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आघात - 38

आघात

डॉ. कविता त्यागी

38

जिस तकनीकी ज्ञान और व्यावसायिक प्रशिक्षण की आवश्यकता पूजा को आज अनुभव हो रही थी, उसका विकास केवल आर्थिक स्वावलम्बन के उद्देश्य से किया जाता है। पूजा के पिताजी ने या उसकी माँ ने उसके लिए कभी भी स्वावलम्बी होने की आवश्यकता समझी ही नहीं थी। उन्होंने घर की बहू-बेटी के लिए घर के अन्दर रहकर घर-परिवार को सम्भालना ही उसकी आवश्यकता और मान-प्रतिष्ठा का विषय समझ लिया था। उन्होंने बेटी को व्यवसायिक शिक्षा दिलाकर तकनीक कौशल का विकास और कार्यानुभव कराना परिवार की प्रतिष्ठा के लिए घातक समझा था। अपने विचारों को कार्यरूप में परिणत करते हुए उन्होंने अपनी बेटी को परम्परागत विषयों में स्नातक कराया था। अपने अभिभावकों की इसी रूढ़ और अप्रासंगिक धरणा का दण्ड आज पूजा को भुगतना पड़ रहा था। काश ! उसके माता-पिता ने उसको स्वावलंबी बनाने की दिशा में पहले ही कोई कदम उठा लिया होता, तो आज उसकी दशा इतनी दयनीय न होती।

किन्तु, पूजा ने हारना कब सीखा था ? व्यवसायिक ज्ञान और तकनीकी प्रशिक्षण उसके पास नहीं था, पर दृढ़ संकल्प और जीतने का जुनून तो प्रर्याप्त था। उसने विजय श्री को लक्ष्य करके संघर्ष करना सीखा था। आज भी वह धैर्य धरण करके अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही थी, बढे़ जा रही थी, पूरे आत्मविश्वास के साथ। न कहीं हारने का डर था, न असफल होने का सन्देह। उसको विश्वास था अपने इष्टदेव पर और अपनी कर्मशीलता पर। इसी विश्वास का सम्बल लेकर आज तक वह आगे बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त करती रही थी।

पूजा के पिता ने उसको बचपन में सिखाया था कि संघर्षशील और परिश्रमी व्यक्ति को सफलता अवश्य मिलती है, क्योंकि ईश्वर उसकी सहायता करता है। ईश्वर के यहाँ देर है, अंधेर नहीं हैं। पिता द्वारा दी गयी इन्हीं शिक्षाओं का परिणाम था कि पूजा को अपने परिश्रम का सुफल मिलने की पूरी आशा थी। यद्यपि नौकरी की तलाश में निरन्तर भटकते रहकर भी वह अपनी रुचि और आवश्यकता के अनुरूप नौकरी प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकी थी, फिर भी वह निराश नहीं हुई थी और नौकरी के साथ-साथ अपनी सामर्थ्यानुसार आय के किसी अज्ञात स्रोत की खोज में जुट गयी थी।

आय के किसी अज्ञात स्रोत की खोज में निरन्तर सक्रिय रहने के अनंतर अचानक एक दिन पूजा की भेंट एक ऐसे व्यक्ति से हुई, जो विभिन्न विद्यालयों के छात्र-छात्राओं की यूनीफॉर्म तैयार कराके बेचता था। वह स्वयं जाकर विद्यलाय संचालकों से ऑर्डर लाता था और ऑर्डर के अनुसार बाजार से कपड़ा खरीदकर स्वंय कपड़े की कटाई-छँटाई करके सिलाई-कार्य में निपुण कारीगरों से सिलाई करवाता था। पूजा ने उस व्यक्ति से प्रेरित होकर अपनी आय के स्रोत के रूप में उसी कार्य को करने का निश्चय किया । यद्यपि पूजा ने कभी भी सिलाई-कटाई का औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया था, तथापि अपने बचपन में माँ को सिलाई-कटाई करते देखकर अनायास ही कपड़ों की कटाई-छँटाई और सिलाई करना सीख लिया था। आज अपने उसी हुनर को वह अपनी आय का स्रोत और स्वावलम्बन का आधर बनाने जा रही थी ।

