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जननम - 3

जननम

अध्याय 3

उन लोगों के अंदर घुसते ही उसने दरवाजे को बंद कर दिया।

दीवार को देखते हुए वह लड़की लेटी हुई थी।

"लावण्या !" धीरे से बोला आनंद। वह तुरंत पलटी। धर्मराजन और निर्मला आश्चर्य से उसे देखने लगे।

"मैंने रखा है यह नाम" कहकर आनंद धीरे से हंसा।

"लावण्या... यह हैं इस्पेक्टर धर्मराजन। आपसे कुछ प्रश्न पूछने आए हैं।"

फिर से उसकी आंखें भर आई थोड़े डर और असमंजस में भी दिखी।

"मैं क्या बोल सकती हूं ?"

"कोशिश करिए।"

धर्मराजन धीमी आवाज में बोले;

"आप अच्छी तरह सोच कर जो याद आए वह बताइए। किसजगह से बस रवाना हुई। इस गांव के रास्ते से दूसरे गांव को जाते समय तेज बारिश में फंस गई। ड्राइवर के असावधानी से या किसी अन्य कारण से बस नदी में डूब गई। उसमें जितने लोग थे सब मर गए.... सिवाय आपके...."

आंखों को फाड़ कर घबराकर देखने लगी।

"किस शहर से या गांव से बस रवाना हुई आप बता सकती हैं ?"

"मुझे नहीं पता।"

"आप किस शहर से रवाना हुई ?"

"मुझे याद नहीं !"

"आप कहां जा रही थी ?"

"प्लीज मुझसे मत पूछिए। मुझे कुछ याद नहीं।"

"आपके साथ जो आए वह आपके माता पिता.....? उसके खाली गले में उनकी निगाहें गई। बड़े भाई, बड़ी बहन....?"

उसने जल्दी से अपने चेहरे को हाथों से ढक कर रोने लगी।

"मुझे नहीं पता। मुझे कुछ भी याद नहीं...."

"बस करो धर्मराजन । मैंने तो कहा था छोड़ दो।"

धर्मराजन ने निराशा के साथ उसको देखा।

"अब मैं आपसे कुछ नहीं पूछूंगा। आप दुखी मत हो। मैंने जो कहा उन विषयों पर सोच कर देखिए। यदि कुछ याद आए तो तुरंत बताइएगा।"

उसने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बंद किए हुए हाथों को भी नहीं उठाया।

कमरे के बाहर आते ही "फिर मैं चलता हूं; धर्मराजन बोले "अब जो काम होना है उसे डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर से बात कर फैसला करना होगा। मद्रास से कोई समाचार आया है क्या, देखता हूं। वह लड़की अपने आप कोई बात बताए तो आप मुझे कहलवा दें।"

"जरूर !"

"वह क्या नाम रखा आपने ?"

आनंद संकोच से हंसा।

"लावण्या !"

"अच्छा नाम रखा है आपने! 'सीता,गीता जैसे आसान नाम को छोड़कर 'लावण्या' नाम कहां से पकड़ा ?"

"पी. वी.आर. का लिखा मथुरनायगी पढ़ा है आपने ?"

"मेरे पास उसके लिए समय कहां है डॉक्टर ?" कहकर हंसते हुए इंस्पेक्टर धर्मराजन जीप में चढ़ गए।

उस दिन शाम को वह कार से घर जाते समय उसका मन अजीब सा हो गया ऐसा उसे लगा। कुछ अद्भुत बात हो गई ऐसा उसे लगा।

'लावण्या को कहां से पकड़ा ?'

उसके होंठ पर एक मुस्कुराहट आई।

उस प्रश्न का जवाब देना बहुत मुश्किल का काम है उसे लगा।

सुबह आंखें खुलते ही कमरे के अंदर धूप आ गई थी उसे देख आनंद को अच्छा लगा। दस दिन से बादल ही बादल छाए हुए थे कभी-कभी धूप दिखती हंसते जैसे। आम का पेड़, नीम का पेड़, गुलाब के पौधे सब मुस्कुरा रहे थे। वे शुद्ध और आरोग्य के साथ हंस रहे थे। हां आज छोटी-छोटी विषयों में भी उसका मन उत्साह से उछल रहा था।

किसी काम से आई मंगलम ने उसे कोई गाना गुनगुनाता हुआ देख आश्चर्य से उसे देखा।

"क्या बात है आज गाना वाना ओहो ?"

