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रोता प्रेत

सबसे पहले आप सभी का धन्यवाद की आप ने मेरी सभी कहानियो को इतना पसंद किया .अगर कही कोई कमी लगे तो आप अपना प्रतिभावा जरूर दे comment कर के.

दोस्तों आज की कहानी एक अति उत्साही युवक की हे की कैसे वो अपने अति उत्साह की वजह से मुश्किल मे पड़ गया.
विजय राजस्थान के जयपुर मे रहता था, ये तब की बात हे जब विजय कॉलेज के दूसरे वर्ष मे अभ्यास करता था. कॉलेज की छुट्टिआ थी सो विजय न सोचा चलो मामा के नये घर 10-12 दिन घूम आते हे, हाल ही मे विजय के मामा ने नया घर लिया था
सो उसने अपना सामान बंधा और चल दिया मामा के घर, विजय की मामा जयपुर मे ही रहते थे.

विजय के मामा के एक लड़का था और उसका नाम अरुण, जो तक़रीबन विजय की हमउम्र था. दोनों मे काफी बनती भी थी,

अरुण काफी खुश हुआ विजय को देख कर, वैसे भी वो भी नयी जगह पे अकेला बोर हो रहा था सो उसे अब एक कंपनी मिल गयी.

दिन भर काफ़ी मस्ती की दोनों ने, अब रात हुई, क्युकी गर्मिओ का वक़्त था तो दोनों ने सोचा की घर के बाहर ही खाट लगा कर सोते हे. सो दोनों ने अपनी अपनी खाट पास पास मे लगा ली और फिर बातो मे लग गए.

विजय की नजर सामने एक 3-4 मंजिला बिल्डिंग पर गयी जो पूरी तरह खाली और खण्डेर अवस्था मे थी. बिजय ने अरुण से पूछा यार अरुण ये सामने की बिल्डिंग मे कोई रहता नहीं हे क्या ?
अरुण ने थोडा असहज हो के बताया की नहीं ये बिल्डिंग काफी वक़्त से खाली हे नहीं कोई यहाँ घर लेते हे ना रहने आता हे और जो रहते थे वो भी काफी सालो पहले चले गए यहाँ से.

विजय ने आश्चर्य से पूछा क्यों ऐसा क्या हे वहांपे जो लोग नहीं रहते?

अरुण ने बताया की सुना हे उस बिल्डिंग की पिछले हिसे मे रोज रात को एक प्रेत आता है.
ये सुन कर विजय अति उत्साहमे आ के पूछने लगा की फिर फिर क्या करता है वो प्रेत?

अरुण ने बताया की सुना हे बहुत साल पहले एक आदमी रात को छत से गिर गया था और उसकी वही मौत हो गयी थी.
सुना है रोज रात को वो प्रेत वहां जहा छत से गिर कर मौत हुई थी वहां बैठा होता है या फिर छत पे दीखता है.

कई लोगो ने उसकी मौत की बाद उसको छत पे या निचे पेड़ के पास बैठे रोते हुए देखा है तबसे वहां रहने वाले लोग चले गए और कोई आता जाता भी नहीं है. बस इतनी कह कर अरुण ने बोला चलो अब सो जाओ वरना सुबह नहीं पाएंगे.

अरुण की ये सब बाते सुन कर विजय पता नहीं मन मे क्या सोचकर खुश होने लगा.

रात की 2:30 बजे विजय उठता है और धीरे से उस बिल्डिंग की और चलने लगता है
दरअसल वो देखना चाहता था के ये भूत प्रेत होते भी है या नहीं,

विजय बिल्डिंग की एंट्रेंस मे पहोच कर थोडा सहम गया क्युकी काफी अंधेरा था. बिल्डिंग काफी सालो से खंडर अवस्था मे थी, जगह जगह पेड़ पौधे निकल आये थे,

विजय संभल संभल कर आगे बढ़ता है, एक दम से एक ठंडी हवा का झोका उसके पास से गुजरता है, ये महसूस कर के विजय गभरा जाता है, विजय बिल्डिंग के पिछले हिस्से मे अब पहुंच जाता हे,
पिछले हिस्से का मंजर देख कर वैसे ही कोई भी डर जाए,
खंडर ईमारत की बंद मकानों की खिड़किया से झांकता अंधेरा ऐसा एहसास दिलाता की अंदर से कोई देख रहा हो ,
हवा से बंद होते खुलते दरवाजो की आवाज और पेड़ से गिरे सूखे पतों की आवाज विजय के शरीर मे एक सिहरन सी पैदा कर रही थी.

एक बड़े सूखे पेड़ के निचे विजय को कुछ दीखता हे कुछ आभास होता हे, डर की बावजूद विजय करीब जाकर देखने का मन बनाता हे, धीरे धीरे विजय करीब जाने को अपने कदम बढ़ता हे.
अचानक उसके कदम रूक जाते हे क्यों की अब उसने जो देखा वो किसी की भी जान सूखा दे,

एक आदमी पेड़ के निचे विजय की तरफ पीठ करें सफ़ेद लिबाज़ मे बैठा रो रहा था, उसकी रोने की आवाज बहुत अजीब और डरावनी थी. विजय ने अटकती हुई आवाज मे पूछा उसे कौन कौन हो तुम?

