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आघात - 48

आघात

डॉ. कविता त्यागी

48

रणवीर के भावपूर्ण क्षणों का अपनी योजनानुसार दोहन करने में वाणी पहले से ही दक्ष थी । इसी दक्षता के बल पर आज भी वह अपनी योजना में धीर-धीरेे सफलता प्राप्त कर रही थी । उसी क्रम में उसने रणवीर को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि यदि वह अपनी सम्पत्ति वाणी के नाम वसियत कर दे, तो उसके बेटों को अपने पिता की शक्ति का एहसास हो जाएगा ! जब तक बेटों को यह भ्रम है कि वे अपने पिता की सम्पत्ति के ऐसे उत्तराधिकारी हैं, जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता, तब तक वे अपने पिता को मान-सम्मान देने की आवश्यकता का अनुभव ही नहीं करेंगे ! वाणी का प्रस्ताव रणवीर को रास आ गया । अपने क्रोध और प्रतिशोध की आग में वह इतना अंधा हो गया कि वाणी की बात मानकर उसी समय अपनी सम्पत्ति को उसके नाम वसियत करने के लिए चल दिया ।

शाम के पाँच बज गये थे । दिन-भर रणवीर का मन अशान्त तथा बेचैन रहा था । रणवीर की प्रकृति इतनी उदार न थी कि अपने प्रथम-प्रणय को अपना सब कुछ समर्पित कर दे, न ही अपने पुत्रों से या पत्नी से वह इतनी घृणा करता था कि उनका अधिकार छीनकर किसी अन्य को देने की भूल करे ! फिर भी, वह यन्त्राचालित-सा वाणी के प्रस्तावानुरूप कार्य करता रहा था । वाणी को अपनी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी घोषित करना उसको अच्छा नहीं लग रहा था । फिर भी, वह सम्मोहित-सा होकर कानूनी रूप से वाणी को अपनी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी बनाने की दिशा में कार्य कर रहा था और उसकी चेतना बार-बार पुकार रही थी -

‘‘रणवीर ! तू यह क्या कर रहा है ? ऐसा मत कर !’’ अपने अन्तःकरण से उठने वाली मूक ध्वनि से रणवीर की चेतना लौटने लगी थी । उसका क्रोध भी कम होने लगा था । क्रोध कम होते ही वह अपने निर्णय से पीछे हटने की इच्छा भी करने लगा । परन्तु, अब तक वह इतना आगे पहुँच चुका था, जहाँ से लौटना सरल नहीं था । अब उस पर वाणी का नियन्त्रण ऐसा हो चुका था कि वह चाहते हुए भी लौट नहीं सकता था !

रणवीर का तनाव कम करने के बहाने वाणी ने एक बार उसको शराब पिलाना आरम्भ किया तो तब तक पिलाती ही रही, जब तक उसकी पूरी चेतना शराब के नशे में डूब नहीं गयी । उसी समयान्तराल में वाणी ने रणवीर की सम्पत्ति की वसियत अपने नाम कराने के लिए आवश्यक औपचारिकताएँ पूरी करा ली थी । एक बार उसने सोचा और प्रयास भी किया था कि रणवीर से उसकी सम्पत्ति की वसियत के स्थान पर रजिस्ट्री ही करा ले, लेकिन पाँसा उल्टा न पड़ जाए, यह सोचकर वह वसियत पर ही सन्तोष करने के लिए अपनी पूर्व-योजना को कार्य रूप देने में तल्लीन हो गयी।

अपनी योजना के अनुसार वाणी रणवीर की सम्पत्ति की वसियत अपने नाम करा चुकी थी । अब आगे की योजना को फलीभूत करना अपेक्षाकृत अधिक कठिन था । अब तक का कार्य उसके अपने हाथ का था, किन्तु अब आगे दूसरों का सहयोग लेना अत्यन्त आवश्यक हो गया था। किसी अन्य व्यक्ति के सहयोग के अभाव में उसकी योजना फलीभूत होना सम्भव नहीं था । वाणी को अपनी योजना को सफल बनाने के लिए ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, जो अपने कार्य में निपुण होने के साथ ही अपने कार्य के प्रति व्यवसायिक दृष्टिकोण रखता हो । ऐसे व्यक्ति से वह अपने कार्य के संबंध में पहले ही बात कर चुकी थी । अब उसे केवल निर्देश देने की आवश्यकता थी ।

