Maa ki Purti books and stories free download online pdf in Hindi

माँ की पूर्ति

सरद बाबू को विद्यालय की ओर से माँ के ऊपर कुछ पंक्तिया लिखी मिली जिसको उनके बेटे ने लिखा था पुत्र द्वारा लिखी पत्रिका पड़ पिता के भीतर संवेदना की धारा उमड़ आई पुत्र प्रेम की भावना उफान मारने लगी और अंत मे सबकुछ नेत्रों से प्रवाहित हो गया

एकाएक सरद बाबू के मन मे विचारों का तूफान आ गया मन ही मन बोले नहीं नहीं मैं अपने बोध बालक पर अन्याय नहीं होने दूंगा मुझे क्या अधिकार है के उसको माता के स्नेह और प्रेम से वंचित रखु
भले ही मेरा जीवन दुखो के अंधकार मे रहा पर उसके बावजूद माँ के प्रेम ने मुझे जीवित रखा

उसने अपनी ममता से ऐसी दिवार खड़ी की के संसार की कोई बुराई उसको भेद कर या लाँघ कर मुझ तक ना आ सकी

यदि मेरे ऊपर कोई संकट आता तो स्वम मेरी रक्षा हेतु पर्वत समान कठोरता से मेरे आगे आ जाती जैसे भगवान अपने भक्त की सुरक्षा के लिए आ जाते है और संतान की श्रद्धा भी माँ के प्रति किसी परम भक्त से कम नहीं होती




बात पुराने दिनों की है शरद बाबू अपनी पत्नी राधा के साथ एक गाओं मे रहते थे यु तो शरद बाबू बड़े ही सुशील सज्जन पुरुष थे किन्तु समाज की कुछ नीतियों से चीड़ थी उन्हें

जैसे की पुरुष का दो विवहा करना कतई स्वीकार ना करते ये उनकी दृष्टी मे घोर पाप होता है
उनके भीतर ऐसी भावना का होना उचित भी था कियोकि उनका बाल युग इसी समस्या की बलि चढ़ गया था असल मे उनके पिता ने दो विवहा किये थे बड़ी माँ और छोटी माँ
छोटी माँ सरद की सगी माँ थी और बड़ी माँ के दो पुत्र थे दोनों माताओ मे आये दिन कोहराम मचा रहता दोनों ही एक दूसरे की संतान को ताने कस्ती रहती
इस प्रकार की तू तू मैं मैं के कारण सरद को अपना बाल युग नर्क समान प्रतीत होता था
उनकी नज़र मे ये सारा दोष उनके पिता जी का था कियोकि ना तो वो दो विवहा करते और ना ही सौतन युद्ध होता

खेर इस समय वो इन सबसे कोसो दूर अपने तीन वर्षीय पुत्र और पत्नी के साथ सुख भोग रहे थे के


तभी उनपर आसमान टूट कर गिर पड़ा
एक बीमारी के चलते उस समय शरद की पत्नी परलोक सिधार गई और सरद बाबू के साथ मोती समान सुन्दर बालक को छोड़ गई
सरद बाबू ने देखा था के सौतेली माँ का व्यवहार अच्छा नहीं होता तो उन्होंने अकेले ही रह कर
पुत्र के पालन पोषण का भार उठाने का निर्णय कर लिया
दो वर्ष देखते ही देखते निकल गये सरद बाबू के अनुमान से उन्होंने पुत्र को माँ और बाप का भर पुर प्रेम दिया और अपने पुत्र को माँ की कमी महसूस ही ना होने दी

परन्तु ये उनका कोरा भ्रम था भला माँ की कमी कोई मर्द कैसे पूरी कर सकता हैं एक दिन उनका ये भ्रम भी टूट गया जब पुत्र के अध्यापक द्वारा उनको पुत्र का माँ के ऊपर लिखा निबंध मिला
उसमे वो पीड़ा वो दर्द वो कष्ट स्पष्ट दिख रहा था जो माँ के वियोग मे संतान को भोगने पड़ते हैं

