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विकासवाद

विकासवाद

गांव अपने स्वाभाविक सुरमईपन में घुल रहा था। खलिहानों से खेत की मेड़ों तक धीमे-धीमें उस अंधेरे में लोटम लोट हो रहे थे। खिलंदड़े बच्चे चिंहुंक चिंहुंक यहां वहां दौड़ लगाए थे। कोई तरफ बिसातिन अपने आठ साल के लड़के को पुकार रही थी-

‘‘रे बिरजुआ चल तनि खाना खाई ले, कत्ता उलरिहय रिये....‘‘

तीसरी बार हांक लगाने पर बिरजू प्रकट हो गया। बिसातिन उसका हाथ पकड़ के घर ले गई और चैके पर बैठा दिया। फिर खाना परोस के ले आई। बिरजू खाना खाने लगा। वह बिरजू के सिर पे बड़े नेह से हाथ फेरे जा रही थी। बिरजू ने एक दो बार मां को गहरी निंगाहों से देखा फिर निंगाहें झुका लीं। बिरजू की मां को कुछ अटपटा लगा। पुचकारा-

‘‘ का रे बचवा, कऊनौ बात हय का?‘‘

‘‘हां रे माई, मनै कोईस कईहय तो नाय?‘‘

‘‘नाहीं...नाहीं बोल का बात?‘‘

‘‘तुका मोरी सौं....‘‘ बिरजू ने माँ का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया। माँ सिहर गई। मामला क्या है? उसका बच्चा इतनी गहरी बात क्यूं कर रहा है।

‘‘कऊनौ पिआर वियार तौ नाय, ऊ जऊन रहीम की लऊंड़िया रहत हय उके संघे। न....न...ऊ मुसलमान हम वैस..‘‘

‘‘हे....अब्बै थरिया फेंक दयिब...‘‘ वह संभल गई। ‘‘ठीक हय बतावौ त..,का मामला?‘‘.

थोड़ा संयत हुआ वह।

‘‘हे माई, ऊ जऊन अपन स्कुलवम गुरू जी हय न...‘‘

‘‘हाँ...हाँ...‘‘

‘‘ऊ आज लउड़ियन का कमरम बुला बुलाए कच्छी बांटिस है। हम लोन चुप्पै सनी खिड़यिा मईंसै झांका त द्याखा‘‘

‘‘हे भगवान,कृउ मास्टरवा त मनै द्याखम त बड़ा सरीफ लागत हय, ई पर त अवाज उठावैक परी‘‘

‘‘नाहीं अम्मा, तू हमार सऊगंध लिये ह‘‘

‘‘ हे हट ई सैगंध औगंध धई ले अपन। हिंयां बिटियाँन कय जिनगी कय सवाल हय, कउनव अनिस्ट रोकै खत्ती सऊगंध छोड़िव जाय सकत हय कृष्ण भगवान कहिन आए‘‘

अब बिसातिन को चैन कहाँ। बिरजू को निबटा के सीधो राम प्यारे के घर पहुंचीं। उनकी बेटी उसी स्कूल में पढ़ती है। घुसते ही बोलीं-

‘‘का हो रेवतियाक अम्मा, मनै सब नीके हय? रेवतिया कहाँ हय?‘‘

‘‘भीतर पढ़ाई करत ही। कउनव बात?‘‘

‘‘सुनेम आवा हय स्कुलवम मास्टरवा लउड़ियन कच्छी बांटिस हय।‘‘

‘‘हैं...रेवतिया कछु बताईस नाहीं। अरे ओ रेवतिया तनि बाहिर निकिर‘‘

कुछ क्षण में एक तेरह साल की लड़की नामुदार हुई।

‘‘का रे रेवतिया...उ तुरा मास्टरवा का दिहिस हय तु लोन का?‘‘

‘‘हां... दिहिस त हय‘‘

‘‘औ बताए नाए हमका।‘‘ कहते हुए रेवती की मां ने उसे दोहत्था जड़ा। वह रोती हुई गई और अंदर से एक पैकेट ले कर आई और मां को थमा दिया। दोनों औरतें उसे उलट पलट देखने लगीं।