वाणी की योजना का अगला चरण था, रणवीर की सम्पत्ति का वास्तविक स्वामित्व प्राप्त करने में आने वाली बाधा को दूर करना ! यह बाधा स्वयं रणवीर का अस्तित्व था । इस बाधा को दूर करने के लिए वह पहले ही एक पेशेवर हत्यारे को मुँह माँगी धनराशि देकर ऐसा प्रबन्ध कर चुकी थी, जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे ! अर्थात् उसकी महत्त्वाकांक्षा के मार्ग का काँटा रणवीर समाप्त भी हो जाए और उस पर कोई आरोप भी न आए ! अपनी योजना को आगे बढ़ते हुए वाणी ने नशे में धुत् रणवीर को बाँहों में भरकर कहा -

‘‘रणवीर, आज मैं बहुत खुश हूँ ! आज मेरे जीवन का सबसे शुभ दिन है ! जानते हो क्यों ?’’

‘‘क्यों ?’’

‘‘क्योंकि आज मेरा प्रथम-प्रेणय पूर्णरूप से मेरा हो गया है ! आज मेरे प्रथम-प्रणय ने मुझे पूर्णरूपेण स्वीकार करके यह प्रमाण दिया है कि वह सचमुच मुझ पर विश्वास करता है और मुझे इतना प्रेम करता है कि मेरे लिए सब कुछ कर सकता है!

‘‘हम तो पहले से ही तुम्हें प्रेम करते हैं, पर तुम सदैव संदेह करती रही हो !

‘‘साॅरी डार्लिंग ! आगे से ऐसा नहीं होगा !’’ वाणी ने अपने कान पकड़ने का उपक्रम करते हुए कहा - ‘‘रणवीर ! मन चाहता है, हम आज लाँग ड्राइव पर चलें, .... यदि तुम्हें कोई आपत्ति न हो तो !’’

‘‘नहीं ! आज बहुत अधिक पी ली है ! फिर कभी चलेंगे !’’

‘‘फिर कभी नहीं, आज ही ! प्लीज, रणवीर ! गाड़ी मैं ड्राइव कर लूँगी ! तुम मेरे लिए इतना नहीं कर सकते ?’’

‘‘क्यों नहीं कर सकता ? कर सकता हूँ ! सब कुछ कर सकता हूँ !’’

रणवीर ने नशे में झूमते हुए अपना प्रेम प्रकट किया, परन्तु उसके प्रेम में पहले जैसा उत्साह नहीं था । उसका उत्साह कहीं खो गया था । उसे अनुभव हो रहा था कि उसके जीवन की शक्ति, उसका सुख-चैन लुट चुका है । उसका शरीर मदिरा के प्रभाव से अस्थिर था और चित्त अपनी सम्पत्ति को वाणी के नाम वसियत करने से अस्थिर था । उसके चित्त को बार-बार एक ही भाव उद्वेलित कर रहा था -

‘‘मैं अपनी ही भूल से वाणी के हाथों लुट चुका हूँ ! मैंने स्वयं ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है !’’

इन्हीं भावों के उद्वेलन से रणवीर का हृदय किसी अज्ञात अनहोनी की आशंका से भर उठा था । इसी आशंका से भयभीत रणवीर का मस्तिष्क बार-बार वाणी का विरोध करने के लिए संकेत दे रहा था, लेकिन उसका शरीर उन संकेतो का पालन करने में असमर्थ था । रणवीर का हृदय और मस्तिष्क वाणी का साथ नहीं दे रहे थे, किन्तु रणवीर का शरीर, शरीर का प्रत्येक अंग वाणी के संकेतों पर कार्य कर रहा था । आज प्रथम अवसर था, जबकि रणवीर का सूक्ष्म-शरीर वाणी से मुक्त होकर उससे दूर और निरन्तर दूर होता जा रहा था, किन्तु उसके स्थूल शरीर को वाणी ने पूर्णरूपेण जकड़ा हुआ था । रणवीर अपनी सामर्य-भर अपने सूक्ष्म और स्थूल-शरीर में सन्तुलन बनाने का प्रयास कर रहा था। वह यह भी अनुभव कर रहा था कि उसका मन- मस्तिष्क द्विधा विभाजित हो गया है ।

एक शक्ति उसको अपनी ओर खींचते हुए अस्पष्ट संकेत देकर कह रही थी -

‘‘रणवीर ! वाणी का विरोध करो ! यदि तुमने अब इसका विरोध नहीं किया, तो फिर कभी नहीं कर सकोगे ! याद रखना, तुम्हें पछताने का भी अवसर नहीं मिलेगा !’’

