Ekant prem books and stories free download online pdf in Hindi

एकांत प्रेम

"कोई बात नहीं, विमला ।एक अचार की बरनी ही तो तोड़ी है गुड़िया ने ", गुड़िया को झट से गोद में उठाकर कमल ने कहा ।"कल मैं और आम मंगवा दूंगा और उनको कटवा भी दूंगा।तुम परेशान मत हो "।तीन साल की उम्र में अपने पिता को खो चुके कमल को एहसास था कि पिता की बरगद सी छाया बच्चों के जीवन में कितना महत्त्व रखती है ।
गुुुुड़िया डांट खाने से पहले ही सुबकने लगी थी । शायद उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था । पापा की लाडली गुड़िया को कोई फूल से भी छू ले तो उसके नील पड़ जाती थी । और आंखों से गंगा-जमुना बह जाती थीं। पापा की सारी मन की कोमलता और प्राणीमात्र के लिए दया गुड़िया को विरासत में मिली थी ।
दो संताने खोकर ,तीसरी को खुद से दूर रखने के बाद गुड़िया आई थी उनके जीवन में ।प्रिया को तो उसके नाना नानी ने बड़े शहर में अपने साथ रखकर बचा लिया ,पर अब प्रिया की इस सहोदरा को बचाकर रखने की जिम्मेदारी कमल और विमला की थी ।
बड़े शहर से उच्च शिक्षा लेकर आए कमल और विमला के लिए ६०
के दशक में हिमालयी क्षेत्र के एक गांव से गृहस्थी शुरु करना बहुत मुश्किल था ।नए लोग,अलग संस्कृति,वेश भूषा ,आचार विचार ,रहन सहन सभी चीज़ों में भिन्नता थी ।पर कमल का एकांत प्रेम विमला को सभी परिस्थितियों में सहर्ष खुश रखता था और उसमें नित नूतन शक्ति का संचार करता था और विमला की बुद्धिमत्ता और सांवला सलोना तेजपूर्ण सौन्दर्य कमल में एक नई स्फूर्ति भर देता था ।एन सी सी का बेस्ट कैडेट और सी सर्टीफिकेट प्राप्त निर्भीक कमल के लिए जंगल में झोपड़ी बनाना ,पहाड़ को ब्लास्ट करके सीढ़ीदार खेत बनाना उतना ही सरल था जितना विमला के लिए एक ही दिन में शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के पांच उपन्यास पढ़ना ।
नए परिवेश और परदेस में रहकर अपनी परंपराओं का निर्वहन करना कठिन था पर कमल और विमला के लिए नामुमकिन नहीं था ।कमल की ईमानदारी और हर कार्य को उत्साह पूर्वक करने की ललक ने उसे शीघ्र ही एक लोकप्रिय अफसर बना दिया ।विमला का आभिजात्य उसके पहनने , बोलने ,व्यवहार,सुघढ़ता में इस तरह झलकता था कि अड़ोस पड़ोस की सभी स्त्रीयां उसके साथ समय गुजारने के लिए उत्सुक रहती थीं।कमल ने अपनी ईमानदारी की कमाई में कभी विमला को किसी कमी का एहसास नहीं होने दिया।पढ़ने की शौकीन विमला के लिए उसने १९६५ में भी जंगलो से घिरे उस गांव में भी "सर्वोत्तम" और "रीडर्स डाइजेस्ट" जैसी किताबें लगवा रखी थीं ।कमल ने अपने इर्द गिर्द कभी रिश्तों का जाल बुनकर उसमें उलझने और निकलने का व्यर्थ प्रयास नहीं किया ।उसका संसार विमला से शुरू होकर विमला पर खत्म हो जाता था ।प्रिया और गुड़िया को कभी वो खुद से अलग सोच ही नहीं पाया।
विमला कभी कभी रूठ भी जाती,बहस भी करती पर कमल ने कभी कोई शिकवा या शिकायत नहीं करी ।शादी के हर सालगिरह पर कमल अपने नाम का फूल विमला को भेंट करके एक ही गीत गुनगुनाता "चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था,हां तुम बिल्कुल वैसी हो जैसा मैंने सोचा था "।