यूनीफॉर्म के सिलाई-कार्य को एक कुटीर-उद्योग के रूप में आय का स्रोत बनाने के लिए पूजा को पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता थी, जिसका पूजा के पास अभाव था । अतः पूजा ने निश्चय किया कि पहले वह प्रति पीस की दर से पारिश्रमिक लेकर कार्य करेगी और पूँजी की व्यवस्था होने पर अपना स्वयं का कार्य आरंभ करेगी।

पूजा की आशानुरूप उस सज्जन व्यक्ति ने पूजा को सिलाई के लिए किसी जमानत के बिना पर्याप्त कार्य दे दिया और यह भी आश्वासन दिया कि यदि वह अच्छा कार्य करेगी, तो वह भविष्य में पूजा को कच्चा माल दिलाने में तथा ऑर्डर लेने में भी उसकी सहायता कर सकता है । इस व्यक्ति से सिलाई-कार्य मिलने पर तथा भविष्य में उसकी सहायता और मार्गदर्शन का आश्वासन पाकर पूजा को ऐसा अनुभव हो रहा था कि स्वयं ईश्वर ने उस व्यक्ति को पूजा की सहायता करने के लिए भेजा है।

दिन-रात कठोर परिश्रम करके भी सिलाई-कार्य से पूजा मात्र इतना ही धनार्जन कर पाती थी, कि बड़ी कठिनाई से वह घर में खाने-पीने की व्यवस्था कर सके। अतः उसने सिलाई का औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त करने का निश्चय किया, ताकि प्रशिक्षण प्रमाण-पत्र के आधार पर वह किसी सिलाई प्रशिक्षण-केन्द्र पर शिक्षण-प्रशिक्षण कर सके और शेष समय में घर पर सिलाई-कटाई का कार्य कर सके।

अपने निश्चय के अनुसार पूजा प्रतिदिन दो घंटे का समय सिलाई-प्रशिक्षण लेने में व्यतीत करती थी, शेष समय घर पर सिलाई-कार्य करती थी । अपनी लगन और परिश्रम से उसने छः माह में सिलाई-डिजाइनिंग का प्रशिक्षण लेकर इसका प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिया। छः माह का प्रशिक्षण प्राप्त करते ही सौभाग्यवश पूजा को एक निजी कन्या पाठशाला में अस्थायी शिक्षिका के रूप में नियुक्ति मिल गयी।

नौकरी मिलते से पूजा की व्यस्तता बढ़ गयी । वह बच्चों को स्कूल भेजकर स्वयं स्कूल के लिए निकल जाती थी । वहाँ पर ईमानदारी और परिश्रम से अपना शिक्षण-प्रशिक्षण देकर दोपहर में घर लौटती थी । आते ही वह रसोईघर का कार्य सम्पन्न करके पुनः सिलाई करना आरम्भ कर देती थी, ताकि जो ऑर्डर उसको मिलते थे, उन्हें पूरा करने में में तय समय से विलम्ब न हो जाए !

अपनी कर्मशीलता और व्यस्तता से पूजा बहुत प्रसन्न और सन्तुष्ट थी । दिन-भर कठोर परिश्रम करके भी वह न तो थकान का अनुभव नहीं करती थी और न ही उसको किसी प्रकार का तनाव लेने का समय मिलता था । अब वह इतना धनार्जन कर लेती थी कि अपनी तथा बच्चों की आवश्यकताओं को सहज ही पूरा करके कुछ न कुछ बचत भी हो जाती थी । लगभग तीन महीने में पूजा ने अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद इतनी बचत कर ली थी कि वह नयी सिलाई मशीन तथा अन्य उपकरण खरीद सके और कच्चे माल की व्यवस्था कर सके, ताकि वह पारिश्रमिक पर सिलाई करना बन्द करके अपना स्वयं का सिलाई-कुटीर-उद्योग स्थापित कर सके !

