Chudel ka Intkaat - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

चुड़ैल का इंतकाम - भाग - 3


उसने आव देखा न ताव मोटरसाइकिल को फेरारी की इंजन की तरह भगाता हुआ हनुमान चालीसा पढ़ने लगा।


"जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजगर।राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुतनामा।।"


अब वह उस अजनबी हसीना के गांव से काफी आगे आ चुका था।उसके मन मे अभी भी ख्याल आया रहे थे कि-"आखिर वह औरत कौन थी? अचानक उसे ऐसा क्या जो गया जो मुझे पीछे पलटकर देखने को मजबूर कर रही थी? क्या वह सच मे चुड़ैल या कोई बुरा साया था जैसा कि एक दफे दादा जी का भी सामना हुआ था? जिस तरह से वह मोटरसायकिल को बिना रुके गायब हुई उस से तो यही लगता है कि वह हो न हो चुड़ैल ही थी।"


जयन्त के दिमाग मे बस यही सब उटपटांग विचार आए जा रहे थे।वह इस ठंड के मौसम में भी पसीने से तर-बतर हो चुका था।


"शुक्र है कि मुझे दादाजी की वह बात ध्यान में रही और मैं उस औरत....नहीं नहीं वो औरत नहीं चुड़ैल के कहने पर पीछे नहीं पलटा।"

यह कहते उसने हनुमान जी को इसका आभार व्यक्त किया और वह अब अपने गांव आ चुका था। वह जैसे ही अपने घर पहुँचा वहां उसकी नजर राजीव रंजन पर पड़ी जो उसका बेसब्री से इंतजार कर रहा था। उसे देखते ही राजीव बोल पड़ा-"तू मुझे बिना लिए क्यों चला गया था?"


"वो...वो...मैं भूल गया था।"


"ऐसे कैसे भूल गया बे? जब दोनों की बात हुई थी साथ मे जाने की?"
राजीव की बात को अनसुना करते हुए मोटरसाइकिल की चाभी उसके हाथ मे थमाते हुए बोला-"ये ले चाभी और तू जा?"


राजीव उसके हाथ के स्पर्श मात्र से चौंक जाता है और बोलता है-
"अरे तेरा बदन इतना ठंडा कैसे है? और तू इस ठंड में भीगा कैसे है? तबियत ठीक तो है न तेरी?"


इतना सुनने के बाद जयन्त बिना कुछ जवाब दिए अपने कमरे के दरवाजे को बंद कर के अंदर चला जाता है। राजीव के कुछ समझ नहीं आया की वह इस तरह से अजीब हरकतें क्यों की होगी?


राजीव वहीं खड़े खड़े खुद से बड़बड़ाता है-"ये जयन्त को क्या हुआ? ये फिर अपने नाम के अनुरूप किसी यंत्र की तरह बिना किसी कारण के बिगड़ जाता है? उसका शरीर ठंडा और पसीने से तार बतर था, मुझे तो लगता है ज़रूर इस बार भी यह वहां शादी में किसी से लड़ झगड़ कर आया होगा? खैर कोई बात नहीं कल उस से उसके हालात जान लूंगा। मुझे अब जल्द वहां शादी में जाना होगा नहीं तो मुझे खाली पेट ही सोना पड़ेगा।"


यह कहते के साथ उसने मोटरसायकिल में चाभी घुमा कर स्टार्ट करते हुए अपने दोस्त के बारात की और रुख करता है। लगभग 15 मिनट में ही वह वरुणा नदी के समीप आ जाता है। उस पूल के खत्म होने के बाद वहां से तीन रास्ते तीनो दिशाओं की तरफ जा रही थी। वह इस रास्ते की तरफ बहुत कम आया था जिसकी वजह से उसके समझ मे नहीं आ रहा था कि अब उसे कौन सा रास्ता पकड़ना चाहिए। वह वहीं उस तीनमुहने पर खड़ा हो कर माइलस्टोन (मील का पत्थर) पढ़ने लगा कि तभी उसे किसी की छाया दिखती है जो कि एक झटके से ही सड़क को क्रॉस कर जाती है।


उस साया के गुजरते ही उसकी बाइक की हेडलाइट अपने आप ऑफ हो जाती है। यह देखकर वह और भी घबरा जाता है। वह डर कर अपनी मोटरसाइकिल को साइड स्टैंड पर खड़ा कर के मील के पत्थर के पीछे दुबक जाता है।


