Adrashya Humsafar - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

अदृश्य हमसफ़र - 7

अदृश्य हमसफ़र…

भाग 7

आज ममता की बारात आनी थी। सुबह सवेरे से ही गहमागहमी शुरू हो गयी थी। सभी के मन मे ऐसी अफरा तफरी मची थी जैसे न जाने आज का दिन कैसे कटेगा। दोपहर होने को आयी थी लेकिन अभी तक तेल उतारने की रस्म नही हो पाई थी। बड़ी माँ ने शोर मचा दिया था--" कब तुम सब मुन्नी का तेल उतारोगी और कब ये तैयार होगी। बारात जब ड्योढ़ी पर आकर खड़ी हो जाएगी। "

माँ ने तुरन्त आकर हौसला दिया-" बड़ी माँ अनुराग दूब लेने गया है बाकी सब तैयार है। बस अभी 5 मिनट में तेल उतारना शुरू कर देंगे। "

बडी माँ का बुदबुदाना जारी था-" अनुराग जो न होता तो इनके काम कैसे निबटते। एक छोटी सी जान बेचारा और दौड़ाए रखते हैं उसे ही। "

तभी अनु दा हाथों में हरी हरी दूब लेकर घुसे। बड़ी माँ ने उन्हें तुरन्त अपने पास बुलाया और हाथ पकड़कर बैठा लिया।

"सुन छोरे, तड़के से ही खाली पेट डोलता फिरै है। रुक एक गिलास दूध पी पहले। "

अनु दा के लाख मना करने पर भी बड़ी माँ नही मानी और काकी को भेजकर चौके से दूध मंगवाया, फिर अनु दा को पिलाकर ही उन्हें छोड़ा।

एक के बाद एक रस्म समय से निबटती रही और बड़ी माँ राहत की सांस लेती रही।
जयमाला के वक़्त से लेकर फेरों तक अनुराग दा ममता की परछाई बनकर उसके साथ साथ ही रहे। धीरे धीरे ममता की बिदाई का वक़्त भी करीब आ गया।

ममता की बिदाई के वक़्त घर वालों का बुरा हाल था। सभी को ऐसा लग रहा था जैसे उनके जिस्म से प्राण खींचें जा रहे हैं। अनुराग वहाँ से गायब हो चुके थे। ममता समेत सभी की नजरें अनुराग को ढूंढ रही थी लेकिन वह किसी को भी नही मिले। खूब सारे आशीर्वाद और नसीहतें अपनी झोली में समेट कर ममता अपनी डोली में बैठी लेकिन ममता का ध्यान न नसीहतों पर था और न ही आशीर्वादों पर। रोना भी भूल चुकी थी वह क्योकिं नजरें तो अनु दा को ढूंढ रही थी।

उसकी आंखों की बेचैनी बाबा ने सबसे पहले पढ़ी। उसके पास आये और बड़े प्यार से सिर पर हाथ रखा। एक गहरी सांस भरते हुए बाबा कहने लगे-" देख मुन्नी, अपना ख्याल अच्छे से रखना। तुम अच्चजे से जानती हो कि तुम में हम सभी की जान अटकी रहेगी। अनुराग नही आएगा तुम्हारे सामने, जितना मैंने उसे जाना है वह तुम्हें जाते हुए नही देख पायेगा। उसके रहते मुझे तुम्हारी फिक्र कभी नही हुई लेकिन आज तुम्हारे जाने पर मुझे उसकी फिक्र सता रही है। उसका सारा ध्यान तुम पर रहता था। "

ममता की आंखों में दर्द भरी गहन उदासी तैर गयी।

ममता-" बाबा, आज अनु दा ने एक कहावत को चरितार्थ कर दिया कि "सौ सुनार की, एक लौहार की। "

मैंने जितना तंग किया उनको आज मेरी बिदाई पर सामने न आकर उन्होंने मुझे बहुत बड़ा दर्द दिया है। इस बात के लिए उन्हें कभी माफ नही करूँगी। "

इतना कहते ही ममता गर्दन झुका कर गाड़ी में बैठ गयी। माँ ने आगे बढ़कर साड़ी के पल्लू को खींचकर हल्का घूंघट निकाल दिया। गाड़ी धीरे धीरे रेंगने लगी तो ममता ने नजर उठाई। गाड़ी के रियर व्यू मिरर में नजर पड़ी तो पीछे खड़े अनु दा नजर आए। जिनकी नजरें ममता की गाड़ी पर ठहरी हुई थी।

"अनु दा" कहकर चीखने वाली थी कि उसे अपनी स्थिति का अहसास हुआ। बगल में मनोहर जी बैठे थे। ड्राइवर के बगल वाली सीट पर ससुर जी विराजमान थे। मन मसोस कर रह गयी। अनु दा पर बहुत गुस्सा आ रहा था उसे। जब तक नजरों से ओझल न हो गए वह अनु दा को गाड़ी के शीशे में देखती रही।

ममता को बिदा करते ही बाबा गली के बीचों बीच खड़े अनुराग के पास पहुंचे।

उसके कंधे पर हाथ रखकर कहने लगे-" अनुराग बेटे, चलो अंदर। हमारी चिड़िया अपने घोसलें में जाने के लिए उड़ान भर चुकी है। घर चलो अब और तुम भी आराम करो। बहुत थक गए होंगे।
अनुराग टस से मस नही हुए।

बाबा ने फिर से कंधे को हिलाकर कहा कि बेटे चलो।

अनुराग फिर भी शून्य में देखते रहे और जरा भी नही हिले।

बाबा ने जोर से हिलाया तो अनुराग धड़ाम से जमीन पर औंधे मुंह गिर पड़े। बाबा तेजी से चीखे थे-" अनुराग "

क्रमश

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