पुत्र द्वारा लिखा निबंध पड़ पिता के भीतर संवेदना की धारा उमड़ आई पुत्र प्रेम की भावना उफान मारने लगी और अंत मे सबकुछ नेत्रों से प्रवाहित हो गया
इस एक निबंध ने उनके विचारों की काया पलट कर दी उन्होंने अपने पुत्र के दुख को समझ दूसरा विवहा करने का विचार किया

और परिणाम स्वरुप दूसरा विवहा हो गया कन्या सर्व गुण संपन्न थी सबको पूरी आशा थी अब बिचारे बालक का जीवन सवर जायेगा

आरम्भ मे तो उस स्त्री ने बड़ा लाड दुलार किया किन्तु ना जाने क्यों बालक को उसके दुलार मे माँ की ममता और स्नेह ना मिलता बल्कि उसके प्रेम मे कर्तव्य और दया का अनुभव होता
उसकी दशा ऐसी थी जैसे पियासे को पानी तो मिला किन्तु ना तो उसमे शीतलता थी ना ही ठंडक थी उससे जरुरत तो पूरी होती पर प्यास ना बुझती वो तृप्ति ना मिलती जो शीतल जल से प्राप्त होती हैं


कुछ समय पश्चात् नई माँ को पुत्री हुई तो उसके भीतर ममता का स्वच्छ सागर उमड़ आया लेकिन उस अनाथ बालक के लिए नहीं केवल अपनी पुत्री के लिए
बिचारा माता को पुत्री पर स्नेह लुटाते देख मन ही मन माँ की इस शुद्ध ममता पर आनंद प्राप्त करता
उसे लगता मानो एक नन्ही अप्सरा के लिए ईश्वर प्रेम की वर्षा कर रहा हो और उस प्रेम वर्षा की ठंडक उसे दूर से ही सुख दे रही हो
किन्तु धीरे धीरे सब बदल गया शरद बाबू पत्नी के प्रेम जाल मे बुरी तरह फस चुके थे वो सोते जागते पत्नी की सेवा मे लगे रहते पत्नी की हा मे हा और ना मे ना रहती

पुत्री प्राप्ति के पश्चात उस स्त्री की आँखो मे वो अबोध बालक सदैव चुभता रहता वो सरद से बड़े पुत्र की रोज शिकायत लगाती
अभागा बालक माँ के साथ साथ पिता के प्रेम से भी वंचित हो गया परन्तु उसने कभी धीरज ना खोया ना जाने कहा से उसको आस लगी रहती के एक दिन सब ठीक होगा
एक दिन तो उस महिला ने दुष्टता की हदे पार कर दी

हुआ ये के बालिका अब तक दो वर्ष की हो चुकी थी और बालक आठ वर्ष का

बालिका सगे सोतेले का अंतर नहीं जानती थी वो केवल ये जानती थी उसका बड़ा भाई प्राणो से बढ़ कर उसको चाहता हैं दिन भर उसको गोद मे लिए झूलाता घुमाता और उस पर सब कुछ नीछावर कर देता हैं
किन्तु उसकी माता केवल उसको ही मिठाई बताशै देती भाई को कुछ ना मिलता

एक दिन बालिका गाजर का हलवा खा रही थी और जब भाई को पास देखा तो उस पर तरस और अपार प्रेम उमड़ आया बस फिर क्या था लगी अपने भाई को हलवा खिलाने पहले तो माता के भय से बालक ना करता मगर छोटी बहन ने लगातार आग्रह किया खालो ना भैया मेरे पियारे भैया खालो ना

बालिका के तोतले स्वर और निष्कपट भाव ने बालक को विवश कर दिया और दोनों बहन भाई लगे खाने

जब सौतेली माँ आई तो ये दृश्य देख उसके सीने पर सांप लोट गये और लगी दहाड़ ने
बालक कांप गया फिर बालक की बड़ी निर्दयता से पिटाई की वो अपनी पुत्री के साथ बालक को बैठने और खाने योग्य ना समझती थी मानो वो कोई अछूत हो
उस ने बालक की इतनी पिटाई की के उसको बुखार आ गया बालक एक कोने मे सिसक सिसक कर रोने लगा

