अदृश्य हमसफ़र - 5 (18) 1.1k 175 1 अदृश्य हमसफ़र… भाग 5 ममता उठी और अनु दा को ढूंढने लगी। ढूंढते ढूंढते छत पर जा पहुंची। अनु दा वहीं आराम कुर्सी पर टेक लगाए तारों को एकटक देखे जा रहे थे। ममता-" अनु दा, आप यहाँ अकेले क्यों बैठे हैं?" अनु दा-" बस यूं ही, अनुष्का की बिदाई देख नही पाता तो ऊपर आ गया। " ममता-" और ये एकटक तारों को क्यों घूरते जा रहे हैं?" अनु दा- " अपनी जगह तलाश रहा हूँ, बस कुछ दिन बाद मुझे भी तो इन्ही के संग रहना है। "ममता बुरी तरह से तड़प उठी। मनोहर जी के जाने के बाद से उससे इस तरह की बातें सहन नही होती थी । वह लगभग चीख उठी-" अनु दा" अनु दा उसकी चीख सुनकर एक पल को सकपका से गए। फिर सयंत होकर हल्की मुस्कान के साथ कहने लगे-" मुन्नी, तुम्हें तो खुश होना चाहिए। तुम्हारी आँखों की किरकिरी जो निकलने वाली है। अरे तुम्हारी नजरों में तो बहुत खटकता था न मैं। ममता रुआंसी हो गयी थी। भर्राए गले से कहने लगी-" मुझे याद है अनु दा, मुझे एक पल को फूटी आंख भी नही सुहाते थे आप। मुझे उस वक़्त आप सबसे बड़े शत्रु नजर आते थे। ऐसा लगता था मेरे एकछत्र साम्राज्य में सेंध लगा दी आपने लेकिन अभी आपके जाने की बात से बेहद व्यथित हूँ। " अनु दा-" हां भई हां, क्यों नही, क्यों नही। व्यथित होना लाजमी है भई। मेरे जाने के बाद किस पर सारी भड़ास निकालोगी? किसके बाल खीचोंगी?" अनु दा हौले से हंस दिये। ममता-" अनु दा, शादी के बाद आज आपसे मिल रही हूँ। शादी के बाद सब नखरा मनोहर जी झेलते रहे। कितनी सुकून भारी जिंदगी दी उन्होंने मुझे। एक पल को मुझे मायके की याद नही आई कभी। मायके की राजकुमारी को ससुराल में महारानी बना कर रखा उन्होंने । जैसे बचपन में आपने मेरी हर ज़िद पूरी की, हर नखरे को झेला ठीक वैसे ही शादी के बाद उन्होंने हर सुख दिया मुझे। उनके जाने को न जाने कैसे सहन किया मैंने। अब आपसे मुलाकात हुई तो आप ऐसी बातें कर रहें है। लगता है सभी ने गिन गिनकर बदले लेने की ठान ली है। मेरी शरारतों की इतनी बड़ी सजा तो न दीजिए। " कहते कहते ममता सुबकने लगी थी। अनु दा-" अरे पगली, बिल्कुल बावली हो तुम। ज़रा भी तो नही बदली। वही नादाँ की नादाँ हो। जीवन मृत्यु क्या कभी इंसान के हाथ की बात रही है। अगर होती तो सबसे पहले मैं मनोहर जी को जाने से रोकता भले ही उनकी जगह मुझे जाना पड़ता लेकिन तुम्हें नही रोने देता। " "अनु दा"-- ममता ने बड़ी कातर दृष्टि से उन्हें देखा। "अरे तुम अभी तक खड़ी क्यों हो? चलो बैठो इधर। " कहते कहते अनु दा ने दूसरी कुर्सी ममता की तरफ सरका दी। आंखें अपनी साड़ी के पल्लू से पोंछती हुई और बच्चों की तरह नाक सुड़कती हुई ममता बैठ गयी। ममता ने अनुभव किया कि आज अनु दा के सामने वह अपनी उम्र भूल रही थी और फिर से छोटी सी मुन्नी बन गयी थी। अनु दा फिर से तारों में जगह तलाशने में जुट गए थे और ममता अनु दा को देखे जा रही थी। हल्की हल्की हवा के झोंके रह रह कर अनु दा के घुंघराले बालों से अठखेलियाँ करते जा रहे थे। हवा के एक झोंके से उनकी एक लट माथे पर आती और दूसरे झोंके से वापस अपनी जगह पहुंच जाती। हवा की इन छेड़खानियों से बेपरवाह अनु दा आकाश में चमकते सितारों पर टकटकी बांधे हुए थे। माहौल में गजब की ठंडक थी। जहाँ दर्द भरे भावों का अहसास तक ममता भूल चुकी थी। वही सुरक्षा का भाव महसूस कर रही थी जिसे बचपन से ही अनु दा के सानिघ्य में जी चुकी थी। अनु दा का चेहरा एकदम शांत था। उन्हें देखकर लग रहा था मानो ये कोई इंसान नही अपितु कोई बहुत बड़े महात्मा हैं जो अध्यात्म के अनुभव से अपनी कुंडली जाग्रत कर चुके हैं। मौत को सामने देखकर भी चेहरे पर गजब का तेज था। ममता ने अनुभव किया कि बीमारी की वजह से चेहरे