ye kaisa pyar books and stories free download online pdf in Hindi

ये कैसा प्यार

सोशल साइट फेसबुक पर उंगलियां चलाते-चलाते अचानक शैली की नजर एक पोस्ट पर रुक गई.... "कुछ जाना पहचाना सा चेहरा है.. पर याद नहीं आ रहा कौन." अपने दिमाग पर जोर डालते हुए वो सोचने लगी. तभी उसकी नजर उस पर किए हुए कमेंट पर गई, उसकी एक पुरानी दोस्त ने उस पर लाइक और कमेंट किया था और जल्द ही शैली को सब कुछ याद आ गया और वह तुरंत ही उस लड़की की प्रोफाइल देखने लगी.

अरे यह तो लवी है. वहीं लवी जिसे लड़की होने का कोई भी शौक नहीं था, बल्कि वह तो खुद को लड़का ही समझती थी, और यही कारण था जो उसकी और लवी की दोस्ती को उसकी सहेलियां शक की नजर से देखती थीं. आज इतने सालों बाद भी लवी को उसी हालत में देख कर थोड़ा दुख हुआ शैली को....आखिर कभी वह उसकी दोस्त रही थी.

दसवीं के बाद 11वीं में पढ़ने के लिए शैली ने अपने गांव से दूर, शहर के एक गर्ल्स स्कूल में एडमिशन लिया था. शहर ज्यादा दूर नहीं था इसलिए वह और उसके सहेलियां गांव से ऑटो रिक्शा से आती - जाती थीं. शहर के स्कूल में पढ़ते हुए शैली थोड़ा डरी हुई थी, क्योंकि गांव के स्कूल की पढ़ाई और शहर की पढ़ाई में बड़ा अंतर था. शैली हमेशा खुद को दबा हुआ महसूस करती..... पर उसने भी यह तय कर लिया था, कि चाहे कितनी भी मेहनत करनी पड़ी अपनी पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करेगी.

वहीं उसके क्लास की लड़की लवी और उसके ग्रुप की सहेलियां, वहीं शहर के दूसरे स्कूल से आई थी. हर काम मैं अव्वल लवी, धीरे-धीरे सभी टीचरों की प्यारी हो गई. पढ़ाई के साथ - साथ वो गाने में, डांस में, क्लास में होने वाले टेस्ट में और यहां तक की किसी भी डिबेट कंपटीशन में लवी अव्वल आती. शैली भी लवी से दोस्ती करना चाहती थी, इसलिए उसने अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया और हर काम में उसी से मदद लेती. धीरे-धीरे शैली और लवी हर कंपटीशन में आगे पीछे ही रहते.लवी हर चीज में तो अच्छी थी बस उसके अंदर लड़कियों वाली कोई बात ना थी.....उसकी हेयरस्टाइल, कपड़े पहनना सभी कुछ लड़कों जैसा था. 12वीं क्लास की सीनियर लड़कियाँ भी लवी को पसन्द करती थी...और एक सीनियर तो फ्री होते ही लवी से बात करने लगती.

कुछ समय बाद स्कूल में वार्षिकोत्सव होना था जिसकी तैयारी में पूरा स्कूल लगा था. 12वीं की छात्राओं का आखिरी साल था तो उनकी जिम्मेदारियों को अब 11वीं की छात्राओं को दिया जाना था. उसी कार्यक्रम में स्कूल के हेड स्टूडेंट और वाइसहेड स्टूडेंट को भी चुना जाना था. सभी को पता था कि हेड स्टूडेंट तो लवी ही बनेगी क्योंकि उसका कॉन्फिडेंस लेवल हाई था. जब वाईस हेड चुनने की बारी आयी तो सब टीना के बारे में सोचने लगे क्योंकि वो और लवी बचपन से अबतक साथ पढ़ रहे थे और दोनों में काफी समानतायें भी थी, लेकिन तभी माइक पर शैली का नाम सुनकर सभी चौक गए. पढ़ने में तो शैली अच्छी थी पर किसी काम के लिए हमेशा डरी सहमी रहती है, उसका कॉन्फिडेंस लेवल बहुत कम था ......पर जो भी काम करती दिल से करती. शैली भी अपने को चुने जाने पर हैरान थी.

अब स्कूल में कोई भी काम होता या कोई भी आयोजन होता, तो लवी और शैली ही सारी जिम्मेदारियां लेती, इस तरह दोनों की दोस्ती और अच्छी हो गई. टीचर्स भी शैली को बहुत प्यार करते थे. 12वीं में उनकी दोस्ती और गहरी हो गई.... अक्सर लंच टाइम में दोनों बातें करते मिलतीं. लवी के ग्रुप की कुछ लड़कियां शैली को लवी के साथ देखकर हंसती रहती, यह बात शैली को समझ में नहीं आई उसे लगता वह किसी लड़के से थोड़ी ही बात कर रही है, और वह उन लोगों की बात पर ध्यान ना देती. शैली से दूसरी लड़कियां भी पूछने लगी कि क्या उसे लवी अच्छी लगती है??? शैली कभी भी इस प्रश्न का मतलब समझ ही नहीं पाई.

