Ek Jindagi - Do chahte - 29 books and stories free download online pdf in Hindi

एक जिंदगी - दो चाहतें - 29

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-29

खाना खाने के बाद सब लोग वापस ड्राईंगरूम में बैठ गये और फिर से गप्पे मारने का दौर शुरू हो गया। भरत भाई और शारदा बहुत कम बातें कर रहे थे लेकिन दोनों के चेहरे जिस तरह से प्रसन्न दिख रहे थे उन्हें देखकर साफ पता चल रहा था कि दोनों के दिल आज अंदर से कितने खुश हैं। बातों में ही जब रात के बारह बज गये तो तनु और उसकी बुआ सबके लिये गरमागरम कॉफी बना लाईं।

रात डेढ़ बजे सब लोग उठकर सोने की तैयारी करने लगे तो आकाश ने जिद पकड़ ली कि ''मैं तो जीजू के पास ही सोऊँगा। आप सब लोगों ने मुझे उनसे बातें ही नहीं करने दी। आप ही लोग बोलते रहे। अब मैं रात भर जीजू से बातें करूँगा लड़ाई के बारे में।"

मामा-मामी ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की कि जीजू को आराम करने दो तुम हमारे पास चलो। लेकिन आकाश नहीं माना। तनु ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ''चल तू मेरे पास सो जा। रहने दो ना मामी। आज मेरे पास सो जायेगा बच्चे का मन है तो।"

मामी ने स्वीकृति दे दी ''ठीक है पर बहुत रात हो गयी है आकाश दीदी-जीजू को परेशान नहीं करना जल्दी सो जाना।"

''ठीक है माँ।" आकाश खुश हो गया।

सब लोग अपने-अपने कमरों में चले गये सोने। परम ने भौंहे चढ़ाकर तनु की ओर देखकर ईशारा किया कि आकाश को अपने कमरे में सुलाने की क्या जरूरत थी। तनु ने धीरे से कहा ''अरे बच्चा है। और वैसे भी आपका आज का कोटा तो पूरा हो ही गया है, तो चुपचाप अच्छे बच्चे की तरह सो जाईये।"

''अच्छा बच्ची मायके आते ही रंग बदलने लगी।" परम ने उसकी चोटी खींचते हुए कहा।

पलंग पर लेटते ही तनु को नींद आने लगी। आकाश परम से लड़ाई के किस्से सुनने लगा। परम भी ग्यारह साल के आकाश के साथ जल्द ही घुलमिल गय। तनु थोड़ी देर तो परम के आतंकवादियों को पकडऩे के किस्से सुनती रही फिर उसे नींद लग गयी।

सुबह तनु की नींद खुली तो आकाश गहरी नींद में सो रहा था और परम गैलरी में खड़ा सिगरेट पी रहा था। तनु बाथरूम में जाकर हाथ-मुँह धो आयी और परम के पास आकर खड़ी हो गयी।

'' कितने बजे सोए थे आप लोग रात में?"

'' बड़ा शौक है उसे थ्रिलिंग किस्से सुनने का। बड़ा होकर पक्का फौज में जायेगा। सोने को ही तैयार नहीं हो रहा था। तीन बजे बड़ी मुश्किल से जाकर सुलाया है।" परम सिगरेट का एक लम्बा कश लेकर बोला।

''फिर भी आप जल्दी उठ कर बैठ गये।"

''क्या करूँ मायड़ा ये फौज की नौकरी ने सुबह साढ़े चार-पाँच बजे उठने की ऐसी आदत डाल दी है कि रात में कितनी भी देर से सोओ फिर भी सुबह उसी समय नींद खुल जाती है। काफी देर तक बिस्तर पर पड़ा रहा कि थोड़ी देर की झपकी और लग जाये लेकिन नहीं। फिर बिस्तर से उठना ही पड़ा।" परम खत्म हुई सिगरेट को बुझाकर पास वाले गमले मे डालता हुआ बोला।

