Domnik ki Vapsi - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

डॉमनिक की वापसी - 15

डॉमनिक की वापसी

(15)

यह पहला मौका था जब विश्वमोहन के प्रोडक्शन हाउस को इतना बड़ा स्पॉन्सर मिला था और उसपर नाटक भी ख़ासा सफल हो रहा था। अब कलाकार पहचाने जाने लगे थे। धीरे-धीरे नाटक में भी इनाम, इक़राम, मेहनताना, या उसे जो भी चाहे कहें, बढ़ गया था. अब सबके पास पैसा आने भी लगा था और वह दिखने भी लगा था। फांका-मस्ती के दिन बीते दिनों की बात हो चले थे। मंडली के अभिनेता गाहे-बगाहे अख़बारों के रंगीन पन्नो पर नज़र आने लगे थे। सबके हाथों में फोन चमकने लगे थे। सबकी-सबसे जब चाहे बात होने लगी थी। दीपांश गाँव में सुधीन्द्र को पहले से बढ़ा के मनीऑर्डर करने लगा था। सुधीन्द्र ने देहरादून से निकलने वाले एक अख़बार में दीपांश की तस्वीर के साथ छपी ख़बर को दीपांश की माँ को बहुत हुलस-हुलस के पढ़कर सुनाया था. दीपांश अब रमाकांत के पुराने कमरे को छोड़कर श्रीनिवास पूरी इलाके में दो कमरों वाले एक फ्लैट में आ गया था। यह फ्लैट उसने माँ को सुधीन्द्र के साथ दिल्ली ले आने की इच्छा से ही लिया था पर माँ किसी हाल में गाँव नहीं छोड़ना चाहती थीं. पुराने कमरे से जब इस फ्लैट में आया तो भूपेन्द्र भी उसके साथ ही चला आया था। संजू ने दक्षिणी दिल्ली में मिसेज भसीन के स्टूडियो के ऊपर बने गेस्ट हाउस में शिफ़्ट कर लिया था। पुराने कमरे में अब केवल अशोक ही रह गया था, या फिर कभी-कभार रमाकान्त आके वहाँ रुक जाया करते थे। सेतिया और विश्वमोहन की अच्छी जमने लगी थी। उनके बीच रोज़ भविष्य की नई-नई योजनाएं बनने लगी थीं।

इसी बीच एक शाम आसरा चैनल के मालिक ने एक बहुत बड़ी पार्टी दी जिसका सारा इन्तज़ाम सेतिया और मिसेज भसीन ने ही किया। पार्टी आसरा कम्पनी के ही एक पाँच सितारा होटल में रखी गई थी जिसमें सिनेमा, टीवी और मंच की दुनिया के कलाकारों के अलावा निर्माताओं, निर्देशकों, निवेशकों और व्यापारियों के साथ पेजथ्री सेलीब्रिटी कहे जाने वाले लोगों का भी बड़ा जमावड़ा हुआ। इसमें विश्वमोहन के पूरे ग्रुप को, यानी ‘डॉमनिक की वापसी’ की पूरी टीम को भी बुलाया गया था।

