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प्रिय वर

जानकी : सुंदर सी लड़की, जिसकी शादी हों गई हे। छोटे से शहर की एक आम लड़की।
मनोहर : जानकी का पति। हसमुख, सुंदर और जानकी के लिए कुछ भी करने को तैयार। उसकी हसी बहोत ही सुंदर हे।
गीता : जानकी की चचेरी बहन और बड़ी भाभी। दिखने में ठीक ठाक, जानकी से जलने वाली।
उदय : गीता का पति। सीधा सादा आम आदमी।

जानकी और उसकी चचेरी बहन गीता दोनों की एक ही घर में नई नई शादी हुई हे। वह दोनों अपने पति के साथ उनकी कुल देवी के दर्शन करने दूर के एक मंदिर में आए हुई हे!
जानकी: गीता तुम सब चले जाओ अंदर में यहा बाहर इंतजार करती हूँ।
जानकीने धीरे से पर बाकी के दोनों भी सुन शके उस तरह गीता से कहा। दोनों भाई आगे चल रहे थे और पीछे उनकी पत्नीया थी। जानकी की बात सुनते ही मनोहर पिंछे मूड गया और जानकी को धमकाते हुए कहने लगा,
"अब क्या हुआ गंवार औरत? हमारा रिवाज नहीं जानती क्या?"
"जी जानती हूँ पर अभी में मंदिर में नहीं जा शकती, आप को पता तो हे अभी दूसरा ही दिन हुआ हे।" जानकिने धीरे से अपने मरद से कहा।
"हा हा अच्छे से पता हे कल की सुहागरात का सारा मजा किरकिरा कर दिया और अब यहा भी नाटक चालू, ठीक हे तीन दिन पूरे हों जाय फिर देख कच्चा न चबा जाऊँ तो कहना!" मनोहरने अपने दाँतो से होठ काटते हुए कहा।
जानकी को अकेला एक पेड़ के नीचे छोड़ बाकी लोग मंदिर चले गए। अकेली पड़ते ही जानकी की आंखो में आँसू आ गए। उस बरगद के पेड़ की लटकती हुई कुछ जड़ो को पकड़कर, उन्हे जरा खींच कर वह कहने लगी,
"हे भगवान कैसा राक्षस जैसा पति दिया हे मुजे! इतने सारे व्रत, उपवास सब इस निर्दयी को पाने के लिए तो नहीं किए थे। अपनी स्त्री के मन को न भाँप शके सिर्फ उसके शरीर को पहेचाने ऐसे आदमी के साथ पूरी जिंदगी कैसे जाएगी? क्या करू की उससे पिंछा छूटे? अब तुही कुछ कर!"
जानकी रोते हुए अपनी दिल की बाते कहे जा रही थी।
सब लोग आ गए तब जानकीने अपने चहेरे पर घूँघट डाल कर आँसू छिपा लिए। मनोहर गाड़ी कुछ ज्यादा ही तेजी से चला रहा था। आगे जाते एक मोड पर उनका एक्सीडेंट हो गया, दोनों भाइयो के सिर पर चोट लगी, पीछे बेठी पत्नीयो को कुछ नहीं हुआ था। दोनों को तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया। उदय के शिर पर पट्टी बाँधी गई और मनोहर के चहेरे को सफ़ेद कपड़े से ढँक दिया था। वह मर चुका था।
गीता : हाय राम ये क्या हो गया? अभी अभी तो शादी हुई थी और तूँ विधवा हो गई! ये पहाड़ जैसा लंबा जीवन तूँ अकेली कैसे गुजारेगी?
जानकीने मनोहर के मुह पर से कपड़ा हटा लिया और ज़ोर से रोते हुए कहा, "नहीं ये नहीं हों शकता। तुम मुजे छोड़कर नहीं जा शकते, मेने इतने सारे व्रत, उपवास क्या ये दिन देखने के लिए किए थे। हे भगवान अगर तू मुजे सुन रहा हे तो इनके प्राण लौटा दे..!"
गीता : बस कर पगली मरने वाले भी कभी लौट कर आते हे।
उदयने अचंबित होते हुए अपनी अंखे फाड़ कर कहा, "आते हे, अगर आप सच्चे मन से पुकारो तो... देखो मनोहरने आंखे खोली, तुम देवी हों जानकी, हमारे घर में आकार तुमने हमे धन्य कर दिया।"
मनोहर आंखे मसलता हुआ खड़ा हों गया, मानो जैसे नींद से जगा हों। गीताने पास जा के उसे देखा वो बिलकुल ठीक था। गीताने अपना मुंह बनाया और जानकी की तरफ ईर्षा से देखती रही...
