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आघात - 29

आघात

डॉ. कविता त्यागी

29

पूजा और रणवीर अपनी गृहस्थी की गाड़ी को घसीटते हुए उस मोड़ तक ले आये थे, जहाँ उनके बेटे प्रियांश और सुधांशु ने किशोर वयः में पदार्पण किया था । माता-पिता के परस्पर तनावपूर्ण सम्बन्ध अब उनके व्यक्तित्व के विकास में ही नहीं, उनकी शैक्षिक उन्नति के मार्ग में भी बाधक बनकर उभर रहे थे । विधि का दुष्चक्र ऐसा चल रहा था कि तनाव कम करने की दिशा में किया गया पूजा का हर प्रयास अपना प्रतिकूल प्रभाव डालकर तनाव को और अधिक बढ़ा देता था । तनाव के परिणामस्वरूप परिवार की आर्थिक दशा तंग हो गयी थी। आर्थिक तंगी का एक मुख्य कारण रणवीर द्वारा अर्जित किए हुए धन का अनियोजित ढंग से खर्च करना भी था । पूजा को अब तक यह ज्ञात नहीं था कि उसके पति की आय कितनी है ? और व्यय कितना है ? उसने यह जानने का कभी प्रयास भी नहीं किया था । इन सब बातों में उसकी रुचि नहीं थी । उसका कार्यक्षेत्रा केवल पति तथा बेटों की देखभाल करना तथा इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए घर में आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था करना था। पूजा इसमें सन्तुष्ट थी । वह असन्तुष्ट तब होती थी, जब रणवीर उसको घर की व्यवस्था के लिए पर्याप्त रुपये नहीं देता था ।

पूजा का घर बने हुए पर्याप्त समय बीत चुका था, किन्तु अभी तक रणवीर ने उसके पिता से लिये गये ऋण का अल्पांश भी नहीं लौटाया था। पूजा ने इस विषय में रणवीर से कई बार चर्चा भी की थी, किन्तु रणवीर हर बार कोई न कोई बहाना करके विषय को टाल देता था । वह कई बार घर में आय की अपेक्षा व्यय अधिक होने के कारण उसके पिता का ऋण नहीं लौटा पाने का बहाना कर चुका था । इन सब कारणों पर विचार करके पूजा ने अपने दोनों बेटों को कॉन्वेंट स्कूल से निकालकर उनका प्रवेश एक सामान्य ट्रस्टी स्कूल में दिया था, ताकि कुछ बचत हो सके और अपने वचनानुसार थोड़ा-थोड़ा करके पिता से लिया हुआ धन लौटाया जा सके । परन्तु धीरे-धीरे पूजा ने अनुभव किया कि रणवीर उसके पिता से ऋण के रूप में लिया हुआ रुपया लौटाना नहीं चाहता है। उसका यह अनुमान उस समय विश्वास में बदल गया, जब उसको पता चला कि रणवीर ने अपने भाई रणजीत को एक प्लॉट खरीदने के लिए आर्थिक सहयोग किया है ।

रणवीर द्वारा पूजा के पिता से घर बनाने हेतु लिया हुआ ऋण न लौटाकर अपने भाई को प्लॉट खरीदने में आर्थिक सहयोग करने और अपने बच्चों के भोजन-शिक्षा आदि की व्यवस्था करने के लिए घर में पर्याप्त पैसा न देने से पूजा अत्याधिक अप्रसन्न थी। रणवीर ने उसकी अप्रसन्नता को गम्भीरता से न लेकर स्वयं को सही सिद्ध करते हुए कहा -

‘‘वही व्यक्ति बुद्धिमान होता है, जो पहले अपनी कार्यसिद्धिकरता है ! जो ऐसा नहीं करता, मैं उसको मूर्ख समझता हूँ ’’

पूजा ने रणवीर के संवाद की व्याख्या अपने विचारानुसार करके प्रत्युत्तर में कहा -

‘‘आपके विचार से मेरे पिताजी मूर्ख थे ? उन्होने तुम्हें घर खरीदकर दिया और आप बुद्धिमान हो कि उन्हें वचन देकर भी उनसे लिया हुआ धन लौटाने की चिन्ता नहीं करते हो !’’

‘‘तुम्हे जो कुछ समझना है, तुम समझ सकती हो ! वैसे भी, मैंने किसी को कुछ वचन नहीं दिया था ! जो भी वचन दिया, तुमने दिया था !’’