''चलिये बाहर चलते हैं। अब तक तो घर में सब लोग जाग गये होंगे।" तनु कमरे में आ गयी।

पीछे से परम ने आकर उसे बाहों में भर लिया। ''अरे ये क्या कर रहे हो आकाश उठ जायेगा।" तनु बोली

''वो घोड़े बेच कर सो रहा है। ग्यारह बजे से पहले नहीं उठेगा। जस्ट गिव मी ए किस। सडी फिर तो तू दिन भर हाथ नहीं आयेगी।" परम ने उसके होंठो पर अपने होंठ रखते हुए कहा।

दस मिनट बाद जब वो अलग हुआ तो तनु बोली ''मुँह से सिगरेट की खुशबू आ रही है जाओ दोबारा ब्रश करके आओ।"

''तू भी कर ले अब तो तेरे मुँह में से भी आ रही होगी। परम हँसते हुए बोला।

फटाफट ब्रश करके तनु बाथरूम से बाहर आयी। वो और परम कमरे से बाहर आए। दोनों ने ड्राइंगरूम, डायनिंग रूम में देखा कोई नहीं था। तनु ने किचन में जाकर महाराज जी से पूछा कि सब लोग कहाँ हैं।

''सब लोग पीछे वाले बगीचे में है बिटिया। तुम दोनों भी वहीं चले जाओ मैं चाय भिजवाता हूँ।" महाराज ने कहा। परम और तनु पीछे वाले बगीचे में चले आए। पीछे आम, अमरूद, चीकू आदि के फलदार पेड़ लगे थे। वहीं पर टेबल कुर्सियाँ लगी थीं और सब लोग सुबह की गुनगुनी धूप में बैठे बातें कर रहे थे।

''आओ-आओ दामाद जी। बड़ी देर से उठे। रात में लगता है बड़ी देर से सोए थे।" परम को देखते ही मामाजी बोले।

''हाँ वो रात में आकाश बड़ी देर तक बातें करता रहा था तीन बजे सोया है।" परम एक कुर्सी पर बैठते हुए सहज भाव से बोला।

'' और फिर आकाश की बड़ी बहन ने सोने नहीं दिया होगा।" मौसाजी ने छूटते ही फुलझड़ी चलाई।

उनकी बातों का अर्थ समझकर परम शरम से पानी-पानी हो गया। सामने ही भरत भाई और शारदा बैठे थे। परम गरदन नीचे करके बैठा रहा। तनु के गाल भी शर्म से लाल हो गये।

''क्या आप भी दीदी और जीजाजी के सामने दामाद जी से ऐसी बातें करके उन्हें शर्मिंदा कर रहे हो।" तनु की मौसी ने अपने पति को झिड़का।

''अरे शर्मिंदा कहाँ कर रहा हूँ। मैंने तो बस यूं ही दामादजी की नींद से भरी आँखों को देखकर पूछ लिया बस।" मौसाजी बड़े भोलेपन से बोले तो बाकी सबके साथ ही भरत भाई और शारदा भी मुँह दबाकर हँसने लगे।

तभी नौकर और चाय रख गया। परम और तनु चाय पीने लगे। परम को दिल में एक गहरा सुकून सा लग रहा था। उसके परिवार के सदस्यों की एक-एक कड़ी उसके जीवन के साथ मजबूती से जुड़ती जा रही थी। एक तरफ का परिवार तो पूरा हो गया था। तनु ने परम को एक भरा-पूरा ससुराल दिया था। जिसमें सभी परम का बहुत आदर करते हैं। अपने जीवन में इतना प्यार, मान-सम्मान परम को पहली बार मिला था। और इसके लिए वह तनु का पूरे दिल से आभार मानता है। परम ने सबकी नजर बचाकर स्नेह से तनु को देखा।

