।
ज़ाम काँच से छलक रहा या बहती लब़ निर्झर थी तुम।
गाये थे जो नग़में मिलके, बैठी' साइकिल पर थी तुम।।(४)

बैठ अटारी के मुँडेर पर, ताक रही थी जो रस्ता।
चुटकी भर सिंदूर चाह थी, मिला नहीं वह भी सस्ता।।
गेरूआ साँकल साँझ चढ़ा, पहुँचा जैसे दर थी तुम।
गाये थे जो नग़में मिलके, बैठी' साइकिल पर थी तुम।।(५)



©-राज‌न-सिंह



भावनाएं
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कुछ मखमली यादें
जाने कहाँ से
बारिश की पहली बूँदों संग
धीरे से टिप-टिप कर
मन के सूखी बेज़ार
बंजर धरातल को
हौले-हौले सहलाये जा रही
क्या? तुम्हें याद है
हमने अंतिम बार कब?
साथ में चाय पी थी
शायद नहीं............
हो भी कैसे?
आख़िरश तुम अब मोडर्न जो हो गयी
और मैं? आज भी वही
गाँव वाला देहाती
जो कभी तुम्हारे पीछे-पीछे
कुलाचें भरता रहता था
तुम आपनी बकड़ी के मेमने के पीछे
और मैं..........
तुम्हारे पीछे भागता
और फिर............
मेमने को अपनी आगोश में भर तुम
मेरे शानों पर सिर टिका बैठ जाती
मैं तुम्हारी सिल्की मुलायम केशों से
खेलता कभी और कभी
ज़ूओं को तुम्हारी हथेली पर रख
छेड़ दिया करता था
शायद तुम्हें अब कुछ याद नहीं?
होगा भी कैसे? अब तुम
शहरी जो हो गयी
अब तुम्हारे केश छोटे हो गये
अब तो मग का हेंडिल भी न टूटता
चाय बनता ही कहाँ अब?
प्यार रूठ गया
झगड़े भी खत्म हो गये
हम-तुम दोनों साथ-साथ है
पास-पास है
मगर फिर भी.........
एक दुसरे से अंजान है
अब तो उस पकी हुयी चाय को
दुबारा उबाला भी नहीं जा सकता
क्योंकि.............
पॉयजन बन जाएगा
शायद हमारी सुस्त ठंडे रिश्ते
ज़हर में तब्दील हो जाएगा
अब यादों के कारवाँ को यहीं रोकना होगा
अकेलेपन की बस्ती में
एक नया गाँव बसाना होगा
जहाँ मैं और सिर्फ मैं
और मेरी यादें हो
वो रूमानी यादें जिसमें तुम थी
मैं था और प्यार था बस प्यार॥

©-राजन-सिंह




रिश्ते
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बना के रिश्ते छला जो उसने
क्या कसूर था मेरा
कर लेता विश्वास हरिक पर
यही गुनाह है सिर्फ मेरा
कमाल के रिश्ते बनाते
सोशल मिडिया के परवाने
दिल को चीर कर यूँ दिखलाते
जैसे राम समक्ष हनुमान खड़े हो
कोई भाई, कोई माई बन रहव यहाँ
दीदी, बीवी का खेल भी चल रहे यहाँ
चक्रव्यूह ऐसा इस गूगल बाबा काम
जिसको अभिमन्यू भी न भेदना जाने
कौन बताये, कैसव निकले
वाह-वाही की लत जो खाता जाए
लम्हा-लम्हा गुज़रती ज़िंदगी
लम्हों ने ही किया बेज़ार
अपनों से अशाएं छोर
लगाया जो बेगानों से आस
लूट गये हम तो उसी पल
जब की यारी उस हरजाई से
पर्वत से गिर कर
सरिता भी तन्हा ही भागी थी
मैं किस खेत काम मूली था
जो समझ सकता उसकी बेज़ारी
छलने वाला लम्हा भी
खुद के छल से शर्माती
ख़ुदा की ख़ुदाई जब मिली
वो भी एक लम्हा था
अब सब गवाँ चुका
ये भी है एक लम्हा
उठ कर फिर से जोरूँगा
एक-एक तिनके से आशियाना अपना
एक नये रिश्ते के साथ
लिखूँगा कलियों पर फूलों पर
परतझर और वसंत पर
सावन के लहर पर
जेठ के चिलचिलाती दोपहरी में
पूस की सिकुड़ती सर्दी में
नवल कोंपल से उभर कर
नूतन रिश्तों का सृजन
गढ़ुँगा फिर से नये रिश्ते।।
गढ़ुँगा फिर से नये रिश्ते।।।


©-राजन-सिंह




दोस्त
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मिटे ताल जल-नीर सुखते तलैया
हृदय को सुखाने लगी गीतिका।
सभी भाव सूखे सभी राग भूले
निरस रज लिखाने लगी दोस्ती॥(१)

नयन झील सी है अधर रस भरी है
सुगंधित बदन से हृदय हो मधुर।
खिले कीच के बीच रंगीन पुष्पम
कमल उर खिलाने लगी दोस्ती॥(२)

शरण में तुम्हारी हमीं आ रहे है
हृदय में  बसा आज अपनी प्रिये ।
मधुर से मिलन पर पपीहा बने जो
हृदय राग गाने लगी दोस्ती॥(३)

मुदित चाँद से चाँदनी दिव्य सौरव
विमल प्रीत गंगा गगन में बहे।
मगन हो गगन में सभी शुभ्र किरणें
चमक उर रिझाने लगी दोस्ती॥(૪)

मिलन की लगन ले नयन राह ताके
सजन संग साथी बढ़े जो कदम।
वहीं मुग्ध तुम पर प्रिये प्रीत साजे
हृदय जगमगाने लगी दोस्ती॥(५)

खिलेगा कभी पुष्प अरु मध्य तेरे
तनय बन प्रिये शुभ लगन से मिलो।
सभी दृश्य हो अद्धभुत नभ शिखर पर
शगुन हिय सजाने लगी दोस्ती॥(६)

सनम से सजन तक सफर प्रीत का जो
मिलन आश लेकर चली जब धरा।
सुहागन धरा जब हुई गीत मंगल
मधुर गुनगुनाने लगी दोस्ती॥(७)



©-राजन-सिंह