की सुंदरता भले ही बिगड़ चुकी थी लेकिन मन की शांति अभी भी साफ झलक रही थी। दोनो ही खामोश थे लेकिन शायद उनका मौन वार्तालाप में व्यस्त था जो शब्दों के अधीन नही था। उन्हें देखते देखते ममता बचपन की गलियों में भटकती जा रही थी। पहुंच गयी थी उम्र के उस पड़ाव पर जहाँ उसके परिवार से मिले उसके प्यार दुलार को बांटने वाला उसका सबसे बड़ा दुश्मन आया था। जिस दिन से अनुराग दा घर में आये थे उसे तभी से खटकने लगे थे। सयुंक्त परिवार की इकलौती बेटी, दो सगे भाई और दो चचेरे भाइयों की इकलौती बहन थी। पूरे दिन सभी पर धाक जमाती रहती थी। सभी की जुबान पर ममता का नाम रहता था। कोई घर की लक्ष्मी तो कोई सरस्वती कहता, एक अनुराग दा थे जिन्होंने उसे चंडी देवी कहा था। जिस दिन अनु दा ने यह विशेषण ममता के लिए प्रयोग किया, तौबा रे, कितना हंगामा किया था ममता ने। "उसने मुझे चंडी क्यों कहा?" "इसकी इतनी हिम्मत कैसे हुई? " सभी घरवाले हंस रहे थे और किसी ने अनुराग को नही डाँटा तो उसका पारा और चढ़ गया था। बाबा ने शान्त करते हुए कहा था-"अरे, अब हर वक़्त इतना गुस्सा करोगी तो कोई भी चंडी कह देगा। इसमें अनुराग ने गलत क्या कहा। " पहली बार ममता को असुरक्षा की भावना ने घेरा। उसके बाबा और तरफदारी इस पिद्दी से लड़के की कर रहे थे। खुद तो डाँटा नही और उसे भी रोक रहे थे। जब ममता शांत नही हुई तो अनुराग ने कहा --" अच्छा ठीक है, चंडी नही दुर्गा रूप हो तुम। " ममता की आंखे फैल गयी। तुरन्त सीना तानकर लड़ने को आगे बढ़ी। अनुराग के घुंघराले बालों को मुट्ठी में भींच कर खींच लिया तो काका और बाबा दोनो ने अनुराग को उसके हाथों से छुड़ाया। दोनो ने देवी दुर्गा की महिमा का कितना ही गुणगान किया था तब जाकर ममता देवी शांत हो पाई थी। दर्द से कराहते अनुराग को देखकर उसे बेहद सुकून मिला था। कह भी दिया--" पता चला बच्चू, ममता क्या है? मेरे बाबा के पास भी न फटकना नही तो सारे बाल खींचकर गंजा बना दूंगी। " लेकिन अनु दा तो अनु दा थे, ममता की धमकी का उन पर कोई असर नही हुआ। उस दिन पहली बार ममता को बाबा ने टोका भी। "ममता, अनुराग बड़ा है तुमसे, उससे अदब से बात किया करो। शरारत अपनी जगह है लेकिन किसी भी तरह की बदतमीजी सहन नही करूंगा। " तभी अनु दा बीच में बोल उठे--" अरे, कोई बात नही बाबा। मुन्नी है, बड़ी होगी तो सब समझने लगेगी। " "मुन्नी" ममता ने मुंह बिचका दिया। चीख उठी--" ऐऐ ऐ ऐ ऐ..ई, खबरदार जो मुझे मुन्नी कहा तो या मेरा नाम बिगाड़ा तो। " लेकिन घर में सभी को ममता के लिए मुन्नी सम्बोधन इतना भाया कि ममता की एक न चली और ममता अब मुन्नी के नाम से पुकारी जाने लगी। ममता कलप कर रह गयी। *** *** ‹ Previous Chapterअदृश्य हमसफ़र - 4 › Next Chapter अदृश्य हमसफ़र - 6 Download Our App Rate & Review Send Review Afifa Kagdi 3 months ago Right 3 months ago Urvi Shah 3 months ago Komal 3 months ago ritu agrawal 4 months ago More Interesting Options Short Stories Spiritual Stories Novel Episodes Motivational Stories Classic Stories Children Stories Humour stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Social Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Vinay Panwar Follow Share You May Also Like अदृश्य हमसफ़र - 1 by Vinay Panwar अदृश्य हमसफ़र - 2 by Vinay Panwar अदृश्य हमसफ़र - 3 by Vinay Panwar अदृश्य हमसफ़र - 4 by Vinay Panwar अदृश्य हमसफ़र - 6 by Vinay Panwar अदृश्य हमसफ़र - 7 by Vinay Panwar अदृश्य हमसफ़र - 8 by Vinay Panwar अदृश्य हमसफ़र - 9 by Vinay Panwar अदृश्य हमसफ़र - 10 by Vinay Panwar अदृश्य हमसफ़र - 11 by Vinay Panwar