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आस्था


रजिया बेगम सिलाई मशीन पर बैठी खयालों में इतनी डूबी थी कि उन्हें बाहर दरवाजे पर हुई दस्तक सुनाई नही दी। जोर से दरवाज़ा पीटने की आवाज़ पर उनका ध्यान टूटा।

"अरे दुआ बिटिया! ! कब आयी ससुराल से, माशाअल्लाह बहुत ही प्यारी लग रही है मेरी बच्ची। आओ-आओ अंदर आओ।" उसे अंदर बुलाते हुए रजिया जल्दी-जल्दी पलंग की चादर ठीक करने लगी।

"बस अम्मी रात को ही आयी हूं, और सुबह आपसे मिलने चली आयी।"

"ससुराल में सब ठीक हैं, और तेरे शौहर कैसे हैं, खयाल रखते है तेरा।" दुआ की शर्मीली मुस्कान देखकर रजिया भी मुस्कुरा पड़ी।
"अच्छा बताओ क्या खाओगी"

"वैसे तो भूख नही है अम्मी, लेकिन अगर आप अपने हाथों से सेवइयां बनाएंगी तो जरूर खाऊँगी।"

चलो मैं पकाती हूँ, पर ये बताओ कि तेरी मां कहाँ रह गयी....उसको भी साथ ले आती। बेचारी शादी की भागम-भाग में पस्त हो गई है।" राजिया अभी बोल ही रही थी कि पीछे से दुआ की माँ कुसुम भी दो थालियां भर-भर कर न जाने क्या रजिया के किचेन में रख आयी।

"ये क्या लायी हो कुसुम"

"अरे कुछ नही आपा...बस थोड़ा सा शगुन का समान है दुआ की तरफ से।"

"कर दिया न पराया तुम सबने... मै क्या दुआ को अपनी बेटी से कम चाहा है।"

"तभी तो अम्मी हम ये आपके लिए लाये हैं। आपकी बेटी है तभी तो दे रहे हैं।" दुआ भी रजिया के गले लगते हुए बोली।

"अच्छा... ठीक है ठीक है" कहती हुई रजिया सेवई बनाने चल देती है।

दुआ, रजिया की पड़ोसी कुसुम की बेटी है। दुआ की पिछले हफ्ते ही शादी हुई है। रजिया और कुसुम के पारिवारिक संबंध थे जिसका एक कारण ये भी था कि दोनो के पति एक ही गांव के रहने वाले थे और शहर में एक ही जगह काम करते थे। रजिया के पति एक सड़क हादसे में गुजर गए थे, एक बेटा है जिसे बाप की जगह नौकरी मिल गयी, जिससे उनकी ज़िन्दगी फिर से पटरी पर आ गई। रजिया खुद भी सिलाई कर के अच्छा खासा कमा लेती थी।

दुआ को सही सलामत शादीशुदा देख रजिया उस भयानक अतीत को भूल नही पाती। दुआ के जन्म के 2-3 साल पहले अचानक एक दिन अपने पड़ोस में रहने वाली कुसुम के घर चिल्लाने की आवाज़ सुनकर उसके घर भागी थी। सामने फर्श पर उसकी 12 वर्षीय बेटी डॉली का निर्जीव शरीर सामने पड़ा था। कुसुम कुछ भी बोलने की हालत में नहीं थी लेकिन उसके शौहर से पता चला कि कल रात वे दोनो छत पर सोए थे और डॉली नीचे tv पर फ़िल्म देखने के लिए रुकी थी। जमीन पर बिस्तर लगाकर वो सोई थी और उसके सिरहाने लगे टेबलफैन में शायद उसके बाल फंस गए और पूरे शरीर में करंट दौड़ने से उसका शरीर बेजान हो गया।

उस हादसे के बाद कुसुम पूरी तरह टूट चुकी थी, दोनो पति -पत्नी खुद को ही दोष दे रहे थे कि आखिर वो छत पर सोने क्यों चले गए या उसको नीचे अकेले क्यों रहने दिया। मुहल्ले वाले भी तरह-तरह की बाते करते रहे, कभी कहें कि किसी ने कोई जादू कर दिया है, जिससे कुसुम की संताने ज्यादा दिन जिंदा नही रहती, तो कभी कुसुम को लापरवाह बताते। जितनी मुँह उतनी बातें सब कर रहे थे, बस एक रजिया ही थी जो कुसुम की पीड़ा समझ रही थी। डॉली कुसुम की तीसरी संतान थी जिसके साथ ऐसा दर्दनाक हादसा हुआ था. इससे पहले भी एक बेटे की गंभीर बीमारी और एक बेटी की छत से गिरने से मौत हो चुकी थी।
अब तो कुसुम खुद भी जीने की उम्मीद छोड़ चुकी थी। रजिया भी उसकी हालत पर दुखी थी, उसने कुसुम की समस्या अपने किसी जानने वाले पीरबाबा को बताई और उनकी सलाह पर उसने कुसुम को फिर से एक बार माँ बनने के लिए राजी किया। कुसुम को इन सब बातों पर यकीन न था लेकिन फिर भी औलाद दुनिया की सबसे बड़ी दौलत होती है। दुआ के पैदा होने पर रजिया ने कुसुम को चंद पैसे देकर दुआ ज़िन्दगी खरीद ली। कुसुम के कहने पर ही रजिया ने उसकी बेटी का नाम दुआ रखा और उसके जन्म से लेकर ग्यारह साल की उम्र तक उसका सारा खर्च रजिया ने खुद उठाया। दुआ का बचपन रजिया के घर में ही बीता जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ने लगी कुसुम अनजाने डर में जीती रही। लेकिन रजिया द्वारा किया गया ये टोटका उसे नया जन्म दे गया। रजिया ने जो उपकार किया था उसे कुसुम मरते दम तक नही भूल सकती।

"कहाँ खोई है अम्मी..." किचेन में झांकती दुआ बोली।

"कहीं नहीं जान, सोचा सेवइयों के साथ तुम्हारी पसंद के कबाब भी बना लिए जाए।" और गरमागरम नाश्ते के साथ रजिया अतीत से बाहर आती है।
......समाप्त



शिवानी वर्मा
शांतिनिकेतन