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जननम - 6

जननम

अध्याय 6

उसकी वजह से ही मेरे मन में एक संतुष्टी है ऐसा वह सोचती है। यदि इसकी दोस्ती नहीं होती तो अभी तक मैं पागल हो गई होती। कितने ही तरीके से उसने उसका समाधान किया ! उससे बड़ा सच्चा दोस्त कौन मिलेगा ? अस्पताल में रहते समय निर्मला और जया उस पर पागल जैसे छाई हुई रहती थीं इस बात को वह समझ गई। इससे जो लोग इसके बहुत निकट से रहते हैं उनका उससे संबंध तो नहीं हो जाएगा उसे ऐसा लगा था। फिर मन में एक धक्का सा लगा । मैंने इतनी जल्दी से ऐसा निर्णय कैसेले लिया। इतनी खराब तो नहीं हूँ , एमनेसिया के अलावा मेरी बुद्धि में कोई खराबी नहीं है।

पक्षियों के कोलाहल की आवाज से कान फटने लगे । अपने घोसले में लौट आए पक्षी। सब अपने घोसले में आने के बाद गर्माहट में आराम से सोएंगे। अंधेरा धीरे-धीरे फैलने लगा।

"अम्मा, लावण्या अम्मा !"

सुन जल्दी से वह स्वयं के स्वरूप में लौट आई। घर के सामने खड़ी होकर बुढ़िया आवाज दे रही थी। लावण्या जल्दी चलिए।

"क्या हुआ मरकदम ?"

"बत्ती जलाने का समय हो गया। अभी तक तुम पीपल के पेड़ के नीचे क्यों खड़ी हो ?"

"इमली के पेड़ के नीचे ही तो नहीं खड़ा होना चाहिए ।"

"सुंदर लड़की का किसी भी पेड़ के नीचे खड़ा रहना गलत है।"

"कौन है वह लड़की ? मैं देख सकता हूं ?"

वह हड़बड़ा कर पलटी।

आनंद दरवाजे पर हंसते हुए खड़ा था।

"हेलो !" वह खुशी से बोली "क्या बात है आज आपके चेहरे पर बड़ी खुशी दिखाई दे रही है?"

"आपका आना ही मेरे लिए खुशी है ?"

उसकी आवाज में अपनत्व की भावना प्रगट होकर प्रवाहित होने लगी ।

अपने दिमाग को किसी के पास गिरवी रख दिया हो जैसे भ्रम उसे पैदा हुआ।

"मेरे पेशेंट की तबीयत और मन ठीक हो गया देखकर मुझे खुश नहीं होना चाहिए ?"

आनंद के सौम्यता से हंसते हुए पूछने पर वह अपनी स्वयं की स्वाभाविक स्थिति में आई। उसको उसकी जो परवाह है उसका कारण और कुछ नहीं मानवतावादी सोच है। एक डॉक्टर का एक पेशेंट के प्रति जागरूकता का प्रतीक है। उसकी बातों और निगाहों का जो अर्थ उसने समझा वह यथार्थ में उसकी कल्पना मात्र है। इसका कारण आधार ढूंढने के लिए भटकने वाला उसका मन ही है।

"मुझसे मिलने में आपको खुशी नहीं हुई ऐसा लगता है ?"

"किसने कहा ?"

"आपका चेहरा क्यों लटक गया ?"

"नहीं तो ?"

उसकी दृष्टि में दया दिखाई दी। "सिर में विचारों का जो बोझ है उसको सहन न कर पाने के कारण चेहरा लटक गया। “लावण्या, आपको जो बीत गया उसकी फिक्र है..... अब क्या होगा इसकी फिक्र और सोच.... परंतु इस वर्तमान समय के बारे में सोच और फिक्र नहीं है.....”

"ऐसे कैसे बोल रहे हो आप ?"

" सामान्य ज्ञान के आधार पर । आपके मन में किस तरह की बातें उठ रही हैं वह मैं समझ सकता हूं।"

"क्या बात हैं ?"

उसने उसका जवाब न देकर उसे घूर कर देखा।

"आपने जे. कृष्णमूर्ति को पढ़ा है ?"

"नहीं ।"

"वे क्या बोलते हैं......"

वह थोड़ा हिचका।

"क्या बोलते हैं ?"

"नहीं, आप बोर हो जाओगी |"

"नहीं। बताइए।"

"वे कहते हैं- 'पुरानी यादें, बातें ही आदमी की उन्नति में बाधक है। पुरानी बातों को पूरा भूल जाओ। उन यादों को तोड़कर बाहर आओ। तुम अपने भविष्य की नई योजना बनाओ। जब कोई परेशानी आए तो उसे अपनी अक्ल से संभालो.... वर्तमान में रहो। पुरानी बातों और आने वाले भविष्य के बारे में फिक्र मत करो' उन्होंने बोला...."

