Aaghaat - 43 books and stories free download online pdf in Hindi

आघात - 43

आघात

डॉ. कविता त्यागी

43

भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान आई.आई.टी. में अध्ययन करते हुए प्रियांश का बी.टेक. का प्रथम वर्ष पूर्ण हो चुका था । प्रथम वर्ष का उसका शैक्षिक-परिणाम उसी प्रकार अच्छा रहा, जैसे पहले से आता रहा था । वह इस वर्ष भी अपने बैच के होनहार विद्यार्थियों में सम्मिलित था । इस एक वर्ष में पूजा अपने गुजारे भत्ते का केस जीत चुकी थी । पूजा द्वारा केस को जीतने पर रणवीर बौखला उठा था । उसने पूजा पर आरोप लगाया कि उसने न्यायधीश को घूस देकर निर्णय अपने पक्ष में कराया था । यद्यपि उसका यह आरोप निराधर, झूठा और उसकी बौखलाहट को ही अभिव्यक्त करने वाला था ।

अपने सन्तोषी स्वभाव के कारण गुजारे-भत्ते के रुप में अत्यल्प धनराशि मिलने पर भी पूजा प्रसन्न थी । उसको अब गुजारे के लिए धन की आवश्यकता नहीं थी, इसलिए न्यायोचित ढ़ंग से अल्प धनराशि प्राप्त होना अब उसके लिए क्षोभ का विषय नहीं रहा था ।

इसके विपरीत जब न्यायधीश ने अपने एक निर्णय में रणवीर को दोनों बेटों तथा पत्नी के लिए बारह हजार रुपये प्रतिमाह देने के साथ ही बच्चों का विद्यालय-शुल्क देने का निर्देश दिया था, तब रणवीर ने उस निर्णय को मानने में आपत्ति की थी और अपनी कम आय का प्रमाण देकर न्यायधीश को अपना निर्णय बदलने के लिए विवश कर दिया था।

रणवीर तो चाहता ही नहीं था कि गुजारे-भत्ते के रुप में पूजा को कुछ भी धनराशि दी जाए ! इस उद्देश्य में सफल होने के लिए उसने अपने स्तर पर अनेक हथकंडे भी अपनाये थे । उसने पूजा के वकील को तैयार किया कि वह पूजा की ओर से दृढ़ता से बहस न करें ! इस कार्य हेतु उसने वकील को पर्याप्त धन दिया और बदले में उससे आश्वासन लिया कि वह पूजा को गुमराह करता रहेगा ।

कुछ ही दिनों में पूजा को यह आभास हो गया कि उसका वकील ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर रहा है । अपना अधिकार पाने के लिए पूजा ने अपना वकील बदलने का निश्चय किया और उस वकील से अपनी फाइल लेकर अन्य वकील को दे दी । अब तक वह अदालत की कार्यवाही से भली-भाँति परिचित हो चुकी थी, इसलिए दूसरे वकील को अपनी फाइल देने में न तो उसको किसी सम्बल की आवश्यकता पड़ी, न ही कोई अन्य ऐसी बाधा उसके समक्ष उपस्थित हुई, जिसको वह पार न कर सके ।

पूजा के दूसरे वकील ने कुछ दिन तक यथोचित ढंग से काम किया, किन्तु धीरे-धीरे उसकी भी कार्यशैली में परिवर्तन होने लगा । प्रायः पूजा अपने केस की निर्धरित तिथि पर कोर्ट में पहुँच जाती थी और उसके केस की फाइल नम्बर पर आते ही पूजा बनाम रणवीर के नाम की पुकार भी होती थी, किन्तु उसका वकील वहाँ समय पर नहीं पहुँचता था। वह कई-कई बार अपने वकील को बुलाने के लिए जाती थी, परन्तु वह बहस करने के समय किसी न किसी प्रकार टालमटोल कर देता था । वकीलों के इस प्रकार के व्यवहार से पूजा तंग आ गयी । एक बार वह वकील बदल चुकी थी, इसलिए अब वह वकील बदलना उचित नहीं समझ रही थी । अपने वकील द्वारा समय पर उपस्थित न होने और यथोचित ढंग से उसके पक्ष में बहस न करने से पूजा की समस्या बढ़ती जा रही थी । अतः उसने अपनी इस समस्या का समाधान करने की दिशा में अपना कदम बढ़ाना आरम्भ कर दिया । अपनी इस समस्या के समाधान उसको शीघ्र ही मिल भी गया । अपनी समस्या के समाधान-स्वरुप उसको ज्ञात हुआ कि वह अपने पक्ष में स्वयं बहस कर सकती है । ऐसा करने के लिए न कोई लम्बी प्रक्रिया है, न किसी योग्यता विशेष की आवश्यकता है । केवल इस सन्दर्भ में एक प्रार्थना पत्र देना है कि उसे अपने पक्ष में अपनी बात कहने की अनुमति दी जाए !

