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अलफ़ाज़-ए-आवाज़

ना फ़िक्र हैं ना फ़क्र हैं... !
तन्हाइयों में तिरा ज़िक्र हैं... !!
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वो गुज़रे ज़माने भी क्या याद आते हैं... !
अब लोग मुझें मुड़ मुड़ कर देख चले जाते हैं... !!
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वो शहर ए शाम रंगीन हुई आम ए खाश के लिए
मचले हैं उदास दिल इश्क ए खाश के लिए
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मिरे शब्दों की आजमाइश सिर्फ इतनी सी हैं
वो मचलते हैं रात दिन कलम और कागज के बीच.. !
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ये हसरतें निगाहों की पूरा हो जानें दो... !
नज़रे ना फेरो मिरे इश्क़ को पूरा हो जानें दो... !!
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चाह कर भी कोई मोहब्बत निभा नहीं पाता.. !
चाह कर भी कोई रिश्ता बना नहीं पाता... !!
चाह कर भी कोई इश्क़ क्यों जता नहीं पाता.. !!!
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कभी हम भी किसी की जिंदिगी का हिस्सा हुआ करते थे
आज सिर्फ किस्सा बन कर रह गये..... !
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अब तो ये आंखे नम और गीली सी होने लगी हैं.. !
ये रिश्तों की नब्ज़ जो अब ढीली सी होने लगी हैं... !!
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जो ना चाहते थे वो भी अब चाहने लगे हैं.. !
जब से हम शहर ए कब्र में रहने लगे हैं... !!
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खुली जुल्फों में ना निकला करो
दिल बंध जाया करते हैं... !
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ये आशिक मिज़ाज़ दिल अपना सम्हाल लीजिये... !
किसी एक का दिल जिंदगी भर को थाम लीजिये... !!
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हौसलों में जीती जो मिरि तन्हाई हैं
भर दोपहर में मुझसे पूछे मिरि ही परछाई हैं
ये बता तू ये किसकी परछाई हैं....?
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कुछ वो कह गये, कुछ औरों ने कहा
जब हमने कहा तो किसी ने ना सुना
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ये सब तुम्हारी इवादत का ही तो नतीजा हैं.. !
जिसमें तुमने मिरे दिल को खरीदा हैं... !!
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मिरे शहर में इश्क़ को खुदा ए दर्ज़ा किया हैं
तिरे शहर में इश्क़ को क्या दर्ज़ा दिया हैं
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जब गुजरे उनकी गलियों से तो मंज़र अजीब था.. !
जिसको ढूंढ़ते रहे ख्यालों में वो किसी का नसीब था.. !!
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इज़हार ए इश्क़ का हमने सबाल क्या कर लिया.. !
इतनी सी बात का आपने तो मलाल कर लिया... !!
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उसे तो हुस्न की शानोशौकत ने उभारा हैं.. !
हमने तो बस उनकी तन्हाइयों ने सबारा हैं.. !!
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जो कभी करीब बैठने की सोहबत भी ना कर सके
वो आज हमारे लिए लोगों से वग़ाबत की बात करते हैं....
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वतन की ख़ाक में मर कर हर ज़ेहन में जीना बाकी हैं.. !
मज़ा तो देश की मिट्टी का हैं जिसका कफन बाकी हैं.. !!
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मैं बहक जाता हूं तिरे इश्क़ की मदहोशगी में... !
ए हवा खलल ना डाल तन्हाई की खामोशगी में... !!
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मिरे जूनून को भी तिरे इश्क़ में सुकून नहीं हैं... !
तिरे सुकून को मिरे जूनून का एहसास नहीं हैं... !!
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तिरा गांव अब शहर लगने लगा हैं... !
अब ये मिरा गांव भी शहर लगने लगा हैं.. !!
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तिरे ज़ज़्बातों के अश्क़ अपनी आंखो में पहने थे
इस इश्क़ के ज़ख्म और ना जाने कितने सहने थे
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मिरे शहर में अब खुदाओं की कमी हैं.. !
हर जुबां में अब दुआओं की कमी हैं...!!