‘‘मनै...ई कउनव तमासा आए... कारे..?‘‘

‘‘को जानै।‘6 रेवती ने अज्ञानता में सिर हिलाया। दोनों महिलाएं सोंचती रहीं फिर बिरजू की अम्मा बोलीं-

‘6जा तनि मालतियाक बुलाए ला। वा सहरम आवत जात हय‘‘

मालती एक प्राईवेट स्कूल में आया की नौकरी करती थी। इसलिए गांव में उसकी खास पूछ थी। 17 या 18 साल की युवती। मालती आई। दोनों महिलाओं ने उसके सामने वो नीला पैकेट कर दिया। मालती देखते ही चिंहुंकी-

‘‘हे...कहां रहय? दोनों महिलाओं ने सारी बात सामने रखी उसके फिर पूछा-

‘‘मनै ई बताव ई होय का?‘‘ मालती थोड़ा झिझकते हुए बोली-

‘‘ऊ चाची ई....का होय....उ का जउनै महीना आवै परिहा लौड़िए कपडक जिघा इस्तमाल करत हीं सीनेटरी पईड कहत हंय साईत‘‘

दोनों महिलाएं चीख पड़ीं-

‘‘हे भगवान, ई मास्टरवा हुंवा तक पहुंच गवा। उकी ई मजाल। मनै समुल्ली लौड़िएन कय बुला-बुलाए बांटिस...निर्लज्ज....छिनरा...हरामी...‘‘

‘‘हां, हो उकी नियत द्याखव। मुला याक दुई नार्हीं। समुच्ची लौंड़िएन का बांटिस। इकी खबर लेक परी‘‘

दूसरे दिन पुरे गांव में इसी की चर्चा रहीं। रात तक एक सनसनी फैल गई।

रात को गौतम की बीबी, जब सारे बच्चे खा पी के सो गए तो पति से धीरे से बोली-

‘‘सुनत हौ कांति केर बापू‘‘

‘‘ हाँ, बोलौ ?‘‘

‘‘ई स्कुलुवा केर हेडमास्टरवा सही अदमी नाय मालूम होत।‘‘

‘‘काहे...?‘‘ वह ऊंघते हुए बोला।

‘’ आज त ऊ लईकियन का कमरम बुलाय बुलाय कछु बांटिस है।‘‘

‘‘बांटिस हय, मनै खुलि कै बताव माजरा का है?‘‘

व्ह थोड़ा चैकस होता बोला।

‘6अरे अब क बताई, ई समझ लेव बिटियन कै गलत सामान बांटिस हय।‘‘

‘‘का....का...का...कहेव, ऊ ससुर कै अत्ती मजाल? तनि भोर होय देव...निकारित हय उनकी जवानी।‘‘

स्ुबह के आठ बजे थे। स्कूल में लड़के तो आ गए थे लेकिन लड़कियां एक भी नहीं दिख रही थीं। हेडमास्टर बैठे रजिस्टर मेनटेन कर रहे थे और सहायक अध्यापक बच्चों को हिसाब पढ़ा रहा था। तभी एक महिला का प्रवेष हुआ। वह सीधे हेडमास्टर के पास पहुंची-

‘‘के हेडमास्टर...ई तमासा अपन मईया बहिनियाक नाई बांट पावत हौ? हिंयां नान-नान बिटियेन सनी लुच्चई करत हौ?‘‘ और यह कहते हुए उसने सेनेटरी पैड के ढेर सारे पीस हेड मास्टर के मुंह पर उछाल दिए। वे सारे पीस हवा में यहां वहां बिखर गए। बच्चे उन्हें उठाने के लिए दौड़ पड़े। सहहयक अध्यापक अचंभित सा देखता रह गया। वह महिला उन्हें गरियाती हुई चली गईं। साथ ही यह भी कहत गईं कि-

