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आघात - 40

आघात

डॉ. कविता त्यागी

40

वाणी के विषय में सोच-सोचकर मुस्कराते हुए रणवीर अपने आॅफिस में लौट गया। उसके आने के लगभग एक घन्टा पश्चात् उसके लिए आॅफिस के नम्बर पर फोन आया। फोन पर वाणी ने कहा था कि रणवीर का मोबाइल स्विज आॅफ है और साथ ही यह भी पूछा कि वह आॅफिस में है या नहीं ? रणवीर ने अपने आॅफिस कर्मचारी को संकेत से कहा था कि वह फोन करने वाले व्यक्ति को बताये कि रणवीर वहाँ नहीं है ! उसकी आज्ञा का पालन करके कर्मचारी ने वही कहा, जो रणवीर चाहता था । दस-पन्द्रह मिनट पश्चात् वाणी का फोन पुनः आया। इस बार उसने यह नहीं पूछा था कि रणवीर वहाँ है या नहीं है ? बल्कि स्पष्ट और सीमित शब्दों में उसके कर्मचारी से कहा

‘‘फोन रणवीर को दो !’’ कर्मचारी ने फोन रणवीर की ओर बढ़ा दिया। रणवीर ने फोन रिसीव करके मुस्कराते हुए कहा - ‘‘हैलो ! वाणी ! अब कैसी तबियत है ?’’

‘‘तुम्हें क्या लगता है, तुम्हारी सहायता के बिना मैं मर जाँऊगी !’’

‘‘नहीं, डार्लिंग, मैं भला तुम्हें मरने कैसे दे सकता हूँ !"

‘‘तुम ? तुम मुझे मरने नहीं दे सकते हो ? तुमने तो मुझे अस्पताल में मरने के लिए बिस्तर पर पड़ा हुआ छोड़कर अपना मोबाइल स्विच आॅफ कर लिया !’’

‘‘नहीं डार्लिंग, ऐसी बात नहीं हैं ! मेरा मोबाइल स्विच आॅफ हो गया था ! यह बताओ, अब तुम्हारा स्वास्थ्य कैसा है ?’’

‘‘रणवीर ! तुम मेरे सामने चालाक बनने की कोशिश मत करो ! मेरी बात ध्यान से सुनो ! चैबीस घंटे में यदि तुम मेरे पास लौटकर नहीं आये, तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा ! परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना !’’

वाणी का क्रोध अपने चरमोत्कर्ष पर था । अतः रणवीर ने उसके क्रोध को शान्त करते हुए प्रेम से कहा -

‘‘वाणी डार्लिंग, गुस्सा करना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है ! मैं आॅफिस का कार्य पूरा करके तुम्हारे पास ही आने वाला था ! तुम्हारा फोन अब नहीं आता, तो भी मैं तुम्हारे पास अवश्य ही आता ! मुझे बुलाने के लिए तुम्हें बीमार होकर हॉस्पिटल जाने की आवश्यकता नहीं है !’’

आॅफिस का काम पूरा करके रणवीर सीधा वाणी के घर पहुँचा। वाणी क्रोध से भरी हुई उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। रणवीर के प्रवेश करते ही वह क्रोधित होकर कटु स्वर में बोली -

‘‘रणवीर ! तुम्हें आज स्पष्ट करना होगा कि तुम मेरे साथ रहोगे या पूजा के साथ ?’’

‘‘यह कैसा प्रश्न है ?’’

‘‘यह वही प्रश्न है, जिसे पूछने के लिए तुमने मुझे विवश कर दिया है ! मेरे पास तुम्हारी एक-एक गतिविधि की सूचना रहती है कि तुम कब क्या कर रहे हो ? कब किसके साथ रहकर किसके लिए कितना खर्च कर रहे हो ? समझे तुम ?’’

‘‘मतलब, तुमने मेरे पीछे जासूस लगा कर रखे हैं ! ’’ रणवीर ने मुस्कराकर कहा ।

‘‘कुछ ऐसा ही समझ सकते हो तुम !’’

‘‘क्यों ? तुम्हे मुझ पर विश्वास नहीं है ?’’

‘‘विश्वास की बात छोड़ो तुम ! बस इतना याद रखो कि यदि तुम कल तक मेरे पास नहीं लौटे, तो ...........!

‘‘तो क्या ? और कल तक क्यों ? मैं तो आज ही तुम्हारे पास लौटकर आ गया हूँ ! आॅफिस से सीधे तुम्हारे पास ही आया हूँ !’’

‘‘ऐसे नहीं, रणवीर ! तुम्हें पूरी तरह से मेरे पास लौटना पडे़गा !’’

‘‘पूरी तरह से ?’’

