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आखिरी ख़त

रुद्र,
रुद्र मैंने यह खत तुम्हें इसलिए नहीं लिखा कि एक बार फिर तुमसे यह कह सकूं कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ, न अपनी कमी का एहसास दिलाना है तुम्हें।

अजीब बात है न रुद्र जब मैं तुमसे प्यार करती थी, तब तुम्हें मेरे प्यार पर विश्वास ही नहीं था। याद है तुम्हें.... वो क्या कहा था तुमने.."महज आकर्षण को प्यार का नाम ना दो तुलसी, आज मुझे चाहा है पर कल किसी और को चाहोगी"। सच मानो रुद्र इतना दर्द तब नहीं हुआ था जब तुमने मेरे प्यार को "महज़ आकर्षण का नाम दिया था"।
तक़लीफ तो तब हुई थी जब मैंने तुम्हारा प्यार ठुकराया।
जिसे हर दुआ में मांगा था, जिसके प्यार की ख्वाहिश सांसो से ज़्यादा की, उसके प्यार को ठुकराया था मैंने।
यकीन मानो रुद्र इससे ज़्यादा दर्द किसी और तक़लीफ का नहीं होता। 

शायद इसलिये आज तुम्हें अपने दिल की बातों से रूबरू कर रही हूँ। मैं नहीं चाहती तुम मेरे प्यार को आकर्षण का नाम दो, क्योंकि मैंने तुम्हें अपनी आत्मा से चाहा था। और यह प्यार मेरी आत्मा में इस कदर बसा है कि यूँ रहना तुम्हारे बिन सम्भव नहीं लगता।

मैं किसी और की हो नहीं सकती रुद्र और तुम्हें किसी और के साथ देख नहीं सकती। तुमने जब प्यार का इज़हार किया तो मैंने पल भर में तुम्हारा प्यार ठुकरा दिया था। आँसू मेरी आँखों में कैद थे, लेकिन उन्हें बहाना भी मुमकिन ना था। तुम वज़ह जानना चाहते थे, लेकिन मैंने तुम्हारा अपमान किया। मेरे हर एक शब्द तुम्हें चुभे थे, लेकिन उनकी टीस आज भी मेरे दिल से नहीं जाती।
तुमने तो आसानी से यकीन कर लिया कि मैंने कभी तुमसे प्यार किया ही नहीं था, शायद वो आकर्षण ही था मेरा।
नहीं! रुद्र यह सच नहीं है।

मैं जानती हूँ मेरा यूँ तुम्हें ख़त लिखना ग़लत है। मैं जानती हूँ तुम किसी और के हो चुके हो, लेकिन ग़लतफ़हमी को दूर करना चाहती हूँ। बस एक आखिरी बार तुम्हें ख़त लिख रही हूँ।

यह बात तब से शुरू हुई जब से तुमसे प्यार किया और यह बात तुमसे प्यार करते हुए ही खत्म करना चाहती हूँ। हाँ रूद्र मैं आज भी सिर्फ तुमसे प्यार करती हूँ। मेरे चारों ओर बस तुम हो रूद्र, बस तुम।
मेरी मज़बूरी थी रुद्र की तुमसे दूर हो गई, मेरी मज़बूरी मेरी पहचान है, मेरा नाम है। इसे बेवफाई का नाम न देेना, क्योंकि मैं बेवफा नहीं। आज भी मेरी आत्मा में तुम बसते हो और तुम में ही मेरा सारा संसार है। हाँ रुद्र यह सच है मैंने शादी नहीं की, ना तुम्हारी हो सकी और ना किसी और को अपना बना सकी।
उन सात फरों में खुद को ना जला सकी, जो मेरे दिल से कोसों दूर थे।
तुमसे शादी का झूठ कहा क्योंकि तुम शादी नहीं कर रहे थे। मैं जानते थी मेरी शादी की खबर से तुम गुस्से में ही सही लेकिन खुद को मेरी यादों से दूर कर दोगे और देखो तुमने ऐसा ही किया। तुमने शादी कर ली। तुम्हारी शादी की खबर ने मेरी साँसों को रोक दिया था। मैं अंत कर देना चाहती थी अपना, लेकिन कुछ ज़िम्मेदारियों को पूरा करना भी ज़रूरी था रुद्र।
मैं तुमसे इतना प्यार करती थी कि भूल गई थी कि मैं तुलसी हूँ, और तुलसी कभी रुद्र पर समर्पित नहीं हो सकती। जिस दिन मैंने तुम्हें, अपने प्यार का इज़हार किया था रुद्र, तुम्हें याद होगा तुम सीढ़ियों से गिरे थे। बहुत चोट आई थी तुम्हें, और जिस दिन मैंने तुम्हारी आंखों में पहली बार प्यार देखा था मेरे लिए, वो दिन तो याद है ना तुम्हें?
"मुझे कॉलेज से घर तक छोड़ने आए थे तुम, पहली बार तुम्हारे इतने करीब थी, और जैसे ही तुमने मेरा हाँथ पकड़ा, तुम्हें घर से कॉल आ गया था। तुम्हारे पापा को हार्ट अटैक आया था। और तुम ज़ल्दी ही चले गए थे"।

तुम इसे इत्तेफाक कहोगे, इसलिए ही मैंने तुमसे इन घटनाओं का जिक्र नहीं किया था। लेकिन रूद्र मेरे करीब होने से ही यह सारी घटनाएं हो रही थी।
मैं नहीं चाहती थी, तुम्हें मेरी वजह से मेरे प्यार के लिए अपनों को खोना पड़े और मैं तुम्हें नहीं खो सकती थी।तुलसी और रुद्र कभी करीब नहीं हो सकते, यह स्वीकार कर लिया था मैंने। हो सकता है मेरी यह सोच ग़लत हो। हो सकता है इन सब की वजह मैं नहीं हूँ। लेकिन यह सच जानना मेरे लिए जरूरी नहीं था।
मैं तुमसे प्यार करती हूँ रुद्र, और हर जन्म में करती रहूंगी।
बचपन में माता पिता को खोया था मैंने, इसलिए खोने की तक़लीफ़ का अहसास है मुझे।
यह जन्म मेरा तन्हा ही गुजरेगा। यह तुलसी रुद्र के आंगन में नहीं खिल सकती। क्योंकि तुलसी की जगह रुद्र के चरणों में भी नहीं है।
मैं जा रही हूँ रुद्र इस दुनिया से, वापस इस दुनिया में आने के लिए। तुम ईश्वर से प्रार्थना करना मुझे तुलसी का जीवन ना दें, क्योंकि मैं तुम्हारे आंगन की शोभा बनना चाहती हूँ। मैं रुद्र में खुद को समर्पित करना चाहती हूँ। मैं वचन देती हूँ कि अगले सात जन्म मैं तुम्हारे साथ जीऊंगी। लेकिन इसके लिए इस जीवन का अंत ज़रूरी है। मेरे लिए कभी रोना मत रुद्र क्योंकि रुद्र के आंसू तुलसी के लिए अभिशाप बनेंगे वरदान नहीं।

मेरा इंतजार करना....
तुम्हारी तुलसी

#रूपकीबातें