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मिरे नज़रिये का पहरा तुझसे हट रहा हैं.. !
इंसानी रंग इंसा ए इंसा से जो छट रहा हैं.. !!
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ज़िन्दगी में ज़मीर ए दौलत वे अदब हो चली हैं.. !
आफताब ए खिताब में वेजुबानी की फितरत पली हैं.. !!
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जो हमेशा हमें अपनी शिकायतों में शुमार रखते हैं.. !
हम भी उनकी इस वफ़ा का पलट वार रखते हैं... !!
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फ़क्र तो मुझें भी था उनके इश्क़ पर
सोच में उनकी फर्क आने पर हम किससे शिकवे करे... !
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जो वेखुदी में वेखुदी के खुदा हो गये... !
वो अपनों औरों से क्या खुदी से खुद जुदा हो गये.. !!
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इन आंखो की तलाश भी अभी बाकी हैं.. !
ख्वाब ए शख्स से मुलाक़ात अभी बाकी हैं.. !!
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बस यही बात लोंगो को उसकी दिलों में खलती है.. !
वगैर पैगाम -ए- इश्क़ के ज़िन्दगी उसकी कैसे चलती है.. !!
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ये इश्क़ की वेबफ़ाई भी कितनी अज़ब होती है.. !
ना वफ़ा इस तरफ होती है ना उस तरफ होती है... !!
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मशहूर होने का तो शौक खूब रखते थे.. !
पार ना जानें इश्क़ से क्यों डरते थे... !!
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गर ये इश्क़ ना होता तो ना तुम जानते और ना हम जानते.. !

इससे पहले तो हम इक दूसरे के लिए अनजान थे.. !!
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मुझे भूलने की उनकी भी अब दुआ ना कबूल हो.. !
दुआ मिरि भी उस खुदा से बस इतनी सी उससे ये भूल हो.. !!
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मिरे हर अल्फाजों में उनका एहसास हैं.... !
वो कैसे भी हो पर मिरे लिए तो ख़ास हैं... !!
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कुछ बिखर जाते है कुछ सवर जाते है
ये सपने है साहब जब टूटे है तो सेहर जाते है
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ये बात मै किसी को बताना नहीं चाहता
बता कर किसी को तड़पाना भी नहीं चाहता
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यहां सुनता कोई नहीं
सब अपनी ही सुनाते है... !
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ये जंग ज़िन्दगी भी कितनी तंग हो चली है
तन्हाई जिंदगी की हर किसी के संग हो चली है
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ज़िन्दगी में ऐसा कोई इरादा नहीं था... !
किसी के इश्क़ में जीने का वादा भी नहीं था... !!
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वो अक्सर बदनाम किया करते है हमें
अपनी वफाई जताने के लिए...
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तुम बस तुम रहो
हमने ना रास्ता बदला हैं और ना मंजिल.... !
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खुशियों से ज्यादा मज़बूत
गमों के तज़ुर्बे हुआ करते हैं...
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जब से तुम ज़ेहन में बसे हो
तब से ना गम ठहरते हैं और ना खुशियाँ... !
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सही फैसला चुनने वाले ही
अकेले होते हैं...
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गर पहचान गमों की होती !
तो ये वेबफ़ाईया ना होती.. !!
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ना इश्क़ का ख़िताब हूं ना दस्ताने किताब हूं... !
किसी की किताबों के पन्नों में दवा गुलाब हूं... !!
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वो ज़मीं पर खड़ा होकर रोज़ आसमा ताकता हैं.. !
उसने सुना हैं कभी कभी ऊपर वाला भी ज़मीं पर झांकता हैं.. !!
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खफ़ा होने का भी अपना अलग अंदाज़ हैं... !
अपने क्या अनजान भी पूछ लिया करते हैं... !!
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नज़रे उनकी तो बहुत कुछ कह गयी... !
लेकिन बात मेरी दिल की दिल में ही रह गयी.. !!
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देखने समझने से क्या होता हैं ज़नाब
यहां तो कहने और समझने के राज़ ही अलग हैं... !
