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सफर-ए-अल्फाज़

1.
कोई गुज़रे या ना गुज़रे इन आंखों से जो मिरा अश्क़ गुज़र गया.. !
अपना तो इक अश्क़ ही था जो अपनों की याद में कहर गया...!
कोई देखें या ना दिखे अपनों से मिले जो ज़माना गुज़र गया. !!
दूर बैठे रहें नज़दीक से जो अपनों का काफिला गुज़र गया.. !
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2.
ज़िन्दगी जीना भी एक पेंचीदा रास्ता है
जिसे देखो उसे बस मतलब का वास्ता है.. !!
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3.
हकीम-ए- हमदर्द भी अब वैसे हुआ करते नहीं.. !
बात तो वो किया करते है मगर दुआ करते नहीं.. !!
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4.
याद बहुत आती है ज़िन्दगी गुज़री हुई
ख्वाब में देखते रहें ज़िन्दगी सबरी हुई.. !!
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5.
खुश रहने के लिए भी क्या किसी का खास होना होगा...?

दूर कैसे हो ये उदासी कोई बताता भी तो नहीं.. !
लगा के सीने से कोई अपने रुलाता भी तो नहीं.. !!
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6.
छल से झलक अपनी थोड़ी छलका दो
अपनी रज़ा भी इश्क की हमें बतला दो.. !!
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7.
छल-ए-कारोबार भी ये उसका चलता नहीं
देख कर उसे भी अब कोई मचलता नहीं.. !!
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8.
गांव छोड़ इंसान जो शहर को जानें लगें है..!
मका-ए-खंडहर में परिंदे अब आने लगें है.. !!
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9.
कुछ मुलाकातें ऐसी भी तो होती है
ना अपनी होती है ना पराई होती है... !!
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10.
उसके होने ना होने की निशानी पूछते है
लोग उसकी जवानी की कहानी पूछते है.. !!

हो ना सकी मुकम्मल ज़िंदगानी पूछते है
लोग सिलबटो में लिपटी निशानी पूछते है.. !!

लिख ना सकी जो वो कहानी पूछते है
किताबों में दबी पन्नों की जुबानी पूछते है... !!
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11.
हकीक़त भी यहीं है और फ़साना भी यहीं है
मुश्किल है किसी का साथ निभाना भी यहीं है.. !

साथ रहने का करना भी करने का वादा यहीं है
सोचते रहेंगे, रहेंगे साथ बस कहता ये ज़माना ही यहीं है.. !!
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12.
रखा करो नजदीकियां ज़िन्दगी का कुछ भरोसा नहीं..!
फिर मत कहना चले भी गए और हमें बताया भी नहीं.. !!
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13.
धोखा इस इश्क़ में इसलिए भी होता है
दो प्यार करने वालों में एक सच्चा होता है.. !!
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14.
वो मुस्कुराती हुई शाम भी अब ढल गई
यार देखोना अब ज़िन्दगी कितनी बदल गई.. !!
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15.
मोहब्बत में ऐसा भी पलट वार देखा है
कि उसने एक भी बार पलट कर नहीं देखा है... !!
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16.
क्या मैं इसलिए उदास नहीं हूं
के किसी के लिए खास नहीं हूं.. !!
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17.
ये मन चला मन क्यों ठरता नहीं
आवारगी-ए-इश्क़ क्यों सवरता नहीं... !!

सवर जाए मन तो ये जहां तेरा होगा
मान भी जा ए मन तो हर दिल तेरा होगा... !!

नफरतों से ज़िंदगानी ये जो सवारती नहीं
छूट जायेगा ये जहां जब तो क्या तेरा क्या मेरा होगा.. !!
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18.
मोहब्बतें जहान में दामन-ए-दागदार हुआ
इंसानों की सोहबत में ही इंसान खौफदार हुआ..!!
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19.
मत करा तूं मुझें इतना इंतज़ार मुझमें इंतज़ार-ए-एतवार ना रहा.. !

