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संध्या

संध्या कुछ दिनों के लिए अपनी भाभी के मायके आई थी। यूँ तो पारिवारिक रिश्तों की वजह से आरव उसे पहचानता था, लेकिन कभी मिला नहीं था। किसी कार्यक्रम में संध्या को उसने पहली बार देखा था, और तब से ही वो उसे पसंद करने लगा था। लेकिन कभी कह नहीं सका।
संध्या पीले रंग के सलवार सूट में खड़ी थी, वो संध्या को निहार रहा था। संध्या के लंबे बाल उड़ते हुए आपस में उलझ रहे थे, और उनमें उलझ रहा था वो। की तभी अचानक उसकी तन्द्रा टूटी, जब उसने संध्या की शादी की चर्चा सुनी। संध्या की भाभी को कोई लड़का बहुत पसंद था संध्या के लिए.....
उसे बहुत तेज झटका लगा और उसके हाँथ काँपने लगे। उसकी सारी ख्वाहिशें जैसे खत्म हो गयी और वो जड़ की भांति बैठा रहा। फिर उसने किसी तरह खुद को संभाला और वो उठ कर चला गया। वो वहाँ से वापस चला जाना चाहता था लेकिन छुट्टियां खत्म होने में अभी वक़्त था, और वो माँ से क्या कहता। यही वज़ह थी कि वो रुक गया।

आरव रात में चौखट की किनारे बैठा था की तभी छत से आती हुई संध्या अंधरे में लड़खड़ा कर उसकी गोद में जा गिरी। संध्या चीखी और डरकर उसे कस के पकड़ लिया और अपनी आँखों को बंद कर लिया। आरव को कुछ समझ ही नहीं आया की क्या हुआ, उसे डरी हुई संध्या को देख हँसी आ गयी।
आरव ने पूछा.. तुम ठीक हो?
संध्या ने आंखें खोली और हामी भरते हुए हड़बड़ा कर चली गयी। और बार- बार उसे पलट कर देख रही थी, शायद बहुत शर्मिंदगी हो रही थी उसको।
आरव भी उसे देखते हुए अपने कमरे में चला गया। अगले दिन माँ को ढूंढता हुआ उसके पास गया और पूछा माँ कहाँ हैं? संध्या ने कहा मंदिर गयी हैं। आरव ने कहा मुझे चाय पीनी है। संध्या ने बैठने का इशारा किया और चाय बनाने लगी।
चाय बनते ही संध्या ने उसे चाय दी और अपने काम में लग गयी। तब तक आरव की माँ भी आ गयी।
चीनी ठीक है? संध्या ने पूछा
आरव ने हाँ में हामी भर दी, तभी आरव की माँ ने मुस्कुराकर संध्या की प्रशंसा करते हुए आरव से कहा, बहुत प्यारी लड़की है, जिस घर भी जाएगी सब को खुश रखेगी।
आरव झूठी मुस्कान दिखाते हुए चाय अधूरी छोड़ हड़बड़ाता हुआ वहाँ से चला गया। माँ को उसका बर्ताव बहुत अजीब लगा लेकिन उन्होंने इतना ध्यान नहीं दिया। कुछ दिन बीत गए, और संध्या अपने घर वापस जाने लगी। वो सब से मिल रही थी, लेकिन आरव वहाँ नहीं था। वो ऊपर कमरे में अकेला बैठा था, और खुद को व्यस्त करने की कोशिश कर रहा था। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, उसने पलट के देखा.. संध्या खड़ी थी।
आरव ने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए उसकी तरफ देखा, और वो विदा लेकर जाने लगी। आरव पलट गया उसके आँसू बहने लगे थे, तभी अचानक संध्या की आवाज़ आई " केवल शादी की चर्चा हुई है, मेरी शादी नहीं"। आरव ने पलट कर देखा।
संध्या मुस्कुराते हुए बाहें फैलाये खड़ी थी।
आरव को यकीन ही नहीं हो रहा था, उसने गहरी सांस ली और दौड़कर संध्या के गले लग गया।