यही प्रेम था जिसके लिए विमला शहर की बड़ी नौकरी छोड़कर इतनी सहजता से जंगल में घर बसाने आ गई थी ।


"पापा ,गुड़िया को आप कुछ नहीं कहते , और मम्मी भी हमेशा उसकी हर बात को सही ठहराती हैं ",प्रिया को बड़े होने तक अक्सर यह शिकायत रहती ।७साल की प्रिया जब नानी के घर से आई तो उसे गुड़िया से बहुत लगाव हो गया था ,पर बड़े शहर में पली होने के कारण उसे कस्बे का जीवन कुछ अटपटा लगा ।और नानी नाना के लाड़ दुलार के आगे मम्मी पापा का अनुशासन कुछ सख्त लगा।
कमल और विमला अपना सारा समय बच्चों के लिए लगा देते और कभी उन्हें अकेले कहीं जाने न देते और न ही स्वयं जाते।कमल के सिर से बचपन में ही पिता का साया उठ गया था और अपने बड़े भाई साहब के घर पर रहकर ,पढ़ाई करके कमल ने केवल इक्कीस साल की उम्र में नौकरी शुरू कर दी थी ।पिता के अम्बर से वरदहस्थ और लाड़ दुलार की जो कमी कमल ने महसूस की ,उस कमी को उसने प्रिया और गुड़िया के जीवन में कभी नहीं आने दिया।
एक बार प्रिया और गुड़िया को घर पर छोड़ कर कमल और विमला सिनेमा देखने गए ,परंतु सिनेमा शुरू होने से पहले ही कमल ने टिकट फाड़ दिए और विमला को कहा "घर पर बच्चे अकेले हैं ,चलो उनके लिए कुछ खाने का सामान लेकर घर चलते हैं ,पिक्चर देखने का मन नहीं है"।
कमल की आंख के कोनों से लुढ़कती एक बूंद भी विमला से नहीं छिप सकी और दोनों चुपचाप घर की ओर चल पड़े ।

"मां, कालेज की सभी लड़कियां पिकनिक पर जा रही हैं,मैं भी जाऊंगी ",प्रिया ने जिद करते हुए कहा ।
"नहीं,हम तुम्हें कालेज की पिकनिक पर नहीं भेज सकते । तुम्हारे पापा ने मना किया है ",विमला ने कुछ सख्ती से कहा ।
प्रिया खूब रोई और रात को बिना खाना खाए ही सोने चली गई ।
"प्रिया नहीं दिखाई दे रही ,क्या पढ़ाई कर रही है ?",कमल ने विमला से पूछा ।

"अरे नहीं ‌‌‌,वो जरा नाराज हो गई है" ।
"तुमने पिकनिक जाने के लिए मना किया होगा "।
"अब क्या करती ,आजकल के जमाने में लड़कियों को ऐसे भेजना ठीक नहीं है ।"
"चलो मैं कुछ सोचता हूं ,अभी तुम प्यार से उसे खाना खिला दो "।
अगली सुबह कमल ने सब को जल्दी तैयार होने का आदेश दिया और फिर अपनी गाड़ी निकाल कर सबको पिकनिक पर वही लेकर गया जहां प्रिया के कालेज के साथी गए थे ।
प्रिया और गुड़िया की पढ़ाई का पूरा जिम्मा कमल ने विमला को ही सौंप रखा था,स्वयं विज्ञान संकाय का होनहार छात्र रह चुका कमल , पढ़ाई में अपने से ज्यादा विमला पर भरोसा करता था ।विमला कला संकाय की होकर भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखती थी और एक सफल अध्यापिका भी थी ‌।कितने ही छात्रों छात्राएं विमला को मां समान दर्जा देते थे ।

समय यूं ही पंख लगा कर उड़ गया और एक दिन विमला के विभाग के अफसर ने जब प्रिया का हाथ अपने बेटे के लिए मांगा तो कमल ने तुरंत हां कर दी ।अपने ही परिवेश के अच्छे ,संभ्रात ,पढ़ें लिखे परिवार में जाने से प्रिया का विवाहित जीवन सुचारू ढंग से चल पड़ा ।कमल और विमला के लिए यह एक सौभाग्य की बात थी ।उसके ससुराल की बातें करके उनका मस्तक गर्व से ऊंचा हो जाता ।प्रिया भी सदा से इस मत की थी कि मम्मी पापा का सिर उसकी बात करके ऊंचा रहे ।
