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जादूगर जंकाल और सोनपरी (6)

जादूगर जंकाल और सोनपरी

बाल कहानी

लेखक.राजनारायण बोहरे

6

कुछ देर बाद सामने खूब सारी रोशनी दिखी तो वह दौड़कर उधर ही पहुंचा। शिवपाल फिर चकित था- क्या रहस्यमय जंगल था।

जहां रोशनी थी वहां गुफा का बाहर को खुलता एक दरवाजा था जिसके पार एक खूब चौड़ा मैदान था। जिसके चारों ओर खूब ऊंचे पहाड़ दीख रहे थे। शिवपाल सोच रहा था कि वे लोग अभी एक जंगल की सीड़ियां उतर कर वे यहां तक आये थे तो किसी गुफा का अंधेरा मिलना था लेकिन यहां तो बहुत उजालेदार माहौल था।

खैर, हरी भरी घाटियां और मस्त मौसम देख कर शिवपाल ने जमीन पर बैठना उचित समझा।

उसके कहे बिना ही बाज ने आसमान में कुलांच लगादी थी और चारों ओर का जायजा लेने लगा था।

जमीन पर बैठे हुये शिवपाल ने पहाड़ों पर नजर फेंकी तो उसे अजीब सा लगा कि चारों ओर के पहाड़ रंग बिरंगे थे हर पहाड़ अलग अलग रंग का था । कोई लाल तो कोई पीला, कोई सफेद तो कोई स्याह काले रंग का था।

ध्यान से देखने पर पता लगा कि लाल पहाड़ में भी ठीक वैसी ही सुरंग दिख रही है, जिससे होकर वे अभी यहां तक पहुंचे थे।

गोपाल की थकान दूर हो गयी उसने उठ कर घोड़े की रास थामी और उस पहाड की ओर चल पड़ा।

पहाड़ में जिस जगह सुरंग बनी थी उसके दरवाजे से शिवपाल ने अपने घोड़े, शेर और बाज के साथ प्रवेश किया।

पहाड़ में बने दरवाजे से अंदर जाने पर ऊपर उठती हुई सीड़ियां नजर आ रही थी। शिवपाल बेहिचक सीड़ियां चढ़ता चला गया। जहां सीड़ियां खत्म हुई थी वहां एक दरवाजा दिख रहा था।

दरवाजा पार करके शिवपाल बाहर आया तो फिर अचरज में था अब वह फिर से एक एक दूसरे पहाड की तलहटी में थे और उसके चारों ओर ऐसे ही रंगीन पहाड़ दिख रहे थे। दूर दूर तक ऐसे ही पहाड़ दिख रहे थे।

वह समझ ही नही पा रहा था कि क्या करें ,कहां जाये, कि जादूगर जंकाल का किला दिखाई दे कि अचानक वह चौंक गया । फड़फड़ की तेज आवाज के साथ पीछे ऐसा लगा कि पंखे फड़फड़ाती हुई कोई बड़ी सी छाया आसमान से उसके पास आयी है और किसी ने उसके कंधों को नुकीले पंजो से पकड़कर टांग लिया है, वह कुछ समझता तब तक तो उसके पांव जमीन से उठने लगे। यह देख कर घोड़ा हिनहिनाया तथा शेर दहाड़ने लगा।

अब उसने गौर किया कि उसे अपने पंजो से जमीन से उठाने वाला एक विशाल पक्षी था, जो हाथी के आकार का पक्षी है, जिसके मजबूत से पंजों ने उसे चिड़िया के बच्चे की तरह से टांग रखा था।

शिवपाल को विचार आया कि अब वह तलवार का स्मरण कर लेता है और इस पक्षी के पांव काट कर मुक्त्त हो जाता है। खुद ही उसने यह विचार छोड़ दिया क्योंकि उसने देखा था कि काफी पीछे उसका बाज उड़ता चला आ रहा था जिसने कि शेर को आपने पंजों में टांग रखा था। चलो उसके साथी अब साथ में हैं, एक राहत उसके मन में आयी।

उसे लग रहा था कि यह विशाल पक्षी उसे सीधा जंकाल के किले मे ले जायेगा यह बहुत अच्छा रहेगा। क्येांकि वह भी तो उसी किले को तलाश रहा था।

वह पक्षी बहुत ऊंचाई पर पहुंच गया था जहां से चारों ओर देखना संभव था। शिवपाल ने चारों ओर नजरें पसारी तो उसे दूर एक पुराना सा किला नजर आया जहां हल्का सा धुंआ था और जिसे ठीक पास सफेद रंग का पहाड़ खड़ा था। लेकिन उसे अचरज हो रहा था कि वह पक्षी उसे उस किले तरफ न ले जाकर दूसरी तरफ ले जा रहा था जहां कि समंदर दिखाई दे रहा था।

