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जादूगर जंकाल और सोनपरी (2)

2 जादूगर जंकाल और सोनपरी

बाल कहानी

लेखक.राजनारायण बोहरे

ठीक तभी परी भी प्रकट हो गयी और शिवपाल की मां से बोली कि आप बहुत अच्छी महिला है जो अपने बेटे को दूसरों की मदद करने के लिए प्रेरणा देती है।

मां ने बड़ी रूचि से अपने बेटे को खाना बनाकर प्रेम से पंखा झलते हुए सामने बैठा कर खिलाया। परी से खाने के लिए पूछा तो परी कहने लगी कि हम तो फूलों की पराग और फलों की सुगंध से पेट भर लेती है।

अगली सुबह जब तारे नही डूबे थे मां उठी और उसने बेटा को दिन भर के लिए खाना बना कर एक पोटली में बांध दिया। पानी की छोटी से मशक और खाने की पोटली अपनी लाठी पर लटका कर शिवपाल अपने घर से निकल कर शिव मंदिर के पीछे बने तालाब पर पहुंचा जहां चंद्र परी उसका इंतजार कर रही थी।

चंद्र परी ने शिवपाल को देख कर बहुत खुशी प्रकट की और उसने अपने हाथ में लिया हुआ परीदण्ड घुमा दिया। तुरंत ही सामने एक जादुई चटाई पैदा हो गयी। परी उस चटाई पर जा बैठी तो शिवपाल भी पीछे पीदे उस चटाई पर चढ़ गया। जब वे दो बैठ गये तो चंद्र परी बोली ‘ हे मेरी चटाई मां, मुझे सातों समंदर पार कराके जादूगर जंकाल के टापू तक पहुंचा दो। ’

शिवपाल चौंक गया जब उसने सुना कि चटाई ने परी को जवाब दिया कि सात में से छह समंदर तो वह पार करा देगी लेकिन खारे पानी का समंदर उन को खुद पार करना होगा।

परी ने चटाई के जवाब से सहमति प्रकट दी तो चटाई जमीन से उठी और फरफराती हुई आसमान में उड़ने लगी।

चंद्रपरी ने बताया कि आसमान में बादलों के पास परीलोक है जिसमें हम परियां रहती है। सब परियां जादू जानती है और अपने जादू से जहां चाहे वहां जा सकती है और जो चाहें वो कर सकती है। लेकिन परियों की जब मर्जी होती है तभी किसी को दिखती हैं हरेक को न तो दिखती है न किसी पर अपना जादू करती हैं। ये परियां धरती लोक के जादूगरों से बहुत डरती है क्योंकि परियों को वश में करके जादूगर बहुत सारी शक्तियां प्राप्त कर सकता है। इनके वश में आके परियों का सारा जादू समाप्त हो जाता है।

पहला समंदर पार करने के बाद शिवपाल ने चंद्र परी से कहा कि वह नीचे उतर कर समुद्र के जल को अपने ऊपर छिड़कना चाहता है क्यों कि शास्त्रों में कहा गया है कि जिस नदी और समुद्र को पार करों उसके पार करने के बाद बिना अनुमति लांघ लेने के लिए उसके प्रणाम करना चाहिये ।

परी ने चटाई को नीचे उतारा तो समुद्र तट पर खड़े होकर शिवपाल ने समुद्र में से जल लिया और बोला कि ‘‘हे समुद्र देवता! हमने आपको बिना अनुमति के पार किया है इस गलती के लिए हम आपसे माफी चाहते हैं।’’

वह हाथ जोड़कर प्रणाम कर रहा था कि उसे ऐसा लगा मानो आसपास कोई रो रहा है, उसने चौंक कर आसपास देखा तो कोई न दिखा। बस पास में घनी झांड़िया दिख रही थीं। शिवपाल ने झाड़ी में झांका तो पाया कि एक विशाल मगरमच्छ झाड़ियो और बेलों के जाल में फंसा हुआ रो रहा है । शिवपाल ने मगरमच्छ की बोली में उससे पूछा कि ‘‘ हे मगर भाई, क्या आपको ज्यादा तकलीफ हो रही है?’’

