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जननम - 8

जननम

अध्याय 8

"आपके रहने से इस गांव को कैसा कष्ट ? मैं बार-बार कहता हूं लावण्या....! मरगथम, आज यहां कौन आया था ?"

"वह शोक्कलिंगम साहब आए थे।"

आनंद का चेहरा एकदम लाल हो गया। 'दी ब्लडी रोग..…इस उमर में चुपचाप हे राम न कहकर ठहर.... मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा।"

"लावण्या ! यहां उससे क्या बात हुई ?"

"ओह ! क्यों डॉक्टर यह सब ?"

"मुझे सब मालूम होना ही चाहिए !"

"इन सब बातों को दोहराने के बदले मेरा इस गांव से निकल कर जाना ही ठीक है लगता है।"

उसे तेज गुस्सा आया। 'छी ! इस लड़की को विश्वास ही नहीं 'ऐसा उसे क्रोध आया। मैं भी किस लड़की पर विश्वास करके, उसकी हंसी को देख हवा में किला बनाया ऐसा उसे आभास हुआ।

वह जल्दी से उठा: "बहुत अच्छा, मैंने आपके बारे में गलत सोच लिया लगता है। मेरी बातों से ज्यादा शोक्कलिंगम की बातों को ही आप ज्यादा महत्व दे रही हैं तो फिर आप, वह जैसे बोले उनकी बात ही सुनिए।"

"आनंद ! क्यों ऐसा गुस्सा कर रहे हो ?"

"चलो अम्मा चलते हैं। मुझे एक पेशेंट को देखने जाना है।"

"ठीक है चले जाना, थोड़ी देर बैठो।" वह गुस्से में ही बैठ गया। लावण्या धीरे-धीरे रो रही थी। उसके लाल हुए चेहरे को न देखनापडे इसलिए वह एक किताब लेकर पढ़ने लगा । उसमें से एक टुकड़ा कागज का गिरा । उसमें मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा हुआ था।

किस छुटकारे के लिए यह दीर्घश्वास ?

उसने अपने भौहों को हलका सा सिकोड़ा। वह उस कविता का नाम था उसे याद आया। इसने इसे यहां क्यों लिखा है? ये किसी से छुटकारा पाने के लिए दीर्घ श्वास ले रही है क्या? ऐसा है तो फिर यह क्यों ऐसे रोती हुई बैठी है? इसे इतना कमजोर होना चाहिए?

उसे आश्वासन देने जैसे मंगलम उससे धीमी आवाज में कुछ बात कर रही थी । ओ.. ओ.. अम्मा को यह पसंद आ गई समझते ही एक खुशी उसके मन में छा गई। तुरंत खत्म भी हो गई- वह तो एक सुबह दूसरे जगह जाने के लिए अड़ी है उससे अम्मा को स्नेह हो गया तो भी क्या ?

लावण्या ने धीरे धीरे अपने को संभाल कर बोलना शुरू किया: "वह शोक्कलिंगम ने उसके आउटहाउस पन्नैयन में आने के लिए दो बार गाड़ी भेजी। मैं नहीं गई... इसलिए उन्हें गुस्सा आया होगा सोचती हूं। आज फिर से आकर बहुत देर मुझे उपदेश देते रहे। 'शहर में लोग कई तरह की बातें कर रहे हैं। तुम्हारी वजह से डॉक्टर की बदनामी हो रही है। इतने दिनों तक यहां पर उनका बहुत बड़ा नाम था। तुम्हारे व्यवहार के कारण उनकी प्रैक्टिस ही चली जाएगी लगता है।"

आनंद अचानक जोर से हंसा।

“इस शहर में अपमान से वे ही बचाएंगे ? इसीलिए पन्नैय आने के लिए उन्होंने गाड़ी भेजी ?"

लावण्या ने सिर झुका लिया। "मुझे उनके बारे में फिक्र नहीं है। मुझे कभी भी उनके लिए कोई सम्मान नहीं था। परंतु मेरी वजह से आपके गौरव को क्षति पहुंचे तो मेरा यहां रहना न्याय-संगत नहीं है।"

"लावण्या ! मुझे लगा तुम्हें टोटल एमिनीशिया है। तुम एक टोटल बेवकूफ हो यह भी मालूम हो गया।"

लावण्या के होंठो पर हल्की सी मुस्कान तैर गई। उसके गालों पर डिंपल आंख मिचोनी खेल कर छुप गया।

"आनंद !" कहकर मंगलम ने हंसते हुए उसे डांटा।

"आपके अभिप्राय के अनुसार, उस शोक्कलिंगम के कारण एक जटिलता उत्पन्न हो गई मान लें। अकलमंदी इसमें है की मालूम करें यह जटिलता कैसे उत्पन्न हुई ? क्यों उत्पन्न हुई यह ना सोच कर मैंने ऐसे सुना आप भागोगी ? आप किस तरह की लड़की हैं ?"