वह चुप हुआ। उसके गालों पर पड़े हुए डिंपल के साथ, आंखों में उत्साह लिए उसके सुनने को उसने एक क्षण देखा।

"यह सब आपके लिए ही बोला ऐसा नहीं है ?"

"किसी बात की फिक्र मत करो। तुम्हें जो डॉक्टर देख रहे हैं उनके ऊपर भार को डाल दो, तुम्हारा पूरा कष्ट चला जाएगा उन्होंने नहीं बोला ?"

वह हंसा।

"नहीं ! किसी पर विश्वास मत करो तुम्हारी अपनी बुद्धि के सिवाय वे बोले।"

"मेरी बुद्धि कह रही है आप पर विश्वास कर सकते हैं।"

"ओ, थैंक यू ! यह आपकी बातों से ही लग रहा है ? आपके भार को सहन करने वाले को एक गिलास कॉफी भी नहीं मिलेगी ?"

"आ रही है ! मरकदम अभी लेकर आएंगी। आपके पैर अंदर रखते ही चूल्हे पर दूध चढ़ाना है यह मेरा स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन है। वह थोड़ी धीरे काम करने वाली...."

मरकदम के कॉफी लेकर आते ही उसे पीकर वह उठा।

"मैं आता हूं लावण्या। एनी प्रॉब्लम ?"

"नहीं ।"

"वह शोक्कलिंगम यहां आकर आपको परेशान तो नहीं करता ?"

"ऊंम। परेशान तो नहीं कह सकते। दो तीन बार यहां आए।"

"क्यों ?"

"मुझे कुछ कारण का पता नहीं चला। मुझे संभाल रहे हैं ऐसा वे सोचते हैं। आपके कहे अनुसार वे थोड़े बेवकूफ ही हैं ऐसा लगता है।"

वह कुछ सोचते हुए खड़ा हुआ।

"पन्नैय में उनका एक घर है ? 'एक दिन गाड़ी भेजूंगा, तुम आकर देखो। मेरा पन्नैय बहुत सुंदर है' बोले।"

वह भ्रमित होकर उसे ही देखने लगा।

"उनकी बातों को आपको नहीं मानना चाहिए लावण्या।" वह जल्दी से बोला।

"मैं नहीं मानूंगी।"

"उनका नाम अच्छा नहीं है। लावण्या, उस बुड्ढे की मूछें सफेद हो गई पर इच्छा सफेद नहीं हुई।"

"इच्छा सफेद नहीं हुई है यह दिखाने के लिए ही तो वे मूछों को रंगते हैं !"

"यू आर राइट। वह आदमी तुम्हारे सामने पूंछ न हिलाएं उसे मैं देख लूंगा ।"

"थैंक यू !"

उसके साथ वह कार तक चली।

"अब मुझे क्या लगता है पता है डॉक्टर ?"

उसने उसे प्रश्न करते हुए जैसे देखा।

"मुझे अब कोई भी ढूंढने नहीं आएगा ऐसा लगता है। अब पुराना कुछ चाहिए भी नहीं ऐसा लगता है। मेरी पुरानी बातों को याद दिलाने कोई आ जाए तो अब मैं जो खुशी महसूस कर रही हूं वह चली जाएगी डर लगता है। जानने वाली जगह को छोड़कर अनजान जगह जा रहे हैं जैसे लगेगा। मैं पैदा हुई बड़ी पली जिस जगह है मेरे लिए तो अब नया ही है....."

उसका चेहरा अचानक चमक गया फिर किसी योजना में डूबते हुए उसने महसूस किया। उसने उसको जिस निगाह से देखा

उसमें उसको दया के सिवाय और भी कुछ भ्रम हुआ।

"इसे सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई। परंतु यह समस्या कभी भी आए तो उसका सामना करने की मनोदशा के लिए हमें तैयाररहना चाहिए लावण्या। इसीलिए तो मैं बोला, कोई भी समस्या हो उसके आने के पहले से उसकी प्रतीक्षा करके बैठना नहीं चाहिए। जब वह आएगा तब संभाल लेंगे ऐसी भावना मन में पैदा करना चाहिए ।"

वह, कार के दरवाजे को पकड़कर उसे देख मुस्कुराया। उसके मन में भी एक प्रवाह शुरू हो गया। मेरे यहां पर खुश रहने का कारण आप ही हैं ऐसे बोलने की उसकी इच्छा हुई। आपको छोड़कर जाने की स्थिति आएगी सोच कर मुझे डर लगता है यह बात मुझे अभी अभी समझ में आई। तुमसे मैं प्रेम करती हूं प्रेम करती हूं....

"पत्रिका पढ़ना तुमको पसंद है लावण्या ?"

"हां !"

"कविता......?"

"जी हां !"