तो मगर मच्छ ने बोला कि ‘‘ मुझें बहुत ज्यादा तकलीफ हो गयी है या तो आप मुझे मार डालो या फिर इस पीड़ा से बचाओ।’’

शिवपाल ने अपनी लाठी उठाई और झाड़ियां व बेले तोड़ना आरंभ कर दिया। थोड़े से प्रयत्न के बाद मगरमच्छ मुक्त हो गया और शिवपाल से बोला कि ‘‘आओे भाई कुछ दिन हमारे यहां मेहमानी करों। मैं तुम्हारे क्या काम आ सकता हूं। ’’

शिवपाल बोला कि ‘‘मै तो इस च्रदंपरी की बहन को मुंक्त कराने जा रहा हू फिर कभी आऊंगा तो मगरमच्छ बोला कि अगर हो सके तो मुझे साथ ले चलो शायद तुम्हारे किसी काम आ सकूं। शिवपाल ने परी से पूछा तो परी ने सहमति दे दी। चटाई थोड़ी और बड़ी हो गयी तो अपने चारों पांव से चलता पूंछ फटकारता मगरमच्छ चटाई पर चढ़ आया। चटाई फिर उड़ चली।

दूसरा समंदर पार करने के बाद फिर से शिवपाल ने तट पर उतर के क्षमा मांगी और वापस लौट कर उनकी चटाई आसमान में उठी ही थी कि सबने देखा आसमान में उड़ने वाला एक विशाल एक बाज पक्षी लहराता हुआ नीचे जा रहा है, बाज के बदन से खून बह रहा था।

यह देख शिवपाल ने परी को इशारा किया तो परी ने चटाई को उधर ही कर दिया और शिवपाल ने हाथ बढ़ा कर बाज को थाम लिया और अपनी गोदी में बिठा लिया।

बाज के पंखों के नीचे एक बाण बिंधा हुआ था और उसके बदन से खून का फौबारा निकल रहा था। शिवपाल ने बहुत सम्हल कर बाज का बाण निकाल दिया जिसे निकालने के बाद शिवपाल के इशारे पर चटाई फिर जमीन पर उतारी गयी तो शिवपाल ने नीचे उतर कर समुद्र तट के पास की एक झांड़ी खोज के उसके पत्तों को लेकर मसलना आरंभ कर किया । फिर मसले हुए पत्ते हाथ में ले कर शिवपाल ने बाज के घाव में भर दिया तो बड़ा चमत्कार हुआ, एकाएक बाज का खून का बहना रूक गया और बाज होश में आ गया ।

वह शिवपाल से बोला कि हे भले आदमी तुम्हारा बहुत धन्यवाद।

उसने भी शिवपाल से कुछ दिन अपने पेड़ पर मेहमानी करने का अनुरोध किया लेकिन शिवपाल के अपनी यात्रा का उददेश्य बताया तो ऐसा परोपकारी उददेश्य जानकर वह भी शिवपाल के साथ जादूगर की तलाश में निकल पडा। शिवपाल

तीसरे समंदर को पार कर चटाई नीचे उतरी तो समंदर के किनारे शिवपाल को बहुत सारे मोती बिखरे दिखाई दिये तो उसने अपनी झोली मे भर लिये ।

चौथे समंदर को पार कर शिवपाल उतरा तो समुद्र के तट पर उसे दर्द में हिनहिनाता एक घोड़ा दिखा जिसे मगरमच्छ ने पकड़ रखा था। दयालु ने शिवपाल ने उस मगरमच्छ के जबड़े से बचा कर घोड़े की जान बचाई तो बदले में वह घोड़ा भी शिवपाल के साथ जादूगर की तलाश में चल पड़ा।

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