Aatrangi zindagi books and stories free download online pdf in Hindi

अतरंगी ज़िन्दगी...

1). राहें......

है चाह राहगीर को राह खत्म हो जाने की
है चाह राहगीर को मन्ज़िल पाने की

राह में थका वो राहगीर देखता है बस एक बूंद उस पानी को ,
जिससे आस है उसे अपनी प्यास बुझ जाने की ,

होगी अवश्य ही कड़ी धूप उस राहगीर को तप जाने की
पर क्या चिंता उसे जिसे ठंडक अपने सपनों के आशियाने की ,

कुछ कुछ तो थी समता उस पथिक और अर्जुन में अवश्य ही
तभी तो दोनों ने राहों में रहे रोडों की फिक्र ना की,,
होगी लिखनी उसे अपनी दस्तान लहू लुहान की

है चाह राहगीर को राह खत्म हो जाने की
है चाह राहगीर को मन्ज़िल पाने की।।


2). सुट्टे ज़िन्दगी के .......

सुना था नहाने के बहुत फायदे होते हैं
रात के तीसरे पहर काम करते थका तो सोचा चलो नहाने का लुफ्त ही उठा लेते हैं
थकावट से चूर कब मेरा तन उस शय्या पर सो गया ,
देखो दोस्तों मैं तो वेंटिलेटर पर भर्ती हो गया

अब आंखे खुल ही कहाँ रही थी
शायद कंप्यूटर पर बिछी ये आंखे बहुत थक चुकी थी,,
पर बेलिहाज़ ये कान सब सुन रहे थे
जब डॉक्टर मेरे ब्रेन स्ट्रोक की कथा मेरे बच्चों को सुना रहे थे।

बगल में मेरी पत्नी रामायण को आँसुओं से भिगो रही थी
हाय ज़िन्दगी तू कितनी कीमती है ये समझ मुझमें कल तक कहाँ थी

जब डॉक्टर्स मेरे बेटे को ,,रिश्तेदारों को बस 3 घण्टे में बुलाने की सलाह दे रहे थे
तब मेरी आँखें बस एक बार ,एक बार उन्हें और जी भर कर देखने की आकांक्षा बता रहे थे

कामये हुए उन कागजों के धन का लोभ ,यम के दूतों को कहाँ था

तो मैं तब बस अपनी ज़िंदगी में शेष रहे काश को गिन रहा था .....
आज जबऑक्सीजन के बाटलों से अपनी हर सांस को तृप्त कर रहा हूँ
तो लगता है काश इसे भी पेड़ के नीचे सवेरे चैन से लिया होता

की तुम्हारे हाथ की गरम रोटियां कितनी स्वादिष्ट लगती हैं
प्रिय ये तुम्हे कभी कह दिया होता

गाड़ी चलाते हुए सिर्फ सोचता ही रहा ,
की बच्चों के साथ वक़्त बिताये कितने दिन हुए
दोस्तों के साथ ठहाके लगाए
जैसे बरसों ही बीत गए

पर कागज़ों के गांधी ने इतना मोहित किया हुआ था
तब मेरे पास ख्वाहिशो के लिए वक़्त ही कहाँ था ?

काश की ज़िंदगी तूने इस कदर अलविदा ना कहा होता
कि काश ये ज़िन्दगी का अंतिम प्रहर ना होता ,
कि काश इस मौत में इतना काश ना होता ,
कि काश इस मौत में इतना काश ना होता ।।

ज़िन्दगी का सार जिस गीता में छिपा था
उस गीता को मैने पढ़ा ही कहाँ था
आज वो गीता मेरे अंतिम पलों में गायी जा रही थी
पर तब मुझे ज़ोर शोर से यमदूत की चीख सुनाई आ रही थी,

जाते जाते कुछ नुस्खे दे रहा हूँ
ऐ दोस्त मैं ज़िन्दगी के सुट्टे दे रहा हूँ

की ऐ ,ज़िन्दगी तू मौके हज़ार देती है जी जाने को
पर हर मौका चला जाता है कागजों का जाम पी जाने को

Nike Reebok का दिखवा तो मैंने बहुत किया है,
पर ज़िन्दगी तू तो तराशती है हर लम्हा बस तुझ पर मिट जाने को।।


3). तलाशती हूँ .....
बहुत नाकामयाब हूँ
भली तरह जानती हूँ
हौंसला खो चुकी हूँ , पर अब भी हवा में हूँ जानती हूँ
गिर जाउंगी उन आशाओं के आसमां से इस सच्चाई की धरती पर,
पर जो मुझे सम्भाल सके ,मुझे कस सके किसी ऐसे को तलाशती हूँ
तलाशती हूँ जो मुझ नाकामयाब में एक कामयाबी की अलख को जगा सके
तलाशती हूँ जो मुझे मेरी एक कामयाबी के ज़रिए मेरा पूरा हौंसला लौटा सके
तलाशती हूँ जब मेरे पंख कटे हों ,वो मुझे तब भी मेरे खाबों के जहां में फिर से उड़ा सके
तलाशती हूँ जो मेरे अवगुण नकार मेरे गुणों को पुनः उजागर कर सके
तलाशती हूँ जब हंसे दुनिया मेरे अवगुणों पर ,तब वो मेरे गुणों पर बस एक मीठी सी मुस्कान दे सके।।