तीन महीनें तक थोड़ी-थोड़ी बचत करके जमा की गयी पूँजी से पूजा ने अपना सिलाई-कुटीर-उद्योग स्थापित कर लिया था। अपने सिलाई-उद्योग में उसको अपेक्षाकृत अधिक कठोर परिश्रम करना पड़ता था । अब उसकी आय इतनी हो गयी थी कि रणवीर से गुजारा-भत्ता लेने की आवश्यकता नहीं रह गयी थी, परन्तु फिर भी वह अपना केस वापिस नहीं लेना चाहती थी। अब गुजारे-भत्ते का केस लड़ना उसकी आवश्यकता नहीं थी, बल्कि अपने अथिकार के प्रति जागृति और अथिकारों का हनन करने वालों के विरुद्ध संघर्ष की खुली घोषणा थी। यद्यपि अपने बहुमूल्य समय को तथा कठोर परिश्रम करके अर्जित किये गये धन को वह कोर्ट के चक्कर लगाने में अपने धन तथा समय का अपव्यय समझती थी और ऐसा करके उसको अत्यधिक पीड़ा होती थी। फिर भी, वह अपने बहुमूल्य समय और धन का दुरुपयोग (उसके विचार में) करके सदैव निश्चित समय पर कोर्ट में पहुँच जाती थी, क्योंकि अब कोर्ट में इस केस का जीतना उसके लिए अपनी शक्ति और सामर्थ्य को सिद्ध करने का विषय बन गया था।

पूजा के अभूतपूर्व साहस से रणवीर आश्चर्यचकित था। उसने कभी अनुमान भी नहीं किया था कि धमकी के रूप में भेजे गये तलाक-पत्र का उसकी पत्नी इस प्रकार उत्तर दे सकती है। उसकी दृष्टि में पूजा एक ऐसी सीथी-सादी पतिव्रता गृहिणी थी, जिसका पति उसका मनचाहा शोषण कर सकता है, जितना चाहे अत्याचार कर सकता है, फिर भी वह पतिव्रता-पत्नी घर की दहलीज पार करने का साहस नहीं कर सकती, क्योंकि वह घर से बाहर की दुनिया से परिचित नहीं है और न ही उसमें बाहरी दुनिया में कदम रखने की, उसमें विचरने की सामर्थ्य है !

अपने संघर्षशील स्वभाव और सफलता से पूजा ने आज रणवीर को गलत सिद्ध कर दिया था। उसने अपनी कर्मठता तथा साहस से शक्ति का संचय करके रणवीर को बता दिया था कि वह अन्याय के समक्ष झुकने वाली नहीं है। उसने बता दिया था कि एक स्त्री अपने परिवार को बचाने के लिए, अपने परिवार की सुख-सम्पन्नता के लिए सब कुछ सहन करती रहती है, लेकिन इसका आशय यह नहीं समझना चाहिए कि वह अबला है । वह पुरुष के अत्याचार और अन्याय सहन करने में तथा उसे क्षमा करने में भी अपनी शक्ति का परिचय देती है और जब पुरुष के अहंकार का पानी सिर से ऊपर चला जाता है, तब उसी की भाषा में प्रत्युत्तर देने के लिए वह अपनी मातृ-शक्ति के उदार रूप को परिवर्तित करके उग्रता धरण करती है।

पूजा के उग्र और अड़ियल व्यवहार को देखकर रणवीर की सोच में लचीलापन आने लगा। उसको आभास होने लगा कि यदि पूजा अपने निश्चय पर दृढ़ रही, तो वह दिन दूर नहीं है जब कोर्ट गुजारा-भत्ता देने के लिए उसको बाध्य करेगा। तब उसको पत्नी से पराजित होकर उसकी इच्छा-आवश्यकता के अनुसार गुजारा-भत्ता देना पडे़गा ।