कमल ने सदा विमला की बात का आंख बंद करके मान रखा और जीवन की दौड़ में ,सुख दुख में कभी भी उसके एकांत प्रेम में कहीं कोई कमी नहीं आई । सांवली सलोनी विमला के विवाह के लिए चिंतित रहने वाली गुड़िया की नानी अक्सर यह कहती ,"हमारी सांवली विमला को गौरवर्ण का कमल मिल गया"।विमला को आज भी याद है जब कमल ने उसकी तारीफ में अपना पसंदीदा गाना गाया ,'चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था ,हां तुम बिल्कुल वैसी हो जैसा मैंने सोचा था'।
गुड़िया को आज भी याद है जब मां पापा की पचासवीं विवाह की वर्षगांठ पर घर पर प्रिया दीदी और जीजाजी ने एक भव्य आयोजन किया था जिसमें यही गाना बज रहा था । उनकी जोड़ी को देखकर एक बूढ़ी स्नेही अम्मा ने कहा था "विमला बहू ,शादी के समय कमल बाबूजी तो बिल्कुल राजकुमार से लगते होंगे ,दूध से गोरै चेहरे पर काले घुंघराले बाल और दूध से भी ज्यादा उजला ,सरल मन "।
विमला आज भी नई बहू की तरह अम्मा की बात सुनकर लज्जा और गर्व से भर गई और उसने झट से अम्मा के पैर छू लिए ।
उसे याद आ गया अपने ससुराल की वह पहली सुबह जब वह नहा कर बिना कपड़े धोए बाहर आ गई थी और कमल ने चुपचाप उसके कपड़े धोकर बाहर टांग दिए थे ,वह कमल के मौन प्रेम की पहली भेंट थी जिसे विमला कभी नहीं भूली । उस रात बुद्धि मती विमला ने अपने ससुराल के सब नियम समझ लिए थे और कमल के उस एकांत प्रेम को भी समझ कर अपने मन के सब भार कमल के कंधो पर डाल निश्चिंत हो गई थी ।उसके सब मधुर सपनों को पूरा करने वाला ,उसकी जिद को सिर माथे सजाने वाला मिल गया था।
"पत्थर फोड़ कर पानी पिलाने वाला जीवन साथी ढूंढ कर दिया है तुम्हें विमला",अपने गुरू समान पिता के इन शब्दों की गूंज में विमला को मीठी नींद आ गई ।उसे एहसास भी नहीं हुआ कि वह पूरी रात कमल के मजबूत बांहों के घेरे में ही सोई रही।
पचास साल जीवन के इन बांहों के मजबूत घेरे में पलक झपकने जैसे ही थे विमला के लिए ।,आज भी पहले दिन की भांति कमल का प्यार और विमला के मन को छू जाने वाला एहसास बदला नहीं था।
"प्रिया तुम्हारी मम्मी कहां हैं", एक मिनट भी विमला को न देखकर कमल का यही पसंदीदा प्रश्न होता ।


इस बात का एहसास विमला को सदा रहता था और कमल के प्रेम की वह शक्ति ही थी जिसका संचार विमला के रोम रोम को विकट परिस्थितियों में भी उत्साह से पूर्ण रखता था । अपने किसी भी विद्यार्थी की मदद करनी हो या किसी रिश्तेदार की सेवा ,विमला ने सदा अपनी सीमाओं से बढ़कर सब कार्य किए ।
गुड़िया को अपने पापा का हर बात पर यह कहना कि तुम्हारी मम्मी कहां हैं ,अच्छा लगता था ।मां की बीमारी में कैसे पापा सेवा करते थे एकदम मौन सेवा ,फिर चाहे मां के कपड़े धोने हों,प्रेस करने हों,या रसोई का कोई भी काम हो,पापा खुशी खुशी बड़े सहज ढंग से सब कर देते थे। दीदी के विवाह के बाद गुड़िया के मन में अपने जीवन साथी की ऐसी ही तस्वीर बनने लगी थी और ऐसा ही एकांत प्रेम ढूंढने लगा था उसका मन।