"इस कविता को पढ़कर देखिए।"

एक सप्ताहिक पत्रिका में एक कविता आई थी उसे उसने जोर से पढ़ा।

किनारे के पेड़ से

छन कर मन के अंदर

उतरते सपने जैसे

कपडे़ की छाया

समान यादें

भूल कर अपने मूल को

धूप में तपे हुए द्वीप,

द्वीप जैसे

मेरे ध्यान में

और कहां मिलेंगे।

"बहुत अच्छी है।"

उसने अनजानेमें उसके कंधे पर हाथ रखा उसने इसकी अपेक्षा नहीं की । उसके पूरे शरीर में एक कपकंपी फैली गई।

"ओ, ऐसी बातें करने वाला कोई नहीं इस गांव में मैंने सोचा..... अब चिंता नहीं। तमिल अध्यापक सिंगारवेलु पत्रिका देंगे ऐसा बोले थे।"

खुशी के बाहर दिखने से उसे संकोच ने भर दिया।

"मेरे मरे हुए जीवन काल से एक नायक अचानक आकर खड़ा हो जाए तो ?"

"कोई बात नहीं। अभी जो मिल रहा है उससे खुश रहता हूं। मैं वर्तमान में ही रहने वाला हूं ‌।

कार के रवाना होने के बाद वह कुछ सोचते हुए अंदर घुसी।

कोई आकर उसे यहां से ले जाए तो उसे परेशानी नहीं होगी ? वह वर्तमान में जीने वाला है तो पुराने अनुभवों का अभिमान भी है। आने वाले दिनों के सपनों की अपेक्षा भी उसको नहीं ? फिर उसको देखने पर उसकी आंखों में जो दिखाई देता है उसका क्या मतलब ? अपने जैसे ही एक साथी मिल गया उस खुशी के अलावा और कुछ नहीं है क्या?

'किस के लिए यह दीर्घ श्वास ?'

उस कविता का मूल।

करीब-करीब उसी के जैसे मेरी स्थिति है ऐसा लगता है। थोड़े दिनों से वह स्वयं भी एक सुबह के लिए इंतजार कर रही है ऐसा उसे समझ में आ रहा है। किस आधार पर उसके अंदर ऐसी अपेक्षा उठी?

"मैं वर्तमान में जीने वाला हूं !"

मैं ऐसे नहीं रह सकती। मेरे मन में एक नई इच्छा अंकुरित हो रही है। सपने दिखाई दे रहे हैं।

कार चलाते हुए घर आते समय आनंद का मन आकाश में उड़ने लगा । लावण्या से मिल करआते समय हमेशा मिलने वाली खुशी आज कुछ ज्यादा ही खुशी दे रही है। वह बहुत पास आ गया लगता है। आज उसकी निगाहें, बातें, सुंदरता इन बातों से मैं कहीं डिग न जाऊं उसे डर लग रहा था।

"मुझे ढूंढते हुए कोई आ जाएगा तो सोच कर ही मुझे डर लगता है।"

उसके दिल में डर का क्या कारण होगा यह सोचने में उसे एक खुशी का अहसास हो रहा था।

दुर्घटना घटे 1 महीने से ऊपर हो गया। अब कोई उसे ढूंढने आएगा ?

अम्मा के उस दिन के बोले हुए शब्द फलीभूत हो गए। भगवान का हमारे लिए भेजा हुआ कीमती सामान यह वही है।

अगले दिन वह एक कमेटी मीटिंग के लिए स्कूल गया। स्कूल की लाइब्रेरी को देखने के लिए गया वहां लावण्या कुछ ध्यान से पढ़ती हुई बैठी थी। हिंदी नॉवेल।

"आपको हिंदी मालूम है ?" उसने आश्चर्य से पूछा।

"अच्छी तरह मालूम है।"

"कैसे ?"

"बात भी अच्छी कर सकती हूं।"

"कैसे ?"

"तमिल जैसे जानती हूं ! इन सबके लिए कोई कारण होता है क्या ?"

कारण तो अवश्य होना चाहिए ऐसा सोचकर उसके मन में एक भ्रम हुआ । एक ही समय में कई सोच उसके मन में आए और उसने लावण्या को देखा। मीटिंग में आए हुए लोग अपने साथ हैं उसे याद आया और तुरंत वह संभल कर बाहर निकल गया।

"फिर पुस्तकों की एक लिस्ट बनाकर 500 पुस्तकों के लिए सैंक्शन निकाल देते हैं।

'स्कूल के कंपाउंड के दीवार को ऊंचा करने के लिए कल ही कॉन्ट्रैक्टर को बुलाकर कल ही काम शुरू करवा देते हैं।"

उसको किसी का कहा भी सुनाई नहीं दिया।

"क्यों डॉक्टर, सही है ना ?"

"हां... सही...., सही है।"

क्रमश...

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