यह ज्ञात होते ही, कि वह न्यायाधीश के समक्ष अपनी समस्या रख सकती है, पूजा ने तुरन्त इस सन्दर्भ में प्रार्थना-पत्र लिख दिया और उसको अपनी बात कहने की अनुमति मिल गयी । अपनी बात स्वयं कहने की अनुमति मिलने से पूजा को बहुत बड़ी राहत का अनुभव हो रहा था । अपनी पीड़ा और समस्या को जितने प्रभावशाली ढंग से वह स्वयं अभिव्यक्त कर सकती थी, एक पेशेवर वकील कभी नहीं कर सकता।

न्यायाधीश के समक्ष अपनी समस्या को प्रस्तुत करने का प्रथम अवसर मिलते ही पूजा ने सत्यनिष्ठा के साथ अपनी यथास्थिति का वर्णन करते हुए प्रार्थना की कि वे उसकी समस्या का यथाशीघ्र समाधन करने का प्रयास किया जाए ! अन्य स्त्री के साथ पति के सम्बन्धों के चलते घर के प्रति उसके दायित्वविहिन रवैये के बावजूद पूजा द्वारा शान्तिपूर्ण ढंग से बच्चों का पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा करने का भार उठाने सम्बन्धी शीलता से न्यायाधीश अत्यन्त प्रभावित हुआ । उसने यथासंभव शीघ्रता से पूजा के पक्ष में निर्णय दिया कि रणवीर अपनी पत्नी तथा दोनों बेटों के गुजारे-भत्ते के रुप में क्रमश चार-चार हजार रुपये तथा दोनों बेटों का विद्यालय-शुल्क देकर अपने दायित्व को वहन करे !

रणवीर न्यायाधीश के इस निर्णय के प्रति अपनी कोई प्रतिक्रिया देता, इससे पहले ही उस न्यायाधीश का वहाँ से स्थानान्तरण हो गया और पूजा का केस बीच में ही लटक गया। कुछ समय पश्चात् रणवीर ने पूजा के पक्ष में न्यायाधीश के निर्णय का विरोध करते हुए, अपनी आर्थिक स्थिति दुर्बल होने का हवाला देते हुए न्यायाधीश के निर्णयानुसार धनराशि देने में अपनी असमर्थता की अपील कर दी । साथ ही उसने यह भी कहा कि उसके दोनों बेटे अब वयस्क हो गये हैं, इसलिए बच्चों के लिए गुजारा-भत्ता देने का कोई औचित्य नहीं है !

पहले न्यायाधीश, जिसने पूजा के पक्ष में अपना निर्णय सुनाया था, के स्थान पर आने वाले न्यायाधीश ने रणवीर की अपील को सकारात्मक ढंग से लेते हुए पूर्व न्यायाधीश के निर्णय में परिवर्तन करके गुजारे-भत्ते की धनराशि को कम कर दिया । रणवीर को गुजारे-भत्ते की धनराशि कम होने पर भी प्रसन्नता नहीं हुई । वह पूजा की जीत तथा अपनी हार पर व्यथित था, क्योंकि उसने पूजा को चुनौती दी थी कि वह किसी भी दशा में कोर्ट के माध्यम से उसका खर्च वहन नहीं करेगा । इसके विपरीत पूजा अत्यन्त प्रसन्न थी । वह रणवीर की चुनौती को स्वीकार करके रणवीर के विरुद्ध कोर्ट-केस में जीत चुकी थी, भले ही उसे गुजारा-भत्ता कम मिला था ।