गुजारा-भत्ता देने की बाध्यता से बचने के लिए रणवीर को एक युक्ति सूझी। उसने एक-एक करके कुछ समय के अन्तराल से अपने कई ऐसे मित्रों को पूजा के पास भेजा, जिनसे पूजा भली-भाँति परिचित थी। पहली बार रणवीर का वह मित्र आया, जिसने पूजा और रणवीर के बीच की कटुता को दूर करने का सदैव ही प्रयत्न किया था । उसने आकर पूजा को समझाया कि पति-पत्नी के झगडे़ में बच्चों का भविष्य दिशाहीन हो जाता है, इसलिए व्यर्थ की हठ को त्याग कर दोनों को परस्पर समझौता कर लेना चाहिए और मिलकर रहना चाहिए। पूजा ने उसका समर्थन किया कि वह भी लड़ाई-झगड़ा करने के पक्ष में नहीं है, लेकिन जब रणवीर ने विवश कर दिया, तब उसको आगे बढ़ना पड़ा । पूजा के साथ रणवीर के मित्र की बातों का प्रवाह अब उसी दिशा की ओर हो चला था, जिस ओर वह चाहता था। पर्याप्त समय तक उन दोनों में बातें होती रहीं और दोनों ही इस विषय पर एकमत थे कि दाम्पत्य-सम्बन्धों में मधुरता रखने के लिए पति-पत्नी को सदैव एक-दूसरे के साथ सामंजस्य करना चाहिए। चर्चा के विषय का विस्तार जब इस बिन्दु तक पहुँच गया कि अपने परिवार के हित-कल्याण के लिए पति-पत्नी को एक दूसरे के दोषों को क्षमा करके परस्पर मिलकर रहना चाहिए, तब रणवीर के मित्र ने पूजा से कहा -

‘‘भाभी जी, रणवीर की चिन्ता आप छोडिये ! उसको मैं समझाऊँगा और उसको घर लेकर आऊँगा ! मुझे पूर्ण विश्वास है कि वह मेरी बात मानेगा !’’

‘‘भाई साहब, रणवीर को आप अब समझायेंगे ? आप उस दिन से कहाँ थे जब.....?’’

‘‘मैने अभी बताया था न, मुझे आप दोनों के बीच बढ़ती हुई दूरी के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं था, वरना बात यहाँ तक बढ़ती ही नहीं ! आप अपना गुजारे-भत्ते का केस वापिस ले लीजिए, उसके बाद मैं सब कुछ ठीक करा दूँगा ! मैं जानता हूँ, आप रणवीर को बहुत प्रेम करती हैं और रणवीर भी इतना बुरा नहीं है, जितना ......!’’

‘‘मैं इस समय तो केस वापिस लेने के विषय में आपसे कुछ नहीं कह सकती हूँ ! पर, चूँकि तुम्हारी सभी बातें उचित है, इसलिए मैं सोचकर, अपने वकील से परामर्श करके दो चार दिन पश्चात् अपना निर्णय बताऊँगी !’’

इतना आश्वासन देकर पूजा ने रणवीर के मित्र को विदा कर दिया और अपने कार्य में व्यस्त हो गयी। अपने कार्य की व्यस्तता के कारण पूजा केस वापिस लेने के विषय में अपने वकील से परामर्श करना भूल गयी। दो दिन पश्चात् रणवीर के उसी मित्र का फोन आया कि पूजा अपना केस कब वापिस ले रही है ? वह पूजा से इस प्रकार आग्रहपूर्वक अपने विचार व्यक्त करता था कि पूजा उसके प्रति नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं कर पाती थी । अतः पूजा ने अपने वकील से सम्पर्क करके परामर्श किया कि इस स्थिति में उसके लिए क्या करना हितकर होगा ? पूजा के वकील ने पूजा को समझाया कि केस को वापिस लेकर उसके पास कुछ शेष नहीं रह जाएगा ! यदि रणवीर के हृदय में कपट नहीं है, तो वह घर आ सकता है ! यह केस उसके घर आकर प्रेमपूर्वक रहने में किसी प्रकार बाधक नहीं है। कोर्ट कें माध्यम से पत्नी और बच्चों को खर्च देकर भी वह अपने परिवार के साथ सस्नेह रह सकता है। इसके विपरीत कोर्ट से गुजारा-भत्ता देने की बाध्यता से मुक्त होकर वह पूर्णतः स्वच्छन्द हो सकता है, उस पर किसी प्रकार का अंकुश नहीं रह जाएगा।

