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जननम - 1

जननम

भयंकर तूफान और घोर वर्षा में एक नदी में पूरी भरी हुई बस किसी गांव में बह जाती है। पर बस कहां की थी कहां से आई थी कहां जा रही थी कुछ भी पता नहीं चला। बस का बोर्ड भी नहीं मिला पता लगाते तो कैसे। कोशिश तो बहुत हुई पर पता ना लगा। किस एक्सीडेंट के 2 दिन बाद एक 20 बार 22 साल की युवा लड़की बेहोश नदी के किनारे मिली। गांव में एक बड़ा अस्पताल था उसको एक युवा डॉक्टर चला रहे थे। यह तन मन धन से ग्रामीणों की सेवा कर रहे थे। जब उनके पास उसी लड़की को लाया गया, तो इलाज कर उसे ठीक तो कर दिया गया। पर वह अपने अतीत को बिल्कुल ही भूल गई थी। यह नई परेशानी थी। कहां जाए, क्या करें, कैसे रहे? यह समस्याएं मुंह बाए खड़ी थी। अब इन सबको मालूम करने के लिए आप इस इंटरेस्टिंग उपन्यास को पढ़िएगा।

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तमिल मूल लेखिका वासंती का परिचय

26.7.1941 मैसूर में जन्मी वासंती शादी हो कर पति के साथ भारत के विभिन्न राज्यों में रही हुई है। इनकी उपन्यास 'आकाश के मकान'पर यूनेस्को के सरकार ने पुरस्कृत किया है। इसके अलावा इस उपन्यास का अंग्रेजी, चेक, जर्मन, हिंदी, आदि भाषाओं में अनुवाद हुआ है। पंजाब साहित्य अकादमी ने और उत्तर प्रदेश के साहित्य अकादमी ने इन्हें सम्मानित किया है। विभिन्न देशों में आपको भारत के प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला है। इन्होंने डेढ़ सौ से ज्यादा उपन्यास और कहानी संग्रह तमिल और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखे हैं। अभी भी निरंतर लिख रही हैं।

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जननम

अध्याय 1

अचानक तूफानी हवाओं के चलने से मेज पर रखे हुए कागज उड़ कर इधर-उधर हो गए।

आनंद ने जल्दी से उठ कर बिखरे हुए कागजों को समेटा और खिड़की को बंद किया तब तक बारिश शुरू हो गई उसके हाथों और चेहरे पर बारिश की बूंदे पड़ी। वर्षा इतनी तेज थी ऐसा लग रहा था जैसे कि बादल फट जाएगा।

खिड़की के बाहर कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। इतनी तेज बारिश देख उसने सोचा ये क्या फिर से बारिश हो रही है उसे अच्छा नहीं लगा।

ऐसी ही एक तूफानी बारिश परसों भी हुई थी । उस दिन पता नहीं कहां से रवाना होकर आई एक बस नदी और सड़क अलग से न पहचानने के कारण नदी में गिर गई। बस का एक भी यात्री नहीं बचा। आज शाम तक भी शवों को बाहर निकालने का काम हो रहा है | जब वह अस्पताल से लौट रहा था रास्ते में उसने 32 लोगों के शवों को देखा वे फूल गए थे और नीले पड़ गए थे। ओ ! माय गॉड वह दृश्य उसके मन-मस्तिष्क को अभी तक आंदोलित कर रहा था, उसको वह भूल नहीं पा रहा था। अचानक ऐसा होने पर मरने वालों ने मन में क्या सोचा होगा वह इस पर विचार करने लगा। हम कुछ सोचते हैं और जिन चीजों के बारे में उम्मीद लगाए बैठे हैं यह सब झूठा है क्या हम कभी इस बात को महसूस करते हैं? इस तरह का ज्ञानोदय हमारे अंदर कभी नहीं आएगा ऐसा वह सोचने लगा मरने के डर का सदमा दिमाग को बैलेंस करता है....

"खाना खाने आओ आनंद ?"

"अभी आ रहा हूं अम्मा !"

मेज पर खाना लगाकर मंगलम इंतजार कर रही थी।

"दोबारा बारिश, देखा ?" वह बोला

"बारिश बोलते ही अब घबराहट होने लगती है !"

किसी बात पर भी उनके चेहरे पर कोई शिकन दिखाई नहीं देती। अम्मा के चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रहती है। बोलते समय भी हंसते हुए ही बोलती है ऐसा लगता है। उसे जोर से या घबराकर बोलते हुए आज तक उसने नहीं देखा। 'पिता मरे तब भी वह क्या इसी तरह हंसती रही होगी' उसे ऐसा संदेह होता है। सब कुछ झूठा है ऐसी एक हंसी... तेज हवा चलने लगी.....

"आज तुम्हें क्या हुआ कुछ परेशान से लग रहे हो ?"