वह देखता है कि उस साये के हाथ मे लालटेन जल रही है और वह उसी की तरफ आ रही है। वह आदत के अनुसार फिर खुद से बड़बड़ाता है-"ओह्ह यह कैसे संभव हो सकता है। कोई व्यक्ति पल भर में सड़क कैसे पर कर सकता है, वो भी हाथ मे लालटेन लिए।"


अभी उसने यह कहा ही था कि वह साया ठीक उसके सामने थी।काले रंग की साड़ी से वह औरत सिर से पाँव तक ढकी हुई थी। उसका घूंघट इतना लंबा था कि उसकी छाती तक आ रहा था जिसकी वजह से चेहरा देखना असंभव ही था।उसके समीप आते ही राजीव को ठंड अब ज्यादा महसूस होने लगी थी।


यह वही साया थी जिसका थोड़ी देर पहले जयन्त सामना कर चुका था। एक रात में इस चुड़ैल को अपना दूसरा शिकार मिला था। इस से पहले की वह साया राजीव की हरकतें समझ पाती उसने ऐसे नाटक किया जैसे वह उस मील के पत्थर के पीछे लघुशंका कर रहा हो। राजीव अपने आप को सामान्य करता हुआ मील के पत्थर से ऐसे बाहर निकला जैसे उसने कुछ देखा ही न हो।


राजीव ने उस से बात करनी चाही लेकिन इस से पहले कि राजीव कुछ कहता वह बोली-"बाबू अकेले कहाँ जा रहे?"


"मैं यहां से आधे घंटे की दूरी पर एक गांव है जिसका नाम मुंदीपुर है वहां जा रहा हूँ। वहां मेरे एक दोस्त की शादी है। लेकिन तुम इतनी रात यहां क्या कर रही हो?"
"मैं पानी की धारा को खेत की तरफ मोड़ने आई थी। अब वह काम कर के वापिस जा रही हूं।"
"क्यो तुम्हारे घर मे कोई मर्द नहीं है क्या?"


"कोई होता तो फिर मैं यहां क्यों भटकती इतनी रात को। बाबू तुम्हें डर नहीं लगता इतनी रात को सुनसान जगह से होते हुए अकेले ही जा रहे हो?"
"अरे मेरी छोड़ो! यह सवाल तो मैं तुमसे भी पूछ सकता हूँ।"
"बाबू! मुझे किसी का भी डर नहीं। ना मेरे आगे कोई है ना मेरे कोई पीछे। अब मेरा कोई चाहकर भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता।"
"तुम्हारी बातें मेरी समझ से परे हैं। ये बताओ तुम्हे किधर जाना है, मैं छोड़ता हुआ चला जाऊंगा?"


"आप जिस गांव जा रहे हो वहां से 5 किलोमीटर पहले एक गांव पड़ता है वहां जाना है मुझे।"
यह सुनते राजीव उससे बोलता है कि -"ऐसा करो कि तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा और मेरी मदद भी हो जाएगी।''


वह औरत रूपी चुड़ैल बिना किसी हिचकिचाहट के और बिना कुछ बोले बाइक पर सवार हो जाती है यह थोड़ा राजीव को अजीब सा लगता है पर वह कुछ नहीं बोलता और बाइक को स्टार्ट करने के बाद कहता है-


"यहाँ से तो तीन रास्ते जा रहे हैं। हमे किस रास्ते मे जाना है?"
"वो जो सबसे किनारे वाला रास्ता दिख रहा है ना जहां शुरूवात में पीपल का पेड़ हैं वहीं से ले लो।"


"लेकिन मैं जब पिछले साल आया था तब इस बीच वाली रास्ते से उस तरफ गया था।"
"वो...वो...सही कहा आपने पहले वही रास्ता था लेकिन अब उस रास्ते पर गड्ढे बहुत ज्यादा हैं जिसकी वजह से दोनों को परेशानी होगी।"


