Jannam - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

जननम - 2

जननम

अध्याय 2

"हेलो !" वह धीरे से बोला। उडती सी उसने निगाह उस पर डाली फिर असमंजस में उसे देखा। निर्दोष निग़ाहों से उसने देखा। फिर उसने चारों तरफ नजरें घुमाई। जया के ऊपर, फिर दीवार पर, खिड़कियों पर, बाहर दिखाई दे रही पेड़ों पर सब पर उसकी निगाहें चलती रही। वाह क्या आँखें हैं ! सफेद समुद्र में काले नीले रंग की मणि जैसे. ‌‌‌….

इसे तमिल मालूम होगा ऐसा सोच उसने उससे पूछा।

"आप कैसी हैं ?"

उसका असमंजस ज्यादा हो गया ऐसा लगा।

"क्या ?"

"आप अब कैसी हैं ?"

उसने उसे संशय से देखा। अजीब सी कसमसाहट-

"मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है"

वह मन में हंसा:

"कोई बात नहीं। धीरे-धीरे समझ में आ जाएगा। अभी कोई जल्दी नहीं है पहले आपका शरीर ठीक होने दो।"

"मुझे क्या बीमारी है ?"

कुछ सोचते हुए उसको देखा। बीपी, पल्स सब नॉर्मल था। आंखों में असमंजस होने के बाद भी आंखें निर्मल थी। इसके साथ जो घटा उसको इसे याद दिलाना चाहिए? तुम्हारे साथ आए सभी यात्री मर गए ऐसे बोलो तो वह कैसा महसूस करेगी ?

अचानक एक बात उसे समझ आई। इसने क्यों नहीं पूछा? 'मैं बस में यात्रा कर रही थी, मुझे क्या हुआ' ऐसा इसने क्यों नहीं पूछा ? मन में अचानक एक संदेह उठा ।

"आप एक बस की दुर्घटना में फंस गई थी‌। अत: आपको अस्पताल में रखकर ट्रीटमेंट दे रहे हैं -यू विल बी ऑल राइट मिस -!"

उसके चेहरे पर फिर भी बहुत सारे असमंजस दिखाई दिया तो उसने धीरे से पूछा;

"आपका नाम क्या है ?"

"उसके चेहरे पर एक डर दिखाई दिया।"

"मेरा नाम ही मुझे याद नहीं...."

आनंद ने आश्चर्य के साथ उसे देखा।

"मैं कौन हूं मुझे नहीं पता....."

उसकी आँखों में डर और असमंजस को देख उसे दया आई ‌। उसने अपनत्व के साथ उसके कंधे पर हाथ रखा।

"डोंट वरी। कभी-कभी सदमे से ऐसे भूल जाते हैं। धीरे-धीरे याद आ जाएगा।"

"सचमुच ?"

"हां। अपने आप याददाश्त वापस आ जाएगी। इसके लिए आप परेशान ना हो। एक बार पहले ही सिर पर लग चुकी है।"

उसके होंठो पर इस असमंजस में भी एक मुस्कान खिली। ओहो! उसके बांए गाल पर डिंपल पड रहे थे । इस सुंदरता ने उसे भ्रम में डाल दिया।

"थोड़ा सोने की कोशिश करो ‌। जया ! एक कंपोस शॉर्ट दे दो ‌। आप सो कर उठ जाओ तो आपको याद आ जाएगा आप कौन हैं। तब तक आपको मिस एक्स बुलाए?"

वह संकोच से मुस्कुराई।

"आपका नाम ?"

"मेरा नाम बहुत लंबा है। दादा जी ने जो नाम रखा आनंद रामाकृष्णन। छोटे में आनंद। डॉ.

"एमनेसिया है मैं सोच रहा हूं। इस तरह सिर पर चोट लगने से याददाश्त खत्म हो जाता है। कुछ भी कर लो पुरानी यादें वापस नहीं आती।"

"हे भगवान !"