उस रात घर लौट कर मनोहरने जैसे जानकी को हाथ लगाया वैसे ही वह बोल पड़ी, "भगवान के लिए आज नहीं। मेरे पैर भी दर्द कर रहे हे।"
मनोहरने जानकी को उठा कर बिस्तर पर लेटा दिया और उसकी साड़ी उयर की, "आज नहीं जी, हे भगवान मुजे बचा ले।" जानकी ने अपनी अंखे बंध करली। पर ये क्या, मनोहर उसके पाँव हलके हाथो से दबा रहा था।
"जी आप ये क्या?"
"सो जाओ थक गई होंगी।" मनोहर ने बड़े ही प्यार से कहा और जानकी सो गई तब तक वह उसके पैर दबाता रहा।
जानकी के कमरे में क्या चल रहा हे ये देखने के लिए गीताने खिड़की में से जांका... अंदर का द्रश्य देख उसकी आंखे फटी की फटी रह गई।
दूसरे दिन सुबह मनोहर उठकर किचन में गया तो गीताने कहा, “देवरजी आप आ गए और जानकी अभी तक नहीं आई, सो रही हे क्या महारानी? उस पर लगाम कस के रखा कीजिए फिर न कहना मैंने बताया नहीं, मेरे साथ ही पली बड़ी हे में उसे अच्छी तरह से जानती हूँ!”
जानकी भागती हुई वहा आती हे, “माफ करना उठने में देरी हो गई। पता नहीं मेरी नींद क्यों नहीं खुली?”
“कोई बात नहीं वैसे भी चाय तो भाभीने बना ली हे आओ पिलो।“ पति पत्नी दोनों पास बेठ कर चाय पीने लगे और गीता जलने लगी।
“अजी सुनते हो ये मनोहर कुछ बदला सा नहीं लगता?”गीताने अपने पति उदय से कहा।
“मुजे तो नहीं लगता।“
अब गीता की एक नजर मानो अपने देवर देवरानी को ताड़ने में ही लगी रहती थी। उसे लगता था की कुछ तो गरबड है जैसा दिखाई दे रहा है वैसा है नहीं।
जानकी और मनोहर मानो दो जिस्म एक जान थे। कभी जानकी गीता से कहती के उसका मन आज आइसक्रीम खाने का कर रहा हे और उसी दिन शाम को मनोहर जानकी की पसंद वाले फ्लेवर का फेमिली पेक ले आता, उसका दिल चाहता फिल्म देखने का और उसी रात मनोहर दो टिकिट लेकर घर आता, कभी जानकी कहती आज तो खाना पकाने का मूड नहीं हे दीदी और तभी मनोहर का फोन आ जाता, चलो आज सब बाहर खाना खाने चलते हे... एक बड़ा ही अच्छा और सस्ता रेस्टोरंट मेरे दिमाग में हे! कभी मनोहर जानकी की साड़ी प्रेस कर दिया करता तो कभी उसके ब्लाउज में हुक टांगता नजर आ जाता। गुस्सा करना या जानकी को डांटना, उसकी किसी बात पर नाराज होना तो वो जैसे भूल ही गया था। एक दिन गीता अपनी आदत वश जानकी के कमरे में झांक रही थी की उसने देखा,
जानकी: में गुंगराले बालो में अच्छी लगूँगी? वेसे करावा लू?
मनोहर: चलो देख लेते हे।
इतना कह कर उसने कंधी ली और जानकी के लंबे बाल थोड़े से उस पर लपेटे और एक चुटकी बजाई। जानकी के सारे बाल मानो जनमसे हों एसे गुंगराले हो गए।
जानकी: अरे बाप रे ये तुमने क्या कर दिया? हे भगवान मेरे बालो की हालत तो देखो! अब ये पहले जैसे कैसे होंगे?
मनोहर: अभी कर देता हूँ,
उसने कंधी से बालो को सीधा करके खींचा और एक चुटकी बजाई, बाल फिर से सीधे हों गए!
गीता तो देखती ही रह गई। वह अपने कमरे में चली गई और जब मनोहर के जाने बाद जानकी उसके पास आई तब उसने कहा,
“जानकी क्या तुम्हें नहीं लगता मनोहर कुछ बादल गया हे?”
“जी दीदी पूरे के पूरे बादल गए हे। मेरा इतना खयाल रखते हे, मेरी छोटी सी आह भी उनसे बरदास्त नहीं होती।“
“और ये सब हुआ उसके फिर से जिंदा होने के बाद!”