पूजा को वकील का परामर्श तर्कपूर्ण लगा । अतः उसने फोन करके रणवीर के मित्र के समक्ष स्पष्ट कर दिया कि वह गुजारे-भत्ते का केस किसी भी दशा में वापिस नहीं लेगी। पूजा का नकारात्मक उत्तर पाते ही उसको समझाने के लिए तथा कोर्ट के झंझट में पड़ने के नकरात्मक प्रभावों को बताने के लिए अगले दिन रणवीर का दूसरा मित्र आ पहुँचा। इसके पश्चात् तीसरे, चौथे मित्र और एक दो रिश्तेदार भी आये, जिन्होंने क्रमशः एक ही बात के विषय में पूजा को समझाया कि वह कोर्ट के झंझट में न फँसे और अपने गुजारे-भत्ते का केस वापिस ले ले ! लेकिन, पूजा ने प्रत्येक व्यक्ति को नकारात्मक उत्तर देकर अपना मत स्पष्ट शब्दों में प्रकट करते हुए कहा -

‘‘रणवीर चाहे तो घर वापिस आ सकता है, मुझे कोई आपत्ति नहीं है ! किन्तु, मैं अपना केस वापिस नहीं ले सकती, क्योंकि रणवीर से गुजारा-भत्ता पाना मेरा अध्किार है ! रणवीर यदि घर पर आकर मेरे साथ रहता है, तो इस दशा में उसको वाणी से अपना सम्बन्ध तोड़ना पडे़गा ! साथ ही गुजारा-भत्ता तब भी कोर्ट के माध्यम से देना होगा ! यदि रणवीर तलाक लेना चाहता है, तो मैं विरोध नहीं करूँगी सहज ही तलाक दे दूँगी !’’

अभी तक रणवीर स्वयं आकर पूजा से इस विषय पर चर्चा करने से बचता रहा था । अपने मित्रों के प्रयास का अनुकूल परिणाम न पाकर अब वह स्वयं घर आया और पूजा को गुजारे-भत्ते का केस वापिस लेने के लिए आग्रह किया। पूजा का उत्तर अब भी वही था । पूजा के दृढ़ निश्चय को देखकर तथा अपने प्रयास का नकारात्मक परिणाम पाकर रणवीर विचलित हो गया।

रणवीर के विचलित होने का कारण पूजा को समझ में नहीं आ रहा था । एक ओर रणवीर ने अपने बच्चों के तथा पूजा के साथ रहने की इच्छा व्यक्त करते हुए उसका सारा खर्च वहन करने की सहमति प्रकट की थी, तो दूसरी ओर वह गुजारे भत्ते के नाम पर मुकर रहा था ।

पूजा रणवीर के इस व्यवहार के कारण के विषय में विचार किये बिना न रह सकती थी । उसने सोचा -

‘‘यदि रणवीर अपने परिवार के साथ रहकर परिवार के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह करना चाहता है, तो गुजारे-भत्ते का केस वापिस लेने का इतना आग्रह क्यों ? सम्भव है, एक बार वह फिर मेरी क्षमाशीलता और भोलेपन का लाभ उठाने के लिए यह मेरे निर्णय से व्यथित होने का अभिनय कर रहा हो ! या तलाक के लिए मेरी सहमति देखकर विवाहेतर संबंध बनाकर आन्दोपभोग करने वाले रणवीर को अपने स्थायी संबंध से वंचित होने का भय सता रहा है ? जो भी हो, इसका सटीक उत्तर समय ही दे सकता है !"

डॉ. कविता त्यागी

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