दूसरी शक्ति उसको अपनी ओर खींचते हुए कह रही थी -

‘‘नहीं ! वाणी के विरोध का यह उचित समय नहीं है ! वाणी के हाथ में अपनी गर्दन देकर तूने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की है ! इस भूल को सुधरने के लिए तुझे धैर्य रखना होगा ! वाणी को यह आभास भी नहीं होना चाहिए कि मुझे अपनी गलती का एहसास हो रहा है !’’

अपनी नासमझी में की गयी भूल, उस भूल को सुधारने के उपाय और यथोचित अवसर के विषय में सोचता हुआ रणवीर अपनी वर्तमान स्थिति और अपने अति निकट वाणी की उपस्थिति को जैसे विस्मृत ही कर चुका था । वाणी को उसकी मनःस्थिति का भली-भाँति अनुमान था । वह लम्बे समय तक रणवीर के साथ रहने के कारण उसके स्वभाव से परिचित थी । अतः वाणी ने रणवरी को उसके विचारों की दुनिया से निकालते हुए एक नया विषय प्रस्तुत किया -

‘‘रणवीर, ड्राइवर की छुट्टी कर दो ! आज हम दोनों के बीच कोई नहीं होना चाहिए ! आज हम चलते-चलते इतनी दूर निकल जाएँगे, जहाँ पर हमें कोई डिस्टर्ब न कर सके ! हम दिल खोलकर एक-दूसरे के साथ मस्ती करें ! लाइफ को जी-भर कर एंजाँय करें ! मैं सही कह रही हूँ ना ?’’

‘‘हाँ, तुम...!’’ रणवीर ने लड़खडाते स्वर में कहा । वाणी ने उसके वाक्य को बीच में ही काटते हुए पुनः अपना प्रस्ताव रखा -

‘‘तो फिर ड्राइवर को कहो कि वह जाए ! तुम चाहो, तो मैं भी उससे यह कह सकती हूँ, पर मेरा कहना आज ठीक नहीं लगता !’’

‘‘मैं...मैं...!’’ रणवीर ड्राइवर को कुछ कह पाता इतना धैर्य वाणी में नहीं था । अतः उसने स्वयं ही ड्राइवर को वहाँ से जाने के लिए कहते हुए उसको बताया कि रणवीर चाहते है, उन्हें उनकी पत्नी वाणी के साथ छोड़कर वह उसी समय वहाँ से निश्चिन्त होकर चला जाए ! ड्राइवर को भेजने के पश्चात् वाणी ने रणवीर को प्रेमपूर्वक डाँटते हुए कहा -

‘‘क्या मैं...मैं... कर रहे थे ? ड्राइवर को जाने के लिए भी नहीं कह सके ! मेरे साथ अच्छा नहीं लग रहा है क्या ?’’

अपने प्रश्न का उत्तर पाने की वाणी को न आवश्यकता थी, न इच्छा थी । अब उसकी एक ही आवश्यकता थी, एक ही इच्छा थी - रणवीर को अपने रास्ते से हटाने की । उस रास्ते से, जो रणवीर की सम्पत्ति के मालिकाना हक की ओर जा रहा था । उसी रास्ते पर उसने गाड़ी को दौड़ा दिया । वह स्वयं गाड़ी को ड्राइव कर रही थी और उसकी बगल में रणवीर बैठा था, जिसका शरीर और चित्त दोनों अस्वस्थ-अस्थिर होकर उसको अब भी परवश बना रहे थे ।

वाणी के साथ बैठा हुआ रणवीर सशंकित था, भयभीत था और हृदय थल से उठने वाले अपने इन भावों को छिपाने का निरंतर प्रयास कर रहा था । अपने भय तथा शंका को छिपाने में वह सफल हो गया था, परन्तु शराब के नशे में डूबती-तैरती उसकी चेतना अपनी शंका के अनुरूप आने वाले संकट के समय और रूप-निर्धारण का अनुमान नहीं कर पा रही थी । प्राणों पर आने वाले संकट का यथातथ्य अनुमान उसको तब हुआ, जब उसकी गाड़ी एक सुनसान स्थान पर जाकर रुक गयी ।