‘‘हमार बिटिेवक नाव काट दिहेव, न भेजब स्कूल‘‘दोनों ही अध्यापक बुरी तरह आतंकित हो गए। बच्चे भी डरे सहमें से अपने गुरूओं को देख रहे थे। बिरजू और अन्य बचचों को ग्लानि हो रही थी कि उनकी ही वजह से उनके अध्यापकों पे आफत आई है। बेवजह ही उन्होंने घर में यह बातें बता दीं थीं। दो छोटे मोटे तीन या चार पांच साल के बचचे सेनेटरी पैड लिए एक कोने में खड़े बातिया रहे थे-

‘‘ मनै ई होय का ‘‘ पहला बच्चा उसे हाथ से इधर उधर करते बोला तो दूसरा बच्चा उसके हाथ से लेते हुए बोला-

‘‘ई कच्छी आए हो। कलिहा मास्टर जी बिटियन का बांटिन रहा, द्याखै नाय रहा का?‘‘ उनकी बात सुन ऐसे समय में भी सहायक अध्यापक के चेहरे पे मुस्कान तैर गई। लेकिन दूसरे क्षण हेड मास्टर और सहायक अध्यापक दोनों के ही चेहरों पर एक एयनीयता का भाव तिर आया और दोनों ने एक दूसरे को बड़ी ही असहयता से देखा। फिर वे अपने-अपने काम में लग गए। करीब दस मिनट बाद ही दूसरी आफत। गौतम फट पड़ा और छूटते ही बोला-

‘‘काहे रे मस्टरवा, ई बुढ़ापम तोरे जवानी चढ़ी है। हमार लईकिएन का गलत सामान बांटत हय! ‘‘ हेड मास्टर साहब सूखे पत्ते की तरह कांपने लगे।

‘‘ न.....नहीं तो। ये तो सरकार का प्रोग्राम...‘‘ अभी वह अपनी पूरी बात बता भी न पाए थे कि एक जोरदार लात उनकी कुर्सी पर पड़ी और वह कुर्सी समेत दूर जा गिरे। बचचे सब छोड़ छाड़ भग लिए। सहायक अध्यापक दौड़ कर करीब आया और कुछ कहने की कोषिष की कि गौतम चिल्लाया-

‘‘चोप्प...इकी मैयक...‘‘ उसके पसीने छूट गए। इधर उधर देखता स्कूल के बाहर निपक लिया। हेड मास्टर साहब की अच्छी पिटाई हो गई। माथे से, हाथ पांव से खून रिसने लगा। वह बेहद हताष और रक्त रंजित हो चुके थे। तब तक कुछ गांव के लोग भागते हुए आए और मास्टर साहब को उठा कर कुर्सी पर बिठाया। उन्हें पानी पिलाया, मरहम पट्टी की गई। फिर घर के लोग आए और उन्हें घर लिवा ले गए। फिर उसी गौतम के नाम से एफ आई आर दर्ज करवाई गई। पुलिस वाला पूछ रहा था-

‘‘क्यूं मास्टर साहब क्या बात हुई थी?‘‘

‘‘कुछ नाहीं सरकार, ऊ विद्यालय मां सरकार कुछ महिलाएन का सामान भिजवाए रही बांअै खत्ती। वहय बांटब बुरा होई गवा। हम का जानित रहय ई सब जाहिल इकै गलतै मतलब निकारि लेहंय। एक सिपाही ने हँसते हुए कहा-

‘‘यही है विकासवाद का माॅडल। कैसी सरकार लाए हैं आप लोग। शिक्षा तो कहीं दे नहीं रही, और डिजिटल इंण्डिया का गान करती है। जब लोग शिक्षित ही नहीं है तो लोग क्या समझेंगे चीजों को? और सब ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई।

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