गुजारे भत्ते का केस जीतने के पश्चात भी रणवीर द्वारा डाला गया उसके और पूजा के विवाह-विच्छेद का केस कोर्ट में लंबित पड़ा था । इसके विषय में पूजा ने अभी तक अपना मत स्पष्ट नहीं किया था । उसने केवल यही कहा था कि वह रणवीर के मत से सहमत हो जाएगी । यदि रणवीर तलाक-चाहता है तो भी, और नहीं चाहता हैं तो भी, वह रणवीर का विरोध नहीं करेगी, क्योंकि उसकी प्राथमिकता अपने बच्चों का पालन-पोषण तथा उनकी शिक्षा-व्यवस्था करना है । परन्तु अब, जबकि वह कोर्ट के माध्यम से अपना गुजारा भत्ता लेने में वह सफल हो चुकी थी और इन तीन-चार वर्षों में कोर्ट-कार्यवाही के विषय में पर्याप्त अनुभवी हो चुकी थी, उसने विवाह-विच्छेद के विषय में अपने मत को स्पष्ट करने का निश्चय किया ।

अब विवाह-विच्छेद के सम्बन्ध में पूजा का विचार पहले से भिन्न था । पूजा को स्वयं तलाक लेने की कोई आवश्यकता नहीं थी । वह अब रणवीर का किसी भी प्रकार का दबाव नहीं मानती थी । अब वह पति को सन्तुष्ट और प्रसन्न रखने के लिए उसके उचित-अनुचित प्रत्येक आदेश को सिर झुकाकर स्वीकार नहीं करती थी, इसलिए उसने निश्चय किया कि अब वह रणवीर को तलाक नही देगी ! अपने ये ही विचार पूजा ने न्यायाधीश के समक्ष व्यक्त किये कि वह पति से विवाह-विच्छेद नहीं चाहती है ।

अब तक पूजा विवाह-विच्छेद के सम्बन्ध में रणवीर के मत का समर्थन करते हुए यह कह देती थी कि यदि रणवीर चाहता है, तो वह विवाह-विच्छेद से इनकार नहीं करेगी ! अब वह विवाह-विच्छेद के प्रस्ताव का विरोध करने का निश्चय कर चुकी थी । विवाह-विच्छेद के प्रति निश्चित रुप से उसके नकारात्मक भाव का एक मुख्य कारण यह था कि वह अपने बेटों के विवाह आदि पर अपने सम्बन्ध-विच्छेद का दुष्प्रभाव नहीं चाहती थी । पूजा की इस सोच के पीछे रणवीर की एक चुनौती थी । रणवीर ने गुजारे-भत्ते का केस हारते ही पूजा को चुनौती दी थी -

‘‘गुजारा-भत्ता तो ले लिया, तेरी ताकत तब देखेंगे जब अपने आइ.आई.टियन इंजीनीयर बेटे का बिरादरी में विवाह करेगी ! उस दिन तुम लोगां को अपनी गलती का एहसास होगा, जब बिरादरी का कोई आदमी तुम्हारे साथ मिलने-बात करने से भी बचेगा !’’

रणवुर का विचार था कि उसके कोर्ट में जाने से समाज और बिरादरी का कोई भी व्यक्ति उसके बेटों के साथ अपनी बेटी का विवाह नहीं करेगा ! समाज उसको तथा उसके बेटों को तब और भी अधिक हेय दृष्टि से देखगा, जब वह उसके साथ नहीं रहेगा । चूँकि पूजा उसके विरुद्ध कोर्ट में गयी थी तथा प्रियांश एवं सुधांशु ने भी इस विषय में माँ का विरोध नहीं किया था, इसलिए वह किसी भी शर्त पर उनके साथ नहीं रहेगा ।

अपने चुनौतीपूर्ण कटु शब्दां को कहते हुए रणवीर वहाँ से चला गया था । उसके जाने के पश्चात् पूजा के विचार-केन्द्र में यही विषय घूमता रहा कि वह ऐसा क्या उपाय करें ? जिससे उसके और रणवीर के बीच आयी दूरी या कोर्ट की लडा़ई का उसके बेटों के विवाह-सम्बन्ध स्थपित होने में किसी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव न पड़े । कई दिन तक इस विषय में निरन्तर सोचते रहने के बाद पूजा को अपनी समस्या के समाधन-स्वरुप रणवीर से विवाह-विच्छेद नहीं करना ही अधिक उचित लगा । केस की अगली निर्धरित तिथि में उसने अपने इस विचार को न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत कर दिया था ।