एक दिन छुट्टी के वक्त लवी ने शैली को एक पेपर दिया और कहा कि उसे घर जा कर पढ़ें. शैली को समझ में नहीं आया कि लवी उसे पेपर क्यों दे रही है.... आखिर उसमे ऐसा क्या लिखा है, जो वो मुंह से नहीं कह सकती. शाम को जब घर पहुंची तो खा-पीकर फ्री होकर छत पर चली गई.
जैसे ही उसने परचा खोलकर पढ़ा.....

"आई लव यू शैली"
पढ़ते ही शैली का दिमाग सुन्न हो गया. आगे लिखा था "शैली तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, तुम यह सोच कर हैरान होगी कि एक लड़की दूसरी लड़की से ऐसा कहेगी... पर तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं तुमसे प्यार करती हूं, प्लीज तुम नाराज ना होना क्योंकि हर कोई इस तरह के प्यार को नहीं समझता है. क्या तुम मेरे साथ इस रिश्ते में जुड़ना चाहोगी. कल जब तुम स्कूल आना तब तुम अपना जवाब मुझे देना.
......तुम्हारी लवी

लेटर पढ़कर शैली गुस्से से पागल हो गई. जिसको वो एक अच्छी दोस्त समझती थी वो ऐसी हरकत करेगी....बड़-बड़ाते हुए शैली ने लेटर को फाड़ दिया और सोचने लगी कि उसने तो लवी को अच्छी लड़की समझा था. धीरे - धीरे उसे समझ मे आने लगा, कि क्यों क्लास की वो लड़कियां, जो लवी को पहले से जानती थी, उससे ऐसे प्रश्न करती हैं. अब उसने लवी से कोई बात ना करने का फैसला कर लिया.

अगले दिन जैसे ही वह स्कूल पहुंची, लवी उससे बात करने के लिए बेचैन हो गई, क्योंकि उसे डर था कि अगर शैली को उसकी बात अच्छी न लगी, तो कहीं वह टीचर से ना कह दे. शैली लवी को इग्नोर करने लगी, पर लंच टाइम में लवी ने शैली से पूछ ही लिया....

"शैली क्या तुम्हें मेरी बात बुरी लगी." लवी ने डरते हुए पूछा??

"लवी....मैंने तो तुम्हें एक अच्छी लड़की सोचा था और इसलिए तुमसे दोस्ती की.... पर तुम्हारे मन में यह सब क्या चल रहा है. अच्छी दोस्ती, गहरी दोस्ती के बारे में तो जानती हूं, पर यह प्यार वह भी किसी लड़की को दूसरी लड़की से.... यह कैसे सोचा तुमने."

तभी लवी बोली "क्या प्यार सिर्फ लड़का और लड़की में ही होता है. क्या मां और बेटी में प्यार, प्यार नहीं है. क्या बहन - बहन में प्यार, प्यार नहीं है.....जब प्यार में जाति नहीं देखी जाति गोत्र नहीं देखे जाते, रंग - रूप नहीं देखा जाता, उम्र के फासले नहीं देखे जाते तो....लिंग भेद क्यों देखा जाता है, इसमें हर्ज क्या है."

"देखो लवी...तुम्हारी बातें मेरी समझ से परे हैं. मुझे यह लड़कियों वाला प्रेम कभी समझ में नहीं आया और आज के बाद तुम मुझसे कोई बात मत करना. इस बारे में हमारी कोई बात नहीं होगी." गुस्से में वापस क्लास में चली गयी शैली.

अब शैली लवी से कोई बात नहीं करती. यहां तक साथ में कोई काम होता तो भी वह बहाना बना कर किसी और लड़की को कह देती. धीरे धीरे क्लास में भी यह बात सब करने लगे कि ऐसा क्या हो गया जो शैली और लवी की दोस्ती टूट गई. उसकी क्लास टीचर्स लवी या शैली से कुछ भी पूछती तो वो दोनों ही बहाने बना देती.

दूसरी तरफ शैली ने लवी को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया, पर फिर भी जब भी वह लवी को देखती, तो उसे वही पत्र वाली बात याद आ जाती है. काफी दिन तक शैली पढ़ाई में डिस्टर्ब रही. एक ही स्कूल, एक ही क्लास और ऊपर से दोनों का ऐसा साथ, कि कोई भी काम टीचर दोनों को साथ में ही करने को देती. ऐसे में उसे लवी का साथ परेशान करने लगा....उसका मन करता कि वह प्रिंसिपल रूम में जाए और मैडम को अपनी बता दे पर वह अपने नेचर के कारण ऐसा कर नहीं पा रही थी, और ना ही यह बात अपनी किसी सहेली से कर पा रही थी.

लवी ने कई बार शैली से बात करनी चाही पर शैली ने अपने काम से काम रखा. और लगभग ग्रेजुएशन करते वक्त भी शैली ने लवी से कोई बात नहीं की. उनके सब्जेक्ट भी लगभग एक ही थे. जैसे जैसे समय गुजरता गया, शैली को महसूस होने लगा जो इच्छाएं लवी के अंदर है उस तरह वो कुछ भी महसूस नही करती है. इतने सालों में उसने लवी को किसी न किसी नई लड़की के साथ ही देखा और आज सालों बाद भी लवी में कोई अंतर नहीं आया और उसका भविष्य सोच कर शैली दुखी हो गई आखिर कभी ना कभी तो वो उसकी सहेली थी.

शिवानी वर्मा

शांतिनिकेतन