सेतिया के अनुसार आसराश्री एक बहुत बड़े कला प्रेमी, सुंदरता के पारखी, मन के रसिक और स्वभाव से बहुत दयालू थे। उस शाम जब वह अपने पूरे वैभव और एश्वर्य के साथ पार्टी में पधारे, तो सचमुच ही सेतिया के बताए गुणों में से अधिकांश को, वह जहाँ-तहाँ बिखेरते हुए, सभी से मिल रहे थे। सेतिया ने उनको ग्रुप के सभी सदस्यों से भी मिलवाया। वह सभी से बड़े प्रेम से मिले। और सबसे मिलते हुए आख़िर में उनकी नज़रें, सचमुच एक रूप के पुराने पारखी और कुछ-कुछ उसके सौदागर की तरह शिमोर्ग पर पहुँचकर अटक गईं। वह उसकी खूबसूरती देखते ही रह गए। सेतिया ने उसके बाद पार्टी में शिमोर्ग को आसराश्री के साथ रहने की हिदायत दी जिसे शिमोर्ग ने भी ख़ुशी से मान लिया और वह ख़ुद दूसरे तथाकथित हाईक्लास मेहमानों की देखभाल करने में लग गया। विश्वमोहन और रमाकांत मुंबई से आए कुछ निर्माताओं के साथ बार के साथ लगी टेबिल पर जम गए. मिसेज भसीन और संजू ने पार्टी में आई महिलाओं के मनोरंजन का जिम्मा संभला। शिमोर्ग के साथ आई इति को सेतिया ने अपने साथ लगाए रखा और पूरे समय उससे अपनी सेक्रेटरी जैसा व्यवहार करता रहा जो दीपांश को लगातार असहज किए रहा। ऐसे में अशोक के साथ उसका कुछ समय बीत सकता था पर जब वह पार्टी शुरू हुए घंटा बीत जाने के बाद भी नहीं आया तो उसने मान लिया था कि वह अब नहीं ही आएगा.

दीपांश पहली बार इस तरह की पार्टी में आया था, जहाँ मेहमानों में संबंध गिनाने और अपना प्रभाव जताने की होड़ लगी थी। देख रहा था कि यहाँ हर चीज़ का बाज़ार सजा हुआ है जिसमें सिर्फ़ कला ही नहीं, कला से जुड़े नामों का भी व्यापार होता है। यहाँ आकर वह धीरे-धीरे कला, बाज़ार और व्यापार के संबंध को समझ रहा था। देख रहा था कि जिसे वह कला कहता है वो इस रोशनी की दुनिया में किस तरह अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए कहीं हाथ जोड़े खड़ी है, तो कहीं बांदी बनी घूम रही है। दीपांश का मन जल्दी ही उस शोरशराबे से उचट गया था। वह पार्टी में बेगानो की तरह यहाँ-वहाँ भटकता रहा और फिर अकेला ही वहाँ से बाहर निकल आया।

कुछ देर बाद जब सहाराश्री मेहमानों की एक बड़ी भीड़ से घिर गए तो शिमोर्ग उनसे इज़ाजत लेके दीपांश को ढूँढती हुई हॉटेल के लॉन से हॉल में, और फिर वहाँ से कॉरीडोर में उसे देखती हुई बाहर लॉबी में आ गई। वहाँ सेतिया कुछ मेहमानों को रिसेप्शन तक छोड़कर वापस आ रहा था। उसके साथ इति भी थी। उसने वापस पलटते हुए इति की कमर में हाथ डालते हुए अपनी ओर खींचा और उसके कान में कुछ बुदबुदाया पर अगले ही पल शिमोर्ग को सामने से आते देखकर उससे अलग हो गया। इति शिमोर्ग की ओर ऐसे बढ़ी जैसे वह उसके साथ होकर सेतिया से पीछा छुड़ाना चाहती हो। पर शिमोर्ग यह कहती हुई आगे बढ़ गई की तुम अंदर चलो मैं दीपांश को देखके आती हूँ। इति के चेहरे से साफ़ दिख रहा था कि वह सेतिया के साथ और उसकी हरक़तों से बुरी तरह चिढ़ गई है।

शिमोर्ग ने बाहर निकलते ही पार्किंग के दू्सरी तरफ़ जहाँ एक बहुत सुंदर फब्बारा लगा था और जिसपर कई रंगों की रोशनी एक साथ पड़कर छोटी-छोटी बूँदों में टूटके-बिखर रही थी, के पास ही दीपांश को देखा। वह चुपचाप उसके पास जाकर खड़ी हो गई। वह कुछ अन्यमनस्क लग रहा था पर शिमोर्ग की आँखों में चमक थी।

उसने मुस्कराते हुए कहा, ‘सब वहाँ इतने लोगों से मिल रहे हैं, बातें कर रहे हैं और तुम हो कि यहाँ बाहर आकर खड़े हो!’