‘‘हाँ पूरी तरह से ! तुम्हें पूजा को तलाक देकर मेरे साथ रहना होगा ! यदि तुमने ऐसा नहीं किया, तो मैं तुम्हारे विरुद्ध शिकायत करुँगी कि वर्षों से तुम मेरे साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रहे हो और ... ! मेरे पास इस बात के पर्याप्त प्रमाण है और कोर्ट में इस बात को सिद्ध करने में मुझे कोई कठिनाई नहीं होगी !’’

वाणी के ऐसे कठोर शब्दों को सुनकर रणवीर हतप्रभ रह गया। उसने ऐसी कल्पना भी नहीं की थी कि वाणी उसके प्रति इतनी कटु हो सकती है।

‘‘वाणी ! आज तुम कैसी बहकी-बहकी बाते कर रही हो ? मैं तुमसे प्रेम करता हूँ ! तुम्हारे लिए मैनें अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ दिया, यह बात तुम भली-भाँती जानती हो ! मैं जानता हूँ कि तुम भी मुझे उतना ही प्रेम करती हो, जितना कि मैं तुम्हें करता हूँ ! फिर भी तुम ... !’’

रणवीर ने एक क्षण के लिए वाणी को आश्चर्य से देखते हुए समझाने का प्रयास करते हुए कहा था । परन्तु, वह रणवीर की बातें समझने के लिए तैयार नहीं थी । उसने शान्त और निर्णायक मुद्रा में कहा -

‘‘रणवीर ! तुम वाणी से बातें कर रहे हो, पूजा ने नहीं, जो तुम्हारी मीठी-मीठी बातों के जाल में फँस जाती है ! पूजा तुम्हारी पत्नी और सीधी-सादी घरेलू और पतिव्रता स्त्री है, इसलिए तुम्हारी झूठी बातों पर विश्वास कर सकती है और तुम्हारी गलतियों को क्षमा भी कर सकती है ! लेकिन मैं तुम्हारी पत्नी नहीं हूँ ! यदि तुमने मुझे धोखा देने का प्रयास किया, तो याद रखना तुम्हारा शेष जीवन सलाखों के पीछे व्यतीत होगा !’’

यह कहकर वाणी ड्राइंगरूम में से उठकर अपने कमरे में चली गयी और अन्दर से कमरे का दरवाजा बन्द कर लिया। रणवीर वहीं बैठा रहा और अपनी विषम परिस्थितियों के विषय में सोचने लगा कि एक ओर पूजा ने उसके विरुद्ध गुजारे-भत्ते का केस किया हुआ है । दूसरी ओर, वाणी भी उसके विरुद्ध कोर्ट में जाने के लिए तैयार खड़ी है ।

परिस्थिति की विषमता को देखकर अपनी जीत निश्चित करने के लिए रणवीर ने एक बार पुनः वाणी को समझाने का प्रयास करने का निश्चय किया। वह ड्राइँगरूम मेें से उठकर वाणी के कमरे के द्वार पर गया और उसका द्वार खटखटाने लगा। अन्दर से उसको वाणी का स्वर सुनाई दिया-

‘‘रणवीर ! मैंने अभी जो कुछ भी कहा है, वह मेरा अन्तिम निर्णय है ! यदि तुम अपना भला चाहते हो, तो तुम्हें अपनी भूल सुधारनी ही पडे़गी ! पूजा को तुम्हें छोड़ना ही पडे़गा !’’

‘‘डार्लिंग, तुम जानती हो न ? यह सब इतना आसान नहीं होता कि जब जो चाहें तभी हो जाए ! तुम यह भी जानती हो कि मेरा और पूजा का तलाक का केस कोर्ट में चल रहा है ! फिर भी ... ! ’’

‘‘तुम्हारा और पूजा का तलाक का केस चल रहा है, फिर भी पिछले तीन महीने से तुम उसके साथ रहकर दिल खोलकर पूजा और उसके बच्चों पर अपना पैसा लुटा रहे हो ! अब मैं इस विषय में तुमसे किसी प्रकार का स्पष्टीकरण नहीं चाहती हूँ ! मैं बस इतना चाहती हूँ कि तुम उनसे सम्बन्ध तोड़कर मेरे साथ रहो ! निर्णय तुम्हे करना है !’’

‘‘वाणी डार्लिंग ! एक बार दरवाजा तो खोलो !’’

‘‘नहीं ! तुम सोच-विचारकर अपना अन्तिम निर्णय ले लेना और मुझे बता देना तुम्हें किसके साथ रहना है ? अभी तुम जा सकते हो !’’

