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आघात - 35

आघात

डॉ. कविता त्यागी

35

लगभग एक वर्ष पश्चात् एक दिन अचानक एक अप्रत्याशित घटना ने पूजा के जीवन की धारा बदलकर उसके दिशाहीन दाम्पत्य-जीवन को एक नयी दिशा प्रदान कर दी। उस दिन रणवीर को घर से गये हुए एक महीना से अधिक समय बीत चुका था। पूजा ने उससे फोन पर सम्पर्क किया, तो उसने बताया कि वह शहर से बाहर है और अभी वापिस लौटने के विषय में कोई निश्चित समय नहीं बताया जा सकता। उस समय रात के दस बजे थे। दोनों बच्चे सो चुके थे। पूजा अभी तक रणवीर के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। रणवीर के लौटकर न आने की सूचना पाकर पूजा भी दरवाजा बन्द करके अपने बिस्तर पर आकर लेट गयी।

पूजा सोने का प्रयास कर रही थी, किन्तु उसकी आँखों में दूर-दूर तक नींद नहीं थी । अपने और बच्चों के भविष्य को लेकर उसके नकारात्मक विचार उसकी नींद में बाधा डाल रहे थे। उसने एक बार फिर सिर को झटक कर निश्चय किया कि अब वह कुछ भी नहीं सोचेगी। तभी दरवाजे की घंटी बजी। इस समय किसी के आने की कोई पूर्व सूचना न थी, न ही किसी के आने की सम्भावना थी, इसलिए घंटी सुनकर एक क्षण के लिए पूजा भय से काँप उठी -

‘‘रणवीर ने भी आज लौटकर आने के लिए मना किया है ! इस समय कौन हो सकता है ?’’ यह सोचकर पूजा पुनः घंटी की आवाज सुनने की प्रतीक्षा करने लगी। कुछ क्षणोपरान्त पुनः घंटी बज उठी । इस बार पूजा ने दरवाजे पर जाकर देखना उचित समझा । वह बिस्तर से उठी और साहस करते हुए धीमे-धीमे कदमों से दरवाजे के निकट जाकर भय से काँपते हुए कृत्रिम कठोरता से पूछा -

‘‘कौन है ?’’

‘‘मैडम जी, मैं ! रामू !’’

‘‘रामू ?’’

पूजा रामू को अच्छी प्रकार से जानती थी और उसकी आवाज भी पहचानती थी। वह रणवीर के ऑफिस में अनेक कार्य- गार्ड का कार्य, र्क्लक का कार्य, ड्राइवर का कार्य और चौकीदारी का कार्य करता था । वह रणवीर का विश्वासपात्र और शुभचिन्तक था । अतः पूजा ने दरवाजा खोलकर सामने खडे़ रामू से आश्चर्य से पूछा -

‘‘तुम ? इस इस समय यहाँ ?’’

‘‘हाँ जी ! मैडम जी, मैं सर की गाड़ी की चाबी देने के लिए आया था। मुझे अभी सूचना मिली है कि मेरी पत्नी बहुत बीमार है ! वहाँ पर मेरी बूढ़ी माँ के सिवा उसकी देखभाल करने वाला कोई भी नहीं है ! एक बेटा है, वह अभी बहुत छोटा है । पत्नी के लिए मुझे इसी समय अपने गाँव जाना पड़ेगा ! इसीलिए मुझे चाबी देने के लिए इस समय यहाँ आना पड़ा, वरना् मैं आपको डिस्टर्ब करने की गलती कभी नही करता !’’

‘‘सर कहाँ है ?’’

‘‘मैडम जी, उन्हें मैं शाम छः बजे उनके दूसरे घर पर छोडकर गाड़ी को ऑफिस मे ले आया था। वह घर ऑफिस से बहुत दूर है और मैं इस समय बहुत जल्दी में हूँ और गाँव के लिए मुझे यहाँ से आराम से सवारी मिल जाएगी ! अब रात में वहाँ जाता तो, मुझे पैदल चलते हुए फिर यहीं पर लौटकर आना पड़ता ! इसलिए इस समय मुझे वहाँ जाना उचित नहीं लगा !’’