‘‘हाँ, जो भी वचन दिया था, मैने दिया था ! परन्तु स्मरण करो, वह वचन मैंने तुम्हारे कहने पर दिया था !

‘‘ईश्वर ने तुम्हें स्वयं सोचने-समझने की बुद्धि नहीं दी, तो इसमें मैं क्या कर सकता हूंँ !’’

‘‘तुम्हारी दृष्टि में मैं भी मूर्ख हूँ और मेरे पिता भी ! लेकिन स्वयं तुमने जो कुछ अभी-अभी कहा है, उसके अनुसार तुम हमारी अपेक्षा अधिक मूर्ख हो ! मेरे पिताजी ने तो अपनी बेटी का घर बसाया था, जो हर पिता करता है ! लेकिन तुम ? तुम अपने बच्चों के लिए पिता के कर्तव्य भी पूरे नहीं कर सकते ! तुम से अधिक मूर्ख, ढीठ कोई हो सकता है ? और तुम्हारा भाई ? वह तुम्हें मूर्ख बनाकर अपनी कार्यसिद्धि कर रहा है !"

दम्पति में इसी प्रकार कुछ देर तक आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहा । चूँकि उस बहस को पूजा-रणवीर दोनों में से कोई भी इतना नहीं बढाना चाहते थे कि बात बिगड़ जाए और दोनों के बीच कड़वाहट बढ़ जाए ! अतः पूजा वहाँ से हटकर दूसरे कमरे में चली गयी और रणवीर भी अपना कोई कार्य करने के लिए घर से बाहर निकल गया।

शाम को रणवीर समय पर घर लौट आया । पूजा ने भी अपने घरेलू दायित्वों का निर्वाह ठीक प्रकार से किया । अगले दिन ‘रात गयी-बात गयी’ के आधर पर उन दोनों के शिकायत-शिकवे पुराने पड़ गये। गृहस्थ जीवन आगे बढ़ने लगा । पूजा का सारा ध्यान अपने बेटों पर केन्द्रित रहता था, ताकि बच्चे स्वस्थ रहें और शिक्षा प्राप्त करके उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो सकें। ऐसा करके वह रणवीर की ओर से मिलने वाले तनाव से भी मुक्त रह पाती थी।

रणवीर और पूजा की गृहस्थी अब ऐसी चल निकली कि गाड़ी के पटरी से उतरने की सम्भावना नगण्य-सी लगने लगी थी क्योंकि पूजा अब फिर से रणवीर पर विश्वास करने लगी थी। रणवीर एक-एक सप्ताह तक घर से बाहर भी रहता था, तब भी पूजा उस पर सन्देह नहीं करती थी। रणवीर भी दोनों बेटों सहित पूजा के साथ सामान्य व्यवहार करता था। धन का अभाव परिवार में अभी भी बना हुआ था, जिसका कारण रणवीर काम की मंदी बताता था । पूजा उसकी बात का विश्वास कर लेती थी ।

दूसरी ओर, रणवीर और पूजा दोनों ही प्रौढ़ता की ओर बढ़ चले थे और बच्चे किशोरावस्था को प्राप्त हो रहे थे। ऐसी स्थिति में हर मनुष्य यही आशा करता है कि गृहस्थी की गाड़ी अब पटरी से नहीं उतरेगी । किन्तु .........!

एक दिन अचानक एक ऐसी अप्रत्याशित घटना घटित हुई, जिसने उन दोनों के प्रेमपूर्ण सम्बन्धों में पुनः सन्देह की दरार डाल दी। अपनी रसमयी गृहस्थी में तन्मय पूजा को अचानक ज्ञात हुआ कि रणवीर परिवार के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह पूर्ण निष्ठा एवं ईमानदारी से नहीं कर रहा है। दिन रणवीर के कपडे़ धोते समय पूजा को उसकी जेब से मात्र एक दिन पूर्व फर्नीचर खरीद की सत्तर हजार रुपये के भुगतान की पर्ची मिली । पूजा के संज्ञान में वह फर्नीचर न तो रणवीर ने अपने ऑफिस के लिए खरीदा था, और न अपने घर के लिए। इस विषय में उसने रणवीर से पूछने का निश्चय किया। रणवीर को यह अनुमान नहीं था कि बिल भुगतान रसीद पूजा देख चुकी है, इसलिए वह इस विषय में किसी भी प्रश्न का उत्तर देने के लिए तैयार नहीं था। इस विषय में पूजा द्वारा अचानक पूछे जाने पर पहले तो वह सकपकाया और फिर अपना नियंत्रण खोकर पूजा को भला बुरा कहते हुए कि वह व्यर्थ ही में उस पर सन्देह कर रही है, उसके साथ अनपेक्षित व्यवहार करने लगा । रणवीर के इस व्यवहार से पूजा का सन्देह और अधिक गहराने लगा था। सन्देह के भाव उसके चेहरे पर स्पष्ट उभरने लगे थे।