रणवीर किंकर्तव्यविमूढ़-सा वाणी के कमरे के बाहर खड़ा था, तभी रणवीर के मोबाइल पर एक काॅल आयी। काॅल प्रियांश की थी । प्रियांश ने अपने पिता को अपनी सहायता के लिए बुलाया था । अपने पड़ोस के हम-उम्र बच्चे के साथ उसका झगड़ा हो गया था। आरम्भ मेें दोनों बच्चों के बीच में किसी छोटी-सी बात को लेकर थोड़ा-सा वाद-विवाद हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे उस विवाद ने उग्र रुप धारण कर लिया और बात मार-पीट तक बढ़ गयी। प्रियांश के झगडे़ के विषय में ज्ञात होने पर रणवीर तुरन्त अपने घर की ओर चला पड़ा। जब वह घर पर पहुँचा, तब घर के बाहर आस-पास के लोगों की भीड़ जमा थी । रणवीर के पहुँचते ही वहाँ पर एकत्र सभी लोगों ने अपने-अपने पक्ष निश्चित कर लिये और अपना-अपना मत व्यक्त करने लगे । थोडे ही समय में कुछ प्रौढ़ और समझदार व्यक्तियों के सहयोग से विवाद सुलझ गया और भीड़ छँटने लगी थी । अभी भीड़ पूरी तरह छँटी नहीं थी, कुछ लोग वहाँ अभी भी खडे़ हुए थे और वे रणवीर से बातें कर रहे थे। तभी बातचीत करते-करते रणवीर ने एक रहस्यमयी घोषणा करते हुए अपनी मुखमुद्रा अचानक कठोर बना ली । रणवीर के शब्दों से वहाँ पर खडे़ हुए सभी स्त्री-पुरुषों के कान खड़े हो गये । उसने प्रियांश को सम्बोधित करके कहा-

‘‘अपने झगड़े स्वंय सुलझाना सीखो ! आज तो मैं आ गया हूँ, भविष्य में कभी मुझे बुलाने की हिम्मत मत करना !’’ प्रियांश, सुधांशु और पूजा सहित वहाँ पर खडे़ सभी लोग निर्निमेष रणवीर को देखने लगे और ध्यानपूर्वक सुनने लगे, आखिर यह क्या कहना चाहता है ? और इस प्रकार की बातें क्यों कह रहा है ? उसने पुनः कहना आरम्भ किया-

‘‘तुम जानते हो न कि तुम्हारी माँ के साथ मेरा कोर्ट में केस चल रहा है ? तुम्हारी माँ मेरे विरुद्ध कोर्ट में केस फाइल करती है और तुम उसके साथ हो ! तब तुम्हीं बताओ, मैं तुम्हारा साथ क्यों दूँ ?

‘‘लेकिन, पापा ! हमने तो कुछ नहीं किया है न ! आपके और मम्मी के बीच में हम....!’’ रणवीर ने प्रियांश का वाक्य पूरा होने से पहले ही वहाँ खडे़ हुए लोगों की ओर मुड़कर कहा -

‘‘आज के बाद मैं इन लोगों की किसी भी बात के लिए उत्तरदायी नहीं हूँ !

मेरा और पूजा का तलाक होने वाला है !’’

रणवीर की बात सुनकर पूजा और प्रियांश हतप्रभ थे । आज तक उन्होंने अपने पड़ोस में किसी को यह नहीं बताया था कि उनके सम्बन्धों की कटुता न्यायालय तक पहुँच चुकी है। यही नहीं, पड़ोस के अधिकांश लोगों को यह भी आभास नहीं था कि उनके सम्बन्धों में कटुता बनी हुई है। लेकिन आज अपनी मूर्खतावश रणवीर ने परिवार के प्रति अपनी कटुता का विष-वमन करके न केवल पूजा की तथा बच्चों की, बल्कि अपनी भी मान-प्रतिष्ठा को दाँव पर लगा दिया था ।

दूसरी ओर, आज तक बच्चों के हृदय में अपने पिता के प्रति इतनी कड़वाट नहीं थी, जितनी आज रणवीर के शब्दों से उत्पन्न हुई थी । केवल शब्दों से नहीं, शब्द तो वह इस प्रकार के न जाने कितनी बार कह चुका था । किन्तु, आज सेे पहले उसने ऐसे शब्द घर के अन्दर कहे थे, आज ये शब्द घर के बाहर खड़े होकर अनेक लोगों को साक्षी बनाकर कहे गये थे ।

रणवीर की बातों को सुनकर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त किये बिना ही पूजा घर के अन्दर आ गयी। प्रियांश भी सुधांशु का हाथ पकड़कर पूजा के पीछे-पीछे अन्दर की ओर चल दिया। प्रियांश को आज पिता का व्यवहार देखकर कुछ दिन पूर्व की वह घटना स्मरण हो आयी, जब एक पड़ोसी ने उससे रणवीर के विषय में यह जानने का प्रयास किया था कि उसके पिता प्रतिदिन घर पर क्यों नहीं आते हैं ? कई-कई दिन तक वे कहाँ रहते हैं ? प्रियांश ने यह घटना घर आकर पूजा को भी बतायी थी, तब पूजा ने अपने दोनों बेटों को अपने पास बिठाकर समझाया था -