उसने देखा, गाड़ी के आगे तीन-चार युवक खड़े हैं, जो सशस्त्र होने के साथ-साथ क्रूर और भयावह दिखाई दे रहे हैं ! उन्हें देखकर रणवीर ने अपना सिर झटककर समय की विषमता को समझने का प्रयास किया । वह स्थिति को समझ पाता, इससे पहले ही उन सशस्त्र युवकों में से एक ने आगे बढ़कर रणवीर की ओर से गाड़ी का दरवाजा खोला और उसको गाड़ी से बाहर खींचकर नीचे गिरा दिया । उसके नीचे गिरते ही अन्य युवक भी उसके निकट आ पहुँचे और उसको लात-घूँसों से मारना आरम्भ कर दिया। वाणी अभी तक कार में बैठी थी । उसको कार में चुपचाप बैठे देखकर रणवीर यह समझने का प्रयास कर रहा था कि उसी के साथ वे युवक क्रूर-व्यवहार क्यों कर हैं ? क्या इस घटना के पीछे वाणी का हाथ है ? वह अपने मस्तिष्क में उठने वाले अस्पष्ट प्रश्नों का उत्तर स्वयं समझ पाता, इससे पहले ही वाणी कार से उतर आयी । वह रणवीर के समक्ष आकर तनकर खड़ी होकर मुस्कुराती हुई बोली-

‘‘रणवीर ! तुम्हें अपने किये का फल तो अवश्य मिलना चाहिए ! मैं तुम्हारे कर्मों का फल देने के लिए ही तुम्हें यहाँ लेकर आयी हूँ !’’

वाणी की बात सुनकर रणवीर का सारा नशा उड़नछू हो गया था और वह आश्चर्य से भरकर बोला -

‘‘वाणी ... ! तुम्हीं ने इनको यहाँ बुलाया है ? मुझे पिटवाने के लिए ?’’

‘‘पिटवाने के लिए नहीं, जान से मरवाने के लिए !’’ वाणीे ने धृष्टता से कहा ।

‘‘पर क्यों ? मैंने तुम्हारे साथ क्या बूरा किया है कि तुम आज मेरे प्राणों की शत्रु बन गयी हो ?’’

रणवीर ने गिड़गिडाते हुए ऐसी भोली सूरत बनाकर कहा जैसे कि उसको वाणी की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था । रणवीर के प्रश्नों का उत्तर देनें में वाणी की कोई रुचि नहीं थी। उसने घृणा तथा उपेक्षा से एक बार रणवीर की ओर देखकर उन युवकों को सम्बोधित करके कहा -

‘‘इसे इतना मारो कि प्राण निकल जाएँ ! जब इसके शरीर से प्राण निकल जाएँ, तो ये सामान इसकी डैड बाॅडी के पास डाल देना ! इनसे इसकी डैड बाॅडी की पहचान भी आसान होगी और पुलिस के सन्देह की सुँई भी उधर घूम जाएगी, जिधर मैं चाहती हूँ !’’

क्रूर-पेशेवर हत्यारे युवकों के साथ वाणी की बातचीत से रणवीर को अब वाणी की पूरी योजना समझ में आ गयी थी । वह उसकी योजना को विफल कर देना चाहता था । वह ऐसा कर भी सकता था, यदि वह उस समय स्वस्थ होता, शराब के नशे में नहीं होता । परन्तु अब यह सब सम्भव नहीं था । अब उसके शरीर में इतनी शक्ति नहीं थी कि वह उन हत्यारों के समक्ष टिक पाता । अब तो उसमें इतनी भी शक्ति नहीं थी कि वह अपने पैरो पर उठकर खड़ा हो सकता । ऐसी विषम परिस्थिति में एक ही विकल्प था वाणी के हदय में उसके प्रति प्रेम और सहानुभूति उत्पन्न हो जाए ! अपने भाग्य का और बुद्धि का परीक्षण करते हुए रणवीर इस विकल्प पर कार्य करने का निश्चय करके तुरन्त चीखा -

‘‘नहीं ! नहीं, वाणी ! तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकती ! हम दोनों एक-दूसरे-से प्रेम करती हैं ! तुम्हारा हदय इतना कठोर नहीं हो सकता !’’

