baadalo ki dhundh me books and stories free download online pdf in Hindi

बादलों की धुंध में.

बादलों में बनी हुई आकृति उसे नकाब पहनी हुई लगती है। नकाब हमें नया बना देता है। जिसे लोगों ने कभी नहीं देखा। उसी तरह जब वह स्कूल में कृिश का नकाब लगाकार अपना चेहरा छिता लेता। बादल भी पहाड़, चिड़िया और कई चेहराें का नकाब लगाकर अपना सत्य छुपाने की कोशिश करता होगा। नकाब लगाने के बाद व्यक्ति का स्वभाव उस नकाब चेहरे की परिभाषा की तरह होता है। वैसे ही बादल नकाब के चेहरे में बहुत खुबसुरत दिखाई देता। एक बार हवा की धुंध में मैंने उसे नकाब उतारते हुए देख लिया। जैसे-जैसे नकाब बादल के चेहरे से उतर रहा था।

उसका रंग सफेद से नीला होने लगा था। छोड़ी देर बाद उसका रंग गहरा काला हो गया और तेज वर्षा होने लगी। आसमान में बनी सभी आकृति आंखों से ओझल हो गई। मुझे समझ नहीं आया बादल का असली चेहरा क्या था? शायद नकाब की पीछे का सत्य पानी होगा। लेकिन बादलों में आकृति बनाने का मतलब क्या होगा? बादल भी कई हद तक इंसान की तरह है। उसे हमारा सुख, दु:ख व आश्चर्य का होना सब पता है। बादल द्वारा देश का नक्शा बनाते पर हम आश्चर्य में हाेते है। एकांत में बैठे, बादल में प्यार करते लोगों की आकृति बनाने पर हमें किसी निजी का करीब होने का एह्साह होता है। लेेकिन बादल के लिए आसमान में आकृति बनाना महज दुसरों को खुश करने जैसा है।


कुछ साल पहले देवपुरी के पहाड़ों की यात्रा में गया था। इस यात्रा में जाने काफी उत्सुक था। क्योकि राहूल ने कहां था, पहाड़ से बादल बहुत करीब से गुजरता है। उसे हाथों से छुआ भी जा सकता है। उस रात सोया नहीं पाया था। हमेशा यात्रा से पहले एक कल्पना जन्म ले लेती है। जैसे-जैसे हम यात्रा के करीब पहुंचते जाते है हमारी कल्पनाएं बढ़ने लगती है। इसे आंख बंद कर महसुस कर सकते है। रात आंख बंदकर कल्पनाओं में बादलों और मेरे संवाद को होते देख रहा था। जो सुबह की यात्रा का भविष्य था, जिसे वर्तमान में आज जीना था। कल्पनाएं यात्रा से पहले मुझे इतने खुशी से भर देती है शायद इसलिए यात्रा मुझे कभी दुख नहीं देती।

सुबह का सपना सच होता है। मैंने सुबह के सपने में देवपुरी के पहाड़ का नाम बुदबुदाया अगले क्षण में अकेला हवां की धुंध में खुद को देख रहा था। उस हवां में सुख की लहर थी। उस सुख में हम वह सभी कार्य कर सकते थे जो कभी नहीं किया। जैस खुद को माफ करना, छुटे हुए संबधों के बार में सोचना, उस यात्रा में जाना जहा ढ़ेरों यादें है। इस सुख की आड में जेब से फोन निकाला और उसे मैसेज करने कुछ टाईप किया। मैसेज भेजने से पहले लिखे हुए को थोड़ी देर तक देखता रहा।


शायद उसे भी इस सुख में शामिल करना चाहता था। लेकिन मैंने सारा लिखा हुआ डिलिट कर फोन वापिस जेब में डाल दिया। यह मेरे लिए अब खेल बन चुका है, जिसे मैं बार-बार खेलना पंसद करता हूॅ। मुझे मैसेज भेजने के पहले जीवन में रहना पंसद है। आसमान गहरे नीले रंग में समान्य था। बादलों ने नकाब नहीं लगाया होगा। पहाड़ से बादल एक ओर से दूसरी तरह जा रहे थे। उसे हाथ से छूने की इच्छा हुई। तुरंत हाथ आगे बढ़ाया और घने बादलों से कुछ बादल हाथों में दबा लिया। मन कर रहा था इसे पर्स का सदस्य बना लू। ठीक उस तरह जैसे कुछ तस्वीरों को सालों से अपना समझकर पर्स में रखा है। हाथों में बंद बादलों से अजीब सा सवाल किया, क्या तुम्हे चिड़िया बहुत पसंद है? तुम दोनों अच्छे दोस्त हो क्या? अक्सर मुझे तुम्हारी शक्ल में एक चिडिया नजर आती है और मेरे कुछ दोस्तों को तो प्यार करते हुए दो लोग भी। क्या तुम सच में सभी को जानते हो? मैने नकाब लगाने वाली बात नहीं की।