‘मैं वहाँ किससे बात करुँ, और क्या बात करूँ?’

‘तुम भी न यार, कभी-कभी बहुत बोरिंग बिहेव करते हो। अरे अंदर वहाँ कितनी लड़कियाँ तुम्हें पूछ रही हैं। तुम्हारे साथ फोटो खिंचाना चाहती थीं पर तुम तो वहाँ से गायब ही हो गए।' फिर थोड़ा रुककर उसे अपने पास खींचती हुई बोली, 'मुझे तुम्हें कुछ बताना है।'

'क्या' दीपांश ने उसकी ओर देखते हुए कहा।

'ऐसे मुंह बनाए रहोगे तो नहीं बताऊँगी। चलो पहले अंदर चलकर एक-एक ड्रिन्क लेते हैं। सेतिया ने मुझे आसराश्री के साथ रहने के लिए क्या कह दिया मैं तो मुस्काराते-मुस्कराते थक गई। गिलास भी हाथ में पकड़े ही रह गई।'

दीपांश उसकी बात सुनते हुए बड़े बेमन से उसके साथ चलने लगा। हॉल में पहुँचकर दोनो ने बार कॉउन्टर से रेड वाइन का एक-एक गिलास उठा लिया और कोने में पड़ी खाली टेबल पर जा बैठे। वाइन का घूँट भरकर शिमोर्ग लगभग चहकते हुए बोली, 'जानते हो, आज की पार्टी में आकर मुझे ऐसा फील हो रहा है कि हमारी लाइफ़ में कुछ बड़ा होने वाला है। आइ मीन कुछ ऐसा जो हमारी लाइफ़ बदल देगा। क्या तुम्हें नहीं लगता?'

'नहीं मुझे नहीं लगता।' दीपांश ने सपाट-सा उत्तर दिया फिर शिमोर्ग की तरफ़ ऐसे देखने लगा जैसे पूछ रहा हो कि यहाँ इन चेहरे पे चेहरे लगाए लोगों के बीच आखिर तुम्हें ही ऐसा क्यूँ लग रहा है।

शिमोर्ग कुछ संभलते हुए बोली, 'क्योंकि आसराश्री हमारे काम से बहुत इम्प्रेस हैं और वो हमारे लिए कुछ करना चाहते हैं।'

दीपांश ने आश्चर्य से भवें उठाते हुए पूछा, 'उन्होंने तो हमारा प्ले देखा ही नहीं है?'

'ओह, उन्हें प्ले देखने की क्या जरूरत है। रिव्यू वगैरह देखे होंगे।'

दीपांश ने फिर भवें उठाईं पर अब उनमें उतना आशचर्य नहीं था, बस माथे पर दो लकीरें खिंच आई थीं।

‘अरे रिव्यू नहीं तो..., सेतिया ने बताया होगा। उसने तो देखा है न?’ शिमोर्ग को लगा इस जवाब से दीपांश कुछ संतुष्ट है।

जवाब में उसने सिर्फ़, 'ह्म्म' कहके गिलास उठा लिया।

शिमोर्ग उसकी ओर झुकते हुए बोली, 'हम्म क्या, हाउ अनरोमेन्टिक। कितनी अच्छी जगह है। नीचे वहाँ डांस फ्लोर देखके आते हैं।' उसने दीपांश का हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा, 'अब चलो भी।'

