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गांव का आवेदन

सारा संसार कोरोना नामक संक्रमण से त्रस्त और पस्त हो चुका है सरकार अपने देश के नागरिकों को सावधानियां और नियमों के पालन करने का संदेश दे रही हैं। ऐसे में कई देश चीन पर आरोप लगा रहे हैं इस बिमारी को लेकर हर कोई चीन कि खिलाफत कर रहा है। अमेरिका,इटली, रूस,जापान जैसे शक्तिशाली देश भी इस बिमारी से अछूते नहीं हैं। वहीं भारत देश अपने नागरिकों को स्वदेश लौटने और उन्हें उचित साधन के द्वारा उनके घरों तक पहुंचाने का सफल प्रयास कर रहा है और इस बिमारी से बचाव के लिए लाक डाउन यानी ताला बंद का ऐलान किया। मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह से 21 दिनों तक चलने वाला यह लाक डाउन हर किसी की परेशानी का सबब बना और लोग आने वाले दिनों पर विचार करने लगे। जैसे - तैसे महज दो सप्ताह बीते होंगे की सरकार से जारी आदेश में दूसरे चरण का लाक डाउन चालू होने का अंदेशा मिलने लगा और लोग अपने - अपने राज्यों और गांवों में जाने का प्रयास करने लगे।
राज्य सरकारें रेल और बस के माध्यम से अपने सभी नागरिकों को वापस बुलाने का फैसला कर प्रयास करने लगीं। भारी मात्रा में कामगार अपने घर लौटने के लिए साधनों की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी सूचना मिली गांव का आवेदन करना अनिवार्य है। लोग पुलिस चौकी और अन्य स्थानों तक आना - जाना चालू कर दिए। सबसे अधिक कामगार उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से अन्य राज्यों में जाते हैं। ऐसे में घर लौटने के लिए सभी मजदूर प्रयासरत आवेदन की लाइन में खड़े समय बिता रहे थे कि सूचना मिली पच्चीस लोगों के नाम वाले आवेदन ही स्वीकार किए जाएंगे और वो भी किसी चिकित्सक के हस्ताक्षर वाले ही होने चाहिए। लोगों में अफरा तफरी मच गई और लोग चिकित्सा केंद्र तक पहुंच गए डाक्टरों को यह कार्य मुफ्त में करने का निर्देश दिया गया था लेकिन कहीं - कहीं डाक्टरों ने है इसे व्यवसाय बना कर दो सौ तीन सौ और कम से कम एक सौ रुपए में करने लगे। लोग गांव जाने के लिए आतुर पैसे दिए हस्ताक्षर लिए और फिर पुलिस चौकी जा पहुंचे। वहां जाते ही देखते हैं कि दूसरे साहब की ड्यूटी चालू थी उन्होंने कहा यह आवेदन यहां नहीं अपने नजदीकी पुलिस चौकी में जमा करना है। लाक डाउन का दूसरा चरण चौदह दिनों का शुरू हो चुका था और भारत सरकार सभी मजदूरों को उनके राज्य तक पहुंचाने को लेकर मुफ्त यात्रा का निर्देश जारी कर पचासी प्रतिशत खर्च केंद्र और पंद्रह प्रतिशत खर्च राज्य सरकार को उठाने की बात कहीं थी। आवेदन आनलाइन भी शुरू किए जा चुके थे किन्तु आनलाइन आवेदन की प्रक्रिया से भी तेज और कुछ अलग ही चल रहा है महाराष्ट्र के मुंबई शहर में। देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई में जहां लोग डाक्टरों के हस्ताक्षर और पुलिस चौकी में जमा आवेदन पर गांव जाने की राह देख रहे हैं वहीं प्रशासन मजदूरों से किराया भी वसूल रही है खुलासा होने के बाद भी यह मामला नहीं बदला और लोगों को घर पहुंचाने के लिए दो सौ अधिक देने पर जल्दी नंबर और पांच सौ अधिक देने पर दूसरे ही दिन नंबर लगने की मुहिम चलने लगी। इसमें बस से रेलवे स्टेशन तक जाने वाली बस में ही पैसे ले लिए जायेंगे। लोगों को इस समय मात्र गांव ही नजर आ रहा था इस आवेदन के चक्कर में ना जाने कितने लोग बिमारी की चपेट में आकर घर पहुंचने से पहले अस्पताल पहुंच रहे हैं किन्तु पुलिस कोई बचाव कर पाने में नाकाम ही दिख रही और अब तो मजदूरों से यह तक कहा जाने लगा कि तुम्हारे प्रदेश कि सरकार नहीं बुलाना चाहती जिसके चलते मजदूर सायकिल या पैदल ही अपने घर तक पहुंचने के लिए निकल पड़े। कई मजदूर रास्ते में ही घायल हुए तो कई मजदूर गाड़ी की चपेट में आकर अपनी जान गंवा बैठे। जनसुनवाई आनलाइन आवेदन तीसरे से चौथे चरण 20 मई 2020 तक इंतजार ही करवा रहा था और लोग लाइन और पैसे के दम पर छुआ - छूत करते हुए अपने गांव पहुंच रहे हैं। उचित दूरी का पालन न कर सभी परिवार जन को पीड़ित कर सरकार को ही दोषी ठहरा रहे हैं। जो लोग इस छुआ - छूट से बचकर गांव पहुंचना चाहते हैं वो अभी तक नंबर आने की प्रतीक्षा में ही दिन काट रहे हैं और अपनी परेशानियां गिना रहे हैं। मजदूरों के पैदल चलने और दुर्घटना होने के कारण राजनीतिक विपक्षी दल सरकार को नाकाम बता कर राजनीति कर रही है। और व्यापार संगठन मजदूरों को ट्रकों में भर कर उनके जिले में पहुंचाने का अच्छा शुल्क वसूल रहा है। प्रति व्यक्ति तीन से चार हजार रुपए देकर भी जानवरों कि तरह ट्रक में लदकर गांव जा रहे हैं जिसका कुछ हिस्सा परिवहन भी लेकर राज्य सीमा पार जाने की अनुमति दे रही है। लोग आवेदन के बाद भी नंबर न आने पर अधिक पैसे खर्च कर गांव जा रहे हैं जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि सभी मजदूरों को मुफ्त में उनके गांव तक पहुंचाया जा रहा है। आवेदन की कोई तिथि निश्चित नहीं है कि कब तक नंबर आएगा, दूसरे चरण से चौथे चरण तक आवेदन की प्रक्रिया लंबित ही बता रही है और गांव का आवेदन प्रगति पर अटका हुआ है।
लेखक :
ज्योति प्रकाश राय