जवाब जानने हाथों को कान के पास ले गया। वातावरण शांत था तभी एक धीमी हवां की आवाज आई यह पहली मुलाकात में बताना संभव नहीं। जब हाथ खोला, वह नहीं थी। उसे आगे जाते हुए देख सकता था। वह फिर घने बादलों के शामिल होने जा रही थी। मानों मैने उसे दोस्तों के बीच से अचानक हाथ पकड़ अलग कर दिया हो। बादल को पकड़ना उनकी दुनिया में आकर एक लड़की से उसके प्रीतम के बारे पूछने जैसा था।


सुबह 5 बजे मेरी निंद खुली। अपना देखा हुआ सपना मुझे पूरी तरह याद था। अगर आंख बंद करूं तो बादल नजर आते। बादलों के पास जाना अब अपने अजीज से मुलाकात करने जैसे हो चुका था। घर से निकलने से बादलों की ओर देखा। सुबह थाेड़ा अंधेरा था। आसमान में उजाला आना शुरु हो चुका था। लेकिन बादल दिखाई नहीं दिए शायद वह सो रहे होंगे। घर से निकलते वक्त बड़बड़ा रहा था। काश बादल को भी मेरा सपना याद होता है। इस तरह बादलों के बीच मेरी यह दूसरी मुलाकात हो जाती है। जो सवाल सपने में किए थे उसका जवाब तो मिल जाता।

पहले राहुल के घर गया था। यात्रा में जाने वह कल से एक पैर में चलने को तैयार था। दोनों बिना देर किए संदीप और नागेश के घर गए। दोनों स्कूल के बहुत अच्छे मित्र है। एक बैंच वाले। नागेश आज भी मस्ती स्कूल समय वाली करता है। मानों तीन सालों में नागेश ने खुद का वैसा ही बनाकर रखा है। संदीप स्वभाव से शांत और पढ़ाई में होशयार था। लेकिन स्कूल के बाद वह वैसा नहीं रहा।


यात्रा में विलंब मुझे शुरुआत से पंसद नहीं शायद इसलिए अकेले जाना पसंद करता हूॅ। उनके घर पहुंचने पर दोनों ऐसा बैठे थे, की उन्हे इस यात्रा की कोई जानकारी ना हो। जबकि दोनों को कल शाम को कह दिया था हम सुबह देवपुर के पहाड़ में जा रहे है। हमारे आने के बाद संदीप ने पापा से जाने की अनुमति लेने गया। वे काम में व्यस्त थे। संदीप काफी समय तक उनके पास खड़ा रहा। बात कहने को मौके की तलाश में था। तभी उसने धीरे से पापा को बात बताई। उसके पापा ने अचानक मेरी ओर देखा था।


मैंने हाथ जोड़कर मुस्कुराया। संदीप ने इस वक्त उन्हे बताया होगा, बाहर खड़े वही दोस्त है जिनके साथ पहाड़ जा रहा हूॅ। मुझे लग रहा था जरूर संदीप को जाने से मना कर देंगे। और वो मुरझाया हुआ चेहरा लेकर मुझसे माफी मांगने आएगा पर ऐसा नहीं हुआ। आते ही उसने चल चलते है कहां और उसके गांव से तुरंत निकल गए। संदीप और नागेश के लिए पहाड़ या जंगलों में जाना कोई नया नहीं था। घना जंगल उनके गांव से कुछ दूरी से शुरु हो जाता है।


राहूल पहले भी उस पहाड़ में आ चुका था। पहाड़ पहुंचने तक मुझे रास्ते भर कहता रहा, यह पहाड़ हमने खाेज निकाला है। बहुत खुबसुरत है यहां कोई नहीं आता। उसका कहना उसी तरह से था जब कोई पहली बार फिल्म देखकर दूसरी बार देखते समय उत्सुक्ता से आगे की कहानी बताने लगाता है। जब उसने कहां शाम को बादल पास से गुजराता है। मैं कहने लगा जानता हूॅ। अपनी कल्पना में देख लिया है। क्या बोला? कुछ नहीं गाड़ी चला आगे रास्ता बहुत खराब है।