ना हो इतना तूं बेकरार के अब मुझमें
वो इश्क़ भी बेकरार ना रहा.. !!
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20.
किसी को तहेदिल से स्वीकारगी भी हमारे लिए बेकार होती है.. !
सामने वाले की अवहेलना की प्रतिक्रिया हमारे लिए पलट वार होती है.. !!
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21.
मुझ ही को मैंने मुझ में जो छिपा लिया
खुद ही को खुद में खुद से क्या पा लिया... !!
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22.
ता उम्र दौड़ता रहा चंद कागज़ो की डिग्रियां लेकर
ये ज़िन्दगी का सफऱ भी तेरे किस काम आया... !

ढूंढता रहा तूं भी क्या मंज़िलें उन डिग्रियों के वास्ते
देख चंद लकड़ियां और आग का पैगाम आया.. !

हुनर जो पला होता तो तूं यूं ना रुख़सत होता
इन पढ़े लिखो की ज़िन्दगी में क्या सैलाब आया..!

सुर्खियां जो बन गई ज़िन्दगी-ए-जीने का कहर
उजालों को देख चीरकर अंधेरा-ए-आफताब आया.!
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23.
ना होगा कोई अब ज़िन्दगी में हमारा
रह गया जो मिरे पास ये दिल हमारा.. !!
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24.
ये कैसा ज़माने में कोहराम है
ना ज़िन्दगी में आराम है ना विराम है.. !!
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ग़ैरों को वो भला समझे और मुझ को बुरा जाना..!
समझे भी तो क्या समझे जाना भी तो क्या जाना.. !!
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25.
आसमान में रहकर भी चांद तारों से मिलना नहीं होता.. !
भीड़ में रह कर भी हर कोई जैसे अपना नहीं होता.. !!
खुली आंखों से देखें गए हर ख्वाब सपना नहीं होता..!
अंधेरों से लड़ता आफ़ताब जहां में रौशन नहीं होता.. !!
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26.
सुना है तिरे ख्यालों का आजकल बेपनाह हिस्सा हूं
तिरि आवारगी का जो आज कल मैं बन गया किस्सा हूं
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27.
जफ़ाएं ज़ज़्बात यूंही आवाद रखते रहिये
दिल ए ज़िन्दगी के एहसास लिखते रहिये... !!
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28.
फितरत-ए-इंसान तो वो अपनी बदलता ही रहेगा.. !
दाग़-ए-दामन का ये सिल सिला भी चलता रहेगा..!!
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29.
इस मोहब्बत के सफर को बस इतना रखना
मैं दुआओं में रखूंगा, तुम ज़िन्दगी में रखना... !
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30.
खुद में काबलियत हो तो भरोसा कीजिये साहिब
सहारे कितने भी अच्छे जो साथ छोड़ जाते है।
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31.
कुछ अल्फाज़ जला रहा हूं
इश्क़-ए-राज छिपा रहा हूं.. !!
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32.
मुझें ख़ौफ़-ए-मंजर की ज़ुबानी नहीं करनी
इश्क़ में फिर से पड़ने की तैयारी नहीं करनी.. !!

दिल-ए-राख होते दिल की फिर गुलामी नहीं करनी
गम-ए-लफ़्ज़ों से फिर ये कहीं इश्क़गी नहीं करनी.. !!
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33.
इश्क़ में हमने कसमें तो खा ली पर हाथ थमने की रस्मो अदा को भूल गए
ये मोहब्बत बड़ी शातिर है दोस्त संग जीने मरने की कसमो को भूल गए
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34.
अकेला ही चलता हूं अकेला ही सम्हालता हूं
घर से बाहर निकलो तो ज़माने को खलता हूं

कहते है लोग कि मैं कितना गुरुर-ए-वार हूं
उन्हें क्या पता अकेले में कितना मचलता हूं
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35.
यहीं सोचता हूं कि अब कोई एव नहीं उस में..!
वो जब भी देखें तो होश ना हों मुझ में.. !!
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36.
सच से कौन किसके करीब आया है
झूठ से ही सब आस पास है यहां.. !
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37.
उसे भूल जानें का भी कोई मर्ज़ कहां मिलता है.. !
जिधर से भी जाओ दर्द उधर से ही मिलता है..!!
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38.
आज कल कोई दुआ भी तो नहीं रही अब दवा जैसी
किसी हम दर्द की भी दवा नहीं रही अब दवा जैसी

