Bhavishy ek vinashak ant hai books and stories free download online pdf in Hindi

भविष्य एक विनाशक अंत हैं

प्राचीन काल में वर्तमान की तरह ना तो सुख सुवींधा थी ना ही आज के समान प्रगती और उपलब्धी किन्तु इन सब के बिना भी वो लोग हमारी तुलना में अत्या अधिक आनंदमय जीवन यापन किया करते थे

वही दूसरी ओर। हमने विकास के नाम पर अपने आज के आधुनिक युग में एनेको अविष्कार। सफलता पुर्वक बनाएं

किंतु कुछ उपकरण हम पर हावी हो रहे हैं। कई बार लगता है मानो हमने अपना सम्पूर्ण जीवन ईन को समर्पित कर दिया हो

अधिकतर लोग वास्तविक संसार और सम्बन्ध के स्थान पर काल्पनिक खेल या अज्ञात व्यक्ति को अधिक महत्व देते है हमने सदेव बड़ो से सुना है परिवर्तन प्रगती का नियम है परन्तु एक सत्य ये भी है प्रगती पाने के लिए पुरानी वस्तु को नष्ट करना पड़ता हैं



यदि हमें आधुनिक इमारत की इच्छा हो तो पुरानी को खोना पड़ेगा ठीक इसी प्रकार से हमने क्रांतिकारी मशीनों और सुविधा जनक वस्तुओ को प्राप्त कर बहुत कुछ खो दिया है



हमने स्वाम की यात्रा को सुखद करने के लिए यातायात का निर्मण किया तो शुद्ध वायु का त्याग करना पड़ा


आधुनिक शक्तिशाली अस्त्र के बदले में मानवता की बलि चड़ानी पड़ी



विशाल इमारतों ने हमसे प्राकृतिक जीवन छिन लिया




पक्की कठोर सड़कों ने उपजाऊ भूमि और वर्षा में मिलने वाली मिट्टी की धीमी सुंगंध का विनाश कर दिया


आधुनिक यंत्र और उपकरणों ने हमें आकरण व्यस्थ करके हमारी परिवारिक भावनाओ का चीर हरण कर दिया
यदि हमारी प्रगति इसी प्रकार से बढ़ती रही तो किया होगा और किया शेष रह जायेगा

इस पर एक बार विचार करने की अति आवश्यकता है के हम आने वाली पीढ़ी को किया दे रहे है। एक उत्तम भविष्य या विनाशकारी अस्त्र

जिस गति से मनुष्य वर्तमान में प्रगति कर रहा हैं उसे देख कर भय होता है के कहीँ महान योगियों और ज्ञानीयों द्वारा की गई
भ्रमाण के विनाश की भविष्यवाणी जल्द ही सत्य में परिवर्तित हो जाय



हम अपने स्वार्थ के वशीभूत इतने मग्न है के प्राकृति के बारे में भुल गये है या युँ कहलें जानबूझकर ऐसा व्यक्त करते हैं
और जब कहीं समाचार पत्र में प्रदूषण द्वारा प्रकृति को हो रही हानि के बारे में पढ़ते हैं तो ऐसे दुखी हो कर खेद करते हैं मानो सबसे अधिक चिंता हमें ही हो और इन सब मे हमारा कोई दोष नही

जबकि इस धरती पर रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति इसका दोषी हैं किसी एक व्यक्ति के यातायात द्वारा छोड़े गए प्रदूषण की उससे भरपाई करवाये तो वर्षों के कठिन प्रशिक्षण के पश्चात भी वो इसकी भरपाई नहीं कर सकता
हम उन्नति तो पा रहे है किन्तु स्वयम के जीवन को प्रकृतिक और शारीरिक रूप से कमजोर भी करते जा रहे है

जिस प्रकार घरेलू जन्तु की तुलना में जंगली जीव अधिक संघर्ष वादी और आत्मनिर्भर होता हैं उसी तरहां वर्तमान की तुलना में अतीत के लोग अधिक उत्तम थे वो पूर्णरूप से प्राकृतिक जीवन व्यतीत करते थे
वो मानसिक और शारीरिक रूप से अधिक बलशालि थे

प्रदूषण ने हमें केवल प्रकृतिक और शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी भ्रष्ट कर दिया हैं जिसके कारण हमारा मन सदैव असंतुष्ट और अशांत रहता