"ठीक है जैसा आप कहो। वैसे भी आपको ज्यादा पता होगा।"
राजीव ने बाइक उस पीपल के पेड़ के रास्ते की तरफ घुमा दिया और चल पड़ा। अभी कुछ दूर तक ही चला था कि उनकी बाइक की हेडलाइट जो थोड़ी देर पहले अपने आप बुझ गई थी लाइट अपने आप ही जलने लगी अब उसे और भी ज्यादा अजीब लगा। फिर उसने उस चुड़ैल से बात करनी चाही लेकिन जैसे जैसे वह उस रास्ते पर बढ़े जा रहा था वह कुछ अजीब से ही ज़बाब दे रही थी।


लेकिन राजीव ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा-"आपको अंजान व्यक्तियों पर भरोसा नहीं करना चाहिए?"
वह चुड़ैल बोली- " मैं यहां वर्षों से आती जाती रहीं हूँ। मुझे जो इंसान एक बार देख लेता है वो मरने के बाद भी नहीं भूलता।"
" नहीं...नहीं मुझे इतनी जल्दी नही मरना मुझे। ओहहो तो इतनी खूबसूरत हो आप?"

यह कहते के साथ नासमझ राजीव हंस पड़ता है। जब राजीव शांत होता है तो वह चुडैल कहती है-
"तो चेहरा नहीं देखना चाहोगे मेरा?"
"क्या फायदा आपने घूँघट की जगह यह चादर जो ओढ़ रखी है, कोई कैसे देख पायेगा?"
"तुम बोलो तो हटा दूँ यह घूँघट?"
"नहीं रहने दो। किसी ने बेकार में देख लिया तो बात का बतंगड़ बना के रख देगा।"


यह सुनते इस बार वह गुर्रा के बोली-"तुम लोग समझते क्या हो अपने आप को। मैं देखती हूँ कि तू कैसे नहीं देखेगा?"
अजीब सी आवाज में राजीव ऐसे ज़बाब सुनकर स्तंभ सा रह जाता है। वह सोचता है कि न जाने किस को आज साथ ले लिया है और वह बिल्कुल शांत हो कर बाइक चलाने लगता है और अपने आप में सोचता है-"हे भगवान यह औरत है या कोई बला है? कब और कितनी जल्दी मैं इसके गाँव छोड़ दूं ताकि इससे पीछा छूटे?"


लेकिन अब उसे क्या पता की वो कैसी बला को अपने साथ ले कर अंजान मंजिल पर निकल पड़ा है, जहां से एक बार जाता तो इंसान ही है लेकिन वापिस जब आता है तो उसके साथ अपना शरीर नहीं होता।


"ओह्ह जल्दी से बाइक रोको मेरा दुपट्टा नीचे गिर गया है?"यह कहते हुए वह चुड़ैल राजीव के कमर को जोर से भींच लेती है।
"अरे यार अब ये क्या बला है? अच्छा पहले मेरी कमर को छोड़ो मैं रोक कर देता हूँ तुम्हारा दुपट्टा।"


राजीव अगले ही पल अपनी बाइक सड़क के बीचोबीच रोक देता है और तभी उसे ख्याल आता है कि वह औरत झूठ बोल रही है। वह उसे डांटते हुए पीछे पलट कर बोलता है-



"अरे बेवकूफ! तूने मुझे गधा समझा है क्या? मैं अच्छी तरह से जनता हूँ तेरे पास कोई दुपट्टा उपट्टा नहीं है क्योकि तूने काले रंग की साड़ी पहनी हुई है।"


लेकिन उसे कोई आवाज नहीं सुनाई देता तो वह बाइक में बैठे - बैठे ही पीछे की तरफ देखता है , तो वहां पर कोई नहीं था।राजीव बहुत घबरा जाता है और तुरंत बाइक को साइड स्टैंड में लगाकर अपने चारों ओर देखता है , पर कोई नहीं दिखाई देता।
"अरे ये औरत कहाँ गई? अभी तो कह रही थी कि उसका दुपट्टा गिर गया है। भला चंद सेकण्ड्स में कहां गायब हो सकती है?क... क... कहीं वो चु...चु...चुड़ैल तो नहीं? हे भगवान मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था।"

क्रमश..........


इस कहानी का अगला भाग बहुत ही जल्द।

यह कहानी आप सभी को किसी लग रही है? मुझे मेरे व्हाट्सएप्प पर 9759710666 पर ज़रूर msg कर के बताएं।