‘‘दूसरे घर पर !’’

बातें करते-करते पूजा ने रामू से दूसरे घर का पता ज्ञात कर लिया । रामू द्वारा बताये गये पते को सुनकर पूजा के अंतस् को यकायक आघात लगा । किन्तु, उसने स्वयं को सन्तुलित करते हुए एक लम्बी साँस ली और अपने अन्दर के ज्वार को दबाने का प्रयत्न किया। फिर भी पूजा की आँखों से आँसू की बूँद टपक पड़ी और गला रुँध गया। उसकी ऐसी दशा देखकर रामू घबराकर बोला -

‘‘मैड़म जी, आपकी तबियत तो ठीक है ?’’

‘‘हाँ, मैं ठीक हूँ ! बस, यूँ ही थोडा-सा ........!’’

यह कहते हुए पूजा ने रामू को घर के अन्दर बुला लिया। रामू को अन्दर बुलाकर वह उससे लगभग आधा घंटा तक बातें करती रही। उसने रणवीर के विषय में रामू से विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त की, तो उसको ज्ञात हुआ कि पिछले एक सप्ताह से रणवीर प्रतिदिन शाम छः बजे वाणी के घर जाता था । उसका ड्राइवर रामू उसको प्रतिदिन शाम को वहाँ छोड़कर आता था और प्रातः नौ बजे उसको वाणी के घर से लेकर ऑफिस में छोड़ता था। रामू ने पूजा को यह भी बताया कि वह वाणी को रणवीर की दूसरी पत्नी के रूप में पहचानता है, क्योंकि पिछले कई वर्षों से वह रणवीर को वाणी के घर पर छोड़ता रहा है और वाणी भी रणवीर के ऑफिस में अक्सर आती रहती है। साथ ही वह सदैव ऑफिस में आकर रणवीर की पत्नी के रूप में अपना परिचय देती है और रणवीर भी उसके साथ पति-पत्नी का-सा व्यवहार करता है। यहाँ तक कि जिस घर में वाणी रहती है, उस पर बैंक के ऋण की मासिक किश्तों का भुगतान प्रत्येक माह रणवीर ही करता है। रणवीर के विषय में पर्याप्त जानकारी लेने के पश्चात् पूजा ने रामू से गाड़ी की चाबी ले ली और उसको जाने की आज्ञा दे दी।

विवाह होने के बाद से आज तक पूजा के समक्ष रणवीर के अनेकानेक रहस्य खुल चुके थे। उसके प्रत्येक रहस्योद्घाटन के बाद पूजा को एक बड़ा आघात लगता था और प्रत्येक आघात के कुछ समयोपरान्त वह सामान्य हो जाती थी। यद्यपि उसके सामान्य होने की प्रक्रिया में रणवीर के मधुर संभाषण और सौम्य-व्यवहार की महती भूमिका रहती थी, तथापि उसकी उस छद्म मधुरता और सौम्यता पर उसके कलुषित चरित्र का अगला रहस्योद्घाटन सदैव भारी पड़ता था।

इतने वर्षों तक पूजा इसी प्रकार एक के पश्चात् एक आघात सहती रही थी और अपने दुर्भाग्य से संघर्ष करती हुई भाग्योदय की आशा में प्रतिकूल परिस्थितियों से सामंजस्य करती रही थी। उसने निश्चय किया -

‘‘आज मैं चुप नहीं बैठ सकती थी ! मुझे अपने पति के अनुचित मार्ग पर बढ़ चुके कदमों को वापिस लौटाना ही होगा ! रणवीर के इस अक्षम्य अपराध को भूलकर मुझे अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए ; अपने पति को वापिस लाने के लिए जाना ही होगा ! अपने पति को पतन के गर्त में गिरने के लिए छोड़कर और अपने परिवार को - अपने गृहस्थ-जीवन को बर्बाद होते देखकर मैं चुप नहीं बैठ सकती !’’