‘‘बेटा, इस दुनिया में कोई भी मनुष्य पूर्ण नहीं होता है ! किसी व्यक्ति में कुछ दोष हैं, तो किसी व्यक्ति में कुछ ! किन्तु सभी में अपने कुछ गुण भी होते हैं ! सभी में भिन्न-भिन्न गुण हैं, भिन्न-भिन्न दोष हैं ! सभी के विचार भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं ! फिर भी, जब हमें किसी के साथ रहना है, तो उसके विचारों के साथ सामंजस्य तो करना ही पड़़ेगा ! जोे हमारे अपने होते हैं, उनके दोषों को तूल देकर समाज के समक्ष उन पर उँगली नहीं उठाते हैं ! ऐसा करके अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती है ! बेटा, कभी भी किसी के समक्ष अपने पापा की निन्दा मत करना - बन्द मुट्ठी लाख की होती है, खुलने पर खाख की रह जाती है ! जब तक घर के मतभेद घर के अन्दर हैं, तब तक जो मान-प्रतिष्ठा है, वह घर के मतभेद बाहर जाने पर नहीं रह जाएगी !’’

प्रियांश अपनी माँ द्वारा समझाये गये शब्दों को याद करते हुए सोच रहा था -

‘‘मैं आज तक माँ की शिक्षा और संस्कारों के अनुसार व्यवहार करता रहा हूँ ! पापा हमारे प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करें या न करें, मैेंने अपनी माँ के निर्देशानुसार उन्हें सदैव सम्मान दिया है ! किन्तु पापा ? उन्होंने क्या किया ? हमारे लिए उनके पास समय नहीं है, धन नहीं है, न हो ! कम से कम पड़ोसियों के समक्ष हमारे लिए ऐसे नकारात्मक सन्देश तो न दें कि आस-पास के कुछ सिर-फिरे लोग हमारा जीना मुश्किल कर दें !’’

प्रियांश पिता द्वारा बाहर खडे होकर कहे गये नकारात्मक शब्दों के नकारात्मक प्रभाव के विषय में सोचता हुआ घर के अन्दर जाकर शान्त, गम्भीर, चिन्तामग्न होकर बैठ गया । वहीं पर उसकी माँ पूजा तथा भाई सुधांशु बैठकर अपनी वर्तमान स्थिति पर चिन्तन-मनन करने लगे।

रणवीर अपने घर के बाहर खडेे़ हुए लोगों को अपना सन्देश देकर थोड़ी देर तक चुपचाप खडा रहा । उसके चेहरे के हाव-भाव से प्रतीत हो रहा था कि वह प्रियांश, सुधांशु और पूजा से अपने सन्देश की प्रतिक्रियास्वरुप कुछ ऐसी अपेक्षा कर रहा था, जिसमें वे उससे घर के अन्दर आने के लिए, उनसे सम्बन्ध नहीं तोडने के लिए तथा भविष्य में आवश्यकता पडने पर पुनः सहायता करने के लिए प्रार्थना करेंगे । रणवीर को कुछ देर तक वहाँ खडे़ होकर किसी असंभावित-अप्रत्याशित कार्य-व्यवहार की प्रतीक्षा-सी करते देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो अभी-अभी उसने जो कुछ नकारात्मक शब्द कहे थे, वे उसने अपने विवेक से नहीं कहे थे, बल्कि किसी दैवी शक्ति के वशीभूत होकर कहे थे। लेकिन एक बार मुख से निसृत होते ही वे शब्द अपना प्रभाव प्रत्येक उस व्यक्ति के मनोमस्तिष्क पर डाल चुके थे, जिनके कानों में वे शब्द पड़े थे । जिन्होंने रणवीर के शब्दों को सुना था, उन सभी ने अपनी-अपनी प्रकृति और विचारों के अनुसार उसके असामान्य व्यवहार के कारण और परिणाम का अनुमान लगाया था ।

पूजा ने तथा प्रियांश ने रणवीर के नकारात्मक व्यवहार और सन्देश का मात्र इतना ही आशय निकाला कि अपने अत्याचारी-अन्यायी स्वभाव के चलते वह उन्हें हर सम्भव ढंग से विवश कर देना चाहता है, ताकि पूजा उसके विरुद्ध कोर्ट में चल रहे केस को वापिस ले ले ! लेकिन उन्होंने रणवीर की अपेक्षानुरूप कुछ भी नहीं किया । कुछ समय तक वहाँ पर खड़ा रहने के पश्चात् रणवीर चुपचाप वहाँ से चल दिया। न तो घर के अन्दर उसे किसी ने बुलाया, न वह स्वयं घर में गया । यद्यपि घर का द्वार उस समय तक खुला हुआ था ।

डॉ. कविता त्यागी

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