इतना बोलते ही वो आदमी धीरे धीरे घूम ने लगा विजय की तरफ, विजय ने जैसे ही उसका चेहरा देखा उसके प्राण ही सुख गए, बड़े बड़े अस्तव्यस्त बाल, चेहरा सफ़ेद बिलकुल, आँखों की जगह खाली गड्डे और उनमे से निकलता खून , और टेड़ी एक तरफ झुकी गर्दन.

ये सब देख की विजय के हाथ पैर कापने लगे, वो मुडकर तेजी से पूरी जान लगाकर दौड़ा, गिरते पड़ते वो अपने मामा के घर पंहुचा और बिना किसी को कुछ कहे चुप चाप अपने बिस्तर पे सो गया. सोता तो क्या बस वही सब जो कुछ लम्हो पहले देखा वो ही आँखों के सामने घूम रहा था.

उसने जिसे देखा वो वही प्रेत था जिसके बारे मे अरुण ने बताया था.
दूसरे दिन सुबह भी विजय एकदम से खामोश था मामा मामी अरुण सब ने पूछा पर उसने कुछ भी ना बताया ,विजय बहुत डर चूका था.

दूसरे दिन रात को बाहर अरुण और विजय सो रहे थे, विजय ने देर रात जब करवट बदली तो देखा वो ही प्रेत उसके बिस्तर के सिरहाने के पास खड़ा था और विजय को ही देखे जा रहा था और डरावनी आवाज मे रो रहा था .

विजय तो हाका बका रह गया , चिल्ला ना चाहा पर मानो हलक मे ही आवाज दबा कर रह गयी.

उसने जोर से अरुण खटिया को लात मेरी जिस से अरुण उठ गया पर अरुण को कुछ ना दिखा, अब अरुण को विजय न सब बता दिया पर कसम भी दी क ये बात घर मे किसी को ना बताये.
तीसरे दिन अरुण और विजय दोनों घर मे सोये पर जब देर रात विजय की आँख खुली तो उसने देखा वही प्रेत उसके कमरे की खिड़की पे खड़ा उसीको को देख रहा था.

विजय ने फिर अरुण को उठाया और खिड़की की तरफ इसरा किया, अरुण को कुछ नहीं दिख रहा था पर वो प्रेत विजय की और देख कर रोये जा रहा था.

विजय बहुत डर गया था, अब विजय सुबह होने का इंतजार कर रहा था की कब सुबह हो और वो अपने घर चले जाय.

सुबह होते ही बिजय ने अपने मामा मामी को घर जाने की बात बताई, उनको भी विजय का 2-3 दिन से हाव भाव अलग लग रहे थे और ऐसे अचानक जाने को कहा तो उन्हें और भी असहज लगा .

मामा मामी ने जोर देकर पूछा तो विजय ने सारी बात बता दी.
मामा ने विजय पर गुस्से होते हुए कहा तुम्हे पता हे तुमने क्या पागलपन किया हे, तुम्हे वहां नहीं जाना चाइये था , जिन लोगो का गलती से भी उस प्रेत से सामना हो गया उनका बुरा हाल हुआ हे और तुम तो सब जान ने के बाद वहां गए.

मामा ने आगे कहा उस बिल्डिंग की छत पे से 4-5 लोगो ने मिलकर उस्की हत्या कर क ऊपर से निचे फेक दिया था और वो आदमी उस पेड़ के पास जा कर गिरा और वही उसने दम तोड़ा.

उसके गुनेहगारो को सजा भी ना हुई इसीलिए वो भटक रहा हे और वही पेड़ के निचे आकर रोज रात को रोता हे और कभी कभी छत पे भी दीखता हे.

तुम एक काम करो अभी के अभी मे तुम्हे अपने घर छोड कर आता हु, विजय क मामा विजय को लेकर छोडने गए.
रास्ते मे आते हनुमाजी के मंदिर पर पंडित जी से दौरे धागे करवाये और जब मंदिर से निकले तब विजय ने देखा वो प्रेत उसे दूर पेड़ क पीछे से देख रहा था.

विजय ने दोड़कर अपने मामा का हाथ पकड़ लिए और मुँह फेरकर निकल जाता हे.
उस दिन क बाद विजय कई सालो तक उसके मामा के घर नहीं आया.

काफी सालो बाद जब विजय आया तब सबकुछ बदल चूका था, वो बिल्डिंग तोड़ दी गयी थी पर पेड़ अबभी वहां था, अब ये हादसे वहां और बढ़ गए थे, आये दिन वो प्रेत किसी ना किसी को दिख ही जाता हे, पर विजय कभी मुडकर भी उस तरफ नहीं देखता हे.

अब विजय भी काफी बदल चूका था, एक समय का अति उत्साही विजय अब सेहमा सेहमा सा रेहने लगा हे , आज भी वो रात को कई बार उठकर अपने सिरहाने और खिड़की की और शक की निगाहो से देखता हे के कही वो प्रेत फिर से तो नहीं आ गया.