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यहां छिपना आसान हैं.. !
पर छिपाना मुश्किल हैं... !!
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जितना छिपना आसान हैं... !
उतना छिपाना मुश्किल हैं... !!
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रोज की तरह गुज़र जाता हैं रोज़... !
फूल बागों में खिल कर मुरझा जाते हैं रोज़.. !!
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उन वादों से सुलझें
तो ज़िन्दगी सुकून से जिएं... !
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हमने ही सम्हाला हैं सब का सब कुछ
और वो हैं कि हमें ही ना सम्हाल सके... !
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अलफ़ाज़ ए तिरे धार हो रहे हैं.. !
मुझ पर अब अपनों के भी बार हो रहे हैं... !!
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जितना किसी से रूठना आसान होता हैं... !
उतना ही उसे भूलना नामुमकिन होता हैं... !!
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ना रहा जाता हैं ना सहा जाता हैं... !
ऐसा तो शायद इश्क़ में कहा जाता हैं... !!
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ये हवाएं जो मिरे जिस्म से गुज़र रही हैं
तिरे एहसास की खशबू मिरे दिलों ज़ेहन में उतर रही हैं
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रोज़ एक लाइक ही कर दिया करो... !
ज़िन्दगी को सुकून से भर दिया करो... !!
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हक़ीक़त ए इश्क़ में सबरो तो क्या कहने हैं...
सपने तो सपने हैं उन्हें तो ख्वाबों में ही रहने हैं
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इन आंसुओं को सम्हाल लेना, एक एक आंसुओं का हिसाब मिलेगा....
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चुप बैठे हैं आज सपने मिरे
वो दिन फिर आज याद जो आया हैं... !
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महानता बिन मांगे मिलती तो क्या बात थी
ना मांगने वाले अभिमानी हुआ करते हैं.... !

किसी की नज़रों में गर मांगना बुरा हैं
तो फिर खुदा से भी क्यों मंगा करते हैं.. !!

(बिन मांगे सब सून )
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उनकी वेबफ़ाई की ये वफ़ा पहली दफा नहीं हैं.. !
वो सब से मिलते हैं वो किसी से खफ़ा नहीं हैं... !!
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तिरे आने से कुछ बदल जाएगा कुछ सम्हाल जाएगा
थोड़ा तो मुस्कुरा दो ज़नाब ये दिल हैं जो बहल जाएगा
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रोने की फितरत तो नहीं थी मिरि
पर जब भी तिरि गलियों से गुज़रे
अश्क़ ए कतरा ना ठहरे.... !
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यहां तो सब कुछ चलता हैं... !
ज़िन्दगी कैसे जिए बस यही खलता हैं.. !!
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वो फिर आएंगे मिरे ख्वाबों में
इसीलिए कई रात मैं सोया भी नहीं... !
वो रूठ जाएंगे मिरि इन बातें से
इसलिए मैं कभी रोया भी नहीं... !!
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ये दर्द भी क्या खुदगर्ज़ हुए हैं... !
नाम उनका भी लो तो भी ना हुए हैं.. !!
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इक सबाल इश्क़ वालों के मन में हमेशा होता हैं... !
इश्क़ में फरेब और दोस्ती का धोखा क्यों होता हैं... !!
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मिलते नहीं वो अब उस मोड़ पर... !
जो कभी छोड़ कार गये थे उस मोड़ पर... !!
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वो समय फिर कब आएगा...!
ज़ब तुझे फिर ले आएगा... !!
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तिरे शहर में अब कौन जानता हैं
सिबाये मुझें मिरे सिबा.... !
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तन्हाईया भी छटने लगी... !
ज़िन्दगी भी घटने लगी... !!
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तिरे इश्क़ की जब ज़माने को खबर लग जायेगी... !
तब उस दिन मोहब्बत को तिरि नजर लग जायेगी... !!
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ये पश्चिमी सभ्यता का इश्क़ हैं ज़नाब
इसमें सब कुछ चलता बस इश्क़ के सिबा... !