मंगलम और लावण्या दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए। सांस लेने वाली हवा थोड़ी हल्की हो गई ऐसे उसे लगा।

"एक समस्या उत्पन्न हो गई तो सही वाले रास्ते को ढूंढना चाहिए....."

"यहां से रवाना होना ही सही रास्ता है मैंने सोचा।"

"इसका मतलब इस समस्या से निकल कर एक नई समस्या में फंसना ही रास्ता है।"

उसने धीमी आवाज में जवाब दिया: "क्या करना चाहिए मुझे समझ में नहीं आया। मेरी वजह से आपकी बदनामी हो रही है यह मैं सहन नहीं कर सकी।"

“और लोग कुछ भी सहन कर सकते हैं ऐसा आप सोचती है क्या ?"

"वह अचानक चौंक गया । ये क्या यह सब अम्मा के सामने बात कर रहा हूं....ओह ! अब अम्मा के सामने कुछ भी छुपाने से कोई फायदा नहीं होने वाला!

उनके रवाना होते समय वह बोला "अभी एक सम्मान की समस्या बीच में आ जाने के कारण मैं अब अक्सर न आना ही अच्छा है सोचता हूं। आपका दिन ना कटे तो कविता लिखिएगा ! उसका हेडिंग भी आपने लिख दिया ना !"

"वह उधार लिया हुआ हेडिंग है !"

"उससे क्या होता है ?"

"कुछ नहीं होता मेरा नाम भी उधार ही तो है ? परंतु कविता लिखने के बाद उसे सुनने वाला रसिक भी तो चाहिए ?"

अब यहां ज्यादा देर नहीं ठहरना है उसने सोच लिया। यह भी कुछ बकने लगेगी, मैं भी बकने लगूंगा, मां साथ में हैं इस होश में न रहकर।

"मेरी मां को कविता बहुत पसंद है !"

अम्मा अचानक से हंस दी।

"क्या हुआ अम्मा ?"

"मेरा ध्यान तुम्हें कैसे आया मैंने सोचा !"

कार को स्टार्ट करके रवाना होते समय लावण्या ने हंसते हुए हाथ हिलाया जिसको देखकर उसके मन में थोड़ी शांति आई। अम्मा कुछ नहीं बोली। बार-बार उसको तिरछी निगाहों से अम्मा को मुस्कुराते हुए महसूस कर रहा था।

"शोक्कलिंगम के घर को चल।" अम्मा बोली।

"वहीं जा रहा हूं।" अपने आश्चर्य को छिपाते हुए वह बोला। अम्मा को और उसे एक ही बात ने परेशान किया हुआ है उसे लगा। लावण्या को यह स्वीकार करेंगी ?

उन्हें देख शोक्कलिंगम थोड़ा सा घबराया। फिर बड़ी सज्जनता से आदर सत्कार किया।

"आइए ! मेरी याद कैसे आई आपको?"

"रोजाना यहां-वहां मिलते ही हैं। अलग से घर आकर मिलने की आवश्यकता नहीं पड़ी बिना किसी काम या जरूरत के.."

आनंद के आवाज में थोड़ी गर्मी को देखकर वे सतर्क हो गए। जल्दी से अपनी भावनाओं को बदल कर उन्होंने मंगलम को देखकर एक व्यग्यं दृष्टि डाली।

जिसे महसूस कर शोक्कलिगम सतर्क हो गया | तुरंत उन्होंने अपने चहरे के भावों को बदलकर व्यंग्य से हँसते हुए बोले "फिर, भैया किसी के घर भी आओ तो कोई कारण तो होना चाहिए यही तो मतलब.....!" आनंद को तेज गुस्सा आया |

मिस्टर शोक्कलिगम ! मैं किसी को भी छुपकर मिलने नहीं जाता और अपनी गाड़ी भेजकर पन्नै वाले घर में नहीं बुलाता।"

शोक्कलिंगम के चेहरे पर बेवकूफी दिखी।

"क्या है मां, भैया कुछ भी बोल रहे हैं ? मुझ पर क्या गुस्सा है?"

"मेरी पिताजी की उम्र है आपकी ! मुझे क्या गुस्सा है आपके ऊपर ! इस उम्र में भी आप जो विवेकहीन जैसा व्यवहार कर रहे हैं उसे देखकर आश्चर्य होता है।"

"क्या बोल रहा है भैया अम्मा ?"