इन जख्मों पर भी जो अब लगी हवा नमक जैसी
कोई देखता भी तो नहीं अब वो निगाह अपनों जैसी
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39.
उसकी गली से इसलिए मुझें लगाव था.. !
उस गली में जो मिला दिल पर घाव था.. !!
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40.
बोलता हूं तो ज़ख्म हरे हों जाते है
अल्फाज़ भी आज कल हलक में रह जाते है.. !!
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41.
ईमानदार के साथ ईमानदारी से ही दग़ा करते है लोग.. !
वफादारी की वो एतवारगी देकर ठगा करते है लोग.. !!
ज़माना मुफलिसी देख उसकी हंसा करते है लोग.. !
वफ़ा के ज़माने में किस कदर वेबफ़ाई करते है लोग... !!
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42.
यकीन मानिये अब हमने भी यकीन करना छोड़ दिया.. !
जब से दुनियां वालो ने भरोसे का दामन छोड़ दिया.. !!
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43.
जब से जीने का ज़ज़्बा क्या जगा है
तब से लोग हमें मारने की फिराक में है.. !!
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44.
हर रात जो ख्यालों में गुज़र गई
और ज़िन्दगी सबलों में गुज़र गई.. !!
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45.
मिलता कहां कोई अपना सा
सब ढूंढ़ते है बस अपना सा.. !!
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46.
खुशियों के तिनके आरज़ू थमती नहीं कहर बनके.. !
रूठ जाती है वो ज़िन्दगी भी कभी कभी अपनी सी बनके.. !!
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47.
उस शोर गर्जना की हुंकार हूं
मैं मौन रहकर भी करता पलट वार हूं
कठिन परिस्थिति की संवेदना का निर्घोष हूं
भीषण अशनि का प्रलय -गाडीव की हुंकार हूं
मैं मौन नहीं कौन नहीं मैं वक़्त पर करता वार हूं.. !!
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48.
जब आंखें मिली थी तो तब नज़रे नहीं झुकी थी क्या.. !
जब नज़रे झुकी थी तो तब सांसे नहीं रुकी थी क्या.. !!
जब सांसे रुकी थी तो तब धडकने नहीं बढ़ी थी क्या.. !
फिर भी पूछती हों तुम क्या मैं इश्क़ में पढ़ी थी क्या.. !!
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49.
हम किस के लिए कितने जरूरी है.. !
ये बात ज़िन्दगी में अब तक अधूरी है.. !!
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50.
गम-ए-बरसात ने भी तिरा चेहरा-ए-नश्क ना धोया... !
तुमने मुझको खोया मैंने तुम को खोया.. !!
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51.
ज़िद्द-ए-ज़िन्दगी का एतवार रहेगा
ये इश्क़ है जनाब तलबगार रहेगा.. !
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52.
यादों को तेरी इस तरह कहर ना होने दें
आ भी जा अब ज़िन्दगी को जहर ना होने दें... !
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53.
इश्क़-ए-कहानी आम हों गई है कितनी
खाक-ए-शहर आशिको ने छानी कितनी.. !
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54.
बहुत ज़िद थी ज़िन्दगी जीने की उसे
एक दिन ज़िद ही हार गई...!
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56.
आज नज़रे जो उनकी नदारत थी.. !
ये शराफत थी या फिर शरारत थी..!!
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57.
जिन्हे जब जरूरत होती है तो तलाश लेते है दोस्त..!
आज कल इश्क़ करके भी खुंदस निकाल लेते है दोस्त.. !!
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58.
किसी की परवाह का कभी मुद्दा क्यों नहीं होता
मसला-ए-फ़िक्र की जो लोग बात किया करते है... !!
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59.
तमन्नाएं दबी हुई है खामोशियां ज़मी हुई है
बेतहां हुनर मंदो की ज़िन्दगीयां थमी हुई है... !

वेहोनहारगी की आफ़ताबगी तो देखिये
मंज़िलें मुकाम की उनकी जो तनी हुई है.. !!

आसमा भी देखता है वाशिंदो की तरह
सरकारों की निगाहें अब भी क्यों झुकी हुई है.. !