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ना अजनवी होता हैं कोई
ना हमनवी होता हैं कोई
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चलो इस जिंदगी को किसी अंजाम तक पहुंचा दें.. !
उन तक अपने आवार ए दिल का पैगाम पहुंचा दें.. !!
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भूल जानें के बहाने तो बहुत करते हैं लोग.. !
तो क्या कभी भूल पाए हैं उन्हें लोग... !!
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हादसे तो अक्सर उम्मीदों के हुआ करते हैं.. !
ना उम्मीदें ही अक्सर सामने आ जाया करती हैं.. !!
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अक्सर चाहतें वेबफ़ा नहीं होती ज़नाब
गद्दार तो हसरतें बना देती हैं... !
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ये गली जहां जायेगी तो वही तो हम जाएंगे
बीच में गर वो दिख जाएंगे तो हम क्या करें.. !
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किसी गुरुर में किसी की मिन्नतें ना भुला देना
दिखावी चाह में लोग आवरू गवा दिया करते हैं.. !
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अब तो गैर भी गौर करने लगें हैं... !
चुप देख कर मुझें शोर करने लगें हैं.. !!
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चुप रहना भी तो इक कला हैं... !
इसमें ना जानें कितनों का भला हैं... !!
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ज्यादा दूर तक तो वो मिरे साथ ना चलें थे.. !
ये सुना ज़रूर था वो इंसान बहुत भले थे.... !!
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जिसको अपना समझो वही बदल जाते हैं
अब तो खुली आंखो के भी सपने फिसल जाते हैं
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हम तो इश्क़ में जले हैं तुम भी जलोगे क्या
वो तो इश्क़ में बिके हैं तुम भी बिकोगे क्या
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हर वक़्त यहीं सोचता हूं मैं... !
कही कुछ भूल तो नहीं रहा हूं मैं... !!
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मैं तो खुशियां बांटने आया था
तुमने तो मुझें ही ज़ख़्मी कर दिया.. !
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मेरी कहानियां थोड़ी सी अलग हैं.... !
इनमें समाज की सच्चाई की झलक हैं.. !!
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इन नज़रों की नज़ाकतों को सम्हाल कर रखिये
वरना बेहयाई के इल्ज़ामात मुफ्त में मिलेंगे... !
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कल रात में चांद भी बहुत तपा था.. !
ना जानें किस बात पर खफ़ा था... !!
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मुस्कुराकर उनको लगा कि हम पर रहम कर दिया.. !
वो क्या जानें कि उनने इश्क़ का हममें वहम भर दिया.. !!
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जब ये इश्क़ दूर तलक चलता हैं... !
तब लोगों को ये खलने लगता हैं... !!
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वो जीने मरने की कसमें खा रहें थे.. !
शायद वो इश्क़ की रस्में निभा रहें थे.. !!
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जब जब मुझें सपने दिखे... !
उन सपनों में बस अपने दिखे... !!
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छोटी छोटी खुशियों के लिए हम
ज़िन्दगी भर ज़माने से लड़ते रहें... !
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जंग अपनों से जो हारने की हमने जो कसम खाई हैं... !
इसलिए तो हमने अपनी दुनियां अलग बसाई हैं... !!
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"क्या विश्वास नहीं हैं मुझ पर"
ऐसा कहकर ना जानें कितने लोग धोखा दें जाते हैं
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ये जो पैगाम उसे बताने हैं
आशिक उनके जो हम पुराने हैं
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अलग अलग आए थे अलग अलग जाना हैं
मर के साथ जयेंगे ये किसने जाना हैं
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तुम से तूं तक के सफर में
कितना वक़्त लगा
ये तूं क्या जानें
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ज़िन्दगी, ज़िन्दगी भर यूं ही मचलती रही... !
जीने की चाह में कदम दर कदम निकलती रही... !!
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दम तोड़ती मशक्क़ते
दूर होती मज़िलें
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ये जो मशक्क़तें भी
हौसलों से चलती हैं... !
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ये ज़िन्दगी आसान भी नहीं
और कठिन भी नहीं
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ना वाशिंदे थे, ना परिंदे थे मिरे साथ.. !