रणवीर की चीख सुनकर वाणी मुड़ी और आकर पुनः रणवीर के समक्ष खड़ी होकर बोली-

‘‘तुम जानना चाहते हो, मैं क्या-क्या कर सकती हूँ ? कुछ दिन पहले तुम जानना चाहते थे कि मुझे कैसे ज्ञात होती हैं तुम्हारी प्रत्येक क्षण की गतिविधियाँ ? तुम जानना चाहते थे कि मुझे अविनाश और पूजा के रेस्टोरेंट में मिलने के बारे में कैसे पता चला था ? तो सुनो- तुम्हारे हाथ में बंधी हुई यह घड़ी मैंने तुम्हे प्यार में गिफ्ट नहीं की थी ! इसको मैंने तुम्हारी गतिविधियों पर दृष्टि रखने के लिए आॅडियो-विडियो डिवाइस लगवाकर विशेष रूप से तैयार कराया था ।’’

‘‘और अविनाश तथा पूजा के बारेे में....?’’ रणवीर ने कराहते हुए पूछा ।

वाणी ने रणवीर के प्रश्न को बीच में काटकर ठहाका लगाया और मस्ती से भरे अन्दाज में कहा -

‘‘रणवीर, मैं जानती थी, तू मूर्ख ही नही महामूर्ख है ! यदि तुझमें सोचने-समझने की जरा-सी भी क्षमता होती, तो तू अपनी पत्नी को, जो तुझसे-केवल तुझसे एकनिष्ट प्रेम करती है, उसे छोड़कर इधर-उधर भटकता न फिरता ! मूर्ख कहीं का ! अविनाश और बच्चों सहित पूजा को वहाँ मैंने ही बुलाया था ! मैं जानती थी कि उस दिन अविनाश का जन्मदिन था ! मैं यह भी जानती थी कि अविनाश के निमन्त्रण पर पूजा उस रेस्टोरेंट में आने से इंकार कर सकती थी ! इसलिए मैंने अविनाश की ओर से तेरे बेटे प्रियांश के लिए निमन्त्रण भेजा था और यह भी आग्रह किया था कि वह पूरे परिवार के साथ रेस्टोरेंट में आए ! इसके साथ ही मैंने पूजा की ओर से अविनाश को रेस्टोंरेंट में आमन्त्रित किया था । मैं जानती थी, अविनाश किसी भी दशा में पूजा का आमन्त्रण अस्वीकार नहीं करेगा !’’ इतना कहकर वाणी मुड़ी और वहाँ से वापिस चल दी । चलते-चलते उसने हत्यारों को निर्देश दिया -

‘‘जाने से पहले अच्छी तरह से देख लेना, इसकी साँस चलती हुई ना रह जाए ! इसके बाद इसकी कार को इसके घर के आस-पास कहीं खड़ी कर देना ! इसके घर का पता मैं तुम्हें पहले ही दे चुकी हूँ !’’

निर्देश देकर वाणी तेज कदमों से चलकर समीप ही खड़ी गाड़ी में जा बैठी, जो वहाँ पर उसके आने से पहले ही खड़ी थी । उसी क्षण गाडी को स्टार्ट करके उसने वहाँ से प्रस्थान करने से पहले एक बार निर्लिप्त-भाव से रणवीर और उन हत्यारों पर दृष्टि डाली । इस समय उसका चेहरा ऐसे भावशून्य था, मानो वहाँ पर कुछ हुआ ही नहीं था ।

रणवीर के हत्यारे अपने कार्य को अभी पूर्ण भी नहीं कर पाये थे कि वाणी के जाने के कुछ क्षणोपरान्त ही वहाँ पर एक कार आकर रुकी । उस कार को तथा उसमें से उतरने वाले खाकी वर्दीधरी युवक को देखकर उन हत्यारों के होश उड़ गये । वे रणवीर को घायलावस्था में वहीं पर छोड़कर भाग खडे़ हुए । जाते-जाते उन्होंने वाणी द्वारा दिये गये निर्देशानुसार उसकी दी गयी वस्तुओं को रणवीर के पास फेंक दिया और उसी की कार को लेकर भाग निकले ।

डॉ. कविता त्यागी

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