दो वक़्त जून रोटी के इस सफर में
कई ज़िन्दगीयों की इस ज़माने से ठनी हुई है.. !!
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60.
उनसे चाहत की भी हम से क्या गुस्ताखी हों गई..!
ज़िन्दगी मिरि भी मयखाने की जो आदि हों गई... !!
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61.
ये जो शायरी अपने सुकून के लिए लिखता हूं मैं..
अब जब कोई बेचैन रहें तो मिरा क्या कसूर हैं...!!
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62.
नज़र उनकी उनसे ही नहीं मिलती
हमसे नज़रे मिलाकर क्या खाक गुफ़्तगू होंगी .. !
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63.
घात लगाए बैठे हैं वो जो
ना कहते हैं वो ना रहते हैं जो वो... !!
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64.
मुस्कुराते चेहरों के पीछे जो गम हैं.. !
किसी के ज्यादा तो किसी के कम हैं... !!
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65.
सोचते तो बहुत हैं पर तूं भी थोड़ा सा गौर कर.. !
बेवजह के इन अल्फाजों से ना तूं इतना शोर कर..!!
ठहर भी ना पाते अश्क़ मिरे निमिष भर के लिए..!
तूं इस तरह से मायूश हों कर ना मुझें कमज़ोर कर.. !!
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66.
जेहन में आते ही तिरा नाम मिरि कलम बहक जाती हैं.. !
लिखना चहुं कुछ और वो तेरा ख्याल लिख जाती हैं.. !!
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67.
हर चेहरे के पीछे छिपे चेहरे की तस्वीर देखी हैं मैंने.
हर चेहरा जो उस तस्वीर से झूठा नज़र आया हैं मुझें..
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68.
कुछ और जुवा के अलफ़ाज़ बदल कर देखते हैं
ज़माने को अपना नज़रिया बदल कर देखते हैं.. !
जुदा जुदा ज़माने को थोड़ा सम्हल कर देखते हैं
कुछ दूर और संग संग थोड़ा चल कर देखते हैं.. !!
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69.
ये धडकने भी कुछ इस तरह होती.. !
आधी इधर आधी उधर होती.. !!
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70.
पास आकर सब दूर चले जाते है
अकेले थे हम अकेले ही रह जाते है!
इस दिल का दर्द दिखाए तो दिखाए किसे
मल्हम लगाने वाले ही हमें जख्म दे जाते है!!
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71.
मैं ना हूं ना हों सका हूं मैं
अंदर ही अंदर से बहुत बिखरा हुआ हूं मैं.. !
सिमटता भी नहीं कोई अपना मुझें
ता उम्र अपनों में अपना रिस्ता ही ढूंढता रह हूं मैं.. !!
चाहते जो अपनों की भी ना मिली मुझें
अपनों की ख़ुशी के लिए ज़माने में उलझा रहा हूं मैं.. !
समेटे हैं कई बिखरे आशियाने जो मैंने
अपने आशयाने के लिए वो तिनका भी ना रहा हूं मैं.. !!
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72.
ज़माना छोड़ बैठे हैं जो वो इश्क़ की आस में.. !
ना घर से वो निकले ना तुम निकले तलाश में... !!
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73.
मैं जब हम से "मैं" हों जाता हूं
तब कई सुकड़नों में लिपट जाता हूं.. !