"धूप को देखते ही बहुत खुशी हो रही है ?"

अम्मा ने बिना कुछ जवाब दिए उसे एक क्षण घूरकर देखा।

"अम्मा! टिफन रेडी है? अस्पताल के लिए देर हो गई।"

"तैयार है आजा।"

***

खाना बनाने वाले शंकर ने मेज पर सब कुछ तैयार रखा था। आनंद किसी गाने को गुनगुनाते हुए बैठा उसी समय उसकी मां मंगलम पास में बैठी।"

"शंकरा! तुम कैसे इतनी मुलायम इडली बनाते हो ?"

शंकर संकोच के साथ हंसा।

"सब कुछ अम्मा ने ही सिखाया है।"

"वह लड़की कैसी है ?"

आनंद ने जल्दी से सर ऊपर करके अम्मा को देखा।

"कौन सी लड़की ?"

"वही वह लावण्या !"

"वह घबराकर मां को देखने लगा । अपनी झेंप मिटाने के लिए जोर से हंसा।

"किसने तुम्हें नाम बताया ?"

अम्मा की हंसी में एक योजना भी दिखाई दी।

"इस गांव में कोई विषय जानने के लिए कितने दिन लगेंगे ? कल उस लड़की का ब्लड प्रेशर कितना था। अगले दिन कितना था वह भी मुझे पता है!"

आनंद दुबारा भी हंसा।

"और तुम्हें क्या पता है ?"

"वह लड़की बहुत सुंदर है ऐसा सुना ?"

"हां, ठीक है! नॉट बैड नॉट बैड एट ऑल !"

"तुमने ही उसका नाम रखा बताया !"

"फिर क्या करें ? नाम भी याद नहीं है कह रही है। ए लड़की ए लड़की जैसे सिनेमा में शिवाजी गणेशन बुलाता है ऐसी बुलाऊं क्या ?"

अम्मा के होंठों में हमेशा की तरह मुस्कुराहट चमकी।

"मैं वैसा कुछ नहीं कह रही हूं। एक ऐसा अपूर्व नाम कैसे तुम्हें ध्यान आया सोच रही हूं।"

वह बिना कुछ जवाब दिए हंसता हुआ खाने लगा। 'वह लड़की ही एक अपूर्व लड़की है बोले तो अम्मा समझ जाएगी ? धर्मराजन से पूछा उसी प्रश्न को मां से पूछूं क्या' सोचता हुआ फिर बिना पूछे ही रहा।

"क्या बात है मैंने पूछा उसका तुमने जवाब नहीं दिया ?"

"क्या पूछा ?"

"वह लड़की अब कैसी है ?"

"बहुत ठीक है।"

"उसकी याददाश्त ?"

"वह अभी तक नहीं आई।"

"यह बहुत ही आश्चर्यजनक बात है आनंद ! वह तमिल बोलती है और अंग्रेजी भी बहुत अच्छा बोलती है बताया। बहुत से विषयों को पढा हो जैसे बात करती है इससे कुछ पता चलता है । कहां की है याद नहीं है। नाम क्या है याद नहीं है। अप्पा, अम्मा कौन है कहां से आई है यह सब नहीं मालूम विश्वास करने लायक नहीं।"

"यह सब कैसा है। जो सीखा है जो पढ़ा है वह सब याद रहेगा। रहन-सहन भी नहीं बदलेगा। परंतु वह कौन है कहां से आई है कहां की है सब भूल जाएगी ?"

"उसकी अपने लोगों को देखकर शायद उसे याद आए !"

"अभी तक कोई नहीं आया उसे ढूंढते हुए। उसके साथ उसका परिवार भी इस बस में शायद आया था यह भी संदेह जनक ही है।"

"और कोई नहीं होगा क्या, चाचा, मामा ऐसा कोई ?"