“तुम कहना क्या चाहती हो?” जानकीने गभरा कर पूछा।
“वो इंशान नहीं हे! उसके शरीर में जरूर कोई भूत हे!” और फिर जानकीने आज तक देखि हुई बाते बताई। बालो वाली घटना और जैसे ही जानकी कोई इच्छा करे उसका पूरा हो जाना भला कैसे संभव था। जानकी को यकीन दिलाने गीताने कहा, “आज तुम उससे कोई ऐसा काम करने को कहो जो इंशान कभी न कर शके।“
जानकी सोचती रही, उसे भी मनोहर कुछ बदला हुआ तो लगता था पर...
शाम को मनोहर के घर आते ही जानकीने कहा, “सुनिए जी मेरा मन मचल रहा हे! दिल करता हे की आज चाँदनी रात में बेठ कर आम का रस पिया जाए।“
“पर आज तो अमावस हे चाँद कहाँ से दिखेगा ?”
“वह सब में कुछ नहीं जानती, हे भगवान क्या तुम मेरी इतनी सी इच्छा पूरी नहीं करोंगे? हों शकता हे चाँद कहीं बदलो में छिप गया हों और तुमने अमावस मान ली हो। तुम बाजार से आम ले आओ तब तक वह आ जाएंगा।“
थोड़ी देर में मनोहर घर लौट आया, उसके हाथो में रसीले आम थे। जानकी बगर कुछ कहे आम लेकर रसोई में चली गई।
“मैं ना कहतीथी कुछ गरबड हे! अभी तो आम के पेड़ पर फूलभी नहीं खिले और ये पक्के आम कहा से ले आया? में नहीं खाऊँगी ये आम।“ गीताने डरते हुए कहाँ।
जानकीने भारी मन से आम का रस निकाला और पूरी के साथ उसे लेकर छत पर गई। वहाँ चाँद निकाला हुआ था, छत पर मनोहरने चटटाइ फैलाकर एक मोमबत्ती जलायी हुई थी। उस हलकी रोशनी में भी जानकी की आंखो से गिरे आँसू को मनोहरने देख लिया।
“क्या हुआ?” मनोहरने जानकी के चहेरे को ऊपर उठाकर उसकी आंखो में देखते हुए कहा।
“हे भगवान सच सच बताओ, तुम्हें मेरी कसम, कौन हों तुम? अमावस की रात में चाँद दिखाना कोई मनुष्य का काम तो नहीं।“
“में वही हूँ जिसे तुमने अभी पुकारा।“ मनोहरने जरा सा हँसते हुए कहा, “भगवान!”
“क्या..? हे भगवान तुम, आप भगवान?”
“उंहु... मेरा नाम भगवान हे। में एक भूत हूँ जो उस बरगत के पेड़ पर लटक रहा था जिसके नीचे खड़ी तुम रो रही थी। तुम पेड़ की जीस जड़ को पकड़ के खड़ी थी वह मेरा पैर था। तुमने कहा, हे भगवान एसे निर्दय पति से पिंछा कैसे छूटे, तुम्ही कुछ करो! तुम मुजे पहली नजर में ही भा गई थी और मुजे लगा की में तुम्हारी मदद कर शकता हूँ, बरसो बाद किसिने मुजे नाम लेकर पुकारा था। मैंने गाड़ी का एक्सिड़ंत करावा के उसे मार डाला, तब तुम कहने लगी हे भगवान अगर तूँ सुन रहा हे तो इनके प्राण लौटा दे। भला में क्या करता? किसी को जिंदा करना मेरे वश में नहीं हे इसीलिए मैंने उसके शरीर में प्रवेश किया और मनोहर जिंदा हो गया।“
“जो की असल में भगवान हे, एक भूत?” जानकी आंखे फाड़ कर कह रही।
“अब जो हूँ सो हूँ, तुम्हें मेरी हकीकत पता चल गई.. में चला जाऊंगा।“ जानकी एक पल उसे देखती रही फिर कहा,
“हे भगवान एसे कैसे चले जाओंगे? तुम्हें मेरी एक आखरी इच्छा पूरी करनी पड़ेगी। मेरे मन को मेरे कहे बिना भाँप ले एसा मेरा प्रिय वर देकर जाना होंगा।“
“ये कमाल तो सिर्फ एक भूत ही कर शकता हे, बिचारे पति के बस की बात नहीं है!” मनोहरने अपनी सुंदर सी हसी हँसते हुए कहा।
“तो फिर ठीक हे भले भूत ही मेरा प्रिय वर बना रहे!” जानकीने आंसुभरी आंखो से अपना हाथ आगे किया और मनोहरने उस हाथ को पकड़ कर अपनी और खींचते हुए जानकी को अपनी बांहों में भर लिया।
दूसरे दिन सुबह,
गीता: क्या हुआ वह भूत हे?
जानकी: नहीं दीदी ये आम उन्होने ऑन लाइन मँगवाए थे... वहा अब कुछ भी कभी भी मिल शकता हे!
नियती कापड़िया।