बस था तो हौसला मिरे साथ... !!
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ये फैसले और फासले उन के ही थे... !
हम तो बस उनकी हर रज़ा मंदी में थे... !!
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जो ना कर सके बफाई इश्क़गी की बफा वेनकाबगी में
अब इन नकाबगारों से क्या बफा की आस रखते हों...
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यों अब नज़र आनें में कतराने से लगें हैं
जब से किया इज़हार इतराने से लगें हैं
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ये हमशक्ल हसीनाओं का शहर हैं
जिसे देखो, नकाबों में आता नजर हैं
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हम तो सराफतो की सोहबत में भी दागदार हो गये
और वो जो दागदार थे वो सराफत ए गार हों गये
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सराफतो की सोहबत में दामन भी ना पाक हुआ
जो भी हुआ ज़नाब इश्क़ की सराफतगी में हुआ
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दिक्कत ए दर्द मर्ज़ ए खुदा हों रहा हैं
जवानी ए इश्क़ भी अब जुदा हों रहा हैं
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गर हों जाओ तुम मिरे संग... !
तो जीत लेंगे ज़िन्दगी की जंग.. !!
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मां की हम मन्नत हैं... !
मां हमारी जन्नत हैं... !!
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लोग अपने आपको नहीं आंकते हैं
बस औरों की जिंदगी में झांकते हैं
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मां वो दौलत हैं
जिसकी हम बदौलत हैं
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करीबी हैं फरेबी निकले
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ज़िन्दगी में उसकी किस कदर गदार हों रही हैं... !
लगता हैं फिर उसको मिरे आने की खबर हों रही हैं... !!
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वो बहाने भी इस तरह बना लेते हैं... !
रूठें कितने भी हम वो हमें मना लेते हैं... !!
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वक़्त दिखाई तो नहीं देता हैं... !
पर दिखा बहुत कुछ देता हैं.. !!
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धोखा खाने के लिए
भलाई करनी पडती हैं... !
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उम्मीद मिरे लफ़्ज़ों की टूटती रही... !
इश्क़ ए मंज़िलें भी की रूठती रही... !!
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चल ने वाले भी क्या चाल चल जाते हैं... !
पता भी नहीं चलता कब बदल जाते हैं... !!
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जद ज़िद्द ज़िन्दगी की जद्दोजहद कितनी हुई ज़बरदस्त
के खुद खुदी की ख़ुदकुशी के पीछे पड़े हुए हैं... !
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किस्मत भी क्या हराएगी मिरे हौसलों को
संघर्ष ने जो मुझें मंज़िल दी हैं... !
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इस अमीरी का कुछ ऐसा मंज़र हों जाए... !
इस जहां से मुफलिसी छूमंतर हों जाए... !!
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वो ढूंढती हैं अब मिरे क़दमों के निशान
ए ज़िन्दगी मैं अब ज़मीं ए आगोश में हूं...!
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तू होंठो को क्यों चूमती हैं मुझें ए शराब
उसका नशा जो अभी उतरा नहीं हैं... !
ज़माने में होते हैं इश्क़ ए वेहिसाब
कि वो अभी मोहब्त में उतरी नहीं हैं.. !!
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कभी नये थे उनके लिए अब पुराने हों गये.. !
हम से बिछड़े हुए उन्हें भी ज़माने हों गये.. !!
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दौड़ना तो फितरत थी हमारी... !
तुझे पाने की हसरत थी हमारी... !!
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इश्क़ ए मुदत्तों के सवाल भी अब ज़ख्म हों गये... !
इस चाह में नज़ाने आशिक कितने ख़त्म हों गये... !!
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हिफाज़त से चलना दोस्त
यहां सराफते ही चोट करती हैं... !
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ये आंखे भी तब बेहद नम हों जाती हैं... !
जब ज़िन्दगी इश्क़ में बेदम हों जाती हैं... !!
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बड़ी हिम्मत के बाद
वो अब आइना खरीद लाए ... !
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इश्क हमारे अश्क़ों से था उसे...!