"नहीं तो ! कहकर वह यथार्थ की तरफ लौटा।

"रोजाना आप मेरा इंतजार क्यों करती हो मैंने सोचा !"

"तुम्हारा इंतजार करने के लिए किसी और को ढूंढती हूं । पर तुम मना करते हो अभी नहीं चाहिए ? तुम स्वयं भी नहीं ढूंढते!"

वह हंसा।

"मैं देखूं तो तुम मान जाओगी ?"

"हां ! पर इस छोटेसे गांव में तुम रहो तो पूरे जीवन तुम्हें ब्रह्मचारी ही रहना पड़ेगा।"

"मैं इस गांव को छोड़कर जाने वाला नहीं !"

"फिर तो भगवान ही किसी को यहां भेज दें तो ही काम होगा !"

वह हंसते हुए खाना खाकर हाथ धोने चला गया।

टेलीफोन बजा। दूसरी तरफ से नर्स निर्मला की घबराहट वाली आवाज सुनाई दी।

"एक इमरजेंसी है डॉक्टर ! एक एक्सीडेंट केस है आप आ रहे हैं ?"

"ड्यूटी वाले डॉक्टर वहां नहीं हैं ?"

"हैं साहब ! पर आप आएेंगे तो ठीक रहेगा वे बोले... परसों जो बस पलट गई थी उसमें आई हुई है लड़की ऐसा कह रहे हैं।"

एकदम से उसे कुछ याद आया।

"आ रहा हूं !"

बारिश का जोर अभी कुछ कम हुआ है। वह जल्दी से मां को कहकर कार में रवाना हुआ। इतने सारे यात्रीगण अचानक मर गए और अभी तक उनके शव मक्खियां भिन्न-भिन्नाते हुए पुलिस स्टेशन में पड़े हैं.....

'ये अनाथ जीव कहां जाकर अकेले भागकर बच गई' उसे आश्चर्य हुआ।

अगले 10 मिनट में वह केजुयलिटी के अंदर था उसको घबराहट हो रही थी। ऑक्सीजन लगी हुए थी आंखों को बंद किए हुए बिना किसी क्षत-विक्षत अंग के एक सुंदर युवा लड़की लेटी हुई थी।

ड्यूटी वाले डॉक्टर राघवन और निर्मला दोनों आदर के साथ एक तरफ खड़े हुए उसने पलंग के पास जाकर हाथ की नब्ज को छू कर देखा। नब्ज धीरे चल रही थी। उसके फूल जैसे कोमल हाथ बहुत गर्म थे। कुछ भी याद ना रहने पर भी इस बस दुर्घटना में वह फंस गई ऐसा वह सोच भी नहीं पा रहे थे। चेहरे का चमकता हुआ रंग किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर ले ऐसी सुंदरता ? उसने जो शव देखे उसमें और इसमें कितना अंतरहै!

उसने जल्दी से अपने को संभाला।

"इस केस को कौन लेकर आया ? कैसे पता यह लड़की उस बस से आई थी?"

"नदी के किनारे के गांव में रहने वाला एक आदमी इन्हें यहां लेकर आए। कल सुबह नदी किनारे यह लड़की जिसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी वहां मिली। तुरंत उन्होंने अपने घर ले जाकर उन्हें जो मालूम था वह उपचार किया। लड़की को होश ना आने के कारण वह अस्पताल लेकर आए।"

'अच्छा हुआ' वह अपने अंदर ही धीरे से बुदबुदाया।

"रूटीन टेस्ट जो होना था सब कर लिये ?" राघवन से पूछा।

"सब हो गये । ब्लड प्रेशर नॉर्मल है, सांस लेने में तकलीफ होने के कारण ऑक्सीजन दे रहे हैं। फीवर 103 डिग्री है।"

"हेड इंजरी हुआ होगा।"क्या उसे दिमाग में कुछ खराबी हुई होगी ! उसे फिकर लगी। कैसी होगी ? हंसने के लिए ही जीवित रहना होगा ?

"सिर के एक्स-रे करने की तैयारी करो निर्मला !"

"यस डॉक्टर। मैंने रेडियोलॉजिस्ट को फोन किया है वह आ जाएंगे।"

"गुड..."