पूजा के सूक्ष्म मन तथा स्थूल शरीर में उस रात मानों किसी दैवी शक्ति का संचार हो रहा था। उसी शक्ति से प्रेरित होकर उसने अपने दोनों बेटों - प्रियांश और सुधांशु को जगाकर गाड़ी में बिठाया और स्वयं गाड़ी ड्राइव करके वाणी के घर पहुँच गयी। रणवीर और वाणी अनुमान भी नहीं लगा सकते थे कि रात के ग्यारह बजे पूजा वहाँ अपने दोनों बेटों के साथ पहुँच सकती है। वहाँ पर पहुँच कर पूजा ने दरवाजे की घंटी बजायी। दरवाजा खोलने के लिए रणवीर आया था। पूजा को अपने सामने दरवाजे पर खड़ा देखकर रणवीर अवाक् रह गया। घर के अन्दर से वाणी ने आवाज लगाकर पूछा -

‘‘रणवीर ! कौन आया है, इतनी रात में ?’’ रणवीर ने वाणी के प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। उसकी आवाज ने पूजा को देखते ही उसका साथ छोड दिया था। अतः कुछ बोले बिना और कोई प्रतिक्रिया दिये बिना ही वह दरवाजे से बाहर निकल आया और सड़क की ओर चल पड़ा। रणवीर के पीछे-पीछे पूजा और उसके दोनों बेटे भी सड़क की ओर चल पडे़। गाड़ी के पास आकर पूजा ने रणवीर का हाथ पकडकर उसे रोक लिया और मधुर-विनम्र किन्तु अधिकारपूर्ण स्वर में कहा -

‘‘चलिये ! गाड़ी में बैठिये और घर चलिए !’’

रणवीर ने पूजा के हाथ से अपना हाथ छुड़ा लिया और कठोर मुद्रा बनाते हुए क्षण-भर पूजा की ओर क्रोध से उबलती आँखों से घूरता रहा। एक क्षण पश्चात् वह स्वयं को सशक्त सिद्ध करते हुए अपने एक-एक शब्द पर जोर देकर बोला -

‘‘पूजा ! तुझे यहाँ आने की भारी कीमत चुकानी पडे़गी ! और वह समय शीघ्र ही आयेगा, जब तुझे एहसास होगा कि यहाँ आकर तूने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की है !’’

यह कहते हुए रणवीर तेज कदमों से चलते हुए आगे बढ़ गया और पूजा बच्चों के साथ अपना अभीप्सित प्राप्त करने में असफल होकर निराश मन से घर लौट आयी। वाणी के घर जाने से पहले उसमें एक आशा थी, उत्साह था कि वह अपने पति को चारित्रिक और सामाजिक पतन की दलदल से बाहर निकाल कर सदैव के लिए अपने पास, उसके बच्चों के पास ले आयेगी । परन्तु वहाँ से लौटकर उसके मन-मस्तिष्क पर नैराश्य का साम्राज्य हो गया था ।

अपने पति को अपने पास वापिस लौटाकर लाने में विफल पूजा अपनी नैराश्यपूर्ण स्थिति से निकल भी नहीं पायी थी कि उस घटना के एक सप्ताह पश्चात पूजा के घर पर एक डाक आयी। पूजा ने सामान्य डाक समझकर डाकिये से उसे ले लिया । लिफाफा खोलकर पत्र को पढ़ने के बाद पूजा को पता चला कि वह पत्र विवाह-विच्छेद की माँग करते हुए कोर्ट के माध्यम से रणवीर ने भेजा है ! पत्र पढ़कर सामान्य गृहिणी और पतिव्रता पूजा के हृदय पर पति के विश्वासघाती व्यवहार और उसके साथ घर न आने पर क्रोध मिश्रित निराशा का भार बढ़ गया था, क्योंकि उसके हृदय की गहराइयों के किसी कोने में आज भी पति के प्रति अथाह प्रेम बसा था। उसकी व्यथा कम नहीं हो पा रही थी। परन्तु, आज भी, जबकि वाणी के घर पर घटित घटना के एक सप्ताह पश्चात् तक रणवीर पूजा के पास नहीं लौटा था, उसे यह अनुमान नहीं था कि रणवीर उसके पास कोर्ट के द्वारा तलाक के पेपर भेज सकता है ! यही नहीं, तलाक के पेपर देखकर भी उसे यही विश्वास था कि रणवीर उससे तलाक लेना नहीं चाहता है ! वह सोचने लगी -

