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जीवन अभी बाकी है...

"जीवन अभी बाकी है” वृद्धाश्रम में सुबह से ही काफी चहल पहल है. सभी लोग शाम को होने वाले समारोह की तयारी में जुटे है, और कुछ दिव्यांग और अनाथ बच्चे भी ख़ुशी से प्रांगण में टहल रहे है. वहां के मैनेजर मिस्टर रमाकांत मिश्रा सभी वृद्धजनों के घर पर फ़ोन करके उन्हें आने का न्योता दे रहे थे.

“हेलो, क्या आप आकाश दुबे जी बोल रहे है, मैं “जीवन अभी बाकी है” वृद्धाश्रम से बोल रहा हूँ.” आपको जानकर ख़ुशी होगी हमारे वृद्धाश्रम में बुजुर्गो द्वारा आज शाम नए वर्ष के उपलक्ष्य में एक प्रोग्राम रखा गया है. आपके आने पर आपकी माता जी और हम सब को बहुत ख़ुशी होगी. आप परिवार सहित जरूर आए.

आकाश अपने माता पिता का एकलौता बेटा है. वो दिल्ली में एक सरकारी विभाग में अच्छे ओहदे पर है, वैसे तो मूलतः ये लोग मध्य प्रदेश के एक गाँव से है जहाँ पर आकाश के पिता खेती बाड़ी करके घर चलाते थे. करीब चार साल पहले आकाश अपने माँ-बाप को दिल्ली ले आया. आकाश को अपने विभाग की तरफ से बड़ा सा फ्लैट मिला है और साथ ही बागबानी के लिए घर के आगे पीछे काफी जगह मिली हुई है. अब माँ - बाप ठहरे पुराने ख्याल के खेती किसानी करने वाले सो वो लोग यहाँ भी बागबानी करने लगे जबकि इन सब कामों के लिए माली लगा था. आकाश के माँ बाप इतने बड़े अंजान शहर में खुद को अकेला पा रहे थे. वे अकेले न कहीं आ सकते और न ही कहीं जा सकते, इसलिए वो खुद को घरेलु काम में बिजी रखते.

एक बार किसी काम के सिलसिले में आकाश के आफ़िस आए चपरासी ने आकाश के पिता जी को माली समझ लिया, लेकिन उसको जब पता चला कि यह साहब के पिता जी है तो उसे शर्मिंदगी हुई. उसने माफी भी मांग ली.
ये सब बातें आकाश को ख़राब लगती थी उसे लगता की उसका स्टेटस कम हो रहा है, लोग क्या कहेंगे कि इनका कोई स्टैण्डर्ड ही नहीं है. यही सब सोचकर करीब तीन साल पहले आकाश ने माँ बाप को वापस गाँव भेज दिया, अपने बच्चें का रूखापन पिता बर्दास्त नहीं कर पाए और कुछ ही दिन बाद उन्हें हार्ट अटैक पड़ा गया. जब तक आस-पड़ोस के लोग उन्हें अस्पताल ले जाते तब तक उन्होंने हमेशा के लिये अपनी आँखे बंद कर ली. उसके बाद आकाश दोबारा माँ को वापस अपने साथ दिल्ली ले आया, लेकिन उसकी सोशल लाईफ और उसकी माँ के रहन-सहन में काफी अंतर था. अंततः लगभग दो साल पहले आकाश ने अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया.

“पापा जल्दी चलो न कहीं दादी का प्रोग्राम छूट न जाये.” पांच साल की पिहू को अपनी दादी से बहुत प्रेम है और उसकी जिद के कारण ही आकाश को आज मीटिंग कैंसिल कर वृद्धाश्रम जाना पड़ रहा है. रास्ते भर वो यही सोचता रहा कि वो गाड़ी को वृद्धाश्रम की इमारत के पिछले गेट पर पार्क करेगा कहीं ऐसा न हो कि किसी से आमना सामना हो जाये. अभी वो इमारत के अंदर प्रवेश कर ही रहा था कि तभी उसे अपनी माँ की आवाज़ माइक पर सुनाई दी.....

“जीवन में सफलता पाने के लिए एक व्यक्ति द्वारा किया गया संघर्ष उतना कष्टदायी नहीं होता जितना उनके बच्चों द्वारा उनको नज़रन्दाज करना. एक माँ-बाप सब कुछ बर्दास्त कर सकते है पर अपने बच्चों का रूखापन बिलकुल भी नहीं बर्दास्त कर सकते. बच्चों का भविष्य बनाने के लिए माँ बाप कितना कष्ट सहते हैं, अपनी इच्छाओं को मारतें हैं और वही बच्चे बड़े होकर पूछते है की मेरे लिए किया ही क्या है ? और जो किया है वो तो हर माँ बाप का फ़र्ज़ होता है......तो क्या बच्चों का कोई फ़र्ज़ नहीं होता है” कहकर मिसेस दुबे रो पड़ी. “किस तरह से पेट काटकर उनका भविष्य सवांरा और आज जब हमें इस बुढ़ापे में उनकी जरूरत है तो हम उनपर बोझ बन गए . हमारा रहन सहन बच्चों के स्टेटस को कम करता है. ये धन-दौलत शानो-शौकत सब इन्हीं का तो है. यही सुख देने के लिए तो हमने कितने कष्ट सहे और आज इस बुढ़ापे का कष्ट उस कष्ट से कहीं अधिक है.” शायद मिसेस दुबे लड़खड़ाकर गिर ही पड़ती अगर पीछे खड़े बच्चें इन्हें संभाल न लेते.