उसने उसकी पलकों को धीरे से खोल कर देखा। उसके दोनों हाथों को उठाकर देखा।

'एक्स-रे में किसी तरह के नुकसान का पता नहीं लगा। थोड़ी देर पेशेंट को देखने के बाद आनंद रवाना हुआ।

"हर आधे घंटे में इस लड़की को राघवन चेक करते रहो""यदि कुछ एब‌नॉर्मल दिखाई दे तो मुझे इन्फॉर्म कर देना।"

"ठीक है डॉक्टर आप जाइएगा, मैं संभाल लूंगा।"

घर लौटते हुए बार-बार पलट-पलट कर, वह चेहरा उसके सामने आया। 'अरे बेचारी' उसे ऐसा लगा। कहां के लिए रवाना हुई होगी ? इसके साथ कौन आया होगा ? कोई भी हो वह अब इसके साथ जिंदा नहीं है इसे पता चले वह कितनी परेशान होगी तड़पेगी ? देखने से शहर की लड़की जैसे दिख रही है। कल उसकी याददाश्त लौट आए तो पुलिस को सूचित करना होगा।

सुबह आंख खुलते ही वह असाधारण चेहरा ही उसे याद आया। उसने आंखें खोली होगी क्या ! और दिनों के मुकाबले आज उसे जाने की जल्दी हो रही थी। आज और दिनों से जल्दी अस्पताल पहुंच कर उसे देखने चला गया। फिर से उसकी सुंदरता ने उसे आकर्षित किया। बंद की हुई आंखों में लंबी भौंहें के घने लंबे बाल, टी जानकीरामन जैसे वर्णन करते हैं वैसे ही.....

"हाउ इस शी ?" उसने निर्मला से पूछा।

"मच बेटर डॉक्टर। बुखार कम हुआ है।"

"होश आया ?"

"वह आ आकर जा रहा है।"

"गुड ! आज दोपहर के अंदर होश आ जाएगा। तुम घर जाने के पहले नर्स जया को यहां ड्यूटी करने को बोलो।"

"यस डॉक्टर।"

वह अपने आप को जबरदस्ती वहां से निकालकर दूसरे रोगियों को देखने के लिए रवाना हुआ।

"वह जब अपने राउंड को पूरा करके फिर से अपने कमरे में गया तो इंस्पेक्टर धर्मराजन को वहां बैठे देखा। उन्हें वहां देखकर उसे अचानक निराशा और भ्रम भी पैदा हुआ। इस छोटे गांव में कितनी जल्दी समाचार फैल जाता है!

"गुड मॉर्निंग डॉक्टर !"

"गुड मॉर्निंग ! क्या बात है धर्मराजन ?"

"एक केस के विषय में मैं आया हूँ डॉक्टर। परसों एक पूरी की पूरी भरी हुई बस नदी में डूब गई थी ! उसके बारे में अभी तक कोई विवरण पता नहीं चला। उसमें यात्रा कर रही एक लड़की आपके अस्पताल में है मैंने सुना !"

आनंद अपने जबड़े को खुजाने लगा।

"एक लड़की हमारे अस्पताल में एडमिट है यह सच है। परंतु वह बस से आई यह पक्का नहीं कह सकते।"

"उसी से पूछ लें तो क्या पता नहीं चलेगा ?"

"अभी उसे होश नहीं आया है धर्मराजन।"

"बच तो जाएगी ?"

आनंद। ओके मिस एक्स, सोने के कोशिश करो।"

उसके कमरे से बाहर आते ही उसके चेहरे पर फिक्र की रेखाएं साफ नजर आ रही थी। उसे देखते ही धर्मराजन ने उत्सुकता के साथ पूछा;

"कैसी है वह लड़की ? उसे होश आ गया?"

आनंद ने होंठों को बिचका कर मना किया।

"होश तो आ गया है पर आपको कोई फायदा नहीं क्योंकि उसे कुछ याद नहीं !"

धर्मराजन ने आश्चर्य से उन्हें देखा।

"आप क्या कह रहे हैं ?" "उस बारे में तो कोई संदेह नहीं।"

"वह लड़की अपने मुंह से कुछ बोले तो ठीक रहेगा। 32 शवों को लेकर जिनका गांव, शहर का नाम कुछ भी पता नहीं होने के कारण मैं परेशान हो रहा हूं डॉक्टर। बस के बोर्ड वगैरह भी कुछ नहीं है। नदी को खूब छान डाला कुछ हाथ नहीं लगा। पता नहीं कहां जाकर फंस गया है ? तमिलनाडु के सरकारी बस है। अच्छी बात है। मैंने उन्हें सूचित कर दिया है । अभी तक कोई सूचना नहीं मिली। बस कहां से रवाना हुई पता चले तो वहां के लोगों से पूछताछ कर सकते हैं...."

"आपकी फिक्र मेरे समझ में आ रही है परंतु.."

उसका मौन टूटा। नर्स जया जल्दी में वहां आ खड़ी हुई।

"उस लड़की ने आंखें खोली है...!" उसकी बात पूरी होने के पहले ही धर्मराजन उठे।

"आप बैठिए धर्मराजन" थोड़े सख्ती के साथ आनंद बोला । "मैं पहले उसका चेकअप करता हूं उसके बाद ही आपको बुला सकता हूं....."

जब वह उस लड़की के पलंग की तरफ गया तो उसने भी इसकी तरफ निगाहें की।

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क्रमश..