कुछ समय बाद उसने कहां, पिछली बार आया था हाथी के झुंड ने हमें दौड़ा दिया था। रात के अंधेर में सभी भांगे थे। मुझे जवाब देने में कोई दिलचस्पी नहीं हुई और लहराते हुए हां...कह दिया। मेरे हां में उसे उत्सुकता का भावन नजर आया होगा तभी वह जंगलों में रहने वाले जानवा रों के बारे में बताना शुरू कर दिया। जिस रास्ते से हम गुजर रहे थे। राहूल उसी जगह पर जानवरों के होने का प्रमाण दे रहा था। घर में सभी को कहकर निकला था जंगल जा रहा हूॅ। जानवर देखकर लौटूंगा। मैंने चारों तरह उन जानवारों का होना तलाशने लगा। रास्ते के आगे और पीछे केवल हम चारों थे। थोड़ी देर बाद नीचे जमीन देखने लगा जानवरों के पैर के निशान मिल जाए तो मन तश्लील मिल जाती की जंगल में जानवार देखा है। थोड़ी देर बाद राहूल से पूछा पहाड़ और कितना दुर है। उसने कहां, हम अभी मंदिर जा रहे है। दोपहर के बाद पहाड़ की ओर जाएंगे ताकी अधिक समय वहां बिता सके। मेरी इच्छा थी हम पूरे समय वही रहें। ना खुश होने की तरह ठीक है कहां।


काली माता का मंदिर जंगलों के बीच था। हम दो घंटे में वहां पहुंच गए है। चट्टान में खड़े होकर एक लड़का बादलों पानी गिरने की संभावनाओं को देख रहा था। अक्सर बचपन में यात्रा में निकले से पहले मां मुझे आसमान देख आने को कहती। उनके कहने में बादल शामिल नहीं होता। मैं घर की छत से चारों तरफ बादल देखने लगता। तभी नीचे से मां की आवाज आई आसमान कैसा है। इस वाक्य से एक तारा बादल और मेरे बीच का टूट गया जो कुछ समय पहले सवांद के रूप में जुड़ा था। बादलों से नजर हटाते हुए तेज आवाज लगाकर कहता हूॅ, हमेशा की तरह बादल बहुत खुबसुरत है। शाम को पानी तो नहीं गिरेगा ना? यह सवाल मैं बादल से करता और बादल आवाज करने लगाता है। मानो कह रहा हो आज पानी नहीं शाम को आकृति बनने वाले ही। उसमें हाथी, चिडिया, दो प्यार करते लोग और अंत में शाम खत्म हाने के बाद समुद्र किनारे रूका हुआ पानी दिखाई देगा।

हमेेशा से बादल के उस तरफ एक नया जीवन जीवित नजर आता। मानों उसे हमारे करीब आना है जैसे बादलों से होते हुए पानी हम तक पहुंचता जाता है पर ठीक बादल नहीं। उसे हमारा खुश होना, दुःख होना और आश्चर्य होना सब पता है। हमेशा वादा करता एक दिन मिलने जरूर आउंगा। शुरुआत से मुझे बादलों में फर्क करने नहीं भी आया। जब कोई बादलों को देखकर यह कहता आज बादल अच्छे नहीं लग रहे। यह वाक्य मुझे एक हिंसा की तरह लगाता। कैसे कोई बिना उसे जाने पूछे अच्छे-बुरे का अपना फैसला सुना सकता है। शायद इसी वजह के गुस्से में बादल का रंग सफेद से काला पड़ जाता होगा। विरोध में आसमान से बादल जोर से आवाज करने लगते होंगे। पानी का तेज गिरने में बादलों की पीड़ा भी शामिल होती होगी। उनका गुस्सा खत्म होने के बाद भी कुछ बादलों का रंग गहरा नीला ही होता है। मानों उस व्यक्ति का फर्क करने वाली बात अभी भी उनके मन दबी है। वह पीड़ा कभी भी पानी के रूप में निकल सकती है। मेरे लिए बरसात के पानी में भींगना बादलों के दू:ख में शामिल होने जैसे है। पानी में मस्ती नहीं करता उस वक्त बादलों को मना रहा होता हूॅ। बादलों काे देखकर कई तरह के चेहरे बनाता हूूॅ। ठीक उसी तरह जब मेरे उदास होने पर बादल मेरी खुशी में पहाड़ बनाता है। जब तक अपनी उदासी छोड़कर खड़ा नहीं हो जाता है। बादल भी अपनी जगह पर बना रहता है। मैं भी पानी के खत्म होने तक बादलाें के रोने में साथ होता हूॅ। पानी के रूक जाने पर एक वादा करता हूॅ। तुमसे मिलने जल्द आउंगा। तुम बहुत अच्छे हो। अब रोना मत और थोडी देर में बादलों में सुर्य नजर आने लगता है मानों बादल ने सारा गुस्सा पीछे छोड़ दिया हो। उस दौरान धुंध से भरी ठंडी हवा में उसकी पीड़ा बह रही हाेती है।ं