पूजा और रणवीर के विवाह-विच्छेद का केस कोर्ट में चलते-चलते धीरे-धीरे सात वर्ष बीत गये थे । पहले तीन वर्ष में पूजा ने कोर्ट में अपना मत स्पष्ट ही नहीं किया था । वह मात्र इतना ही कहती थी कि रणवीर जैसा चाहेगा, मैं उससे सहमत हो जाऊँगी ! पूजा से विवाह-विच्छेद चाहने वाला रणवीर भी उस समय कोर्ट में न्यायाधीश के समक्ष इस प्रकार के बयान नहीं देता था, जिससे यह प्रतीत हो सके कि वह पूजा से विवाह-विच्छेद के लिए उद्यत है । पति-पत्नी की इसी विचार-दृष्टि के चलते प्रायः बहस के लिए निर्धरित तिथि भी आगे बढ़ती जा रही थी । किन्तु पूजा के लिए रणवीर की चुनौती के पश्चात् इस केस ने एक ऐसी गति पकड़ ली थी, जिसकी पहले से कोई कल्पना नहीं कर सकता था ।

पूजा अपने तलाक से सम्बन्धित प्रत्येक निर्धरित तिथि पर न्यायालय में जाने लगी । उसे भय था कि रणवीर धूर्तता और कपट से कोई ऐसी चालाकी न कर जाए कि उसका एकतरफा तलाक हो जाए ! पूजा का यह भय-भाव कोर्ट के उस पत्र का स्मरण करके और भी अधिक प्रबल हो जाता था, जिसमें उसको चेतावनी दी गयी थी कि निर्धरित समय पर पूजा के कोर्ट में अनुपस्थित रहने पर उसे तलाक के लिए सहमत मानते हुए कोर्ट अपना निर्णय सुना देगी ! दूसरी ओर, रणवीर भी अब निर्धरित तिथि को समय पर कोर्ट में उपस्थित होता था । अब वह पूजा से विवाह-विच्छेद लेने के लिए उतावला हो रहा था । जितनी शक्ति का उपयोग पूजा अपना विवाह-विच्छेद रोकने के लिए कर रही थी, उतनी ही शक्ति का दुरुपयोग रणवीर विवाह-विच्छेद कराने के लिए कर रहा था । सात वर्ष तक विवाह-विच्छेद के लिए पूजा और रणवीर की न्यायालय में लडा़ई चलती रही, परन्तु अन्तिम निर्णय न हो सका । वे दोनो कानूनी रूप से अलग न हो सके ।

मन से तो वे दोनों बहुत दिनों पहले ही अलग हो चुके थे । परन्तु पिछले चार वर्ष से रणवीर शारीरिक रूप से भी अपने घर पर नहीं गया था। यह कहा जा सकता था कि चार वर्ष पहले वह शारीरिक और मानसिक रुप से पूर्णतया पूजा से अलग हो चुका था । अब वह प्रायः बहुत बेचैन रहता था, क्योंकि कानूनी रुप से वह आज भी पूजा का पति था और पूजा को विवाह-विच्छेद से जो आघात पहुँचाना चाहता था, वह पहुँचा नहीं पा रहा था । पूजा से पूर्णतः सम्बन्ध-मुक्त होने के लिए छटपटाते हुए वह अपनी आर्थिक, सामाजिक, मानसिक शक्तियों का बड़ी मात्रा में दुरुपयोग कर रहा था, ताकि वह पूजा को पराजित कर सके और उसको एक ऐसा आघात पहुँचा सके कि पूजा तड़प उठे और भविष्य में सिर उठाकर बोलने का साहस न कर सके !

इसके विपरीत पूजा अपनी धुन की पक्की थी । उसके अन्दर आत्मविश्वास कूट-कूटकर भरा हुआ था । वह कभी भी रणवीर के साथ विवाह-विच्छेद की लड़ाई में अपने प्रति नकारत्मक दृष्टिकोण से विचार नहीं करती थी । वह आस्तिक थी, इसलिए सदैव यही सोचती थी कि ईश्वर सदैव कल्याणकारी कृत्य का शुभ परिणाम ही देता है । विवाह-विच्छेद का विरोध करना उसके बच्चों के हितार्थ है, इसलिए परिणाम उसी के पक्ष में होगा ! रणवीर के पक्ष में नहीं ! अपनी इसी सकारत्मक सोच के साथ वह सदैव आत्मविश्वास से परिपूर्ण रहती थी।

डॉ. कविता त्यागी

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