पूजा की भाव-भंगिमा देखकर रणवीर को तुरन्त अपनी भूल का आभास हो गया। अपनी भूल को सुधारने के लिए उसने संयत व्यवहार करते हुए पूजा को बताया कि वह फर्नीचर उसने अपने एक मित्र के लिए खरीदा था। उस समय रणवीर ने अपने मधुर व्यवहार से पूजा का सन्देह दूर करने का भरसक प्रयास किया था, जिसमें वह आंशिक रूप से सफल भी हुआ था। किन्तु, विश्वास का धागा बार-बार टूटता और जुड़ता रहा था, इसलिए रणवीर के प्रति पूजा के प्रेम-विश्वास में अब अनेक गाँठे पड़ चुकी थीं।

रणवीर का स्पष्टीकरण पाकर पूजा का व्यवहार भी सामान्य हो गया था। यद्यपि रणवीर के प्रति पूजा का प्रेम एकनिष्ठ था, फिर भी उसके विश्वास में सन्देह का अम्ल पड़ चुका था, जो अनुकूल तापमान पाते ही अपना प्रभाव दिखाने की सामर्थ्य रखता था। उसको अनुकूल तापमान शीघ्र ही मिलने की सम्भावना भी बढ़ रही थी, क्योंकि पूजा अपने सन्देह को पुष्ट करने के लिए इस बार प्रमाण ढूँढने में तन-मन से लगनशील थी। अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करने के लिए वह प्रायः रणवीर की जेबें और फाईलें सावधनी पूर्वक खँगालती रहती थी । अपने इस तलाशी अभियान में वह सदैव इस बात का ध्यान रखती थी कि रणवीर को उसके सन्देह की भनक न लगे, क्योंकि वह इस विषय पर रणवीर से कोई वाद-विवाद नहीं चाहती थी।

रणवीर के साथ किसी भी विषय पर वाद-विवाद से बचने के लिए एक माह तक पर्याप्त सावधनी बरतने के बावजूद भी पूजा परिस्थिति पर नियन्त्रण रखने में असफल हो गयी। वह अपने घर में क्लेश नहीं चाहती थी, पर ऐसा करने के लिए वह विवश हो गयी। प्रियांश के विद्यालय में होने वाली अभिभावक-गोष्ठी में जाने के लिए रणवीर कई दिन पहले ही वचन दे चुका था, लेकिन गोष्ठी के दिन उसने प्रियांश को डाँटकर वहाँ जाने से इन्कार कर दिया। अपने पिता के इन्कार से मायूस प्रियांश को आश्वस्त करते हुए पूजा ने रणवीर से गोष्ठी में चलने का आग्रह किया और उसको समझाने का प्रयास किया कि उसने बेटे को डाँटकर उचित नहीं किया है ! रणवीर को पूजा का बेटे के पक्ष में बोलना प्रिय न लगा, इसलिए वह क्रोधित हो गया और गोष्ठी में चलने के पूजा के आग्रह को कठोरतापूर्वक ठुकराकर उसको खरी-खोटी कटु बातें सुनाता हुआ घर से निकल गया।

यद्यपि पूजा उस दिन रणवीर के नाराज होने में अपनी गलती का अनुभव नहीं कर रही थी, परन्तु परिवार को तनावमुक्त रखने के उद्देश्य से पूजा के समक्ष अपनी गलती मानकर क्षमा प्रार्थना करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प न था। रणवीर के घर से जाने के बाद पूजा अपने दोनों बेटों के साथ आर्थिक तनाव से जूझ रही थी, इसलिए रणवीर को घर बुलाने के लिए पूजा ने उससे कई बार घर लौटने का निवेदन किया और अपने व्यवहार के लिए क्षमा प्रार्थना की । तब चार पाँच-दिन बाद वह घर वापिस लौटकर आया ।