बेसमेन्ट की सीढ़ियाँ उतरते हुए वे एक हरी-नीली रोशनी से भरे हॉल में आ गए, एक कोने में डीजे लगा था, जिसके सामने कुछ लोग संगीत और नशे के सुरूर में थिरक रहे थे। सीढ़ी से उतरते ही कुछ टेबिलें पड़ी थीं जिनपर अभी भी कुछ लोग बैठे पी रहे थे। दीपांश का ध्यान बीच में पड़ी एक टेबल पर गया जिसपर भूपेन्द्र जमा हुआ था। वह जब से पार्टी में आया था पिए जा रहा था। उसके पीछे खड़ा संजू उसे वहाँ से उठाके ऊपर ले जाने के लिए खींच रहा था। दीपांश ने पास पहुंचकर कुछ पूछना चाहा पर संजू उससे पहले ही बोल पड़ा, ‘यार समझाओ इसे. इस हालत में कहता है कि आसराश्री से मिलेगा. बोल रहा है कि उनकी कंपनी वालों ने किसी ऑडिशन में इससे एक हजार रूपए ले लिए थे और दिनभर यह कहके बैठाए रखा था कि मुंबई के कोई डायरेक्टर आके ऑडिशन लेंगे पर रात होने तक कोई नहीं आया और उनके स्टाफ़ ने इसके पैसे भी नहीं लौटाए.’

भूपेन्द्र ने संजू से अपनी बाँह छुडाते हुए कहा, ‘आज मैं अपने पैसे लेके ही जाऊँगा.’

दीपांश ने भूपेन्द्र का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘तुम मेरे साथ ऊपर चलो.’

‘नहीं यार इसे यहीं रहने दो. इसी फ्लोर पर मेरे पास रूम है, मैं इसे यहीं लिटा दूंगा. ऊपर ये और ड्रामा करेगा.’ संजू ने दीपांश को रोकते हुए कहा.

‘ड्रामा! मैं ड्रामा करूँगा, साला ड्रामा तो तुम लोग उस सेतिया और भसीन के साथ मिलके कर रहे हो.’ भूपेन्द्र ने दारु की पिनक में जोर से कहा.

संजू ने घबराकर उसके मुँह पे हाथ रख दिया. फिर उसे उठाने की कोशिश करते हुए बोला, ‘यार में इसे रूम में ले ही जाता हूँ, अभी कुछ देर पहले इसने डांस फ्लोर पर जबरदस्ती एक लड़की का हाथ पकड लिया. कह रहा था यह वही लड़की है जिसने ऑडिशन वाले दिन इससे पैसे लिए थे. वो तो मैं पहुँच गया नहीं तो बहुत बड़ा पंगा होने वाला था यहाँ पर!’

शिमोर्ग भूपेन्द्र को डांटते हुए बोली, ‘लड़कियों से ऐसे विहेव करते हैं!’

भूपेन्द्र संजू का हाथ अपने मुँह से हटाते हुए बोला, ‘मैं अपने पैसे मांग रहा था. उसने अपना नाम भी गलत बताया, उस दिन अपना नंबर भी गलत दिया, ऑफिस फोन किया तो पता चला वहाँ इस नाम का कोई है ही नहीं.’

दीपांश ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘अभी तुम संजू के साथ जाओ, मैं देखता हूँ.’

भूपेन्द्र बड़े भोलेपन से धीमी रोशनी और लगातार तेज़ होते जाते संगीत के बीच नशे में बोझिल होती पलकों को झपकाते हुए उन तीनों को देख रहा था. आखिर में संजू उसे किसी तरह समझा- बुझाकर वहाँ से ले गया. वह जाते-जाते भी बड़बड़ा रहा था, ‘मैं आज यहाँ से अपना पैसा लेके जाऊँगा, बहुत लोगों का पैसा खाया है इन लोगों ने, अशोक ने बताया मुझे, गाँव के बहुत लोगों का पैसा खाया इन लोगों ने...’

उसके बाद दीपांश का मूड उखड़ चुका था. वे होटल से निकल ही रहे थे कि सेतिया ने उनके जाने के लिए गाड़ी का इंतजाम कर दिया. शिमोर्ग ने गाड़ी में बैठते हुए ड्राइवर को दीपांश के फ्लैट का पता ही बताया और साथ ही दीपांश को यह भी बताया कि इति को अभी कुछ काम है और उसे सेतिया ड्राप करा देगा.