जो इश्क के बदले अश्क़ दें गया हमें... !!
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जीने की आरज़ू जिंदगी के सपने इश्क़गी की गुफ़्तगू
उस चाहत के अपने सब वेबफ़ा निकले.... !
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आज मिरे पास मिरे अपनों की जो फौज ख़डी हैं
क्योंकि आज मिरि ज़िन्दगी और मौत की घड़ी हैं
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बहाना भी गर मारने का हों तो क्या बात हों
बे बहाना भी मरे तो क्या मरने का राज़ हों
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ना निकलेंगे वो कभी दिल से
ना हम निकालेंगे उन्हें दिल से
दर्द तो दोनों में ही होगा.... !
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कुछ पल खुद को खुद हों जानें दो
ज़िन्दगी की भाग दौड़ में कभी खुद हुआ नहीं हूं मैं... !
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जब वो मुकर के पलट गये
तब मिरि आंखो से अश्क़ ही छलक गये
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कमबख्त ये दिललगी भी क्या कहर कर गई
वो होना सके मिरे जिंदगी उन्ही पर वर गई
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ये इम्तिहान भी कितने बेहिसाब हुए
हम थकते नहीं और वो रुकते नहीं.... !
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कभी इक दूसरे के पैमानें में ना मैं उतरा और ना वो उतरा
ज़िन्दगी यूं ही जीते रहें कभी वो कतरा तो कभी हम कतरा
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तिरा ज़िक्र करना तो मिरा काम था
मिरि फ़िक्र में जो मिरा ईमान था
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गर पैमाने में तिरि गज़ल होती
तो मयखाने में ना सजल होती
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ये कैसा सवाल हैं.... !
ना तेरा खयाल हैं ना मेरा खयाल हैं... !!
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अपने ही मिरि ज़िन्दगी की दवा दें गए... !
मुददतों से दवे अंगारों को हवा दें गए.. !!
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दर्द भी दबा लेते हैं मर्ज़ भी छिपा लेते हैं.. !
इतने सहन ए गार भी नहीं अकेले में अश्क़ गिरा लेते हैं... !!
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फक्त ज़िद्द ज़िन्दगी की जू गुज़रे ..!
पर वो ठहरे तो कही तब तो ये चेहरे उतरे... !!
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किसी को क्या एहसास
कि वो किसी के लिए कितने ख़ास
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जब आपका वक़्त संभलेगा
तब लोगों का नज़रिया बदल जाएंगा
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शेर भी एहसास होते हैं
दिल के अलफ़ाज़ होते हैं
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जब आंखो में उमड़ आती हैं वो बादल बनकर
वो दर्द ए एहसास को बंज़र होने नहीं देती... !
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दिचस्प हैं तिरि यादों का सिल सिला
वे पल, हर पल, दिल पर ज़ेहन पर... !
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गर आज़माना ही हैं तो आज़मा लीजिए
इश्क़ ना फरमाने के बहाने बना लीजिए
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आज तन्हाई बहुत गहरी हैं
यादें ज़ेहन में जो ठहरी हैं
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फिर कही धोखा ना हों जाए
किसी की चाहत में दिल फिर ना खो जाए
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सबके दिल की कहानी तो एक हैं... !
बस चेहरे अलग-अलग हैं... !!
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आज भी इंतज़ार हैं... !
ये निगाहें वे करार हैं... !!
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इतना भी ना इतरा इस इश्क़ के रंग पर
के वारिश कही वेबफ़ाई की ना हों जाये..... !
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ये गैरों ने नहीं
अपनों ने ही तो बतया कि
कोई अपना नहीं होता.... !
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गर दिल होता उनके पास
तो लगा नहीं लेते.... !
गर अश्क़ होते उनके पास
तो आंखो से जता नहीं देते... !!
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गमों को अपने तुम हम से जता लेना... !
तन्हाइयो की दुनियां ना बसा लेना.... !!
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ज़िगर ए जागीर तू जब जब जिधऱ होंगी.. !
मिरे इस दिल को तब तब तिरि खबर होंगी.. !!