आकाश ठीक ग्यारह बजे उठा और उठते ही जीजू-जीजू करते हुए परम के पास आ गया। आकाश जिद करने लगा कि उसे निशाना लगाना सीखना है। अब तक सब लोग नहा-धोकर तैयार हो चुके थे। औरतें सब किचन में खाने की व्यवस्था देख रही थीं और सारे पुरुष सदस्य बाहर बैठे बातें कर रहे थे। परम उसे लेकर बाहर बगीचे में चला गया। आकाश के पास दो-तीन खिलौने वाली बंदूकें थी और उनकी गोलियाँ भी थी। परम बंदूक में गोलियाँ भरकर उसे निशाना साधना सिखाने लगा।

तनु, उसकी बुआ और मौसी बैठकर बातें कर रहे थे कि अचानक उसकी बुआ बोल उठी -

''तनु बिटिया अब तो शादी को समय हो गया खुशखबरी कब सुना रही है।"

''क्या बुआ आप भी।" शर्म से तनु के गाल लाल हो गये।

''ज्यादा देर करना ठीक नहीं। बढ़ती उम्र में दिक्कते भी बढ़ जाती हैं अभी बिलकुल सही समय है।" बुआ बोली।

''ओ बुआ! पहले मेरा घर-गृहस्थी तो जम जाये। शादी हुए समय हो गया लेकिन घर तो पन्द्रह-बीस दिन पहले ही बना है ना।" तनु ने कहा।

''हाँ तो मैं कौन सा तुझे कह रही हूँ कि कल ही खबर सुना दे पर अब ज्यादा देर न करना। वैसे भी घर भर के बच्चे बहुत बड़े-बड़े हो गये। बरसों हो गये छोटे बच्चों को गोद खिलाए हुए अब मन करता है कि घर में फिर कोई नन्हा-मुन्ना आए और रात दिन उसे गोद में लेकर बैठी रहूँ।" बुआ पुलककर बोली।

''हाँ तू बिलकुल चिंता मत करना जैसे ही पता चले मुझे बता देना बस मैं आ जाऊँगी तेरी देखभाल करने।" मौसी उत्साह से बोली।

''हाँ और जब मौसी घर चली जाएंगी तो मैं आ जाऊँगी तुझे संभालने। फिर तेरी माँ भी है और मामी भी तो है।" बुआ और मौसी इस तरह से आगे की प्लानिंग करने लगी कि तनु को हँसी आ गयी। दोनों इस तरह से उत्साहित हो रहीं थी जैसे कि तनु सच में माँ बनने वाली हो। तनु को बड़े जोरों से हँसी आ गयी।

दो दिन सबके साथ हँसी-खुशी समय बिताकर तनु और परम अपने घर वापस आ गये। बुआ, मौसी, मामा अपने-अपने घर चले गये। सबने बहुत स्नेह और आग्रह से तनु और परम को अपने घर आने का न्यौता दिया। परम ने सबको कहा कि वे बहुत जल्दी ही सबके घर आएंगे।

अपने घर पर आते ही परम ने सिगरेट सुलगाई और जल्दी - जल्दी लम्बे-लम्बे कश लेने लग गया। एक के बाद एक उसने तीन-चार सिगरेटें फूक डाली।

''स्टॉप इट नाउ। कितनी सिगरेट पियोगे लगातार।" तनु ने उसे टोका।

''दो दिन हो गये पी ही कहाँ पाया हूँ।" परम ने जवाब दिया।

''क्यों जी वहाँ भी तो छुपछुपा के पी ही लेते थे।" तनु ने कहा।

''कहाँ पी लेता था रे बुच्ची सारा दिन तो वो आकाश आगे पीछे घूमता रहता था। बस सुबह उठते ही एखाद सिगरेट पी लेता था वह भी बदबू आने के डर से जल्दी-जल्दी फूंक कर बुझा देता था।" परम बोला।

''तो सिगरेट पीना क्या इतना जरूरी है जी कि दो दिन नहीं पी पाये तो घर आकर सारी कसर पूरी करोगे लगातार पीकर।" तनु ने उसके हाथ से सिगरेट का पैकेट लेकर अलमारी मे रख दिया।