उचटे हुए मन के बाद भी शिमोर्ग की उपस्थिति दीपांश को कुछ सुकून दे रही थी. शिमोर्ग अभी भी जैसे किसी कल्पना लोक में थी. वह रास्ते भर दीपांश का हाथ थामे उसके कंधे पर सर रखे गुनगुनाती रही. सुनसान सड़कों पर कार ने होटल से फ्लैट तक की दूरी कब पूरी कर ली पता ही नहीं चला, रुकी तो शिमोर्ग ने हल्की सी बोझिल होती आँखों से दीपांश को देखते हुए कहा, ‘रुकने के लिए नहीं कहोगे?’

दीपांश ने दोनों हाथों से उसका हाथ थाम लिया. कुछ देर में गाड़ी उन्हें छोड़ के ओझल हो गई.

यह पहला मौका था जब दीपांश के फ्लैट पर शिमोर्ग रात में रुकने वाली थी. वह जैसे किसी अनजाने संमोहन में बंधा उसका हाथ पकड़े फ्लैट की सीढ़ियाँ चढ़ता चला गया था.

उस रात दोनों कठोर यथार्थ से उठकर कल्पनाओं की रेशमी चादर पर आ बैठे थे। उनके बीच किसी अज्ञात स्रोत से धीरे-धीरे रोशनी झर रही थी। दीपांश ने अभिनय से बाहर, पर कल्पना और यथार्थ के बीच किसी भरोसे को रोपते हुए कांपते हाथों से शिमोर्ग को छुआ। फिर दोनों अपने बीच बचे हुए फांसले को ऐसे तय करने लगे जैसे उन्होंने एक दूसरे तक पहुँचने का बिलकुल नया और अनोखा रास्ता खोज लिया हो. वे इस पर चलते हुए अपने भीतर एक पुल बनाते जा रहे थे, स्मृतियों का पुल जिसपर उन्हें कई बार गुजरना था।

उनके बीच बिना आवाज़ के भी स्पर्श की स्वरलहरियाँ गूँज रही थीं। शिमोर्ग दीपांश के कान में कुछ कह रही थी। उसकी आवाज़ में मोतियों जैसी खनक थी। ऐसे में दोनों की आँखें जब मिलतीं तो कमरे में एक रोशनी फैल जाती। स्पर्शों ने सचमुच ही भाषा से इतर संवाद की नई तक़नीक इजाद कर ली थी। एक धुंध, एक कुहासा था जो उनकी आँखों पे छाया हुआ था। ऐसा कुहासा जिसमें एक दूसरे के अलावा कुछ नहीं दिखता, हालांकि दोनों की आँखें भी अब पहले सी नहीं थीं। उनमें से कुछ छलछला के बिखरा पड़ रहा था। दीपांश उस छलछलाते अदृश्य द्रव्य की एक भी बूँद जाया नहीं होने देना चाहता था। वह बड़े जतन से शिमोर्ग के प्रेम की एक-एक बूँद किसी चिर प्यासे की आतुरता के साथ अपने होठों से समेट रहा था। आज इस एकांत में प्रेम के ज्वार से गुजरते हुए बार-बार यह एहसास हो रहा था कि कितनी भी सधी हुई अभिव्यक्ति वास्तविकता से कितनी अलग हो सकती है. उन्होंने मंच पर कई-कई बार प्रेम का अभिनय किया था. कितने ही आत्मिक संवादों को दोहराया था पर उनमें कोई ऐसा न था जो वे आज एक दूसरे से बोल पाते. आज जो कुछ भी कह रहे थे, कर रहे थे, वह अभिनय से सर्वथा भिन्न था.

दूसरे दिन सुबह जब दीपांश की आँख खुली तो फ्लैट की हवा में घुली स्त्री की उपस्थिति की गंध उस सुबह को कुछ अलग रंग दे रही थी. देखा शिमोर्ग बाथरूम से बाहर निकल रही है. उसने दीपांश का लोअर और टीशर्ट पहन रखी थी.

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