धर्मराजन ने उंगलियों से मेज पर धीरे से थपथपाया।

"हिप्नोटिज्म के द्वारा पुरानी बातों को बताने की कोशिश करें !"

"कभी-कभी कुछ कारणों से भी याददाश्त खो जाती है। उसके लिए हिप्नोसिस नहीं है सोडियम पेंटासाल के द्वारा भी ट्रीटमेंट दे सकते हैं। परंतु इस तरह सिर पर चोट के कारण याददाश्त चली जाए तो यादाश्त के वापस आने पर संदेह ही है... देखेंगे धर्मराजन। एक बार सो कर उठ जाए फिर कैसी है देखेंगे।"

"यही मैं सोच रहा हूं। बार-बार प्रश्न पूछे तो याददाश्त वापस आ जाए !"

"देखेंगे !"

धर्मराजन उठ गए।

"फिर मैं शाम को दोबारा आऊंगा। इस लड़की ने यदि कोई विवरण नहीं बताया तो सभी शवों को जलाना ही पड़ेगा। कितने दिन बर्फ में रख सकते हैं !"

"आज न्यूज़पेपर में इस दुर्घटना के बारे में न्यूज़ आई है, मैंने देखा ! थोड़ा तसल्ली रखिए अपने आप विवरण पता चल जाएगा।"

"वह ठीक है !"

धर्मराजन उठ गए।

"इस लड़की के बारे में सोचो तो बहुत दया आती है ! अनजान जगह पर अनाथ बन कर फंस गई!"

उस लड़की की दशा बहुत ही दयनीय है उसने सोचा। मन के अंदर शून्यता पैदा होने की दशा है। उसके नजदीकी सारे रिश्तेदार उस बस की दुर्घटना में मर गए ऐसी हालत में पुरानी बातों का भूल जाना ही उसके लिए अच्छा है। वरना यह दुख उसे पूरी जिंदगी परेशान करता रहेगा। उस सुंदर आंखों पर हमेशा के लिए एक पर्दा पड़ जाएगा। उसके गाल में जो डिंपल है वह भी चला जाएगा .....

'उसके दशा के बारे में कुछ भी पक्का कह नहीं सकते' उसने सोचा। अब कुछ घंटों में ही उसे अपनी पुरानी यादें आ सकती है ।

'अरे मुझे पुरानी यादें वापस आ गई मेरा नाम लावण्या है !

लावण्या !

कितना उपयुक्त नाम है! उसकी सौम्य आकृति और आँखों को इससे बढ़िया क्या नाम हो सकता है?

वह शाम को उसे देखने चला गया।

"हेलो, मिस एक्स !" उसके बुलाते ही, उसने उसे हीन भावना से देखा।

"मेरा नाम मुझे अभी तक याद नहीं आया !" वह बोली।

"मुझे आपका नाम मालूम है ?" वह मजाक में बोला ।

उसकी आंखें चौंड़ी हो गई।

"क्या नाम है ?"

"लावण्या !"

उसने भौंहों को सिकोडा।"

" नाम सुना हो ऐसा याद नहीं।"

"नाम अच्छा नहीं ?"

वह एकदम से ऐसे हंसी जिसकी उसने कल्पना नहीं करी थी। दांत मोतीपुराये जैसे..... इसकी हर चीज इतनी सुंदर कैसे ?

"नाम अच्छा होने से क्या मेरा नाम हो जाएगा ?"

"आपका नाम आपको याद आने तक आप लावण्या ही रहेंगी। आप कौन हैं हम जल्दी ही मालूम करने की कोशिश कर रहे हैं !"

"यदि मालूम ना कर सके तो ?"

इसके बारे में तो उसने सोचा ही नहीं यह उसने महसूस किया ‌।

"आज के पेपर में न्यूज़ आ गया है। उसको देख कर आपको ढूंढने कोई नहीं आएगा क्या ?"