गुड़िया को आज भी याद है वो दिन जब गुड़िया छात्रावास से आई थी और पापा ने उससे कहा था ," तुम्हारी मम्मी की तबीयत कुछ ठीक नहीं रहती है,अब तुम घर पर रहकर ही आगे की तैयारी करो।मां को तुम्हारी जरूरत है"।
पापा ने शायद पूरा जीवन गुड़िया से यही एक बात जोर देकर कही और गुड़िया ने भी इस बात का मान रख कर अपने जीवन का सबसे सही निर्णय लिया। आज 20 साल बाद उसी घर में गुड़िया का मां के संग एक सखी सा बंधन उस एक निर्णय का ही परिणाम है ।
इन बीस वर्षों में विमला जब भी बीमार हुईं कमल के प्रेम और सेवा ने उसे और भी मजबूत बना कर खड़ा कर दिया । गुड़िया में जहां कमल की झलक देखकर विमला को अद्भुत सुख मिलता ,वहीं प्रिया में विमला का रूप देखकर कमल को बल मिलता । यही बल था जो कमल को रिटायरमेंट के बाद भी अद्भुत शक्ति से सब काम करने की प्रेरणा देता था ।
"अब अंदर आ भी जाओ ,क्यारी और पौधों को कुछ देर के लिए तो छोड़ दो ",विमला हंस कर अक्सर ये कहती ।कमल अपनी छोटी सी बगिया में अनगिनत फूल और पिछवाड़े में सब सब्जियां लगाकर घर को सजाता और विमला सब कुछ देखकर मन ही मन मुस्कुराती ।
पर कहीं न कहीं उसे कमल की गिरती सेहत की चिंता भी रहती ।नौकरी की दौड़भाग ,बहुत सा भाग जीवन का एकाकी काटना और खाने पीने का ख्याल न रख पाना ऐसे कितने ही कारण थे जिन्होंने कमल को असमय बीमार कर दिया था ।
"बड़े गमले मत उठाया करो , तुम्हारी कमर पर जोर पड़ जाएगा ",विमला अक्सर कमल को आगाह करती ।
"कुछ नहीं होगा मुझे,तुम चिंता मत करो ,"घर के हर काम में विमला का हाथ बंटाने कों आतुर रहने वाला कमल झट से जवाब देता।
प्रिया के विवाह के बाद ,खासकर विवाह के कुछ वर्ष बाद उसके नए शहर में चले जाने के बाद कमल की सेहत कुछ गिरने लगी थी और विमला को चिंतित करने के लिए यह काफी था। गुड़िया की नौकरी लग गई थी पर उसके विवाह की जिम्मेदारी अभी पूरी करनी थी ।
राजकुमारी की तरह पाली गुड़िया को किसी के हाथ में सौंप देना कमल के लिए आसान नहीं था ।
कमर दर्द में बाहर धूप में लेटे लेटे कितनी ही बातें कमल को याद आतीं ।आज विमला और गुड़िया को जब वह दौड़ दौड़ कर अपनी सेवा में लगा देखता तो उसका मन रो उठता । जिसने आज तक एक गिलास पानी भी न मांगा हो ,उसके लिए थोड़ी सी भी सेवा कराना कितना कठिन होता है।
"मुझे नहीं पीना गाजर का जूस ,जाओ मना कर दो अपनी मम्मी को ",कमल अक्सर गुड़िया से शिकायत करता ।
गुड़िया जानती थी कि यह भी उसके पापा का मम्मी के लिए प्रेम ही बोल रहा है ।
विमला जूस का गिलास रखकर अक्सर शिकायत करती ,"कितना मना करती थी ,भारी काम मत करो,कभी कहना नहीं माना ,अब आपरेशन की स्थिति आ गई है,अब भी संभल जाओ ।"
ऐसे ही मीठी नोक झोंक में दस बरस गुजर गए ।कमल के तीन आपरेशन हुए और विमला की भी कमर झुक गई ।इसी बीच अस्पतालो के चक्कर में गुड़िया का भी विवाह हो गया ।प्रिया , गुड़िया के परिवारों के साथ तालमेल बिठाकर विमला ने कमल के इलाज में कोई कमी नहीं आने दी ।अपनी सूझबूझ और बुद्धिमत्ता से विमला ने अपने प्रेम के लिए सारे कर्तव्य बखूबी निभाए।
