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डर की वो रात

दोस्तों आज जो मे वाक्या आप से share करने जा रहा हु ये मेरे एक रिस्तेदार के साथ घटी हुई घटना है. आगे की कहानी मे उनकी जुबानी आप को सुनाऊंगा .

मे राजस्थान के एक छोटे से गांव मे रहता हु और खेतीबाड़ी करके अपने परिवार को पालता हु. मेरा खेत मेरे गांव से तक़रीबन 5 km दूर हे, अकसर मे रात को खेतमे बने कमरे मे रुक जाया करता था.

एक रात मे खेत मे ही था क्युकी रात को फसल को पानी देना था तो वही रुक गया था . पर उस दिन पता नहीं मेरे मन मे क्या आयी के मेने घर जाने का सोचा.

रात के 2:30 बज चुके थे और मेरे घर के रास्ते मे एक ऐसी भी जगह आती थी जो काफी बदनाम थी. आये दिन वहां कुछ ना कुछ घटना बनती रहती थी, लोग कहते हे वहां एक औरत का की आत्मा भटकती थी जो देर रात आने जाने वालों को कभी दिखती या तो कभी परेशान करती थी.

हलाकि आज तक मेरा कभी उस जगह ऐसा अनुभव नहीं हुआ था सो मे निश्चिंत था, पर जरूरी नहीं हे जो कभी ना हुआ हो वो कभी ना हो !

बस मे उस मोड़ पे दाखिल हुआ. मे अपनी साइकिल से जा रहा था आसपास सिर्फ झाडिया ही थी और अंधेरा तो इतना के 5 कदम दूर कोई खड़ा हो तो भी ना दिखे. घनघोर अँधेरेमे मे अपनी साइकिल से जा रहा था, थोड़ा आगे जाते ही मेरी साइकिल भारी हो गयी जैसे पता नहीं पीछे कोई बैठ गया हो साइकिल पे.

कहते हे ऐसे वक़्त पीछे मूड के नहीं देखते सो मेने ये बात ध्यान मे रखकर मुडकर कौन हे ना देखा.

पर अब जैसे कोई पीछे से साइकिल को खींच खींच के रोक रहा हो ऐसे झटके मार रहा था. मेरे तो जैसे प्राण ही सुख गए. मे समज चूका था ये कोई और नहीं उसी औरत की आत्मा हे.
पीछे मूड के देखने की तो मुझ मे हिम्मत ही नहीं थी पता नहीं कोनसा रूप हो उसका.

इसलिए मे अपनी साइकिल से उतर गया और चलते हुए साइकिल ले कर आगे बढ़ा, पर अब साइकिल फिर भारी हो गयी मानो वो फिर साइकिल की पिछली सीट पर बैठ गयी हो.

मेने अब साइकिल छोड देना ही मुनासिफ समजा और मे साइकिल वही पटक कर तेज चलने लगा. थोड़ा चलते ही मेरी साइकिल जैसे किसी ने बड़ी ताकत से उठाकर फेंकी हो ऐसे मेरे आगे जाकर पडी. और धीरे धीरे हसने की आवाज आने लगी और एक दम छे हसना बंद कर के अपनी भारी आवाज मे बोली
“अपनी साइकिल तो लेता जा मंजूलाल “.

अपना नाम सुनकर मे डर के साथ अचम्बे मे पड़ गया और इतना सुनते ही मे अपना पूरा जोर लगाकर दोडने लगा .ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मेरे ठीक पीछे वो भी दौड़ रही हो पर मेने अब भी पीछे मुडकर ना देखा. पर मे ज्यादा देर तक खुद को रोक ना पाया और आगे जाकर मेने मूड के देख ही लिया .

अँधेरे के वजह से ठीक से तो ना देख पाया पर अच्छे खासे डील डोल वाली और बिखरे हुए बालो वाली डरावनी चुड़ैल जैसी दिख रही थी. उसकी आँखों की सफेदी दूर से ही दिख रही थी. अब वो धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ रही थी, उसकी चाल बहोत डरावनी थी.

इतना देखते ही मे फिर जोर लगा के दौड़ा मेरे घर आ ही गया था मेने बिना दरवाजा खटकाये बरामदे की दिवार कूद के अंदर घुस गया. जैसे ही अंदर पहोंचा मे बाहर से उसकी वही भारी आवाज मे बोली,

"आज तो बच गया मंजूलाल, दोबारा मेरे घर के आस पास मत आना वरना जान से हाथ धो बैठेगा ."

मे तेजी से ऊपर कमरे मे जाकर दुबक के कम्बल मे घुस गया. मुझे तेज बुखार आ गया था और मैं पूरा शरीर डर से काँप रहा था. मे पूरी रात यही सोच मे जागता रहा.
1-2 दिन बाद थोड़ा स्वस्थ होकर मेने गाँव के कुछ लोगो को ये सब बात बताय, तब जानने को मिला की जहा मेरे साथ ये घटना बनी वहां काफी सालो पहले 2 घर हुआ करते थे.
एक घर मे ये औरत अपने एक बच्चे के साथ रहती थी और पड़ोस मे एक पूरा परिवार रहता था. दोनों घरों मे बहोत झगड़े होते थे, वो ये चाहते थे की ये औरत उनको अपना घर बेच दे इसलिए उस औरत को बार बार परेशान करते . काफी बाहुबली लोग थे वो लोग इसलिए कोई उस औरत की मदद करने मे भी डरते.

एक दिन उस औरत की और बच्चे की किसी ने सर काटकर हत्या कर दी. कोई सबूत ना मिलने के वजह से किसीका नाम भी सामने ना आया. तबसे इस औरत की आत्मा वहां भटक रही हे. पड़ोस वाले भी कुछ दिनों मे घर छोड कर शहर मे चले गए. और दोनों घर तुड़वा दिए ये सोच कर की है उस औरत की आत्मा चली जाएगी पर ऐसा कुछ ना हुआ.

कई सालो बाद आज भी रात को वो वहां भटकती हे और आज भी उस जगह को अपना घर मानती हे, और अगर कोई रात को वहां से निकले तो ऊपर जो मेरे साथ हुआ ऐसा ही कुछ होता हे .

उस दिन के बाद मे कभी रात को उस जगह से नहीं निकला. हलाकि कभी कभी दिन मे वहा से गुजरते समय एक सिहरन से शरीर मे दौड़ जाती हे.

शायद वो औरत आज भी अपने और अपने बच्चे का सर काट ने वाले का इंतज़ार कर रही हे.