लिपट जाती हैं आगोश-ए-तन्हाइयां मिरि
तब मैं खुद से खुद हों जाता हूं... !!
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74.
वो जो खुदा बनने में मशरूफ हैं
जो कभी इंसा भी ना बन सके.. !
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75.
हमें सुलझने में भी बहुत वक़्त लगा
क्योंकि हम उलझें जो कम्वख्त से थे... !!
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76.
ये इश्क़ भी कितना बिखरा हैं
जो अल्फाजों से भी नहीं सम्हलता..!
लत किस एब की लगाऊं किसे
किसी का दिल ही नहीं पिघलता.. !!
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77.
सच तो सिर्फ इतना सा हैं.. !
सबको दिखना अपना सा हैं... !!
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78.
मुस्कुराहटें तो सब को मिली हैं जनाब सबके हिसाब से.. !
पर देखना ये हैं कि कौन कितना मुस्कुराता हैं ज़रूरत के हिसाब से.. !!
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79.
ना जी पाते हैं ख्वाहिशों के बगैर
ना मर पाते हैं खव्हाइशों के बगैर.. !
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80.
उड़े तो बहुत थे वो ज़मी से आसमानों में.. !
ना टिक सके वो आसमानों में ना ज़मी के ठिकानों में.. !!
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81.
किसी की जान जाती हैं तो जाए उनका क्या.
बजूद-ए-आफ़ताब उनका हर हाल में बुलंद होना चाहिए.. !
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82.
घर से जब जब भी मिरे पैसा निकल आता हैं.. !
तब तब अंजानो का भी मुझसे रिस्ता निकल आता हैं..!!
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83.
कुछ हैं जो उनकी मंज़िलों का साहिल-ए-किनारा नहीं होता.. !
किसी को सहारा नहीं होता तो किसी को गवारा नहीं होता.. !!
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84.
जज्बातगी-ए-बात जो आवाद नहीं होते हैं.. !
बे अदबगी-ए-जज़्बात जो आवाद होते हैं.. !!
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85.
मिरि मोहब्बत को जो वो एब कहते है.. !
और अपनी दोस्ती को वो हुनर बताते है.. !!
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86.
मुलाक़ात बस एक ही बार हुई
एहसास जो उसका उम्र भर रहा... !
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87.
तरक्की की फसल हम भी काट लेते..!
तलवे अगर हम भी थोड़े से चाट लेते.. !!
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88.
ना वो आशिकी रही ना आशिक रहें
फिर बेवजह क्यों दर्द-ए-दिल को सम्हालें रहें.. !
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89.
तेरे पास भी कम नहीं है
मेरे पास भी कम नहीं हैं..!
ये परेशानियां भी ना
आजकल फुरसत में बहुत हैं …!!
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90.
किताबों के पन्ने इस तरह क्यों मोड़ते हों... !
किताब ज़िन्दगी की अधूरी क्यों छोड़ते हों... !!
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91.
अब बंद ही रहने दो मिरि इस किताब को

जो मैं था कभी वो मैं अब रहा नहीं..!
जो हूं अभी उसे मैंने लिखा नहीं... !!
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92.
मुझें जानें दो वहां जहां कोई ना हों
गम की यादें भी जहां रोई ना हों
जाग जाए वहां किस्मत भी अब मिरि
जहां उसकी आंखे इंतज़ार में मिरि सोई ना हों
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93.
अब क्या सुनाए दास्तान-ए-इश्क़ की भी अपनी... !
बंद तिजोरी में पड़े हुए मुड़े पन्नों सी है ज़िन्दगी.. !!
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94.
पहचान करने वाले भी अब क्यूं पहचानते नहीं.. !
कभी गुज़ारे थे संग वो दिन ये क्यों जानते नहीं.. !!
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95.
बातें कभी अनसुनी नहीं होती हैं.. !
फर्क इतना है वो सुनी नहीं होती है... !!
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96.
उन किरदारों को भी देखिये जो झांकते है दरारों से.. !
जो दिखते नहीं चेहरों पर, पर रखते है ताल्लुक़ हजारों से.. !!
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97.
समस्याएं जो कभी हल ना होंगी
जो आज हैं वो कल ना होंगी.. !!
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98.
दिल-ए- राहत भी तूं कब तलक आएगी.. !
जब लगी आग सीने की बरस जाएगी... !!
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99.
फ़िक्र किसी की ना कर तूं
यहां बेफिक्र लोग बहुत है... !

ना पूछ किसी का हाल तूं
उनका हाल पूछने वाले बहुत है.. !!

ना कर दर्द उजागर तूं
उनका दर्द भी सहलाने वाले बहुत है... !

तूं जो सोचे सबके लिए
तुझें ना सोचने बाले बहुत है... !!
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100.
उम्मीदें हसरतें हुई और हसरतों के कफन हुए.. !
ना जानें इस दौड़ कितने राजा और रंक दफन हुए.. !!
===========समाप्त============