"इससे क्या फर्क पड़ता है कि मेरा पति मुझसे तलाक लेना चाहता है या नहीं ! मेरे हृदय और जीवन पर आज केवल इस बात का प्रभाव पड़ता है कि मेरा पति - मेरे बच्चों का पिता अपने परिवार को और उस परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों को भूलकर किसी अन्य स्त्री के साथ रह रहा है ! वह अपने समय और धन को उसके लिए लुटा रहा है, जबकि यहाँ उसका अपना परिवार एक-एक पैसे के लिए तरसता है! बच्चे अपने पिता के स्नेह के लिए तड़पते रहते हैं और अपनी जीवन-वृत्ति हेतु दूसरों पर निर्भर करते है !"

दिन-रात अपने नैराश्य में डूबी हुई पूजा कोर्ट द्वारा भेजे गये विवाह-विच्छेद-पत्र की निर्धरित तिथि तक अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं कर सकी। अपनी अज्ञानतावश वह न तो कोर्ट में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकी और न ही प्रतिक्रियास्वरूप उसने अपनी ओर से रणवीर के प्रति कोई शिकायत ही दर्ज करायी। पूजा की इस भूल का परिणाम यह हुआ कि एक सप्ताह पश्चात् पुनः कोर्ट के माध्यम से उसके पास दूसरा पत्र आया कि यदि अगली निर्धरित तिथि में वह कोर्ट में उपस्थित नहीं होगी, तो कोर्ट उसे विवाह-विच्छेद के लिए सहमत मानकर रणवीर के पक्ष में अपना निर्णय देने के लिए बाध्य होगा। इस पत्र ने पूजा के समक्ष एक नयी समस्या उत्पन्न कर दी थी। अब उसे कुछ नहीं सूझ रहा था कि इस स्थिति में वह क्या करे ? क्या न करे ? वह इसी ऊहापोह में बैठी हुई थी, तभी वहाँ पर उसके पिता आ पहुँचे। पिता को देखते ही पूजा का धैर्य छूट गया और वह फफक-फफक कर रोने लगी। कुछ देर पश्चात् शान्त होकर उसने कौशिक जी को सारी स्थिति से यथातथ्य अवगत कराया । वे भी चिन्ता में डूबकर बोले -

"जीवन-भर बेटी के परिवार का आर्थिक-भार वहन करने में मुझे इतना कष्ट नहीं होता, जिसको सहन न किया जा सके। किन्तु अपनी बेटी की गृहस्थी को बर्बाद होते हुए देखने की पीड़ा मैं कदापि सहन नहीं कर पाऊँगा!"

पिता ने अपनी विवशता और पीड़ा को व्यक्त करने के पश्चात् पूजा को समझाया -

‘‘बेटी, पति-पत्नी के बीच में छोटा-सा मतभेद ही बहुत बड़ी दूरी का कारण बन जाता है ! वह दूरी स्वयं नहीं बढ़ती, दोनों का अहंकार उसको बढ़ाता है ! जैसे-जैसे यह अहंकार बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उन दोनों के बीच की दूरी बढ़ती जाती है ! जब यह दूरी तथा तनाव एक सीमा को पार कर जाता है तो सम्बन्ध टूटने की स्थिति में आ जाता है, जैसा कि तुम्हारे और रणवीर के सम्बन्ध में हो रहा है ! सम्बन्ध टूटने की स्थिति में होने पर भी कोई यह शतप्रतिशत नहीं कह सकता कि अमुक दम्पत्ति में परस्पर प्रेम नहीं है ! तुम अपने विषय में यह भली-भाँति अनुभव कर सकती हो ! फिर भी, प्रेम की डोरी से बँधे हुए दाम्पत्य-सम्बन्ध को तुम दोनों इतना खींचते चले गये कि अन्त में टूटने की स्थिति आ गयी है ! बेटी, मेरे विचार से अब तक जो कुछ भी हो चुका है, उसको तो नहीं बदला जा सकता, परन्तु भविष्य में होने वाले उन अशुभ-अनचाहे परिणामों को रोकने का प्रयास तो किया जा सकता है, जिनका संकेत तुम्हें आज मिल रहा है। उस विनाश को रोकने का प्रयास किया जा सकता है, जो तुम्हारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा है ! यह सब कुछ तभी सम्भव है, जब तुम अपने क्रोध और अहंकार पर विजय प्राप्त करके अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए थोड़ा-सा झुक जाओ ! अपने क्रोध तथा अहंकार पर विजय प्राप्त करके यह सम्भव है कि तुम रणवीर के हृदय पर भी विजय प्राप्त कर सको ! मनुष्य झुककर ही दूसरों को झुका सकता है !’’