फिर वह सौम्यता से बोला;

"ऐसा कोई नहीं आए तो आप इस गांव में ही ठहर जाना। अच्छा गांव है। यहां के लोग भी बहुत अच्छे हैं......"

उसके आंखों में एकदम से पानी आया, और उसने अपनी निगाहों को दूसरी तरफ घुमा लिया।

"दिस इज नॉट फनी ?" वह बोली।

"मजाक की बात है यह मैंने नहीं कहा। दूसरा कोई रास्ता ना हो तो क्या करना चाहिए यही बोला। ओहो ! अभी इस सब के बारे में क्यों परेशान हो रही हैं? आपको अपने मन को थोड़ा पक्का रखना चाहिए । पुरानी बातें धीरे-धीरे याद आ सकती हैं।"

उसने छाया देखकर घूम कर देखा। कमरे के दरवाजे पर मिरासदार शोक्कलिंगम खड़े थे। वह बेमन से उनके पास गया।

"क्या बात है मिस्टर शोक्कलिंगम ? कंसलटिंग रूम में आईए।"

उनकी निगाहें उससे दूर वहां लेटी हुई लड़की पर गई।

उसने अपने गुस्से को दबाया और जबरदस्ती उन्हें पकड़कर बाहर ले गया।

"पेशेंट को परेशान नहीं करना चाहिए आइए।"

शौक्कलिंगम दबी हुई एक हंसी हंसा।

"मैंने और ही कुछ सोचा। सब लोग बात कर रहे हैं वह सही ही है। वह लड़की सिनेमा स्टार जैसे ही है!"

उसके चार चांटे खींचकर लगाएे ऐसा उसे गुस्सा आया। बड़े आदमी के वेश में छोटी बुद्धि वाला! अपने जीभ, आंखें, शरीर को काबू में रखना उसे नहीं आता और इसलिए वह बीमार रहता है क्योकि अपनी इच्छाओं की पूर्ति न कर पाने के कारण बिगड़ा हुआ शरीर। उसके शरीर को देख-देख कर रिपेयर करना इसका काम है।

"वह लड़की उस बस में आई है सब बात कर रहे हैं, तुमने तो कुछ भी नहीं बोला भाई ?"

उसे तेज गुस्सा आया:"मेरे पास आने वाले पेशेंट के बारे में मैं दूसरों से बात नहीं करता। मिस्टर शोक्कलिंगम ! मुझे अभी राउंड पर जाना है। आप क्यों आए बताइए ?"

"सुबह खून टेस्ट करने के लिए दिया था। उसका रिपोर्ट लेने के लिए आया हूं।"

"वह कल ही मिलेगा आपको मालूम है। अभी आकर पूछने का तो क्या फायदा है बताइए !"

"फिर कल आऊं ?"

"आइए !"

इस उम्र में इस तरह बिना मतलब लार टपकाते हुए घूम रहे हैं ऐसा सोच उसके अंदर एक घृणा पैदा हुई। वार्ड के अंदर राउंड लेकर आया तो पुलिस की जीप आकर खड़ी हुई।

उसे देखते ही धर्मराजन ने पूछा: "कैसे हैं डॉक्टर? अब वह लड़की कैसी है क्या मिल सकते हैं ?"

खते हैं।"

उस कम"वह वैसी ही है। पर आप आइए, आप कुछ प्रश्न पूछ कर देखें तो शायद कुछ याद आ जाए दे रे के बाहर एक भीड़ खड़ी हुई थी। ऐसी भीड़ क्यों खड़ी है वह परेशान हुआ। उसे और धर्मराजन को देखते ही भीड़ छितर-भितर हो गई।

"क्या बात है निर्मला ?"

"कुछ भी बोलो तो यह लोग नहीं सुनते डॉक्टर ! यहां लेटी हुई है वह एक हीरोइन है ऐसी बात किसी ने फैला दिया!”

.........................

क्रमश..