उस चांडालनी का इतने पर भी मन ना भरा और पति देव के आते ही उनके सर पर लगी तांडव करने बड़ा चढ़ा कर बालक की करतूत का उल्लेख करती
थका हरा दफ़्तर से आया आदमी जिसको काम पर दबा कर मालिक से झिड़कीयॉ मिली हो और घर आते ही ये कलेश हो तो उसके क्रोध की अग्नि का अनुमान लगा ले कितनी तेज होंगी
और बिचारा बालक उस क्रोध अग्नि का शिकार हो गया पिता ने उसको तब तक मारा जब तक छड़ी के दो टुकड़े ना हो गये बालिका भाई की दुर्दशा पर फुट फुट कर रोती परन्तु उस पिशाचनी का ह्रदय ना पिघला

शरद बाबू ने आँगन मे ही खुले आकाश के निचे पुत्र को पड़ा रहने दिया सोचा रात भर बाहर पड़ा रहेगा तो अकल ठिकाने आ जायेगी
ज्वर का प्रकोप तो पहले ही बालक के सर पर चढ़ा बैठा था अब पिता की मार ने और रात की ठिठुरती ठण्ड ने उसकी स्थिति को और भी अधिक गंभीर कर दिया

माँ को याद कर धीमे स्वर मे रोता रोता भूखा ही सो गया
सो क्या गया यूँ कहे अचेत हो गया
इतने सुन्दर कोमल बालक को देख के कठोर से कठोर प्राणी को भी उस पर दया आ जाये ऐसी अवस्था हो गई थी उसकी

किन्तु ना जाने उस स्त्री का मन कोनसे कठोर पर्दात से बना था के नाम मात्र भी उस पर दया ना आई और सुबह उठते ही लगी उसको पैर से हिला हिला कर उठाने

उठ ओ आलसी सुबह हो गई उठ बाजार से नाश्ते का सामान ला कर दे सुनता नहीं हैं उठ
मगर वो ना उठा उसकी देह ठंडी पड़ चुकी थी जब उस नागिन ने अपने फन जैसे हाथो से उसे पलटा तो नागिन की चीख निकल गई
उसका शरीर तो था पर आत्मा ना थी बालक के मुख पर एक दिव्य तेज था उसका मुख प्रसन्नता के भाव दर्शा रहा था मानो उसके अंतिम दर्शन अपनी माँ से हुए हो और वो अपने बच्चे को इस निर्दयी कठोर संसार से कही दूर अपने आँचल मे लपेट कर ले गई हो

जो भी था वो
ये स्पष्ट था के वो बालक अपने अंतिम क्षणो मे कुछ ऐसा पा गया जिस से उसका चित खिल उठा था


बालक ने जो माँ के बारे मे अपने विद्यालय मे पंक्तिया लिखी थी वो ये थी
माँ
माँ एक ऐसा परम सुख हैं जिसको पाना मेरे भाग्य मे नहीं हैं

जब ईश्वर ने संसार की रचना की तो सृष्टि के उद्धार के लिए माँ जाती को जन्म दिया और संसार का आधार बनाया


जब कभी पवन के झोंके मेरे गालो को स्पर्श करते हैं तो मुझे लकता हैं मेरी माँ ममता भरे हाथो से मुझे प्यार से सेलाह रही हैं
और मुझे इससे अपार सुख की प्राप्ति होती हैं
यदि माँ के कल्पना मात्र स्पर्श से इतना सुख मिलता हैं तो वास्तविकता मे कितना अधिक सुख मिलता होगा
धन्य हैं वो लोग जिनको माँ का स्नेह और प्रेम मिलता हैं
और अभागे हैं वो लोग जो माता का प्रेम नहीं पा सके

और धिक्कार हैं उन लोगो पर जो माँ के जीतेजी उसका महत्व ना जान सके