‘‘विवाह होने से लेकर आज तक मैं झुकती ही तो रही हूँं ! मेरे झुकने का ही तो परिणाम है कि मुझे शहर से बाहर होने की सूचना देकर दस-दस दिन तक वे अपनी प्रेमिका वाणी के घर पर रहते हैं ! अपनी आय का बड़ा भाग उसके लिए खर्च करके हमारे खर्च के लिए कम्पनी में घाटा होने का बहाना करते हैं ! मेरे बच्चे पिता के प्यार के लिए तरसते रहते हैं और वे शहर में रहते हुए भी दस-दस दिन तक अपनी शक्ल नहीं दिखाते !’’

‘‘बेटी, खर्च की चिन्ता तुम मत करो ! अपने खर्च की चिन्ता तुम मुझ पर छोड़ दो ! तुम केवल अपने और रणवीर के बीच की दूरियाँ कम करने का प्रयास करो !’’

‘‘पिताजी, अब यह सम्भव नहीं है !’’

‘‘क्यों सम्भव नहीं है?

‘‘क्योंकि वाणी के पति का देहान्त हो चुका है। इस समय उसको रणवीर की आवश्यकता है । वह सरलता से रणवीर को अपने जाल से मुक्त नहीं होने दे सकती ! वाणी पर अब न किसी का कोई प्रतिबन्ध् है, न रणवीर से दूर रहने का किसी प्रकार का दबाव है ! उल्टे हर तरह से उसको रणवीर के साथ की आवश्यकता है ! इसलिए जब तक वह रणवीर को आर्थिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से दिवालिया नहीं कर देगी, तब तक वह नहीं छोडे़गी ! जब तक रणवीर पर उसकी पकड़ कम नहीं होगी, तब तक मैं कितना भी प्रयत्न कर लूँ, वह अपने पूरे तन-मन-धन से घर नहीं लौट सकते !" पूजा ने निराशा के स्वर में कहा।

‘‘बेटी ! अभी पूरा नहीं, तो थोड़ा ही सही ! बुजुर्गों ने कहा है, ‘सारा जाता जानके आधा लेना बाँट।’ जो कुछ जायेगा, तेरा ही जाएगा ! पूरा न मिलने के क्षोभ में आधा खोना, मुझे ठीक नहीं लगता है ! पहले आधा समेट लो, फिर शेष आधे को वापिस लेने का प्रयास करते रहो, जब तक पूरा न मिले !’’

"ठीक है ! आप कहते हैं, तो मैं प्रयास करूँगी !’’

अपने पिता के समक्ष पूजा ने कह तो दिया था कि वह रणवीर को घर लाने का प्रयत्न करेगी, किन्तु वह भली-भाँति जानती थी कि अब न तो रणवीर को वापिस लाना सम्भव है और न ही अब वह उसे वापिस लाने का प्रयास करेगी। वह निश्चय कर चुकी थी कि एक अन्य स्त्री के साथ अवैध सम्बन्ध रखने के बावजूद अपना दोष नहीं स्वीकारने के बजाय उल्टे उसी को झुकाने की रणवीर की योजना को वह सफल नहीं होने देगी। परिणाम कुछ भी हो, वह अब पति कहलाने वाले विश्वासघाती पुरुष के समक्ष नहीं झुकेगी!

डॉ. कविता त्यागी

tyagi.kavita1972@gmail.com

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