चार-पाँंच दिन पश्चात जब रणवीर घर लौटा, तो सवा महीने पूर्व की घटना की अचानक ही फिर पुनरावृत्ति हो गयी ! रणवीर की जेब से पूजा को पुनः एक पर्ची मिली, जिसमें वाणी के नाम से विद्युत निगम को एक बड़ी धनराशि का भुगतान किया गया था। उस पर्ची को देखते ही पूजा के तन-बदन में क्रोध की ज्वाला दहकने लगी। क्रोध के आवेश में वह स्वयं के ऊपर संयम रखने में इतनी असमर्थ हो गयी कि इस बार उसने रणवीर से न तो कुछ पूछा और न ही उससे किसी प्रकार के स्पष्टीकरण की आशा की, बल्कि उस पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा -

‘‘वाणी के साथ तुम्हारा सम्बन्ध अभी तक पहले की तरह ही चल रहा है ! उसके साथ तुम्हारे अवैध सम्बन्धों का प्रमाण यह स्लिप है !’’ पूजा को आज वह प्रमाण मिल चुका था, जिसको प्राप्त करने के लिए वह पिछले एक महीने से प्रयास कर रही थी । आज इस प्रमाण को पाकर वह स्वयं को सशक्त अनुभव कर रही थी।

परन्तु,.पूजा यह भूल गयी थी कि अभी भी वह आर्थिक रूप से रणवीर पर ही निर्भर है । जबकि रणवीर को यह उस समय भी अहसास था कि न केवल स्वयं का पेट भरने के लिए, बल्कि अपने कलेजे के टुकड़ों का भरण-पोषण करने और पढ़ाने-लिखाने के लिए भी पूजा उसका अत्याचारी शासन अवश्य ही स्वीकार करेगी । रणवीर ने अपने इस विश्वास को चित्त में धारण करते हुए पूजा के क्रोध में कहे गये शब्दों का उत्तर उसी भाषा में देते हुए कहा-

‘‘हाँ, मेरा और वाणी का सम्बन्ध अभी भी पहले जैसा मधुर है !’’

‘‘अपनी पत्नी और बच्चों के लिए आपके पास रुपये नहीं हैं ! आप अपने बच्चों की स्कूल-फीस समय पर नहीं दे सकते ! छोटी-छोटी चीजों के लिए बच्चे तरसते रहते हैं ! मैं जाना चाहती हूँ, अपनी उस प्रेमिका के लिए इतनी बड़ी धनराशि खर्च करने में आपको कोई कठिनाई क्यों नहीं हुई ?’’

‘‘इसलिए कोई कठिनाई नहीं हुई, क्योंकि मैं उसको अभी भी प्रेम करता हूँ ! ..... और तुम्हारी तसल्ली के लिए बता दूँ कि पिछले महीने सत्तर हजार का फर्नीचर भी मैने उसी के लिए खरीदा था !’’

‘‘ तुमने तो कहा था कि............!’’

‘‘कि फर्नीचर मैने अपने एक मित्र के लिए खरीदा था ! यही न ?’’

‘‘तो, उस समय तुमने मुझसे झूठ बोला था ?’’

‘‘नहीं, मैने तब भी सच कहा था और अब भी सच कह रहा हूँ ! वाणी ही मेरी वह अभिन्न मित्र है, जिसके लिए तब मैंने फर्नीचर खरीदा था और मैं उसके लिए कुछ भी कर सकता हूंँ !’’

‘‘कुछ भी कर सकते हो ? आखिर तुम कहना क्या चाहते हो ? क्या मतलब है तुम्हारे कुछ भी कर सकने का ?’’

‘‘मेरा सीधा और स्पष्ट मतलब है ! मैं उसके लिए वह सब-कुछ कर सकता हूँ और करुँगा, जो वह मुझसे चाहती है और जो मुझसे अपेक्षा रखती है !’’

‘‘कल वह यदि हमारा साथ छोड़कर तुम्हें अपने साथ रहने के लिए कहे ?’’

‘‘तो मैं ऐसा भी कर सकता हूँ !’’