तभी परम के फोन की घण्टी बजी। चाचा का फोन था। परम चाचा से बातें करने लगा। हालचाल पूछकर चाचा ने फोन चाची को थमा दिया। चाची उन दोनों को दूसरे दिन शाम के खाने का न्यौता दे रहीं थी। परम ने कहा कि पहले तो दोनों घर आए तो चाची ने मना कर दिया कि पहले बहु घर आयेगी तब वे लोग आएंगे।

''तू बहु से बात करवा।" चाची ने परम से कहा। परम ने फोन तनु को दे दिया। तनु को आर्शीवाद देने के बाद सावित्री ने उसे घर पर आमंत्रित किया जिसे तनु ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। सावित्री से बात करने के बाद तनु ने धीरे से मुस्कुराकर परम की ओर देखा, जवाब में परम भी मुस्कुरा दिया। अब उन दोनों को इस ओर के परिवार की कडिय़ों को अपने साथ जोडऩा है। और फिर अंत में दोनों परिवारों के सदस्यों को आपस में जोड़कर पूरे परिवार को एकत्र करना है।

तनु और परम खाना बनाने की तैयारी करने लगे। दस साढ़े दस बजे तक दोनों को ऑफिस पहुँचना था।

दूसरे दिन ऑफिस से आकर तनु ने जल्दी से शॉवर लिया और परम के चाचा-चाची के यहाँ जाने के लिए तैयार होने लगी। बड़े जतन से उसने एक सुंदर सी साड़ी पहनी और तैयार हो गयी।

''ओहो नई बोऊ शोशुराल जाने के लिए तैयार हो गयी साड़ी पहनकर।" परम उसे देखकर बोला।

''पहली बार जा रही हूँ तो सोचा साड़ी ही पहनूं। सूट तो अच्छा नहीं लगता ना।" तनु हाथोंं में चूडिय़ाँ पहनते हुए बोली।

''आपने बिलकुल ठीक सोचा श्रीमति जी।" परम बोला।

''वाह मेजर साहब, शादी और पूजा के बाद आज महीनों बीत गये आपको कुर्ते-पजामें मे देख रही हूँ।" तनु परम को कुर्ते पजामें में देखकर बोली।

''अब श्रीमति जी हमारी पांरपरिक वेशभूषा में हैं तो हमने सोचा कि हम भी भारतीय वेशभूषा धारण कर लें।" परम शुद्ध हिन्दी में बोला तो तनु को हँसी आ गयी।

''अरे वाह वेशभूषा के साथ आपकी भाषा भी एकदम से बदल गयी जी।"

''और नहीं तो क्या फौजी कॉम्बेट यूनीफॉर्म में हमारी भाषा बदल जाती है, जींस टी-शर्ट में अलग हो जाती है और शुद्ध भारतीय वेशभूषा धारण करते ही भाषा परिष्कृत हिन्दी हो जाती है।" परम भी हँसने लगा।

''बस-बस जी इससे ज्यादा शुद्ध हिन्दी नहीं, अब चलिये ज्यादा देर करना ठीक नहीं।"

''चलो मेरी जान। पहली बार ससुराल जा रही है। शादी के डेढ़ साल बाद।" परम तनु के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला। दोनों नीचे आकर घर को ताला लगाकर बारह पोर्च में आकर कार में बैठ गये। परम ने रिवर्स करके कार बाहर निकाली और चाचा के घर की ओर जाने वाली सड़क पर पहुँच गया।

चाचा के बिल्डिंग की पार्किग में कार पार्क करके परम तनु को ऊपर ले गया।

''नर्वस तो नहीं हो ना।" चाचा के फ्लैट के दरवाजे की कॉलबेल बजाने से पहले परम ने तनु से पूछा।

''थोड़ी सी।" तनु ने हाँ कहते हुए सिर हिलाया।

''मैं साथ में हूँ ना। रिलैक्स।" परम ने उसके माथे पर धीर से अपने होंठ रखते हुए कहा।

***