५५ साल से मिला कमल का एकांत प्रेम विमला में अद्भुत साहस भर चुका था और आज अस्पताल में भी दिन रात कमल की सेवा में भी वो उस अलौकिक आनंद का अनुभव कर पा रही थी ।
"अब तुम घर जाकर सो जाओ,सुबह जल्दी आ जाना ",कमल को अब भी विमला की फ़िक्र हो जाती ।
"मैं ठीक हूं,मेरी चिंता मत करो",अक्सर गुड़िया ने पापा को मम्मी से ऐसा कहते सुना था ।
विमला कमल की गिरती सेहत को देखकर कभी भयवश और कभी प्रेमवश थोड़ी रूठ भी जाती तो कमल बड़ी सरलता से उसे मना लेता ।दोनों एक उस अस्पताल के कमरे में घंटों बिता देते। चुलबुली,भोली भाली प्रिया अक्सर मां को कहती ,"आपके प्रति पापा का प्रेम कितना एकनिष्ठ है ,पापा अस्पताल की एक चाय भी आपके बिना नहीं पीते "।
"चलो आज आपको घुमाकर लाती हूं,दिन भर अस्पताल में बैठी रहती हो", प्रिया अक्सर अपनी मां को रूठकर ,मनाकर अपने साथ ले ही जाती ।
कमल भी सहर्ष विमला को घूम आने को कहता ,"जाओ आज प्रिया की बात मान लो,मैं ठीक हूं।आते हुए मेरे लिए जलेबी ले आना "।
विमला को पता था कि कमल उसे निश्चिंत कर के भेजना चाहते हैं,तभी उसे जलेबी की बात कहकर अपने ठीक होने का प्रमाण दे रहें हैं।
"विमला ,कुछ देर तुम भी आराम कर लो ,दिन भर जूस ,सूप में ही लगी रहती हो ",कमल अक्सर शिकायती अंदाज मे कहते ।
"तुम भी तो मेरे सिवाय किसी के हाथ का खाना पसंद नहीं करते ",झट से विमला मीठी सी उलाहना देती ।
"अस्पताल में भी विमला के हाथ से बना खाना चाहिए और विमला भी साथ बैठकर खाए ,ऐसा कैसे संभव हो सकता है ।"
"अब गर्म गर्म सूप लाई हूं , जल्दी से पी लो",अपनी आंख की कोर से टपकते आंसूओं को पोंछते हुए विमला गुड़िया को कमरे में बिठा कर रसोई घर में चली गई ।
"गुड़िया सूप बहुत ज्यादा है,थोड़ा तू पी लें " ।पापा की बात को कभी न टालने वाली गुड़िया ने झट से थोड़ा सूप पी लिया ।
कमल को अब गुड़िया में ही अपनी मां नजर आने लगी थी ,जैसे बचपन में कमल ने गुड़िया की हर जिद पूरी करी,वैसे ही अब गुड़िया कमल की छोटी छोटी जिद पूरी करने लगी थी ।बड़ी जिद पूरी करना और करवाना तब भी विमला और प्रिया के अधिकार क्षेत्र में था और आज भी उन दोनों के ही पास है ।
जीवन कभी आत्मनिर्भर ,सक्षम, स्वाभिमानी कमल को इतना लाचार बना देगा ,यह सोच सोच कर विमला अक्सर परेशान हो जाती थी ।पर उन परिस्थितियों में भी कमल का अटल प्रेम उसे अदम्य साहस से भरकर सही निर्णय लेने के लिए प्रेरित करता था ।
विमला जान गई थी कि अब यह साथ कुछ समय का ही है और उसने कमल के माया मोह जाल को काटने में भी कोई कमी नहीं छोड़ी।अपने संपूर्ण पौराणिक और गीता ज्ञान को उसने उसी कमल के एकांत प्रेम की तरह कब कमल को लौटा दिया ,कोई न जान सका ।
कमल एक छोटे बालक की तरह विमला शिक्षिका का प्रिय आज्ञाकारी छात्र हो गया और विमला ने भी सही समय आने पर अपने इस छात्र को "अप्प दीपो भव ", की सीख के साथ उस अटल राह के लिए तैयार कर दिया ।
यह कमल का एकांत प्रेम ही था जिसने विमला को ऊंचा उठाया और प्राणप्रिए कमल को परम पिता की गोद में शांति से सो जाने दिया ।