"यह देखो शोक्कालिंगम, मुझे देख कर बात कीजिए। आपके बारे में पता नहीं क्या क्या बातें मैंने सुनी है। वह सब आपका अपना स्वयं का व्यवहार है इसलिए मैं बीच में नहीं पड़ा। आप अपनी कलाबाज़ियां अपने गाँव वालों तक ही सीमित रखें। बाहर से आने वाली एक लड़की निराधार अवस्था में जो है उससे खेलना शुरू मत कीजिए। उसके साथ आपने मुझे भी घसीट लिया यह ठीक नहीं है !"

"भैया तुम क्या बोल रहे हो मुझे अभी भी समझ में नहीं आया !"

अम्मा मुंह में लड्डू रखा है जैसे चुप बैठी रही।

"मैं क्या बोल रहा हूं आपके अच्छी तरह समझ में आ रहा है। आपने उस लड़की के पास जाकर यदि डराया तो मैं आप को नहीं छोडूंगा। वह अभी भी मेरी पेशेंट है। वह असमंजस की स्थिति में अनाथ जैसे है। उसको आधार देकर उसके जीवन को सेट करना हमारा काम है यह हम सब ने मिलकर फैसला किया था । अब आप इस बात से मना नहीं कर सकते..."

शोक्कलिंगल एक नकली हंसी हंसे।

"उसे मैं नहीं भूला भैया। कितना आधार देना है वह भी तो है ना !"

"नहीं ! मदद करने के लिए कोई सीमा नहीं होती !"

"गांव के लोग तो अपने तरह से देखते है ना भैया !"

"फिर आपको यह ज्ञानोदय अभी आया है क्या ? आप जो कुछ कर रहे हो सब आँख बंद करके कर रहे हो ?"

"यह देखो भैया, अपने बीच क्यों बेकार की बातचीत ? तुम उस लड़की को देखने जाते हो तो लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। आपकी मां ने भी आपके लिए बहुत से किले अपने मन में संजोए होंगे । एक बिना गांव, नाम नहीं जानने वाली एक अनाथ लड़की के लिए अपने गौरव को खराब करना अच्छा नहीं है....."

"मेरे परिवार के गौरव के बारे में मुझे चिंता है मिस्टर शोक्कलिंगम ! एक लड़की ही बिना आधार के है इसलिए उसका कोई गौरव नहीं है यह मतलब नहीं है !"

"क्यों अम्मा ? आप ही अपने लड़के को बताइए।"

"क्या बताना शोक्कलिंगम ? अच्छा हुआ आप डॉक्टरी के धंधे में नहीं गए। नहीं तो गोत्र, वंश पूछ कर ही तो पेशेंट की नाड़ी को देखते।"

कोई बड़ाचुटकुला सुन लिया हो ऐसे शौक्कलिंगम हंसे।

"अम्मा यह सब आपको मजाक लग रहा है। नाड़ी को देखने की जरूरत ना होने पर भी एक लड़की को मिलने जाना जिसके बारे में पूरा गांव प्रश्न पूछ रहा है ?"

"जरूरी है या जरूरी नहीं है यह मुझे ही मालूम है। इसमें आपका बदमाशी से हिस्सा लेना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है।

आप दोबारा लावण्या के घर गए तो और कुछ कहकर उसको परेशान किया तो मुझे बहुत गुस्सा आएगा। आपकी उम्र हो गई है, किसी तरह की बदमाशियों में मत पड़िए। चलो मां चलते हैं।"

वह अपने गुस्से को वश में न कर पाने के कारण, मुड़ कर भी ना देख कर कार की तरफ चल कर जाने लगा। कार को खोलते समय शोक्कलिंगम मां से कुछ कह रहा है यह सुनाई दिया।

"खेत को जोतते समय सीताजी मिलीं ऐसा रामायण में बोलते हैं। सीता की परंपरा क्या है सबको पता है शोक्कलिंगम ?"

आनंद आश्चर्यचकित रह गया, अम्मा के जवाब को सुनकर। उसके शरीर में सिहरन आ गई। अम्मा का मन इतना विशाल है ? इतनी हंसी और हास्य के पीछे विशाल मन, ऊंची सोच जीने के लिए करुणा वाला मन है! उसके मन में एक भावना बहने लगी। ओह, अपनी मां इतनी महान है उसे लगा।

अम्मा बिना कुछ बोले आकर बैठ गई। उनके शब्दों का मतलब मुझ पर रखा हुआ विश्वास ही इसका कारण है, नहीं तो लावण्या ने अम्मा को प्रभावित कर दिया हो उसकी समझ में नहीं आया। अम्मा का पूरा सपोर्ट हैं फिर मुझे कोई फिक्र नहीं है ऐसा सोच उसके मन में एक समाधान की उत्पत्ति हुई।

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क्रमश...