‘‘इतना धोखा ! इतना पतन !’’ रणवीर की बातें सुनकर प्रतिक्रियास्वरूप पूजा इतना ही कह पायी थी, फिर वह अचेत होकर वहीं गिर पड़ी।

पूजा को अचेतावस्था में देखकर शायद रणवीर को कुछ ग्लानि हुई, इसलिए उसने डॉक्टर को बुलाकर उसका परीक्षण कराया। उसकी चेतना लौटने पर रणवीर ने राहत की साँस ली । पूजा भी चेतना लौटने पर पति को अपने पास बैठा हुआ पाकर कुछ सन्तुष्ट हुई । उसने कातर दृष्टि से रणवीर की ओर देखते हुए अपना क्षोभ प्रकट किया, तो रणवीर ने भी ग्लानिपूर्वक पूजा की ओर देखा तथा फिर गर्दन झुकाकर कहा -

‘‘पूजा, वाणी के साथ अब मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है ! उस बिल का पेमेंट भी मैंने नहीं किया था !’’

‘‘आपकी जेब में वह स्लिप ....?’’

‘‘इसके विषय में मैं तुम्हें बाद में सब-कुछ बता दूँगा, पहले तुम स्वस्थ हो जाओ !’’

‘‘मैं बिल्कुल ठीक हूँ और सब कुछ अभी जानना चाहती हूँ कि वाणी के विद्युत-बिल के भुगतान की रसीद आपकी जेब में क्यों थी ?’’

‘‘पूजा, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो कि मैं तुम्हें बिना बताये अपनी कमाई किसी अन्य पर खर्च करूँगा !’’

रणवीर ने पूजा को समझाने का भरसक प्रयास किया, परन्तु पूजा अपनी हठ पर अड़ी रही कि उसने वाणी के बिल का भुगतान क्यों किया ? यदि उसने वाणी के बिल का भुगतान नहीं किया, तो उसके भुगतान की रसीद रणवीर के जेब में कैसे पहुँची ? आदि प्रश्नों पर वह रणवीर से स्पष्टीकरण माँगती रही । पूजा की हठ को देखकर रणवीर ने पूजा के पक्ष में अपना स्पष्टीकरण देकर उसको सन्तुष्ट करना ही उचित समझा। इसलिए उसने एक ऐसी मनगढंत कहानी पूजा को सुनायी, जिससे पूजा का सन्देह कम हो जाए और वह थोड़ी-सी राहत का अनुभव कर सके। रणवीर ने पूजा को बताया -

‘‘मैनें अपने नौकर रामू को अपने ऑफिस का विद्युत बिल जमा करने के लिए भेजा था। वहाँ पर विद्युत बिल जमा करने वालों की लम्बी लाइन लगी हुई थी । रामू भी उस लाइन का एक भाग बन गया था । वाणी रामू से भली-भाँति परिचित थी । वाणी ने भीड़ भरी लम्बी लाइन में खडे़ होने से बचने के लिए रामू से निवेदन किया कि वह उसका बिल भी जमा कर दे। चूँकि रामू भी वाणी से परिचित था, इसलिए वह वाणी का निवेदन ठुकरा न सका और उसका बिल जमा करने के लिए तैयार हो गया। वाणी के बिल का भुगतान करने के पश्चात् रामू ने देखा कि वाणी प्रतीक्षा करके वहाँ से जा चुकी थी। वहाँ से लौटकर रामू ने सारी घटना की जानकारी मुझे दी और बिल-भुगतान की स्लिप वाणी को लौटाने के लिए मेरी जेब में रख दी।’’

एक छोटी-सी काल्पनिक कहानी सुनाकर रणवीर ने एक रहस्यमयी दृष्टि पूजा पर डाली और बच्चों की भाँति निष्कपट, निःछल तथा भोली-सी मुद्रा बनाकर पुनः कहा -

‘‘मुझे क्या पता था कि तुम मुझ पर सन्देह करने लगोगी और अपनी यह दशा बना लोगी ! यदि मुझे ऐसा पता होता, तो मैं यह स्लिप रामू से लेता ही नहीं !’’

पति की भोली-भाली मुद्रा के साथ मधुर सम्भाषण तथा प्रेमपूर्ण व्यवहार से उस समय पूजा का क्षोभ कम हो गया। यहाँ तक कि उस समय वह स्वयं अपने व्यवहार के प्रति ग्लानि से भर गयी और घर के वातावरण को तनावपूर्ण बनाने के रणवीर के आरोप को अब वह स्वयं पर स्वंय ही आरोपित करने लगी।

डॉ. कविता त्यागी

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