आनंद हाथ धोकर रवाना हुआ।

"अब पता चलेगा। पुलिस को सूचना दे दी गई है। तमिलनाडु के पेपर में निकाल दिया गया है। और लोगों को ढूंढते हुए कई लोग आए। इस लड़की को ढूंढते हुए कोई नहीं आया।"

अस्पताल आते समय सुबह जो मन में उत्साह था अब पता नहीं क्यों वह एक चिंता में बदल गया। वह यहां अकेली फंस गई। पुरानी बातें सब भूल गई यह सब आश्चर्य की बात नहीं है। उसके आते ही उसके मन को आकर्षित कर लिया यह विश्वास करने लायक कहानी नहीं है उसके लिए।' अभी तक किसी लड़की ने उसके मन को इस तरह नहीं छुआ जिस तरह इस लड़की ने उसे पूरी तरह प्रभावित कर दिया? कल ही कोई आकर "ओहो! यह तो मेरी लड़की कमला है" ऐसा रिश्ता बताते हुए कोई आ जाए तो मैं क्या करूंगा? मन को बांध के रखना ही समझदारी है 'वह सोचता हुआ अस्पताल के भवन के अंदर प्रवेश कर गया ।

"क्या बात है भाई, आज कैसे लेट हो गए ?" वह अचकचाया सामने देखा।

शोक्कलिंगम सामने खड़े थे।

"क्या बात है बताइए ? आज आपके शरीर में कौन सी बीमारी है ?"

"भाई मज़ाक कर रहे हो क्या ? उस दिन जब बारिश हुई तब से मेरा शरीर ठीक नहीं है...!"

"अंदर आइए।"

"दस्त लग रहे हैं भाई, बंद ही नहीं हो रहे हैं !"

चेकअप करके उनको दवाई लिख कर भेज दी।

"पेट को खाली रखिए। सब ठीक हो जाएगा ।"

रवाना होते समय पूछा "उस लड़की को ढूंढते हुए कोई नहीं आया क्या ?"

"किसे ?"

"वही, उस लावण्या को !"

दूसरे लोग जब उस नाम को बोले हैं तो उसका मन अजीब सा होने लगता है यह देख कर उसे स्वयं को आश्चर्य हुआ।

"नहीं।"

"मुझे एक योजना सूझ रही है भाई। उस लड़की को वह कौन है मालूम नहीं। ढूंढते हुए कोई नहीं आया। वह कहां जाएगी ? बेचारी पढ़ी-लिखी लड़की लगती है ऐसी बातें करती है। अपने हाईस्कूल में उसे एक नौकरी दे देते हैं....."

उनके बात करने से उसे लगा बहुत देर सोचकर उन्होंने ऐसा कहा है उसे बहुत आश्चर्य हो रहा था। लावण्या को रोजाना देख सकें क्या ऐसा उसने सोचा।

"उसके बारे में तसल्ली से बात करेंगे मिस्टर शोक्कलिंगम। उस लड़की को ठीक होने में एक-दो हफ्ते और लग सकते हैं। इस बीच कोई उसे लेने ना आये तो देखेंगे।"

"ठीक है भाई।"

बहुत बड़े न्यायाधीश जैसे बात करके जा रहे हैं उसे लगा ,वास्तव में इनके मन में क्या-क्या वक्र बुद्धि काम कर रही है मालूम नहीं उसने सोचा। सोचते हुए वह लावण्या को देखने गया।

शून्य में देखते हुएबैठी थी। उसकी भौंहे पंख जैसे फैली हुई ऊपर को देख रही थी। वह धीरे से "हेलो, लावण्या !" बोला। उसने पलट कर देखा।

"हेलो !" कहकर धीरे से मुस्कुराई। ओह! उस हंसी में गालों में पड़े डिंपल। उसने जल्दी से भगवान से प्रार्थना की। 'हे भगवान! इसे ढूंढते हुए किसी को नहीं आना चाहिए।'

"कैसी हो लावण्या ?"

"फाइन !"

"फिर इसी शून्य में !क्या ढूंढती रहती हो ?"

"मेरा नाम वहां मिलता है क्या ढूंढ रही हूं ।"

"क्यों, लावण्या नाम पसंद नहीं आया ?"

"थोड़ा सा कठिन नाम है। वह भी भूल जाएगा क्या डर लगता है !"

"मैं याद दिलाता रहूंगा। आप फिकर मत करो।"

वह उसे घूर कर देख कर फिर हंस दी।

उसने सामान्य चेकअप करके खत्म किया।

"और दो हफ्तों में आप पहली जैसे हो जाएंगी। आप अपना काम अपने आप करने लायक स्वस्थ हो जाओगी।"

वह कुछ देर बिना बोले चुप रही। बाद में धीरे से बोली "उसके बाद क्या करूंगी समझ में नहीं आ रहा है डॉक्टर। मुझे ढूंढने अभी तक कोई नहीं आया। मैं बीच समुद्र में फंस गई हूं जैसे लग रहा है ।जहां दोनों तरफ के तट नहीं दिखने ..."

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क्रमश..