तभी वहां के मैनेजर मिस्टर रमाकांत मिश्रा कुछ कहने के लिए स्टेज पर आयें “हमें ये बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि हमारा वृद्धाश्रम ‘जीवन अभी बाकी है’ और हमारे सहयोगी NGO ‘बालमन अनाथ आश्रम’ मिलकर एक प्रयास कर रहे हैं बुजुर्गो और इन बच्चों को साथ में रखने का. हमारी कोशिश है कि हम इन बच्चों को अच्छी सुविधाओं के साथ अच्छे संस्कार भी दे सके जो उन्हें समाज में बेहतर जिन्दगी जीने के लायक बनाये और ये संस्कार इन बुजुर्गो से अच्छा कौन दे सकता है. इन्हें भी उम्र के इस दौर में अपनेपन की जरुरत है. ये बच्चें इन लोगो के लिए एक उम्मीद है जहाँ वे अपना प्यार-दुलार लुटा सकते हैं. कहते है बच्चे और बूढ़े एक समान होते है और हमारी यही कोशिश है कि ये सब बुजुर्ग एक बार फिर से इन बच्चों के साथ अपना बचपन जी ले........धन्यवाद्.” तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हाल गूंज उठा.

तभी पीछे से एक 15-16 साल के लड़के ने माइक को हाथ में थाम लिया “हम सभी 12 अनाथ बच्चें लगभग 1 महीने से इस वृद्धाश्रम में इन बुजुर्गो की छत्रछाया में हैं. अब ये बुजुर्ग ही हमारे सब कुछ है इनके साथ रहने से ही हमें पता चला कि प्यार क्या होता है वर्ना तो हम दुत्कार ही जानते थे. इनके पास अपार प्रेम और अनुभव है जिसकी हम अनाथों को बहुत जरुरत है अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए. हम बच्चे ये संकल्प करते हैं कि भविष्य में अगर हम किसी लायक बन गए तो हम सब इनको अपने साथ रखेंगे. हम धन्यवाद् करना चाहते है इस फाउंडेशन को जिसने किसी कारणवश हमें यहाँ रहने का मौका दिया. हम कोशिश करेंगे कि जो प्यार, सम्मान की इन्हें जरूरत है वो हम इन्हें दे सके.” हाल में मौजूद सभी की आंखे नम हो गई.

तभी आकाश की पत्नी ने कहा .... “अभी भी माँ जी हमें माफ़ कर देंगी, उनको वापस घर ले चलते है” शायद आकाश की आँखों की नमीं को विभा ने देख लिया था.
“नहीं विभा.... मैं माँ से आंख नहीं मिला पाउँगा” तभी सामने से उसे अपनी माँ आती हुई दिखीं.
पिहु ने जैसे ही अपनी दादी को देखा वो उनसे लिपट गयी “ दादी आप कैसी है, अब आपको यहाँ नहीं रहना है ....हमारे साथ घर चलिए.”
“माँ जी आप हमे माफ़ कर दीजिये, आप वापिस घर चलिए” गले लगते हुए विभा बोली.
नहीं बहू... मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है, तुम तो वही करोगी जो तुम्हारा पति कहेगा और यही तुम्हारा धर्म भी है. दिल का जख्म तो अपना ही खून देता है, जब अपने ही बच्चों को माँ बाप की फ़िक्र नहीं है तो तुमसे कैसा गिला.....तुमने तो हमेशा मेरा ध्यान रखा. मुझे यहाँ एक नई दुनियां मिल गयी है, जब मेरा प्यार तुम सब के साथ था तब वो दिखावा लगता था .... अब ये प्यार इन बच्चों के लिए है जिसके लिए ये तरस रहे हैं. तुम्हें तो इस दुनिया में सब हासिल है पर इनके सर पर तो कोई भी हाथ रखने वाला नहीं है और सबसे बड़ी बात यहाँ हमारी ममता और स्टेटस के बीच कोई जंग नहीं है.” कहकर मिसेस दुबे वापस अपने साथियों के पास लौट गयी.

सब ज़माने ज़माने की बात है. एक वो दौर था जब हम माँ-बाप के बगैर अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते थे और एक आज का समय है जब बच्चे अपनी कल्पना में भी माँ-बाप को जगह नहीं देते.

समाप्त


....शिवानी वर्मा,शांतिनिकेतन