वह पहले चौंका फिर मुस्कराने लगा। शिवपाल समझ गया कि उसका नुकसान नहीं किया जा रहा बल्कि किले से दूर रखने के लिए ही उसे उठा कर वापस पहुंचाया जा रहा है।

कुछ ही देर में पक्षी समुदर के तट पर आ पहुंचा था और उसने यकायक अपने पंजे ढीले कर दिये थे जिनमे से खिसक कर शिवपाल तेजी से नीचे गिरने लगा था।

पक्षी उसे छोड़कर जाने कहां गायब हो गया था और वह समुद्र के पानी तक पहुंचने ही वाला था कि अचानक उसे हल्कापन महसूस हुआ। उसने देखा कि समुद्र तट पर मौजूद चंद्रपरी ने उसे अपने हाथों पर झेल लिया था।

पीछे आ रहे बाज ने शेर को भी सुरक्षित जमीन पर उतार दिया और वह उधर ही चला गया था जिधर से आया था संभवतः वह शिवपाल के घेाड़े को लेने गया था।

सांसे सामान्य हुई तो शिवपाल ने चंद्रपरी को बताया कि इतनी मेहनत बेकार हो गयी। वापस उसी जंगल, तालाब और सांप व भेड़ियों वाले रास्ते से टापू पर जाना होगा।

परी ने एक नयी बात की, उसने बताया कि कल से वह लगातार समुद्र के ऊपर उड़ते हुए टापू के चारों ओर घूमती रही है और उसने देखा है कि पुराने रास्ते के अलावा टापू का एक रास्ता और है जो टापू के चक्कर लगा कर उस तरफ पहुंचने से मिलेगा, इस बार उधर से जाना ठीक रहेगा।

शिवपाल ने क्षण भर की देरी नही की और अपने दोस्त मगरमच्छ को याद किया जो समुद्रतट के नीचे आराम कर रहा था।

मगरमच्छ समुद्र की गहराई से बाहर आया और तैरने लगा।

शिवपाल मगरमच्छ की पीठ पर जा खड़ा हुआ तो उसी क्षण बाज भी आता दिखा जिसके पंजो में घोड़ा दिखाई दे रहा था। शिवपाल बाज और शेर के साथ मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया तो मगर शिवपाल के कहे अनुसार तेजी से उसी दिशा में बढ़ चला जिधर परी ने इशारा किया था। थोड़ी दूर जाने पर पता लगा कि समुंदर खूब गहरा है और पानी पर यहां वहां आदमियों द्वारा छोड़ी गयी चीजें तैर रही हैं। लगता है जादूगर और उसके सेवक गण वही रास्ता काम में लाते थे जो कि चंद परी ने बताया था

उस तरफ टापू का आधा चक्कर लगाने पर शिवपाल ने देखा कि समुद्र तट के ठीक पास की धरती पर एक बड़ा सा दरवाजा बना हुआ था, जिसमें से उस पार एक सीधा रास्ता हरे भरे उद्यान में से होता हुआ भीतर जाता दिख रहा था। ऐसा लगता है कि यहां से जादूगर जंकाल की जादूनगरी शुरू होती है।

तट पर उतर कर शिवपाल कुछ देर एकजगह खड़ा रहा और उसने चारों तरफ का जायजा लिया फिर अपने दुर्लभ सामान यानि थैली में रखे असली मोती, अपनी तलवार और साथियों बाज,शेर और घोड़ा पर एक नजर मारी फिर बाज को इशार कर कहा किया वह देखे कि इस दरवाजे के आसपास कोई रखवाला तो नहीं खड़ा है।

बाज ने आसमान में एक उड़ान भर कर देखा तो पता लगा कि पूरे रास्ते पर कोई रखवाला नहीं दिख रहा था।

फिर भी शिवपाल ने सोचा कि बिना किसी जांच पड़ताल के यूं खाली पड़े दरवाजे से प्रवेश करना ठीक नहीं होगा।

शिवपाल को एक तरीका सूझा उसने समुद्र तट पर वापस आकर समुद्र के पानी में से एक मछली पकड़ी और हाथ में लेकर बहुत सावधानी से दूर खड़े हो कर दरवाजे के भीतर फेंकी।

वह चौंक गया, खुले दरवाजे से किसी अजनबी के भीतर जाने का नतीजा सामने आ गया था, दरवाजे से भीतर पहुंचते वह मछली धू धू करके जल उठी थी।

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