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सत्ते मास्साब



सत्ते मास्साब जितने योग्य अध्यापक हैं उतने ही अच्छे विद्यार्थी भी थे..छात्र जीवन से प्रारंभ हुआ उनका प्रतिभा प्रदर्शन आज तक बिला नागा गतिमान है..आज भी कोई बात हो भाई तुरंत धारा प्रवाह बोलते हैं जैसे सरस्वती मायी ने भाई कि जिह्वा पर स्थायी निवास बना लिया हो..भाई सगर्व आज भी उवाचते हैं..

"आप में बस कान्फिडेंस होना चाहिए.. यह विश्वास ही है जो गलत को भी सही कर देता है "

'होनहार विरवान के होत चीकने पात' सत्ते भाई प्राथमिक विद्यालय से ही अपने वचन पर अडिग रहने को दृढ़ संकल्पित थे..गुरुजन कुछ भी पूंछते..भाई का हाथ तुरंत ऊपर होता..प्रश्न कोई भी हो भाई को जो भी बताना होता,बेहिचक बताते..वो कहते हैं

"ई कान्फिडेंसवा मुझमें बचपन से ही है..और यही मुझे यहाँ तक लाया है.."

भाई के इस अति कान्फिडेंस से गुरुजन भी आतंकित रहते थे..उन्हीं दिनों भाई के प्राइमरी पाठशाला में डिप्टी साहब का मुआयना होना निश्चित हुआ..गुरुजनों ने सभी बच्चों से पाठशाला के मैदान में झाड़ का रुप ले चुकी चकवंदि को साफ कराया और जहीन बच्चों को आगे बैठाया वहीं सत्ते भाई से हाथ जोड़ कर विनयी भाव में कहा..

"भैया तुम आज घर जाओ कल से फिर आना "

गुरुजनों को आशंका थी कि डिप्टी साहब के कुछ भी पूंछने पर सत्ते का हाथ सबसे पहले उठेगा और कुछ भी बक देगा..बप्पा अमीन थे..गाँव जवांर में अच्छा खासा रोबदाब था..अमीन साहब का प्रभाव गुरुजनों पर भी था जिसका पूरा आनंद सत्ते भाई लेते थे..गुरुओं की कातर अभ्यर्थना से सत्ते भाई वहाँ से चल तो दिये पर मन ही मन सोचने लगे..

'चकवंदि सबसे ज्यादा साफ मैने की और डिप्टी को मैं ही ना देखूं कि डिप्टी साहब लोग कैसे होते हैं..'

भाई यही सोचकर लौट आये और स्कूल के पिछवाड़े छिप गये और जैसे ही डिप्टी साहब आये..सत्ते भाई कूद कर सबसे आगे बैठे..गुरुजन आंख तरेरते रह गये पर उसका कोई प्रभाव ना भाई पर पड़ना था ना पड़ा.. डिप्टी साहब ने पहला प्रश्न पूंछा..

"बच्चों किस चिड़िया के सर पर टांगे होती हैं..?"

सत्ते भाई बन्दूक से निकली गोली की तेजी से बोले..

"सभी चिड़ियों के सर पर टांगे होती हैं"

प्रधानाचार्य महोदय डपटे..

" चुप कर तू "

और खिसियाये से बोले

"वो क्या है सर प्रत्येक स्कूल में कुछ बच्चे पढ़ने में कमजोर होते हैं "

डिप्टी साहब चकित..बोले

"ठीक तो बता रहा है भाई..अरे किस चिड़िया के सर नही होता,पर नही होता और टांगे नही होतीं "

सत्ते भाई का तुक्का आज निशाने पर लगा था.. डिप्टी साहब ने गदगद भाव से भाई को बुलाया,पीठ ठोंकी और पूंछा..

"पिताजी क्या करते हैं "

"सरकारी अमीन हैं साहब..आप से ज्यादा पढ़े हैं.. गाँव में पंचायत मेरे बप्पा ही निपटाते हैं "

सत्ते भाई सीना थोड़ा और चौड़ा करके बोले थे..

"वाह..ऐसे ही मन लगाकर पढ़ो

डिप्टी साहब ने औपचारिक निरीक्षण किया और चले गये..उस दिन के बाद से भाई का भाव सातवें आसमान पर रहने लगा..पांचवीं पास करके मिडिल में आ गये थे..अंग्रेजी से पहला साबका पड़ा.. भाई के ऊपर डिप्टी साहब के प्रोत्साहन का खासा प्रभाव पड़ा था..बहुत जल्दी अंग्रेजी के अक्षरों को लिखना पढ़ना सीख लिये थे..सातवीं क्लास तक आते आते अब वे घर में भी अंग्रेज़ी बोलने लगे थे..ऐसे ही एक दिन घर में चाय मिलने पर भाई बोले थे..

"अम्मा टी स्वीट नाट इज "

घर जवांर में भाई की चर्चा होने लगी..भाई के होंठो के ऊपर रेशमी बालों ने उगना प्रारंभ कर दिया था..अब भाई क्लास में भौतिक रुप से उपस्थित तो रहते पर आध्यात्मिक रुप से सहपाठिनी कल्पना तिवारी के चाकलेट लाने का जुगाड़ बनाने में लगे रहते..भला हो हमारे एजुकेशन सिस्टम का जहां आप जीवन में भले ही फेल हो जायें पर पढ़ाई में चाहकर भी फेल नही हो सकते..भाई स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी ही किये ही थे कि बियाहू आने लगे..एक बरदेखुआ ने भाई से पूंछा..

"जीवन में हुयी गलती को किस रुप में लेना चाहिए..?"

भाई आदतन छूटते ही बोले..

"गलती किससे नही होती..वो काल खण्ड गुजर गया..जब 'मों सम कौन कुटिल जग माही ' टाईप अभिव्यक्ति संत जन किया करते थे..गलती हो जाये तो दृढ़ता से उस पर डटे रहिये..अन्ततः वो सिद्धांत का रुप ले लेगी..कालान्तर में यही हठधर्मिता पूज्यनीय, बन्दनीय और अनुकरणीय होकर सिद्धपीठ बनेगी और बरबस लोग कहेंगे कि सिद्धांत पर अटल रहने वाले विरले होते हैं.."

सारे बरदेखुआ भाई का मुह देखते रह गये..फिर आने को कहकर चले गये..उनके जाते ही बप्पा भड़क गये..

"हराम खोर भाषण देने को किसने कहा था..इतने जुगाड़ से यह विवाह फिट किया था..तीन लाख नकद और एक मोटरसाइकिल देने को कहे थे..सब चौपट कर दिया..कुछ करना धरना तो है नही..फ्री मिल ही रहा है..ठूंसौ.."

आज पहली बार भाई को ग्लानि हुई थी..बप्पा द्वारा दिलाई गयी मोटर साइकिल कि डिग्गी में चार जोड़ी कपड़े रखे और घर से चालीस किलोमीटर दूर एक मित्र के स्कूल में पढ़ाने चले आये..अब भाई के पास केवल दो काम थे..पढ़ाना और फेसबुक चलाना..

फेसबुक पर भाई की बढ़ती लोकप्रियता ने मुझे भी प्रभावित किया और मैं भी भाई का मित्र बना..

कल्पना तिवारी की कजरारी आंखों के आकर्षण में भाई खुद भी सुरमा लगाने लगे थे..जब भी वे अपनी सुरमयी आंखों वाली फोटो डालते..फेसबुक पर तूफान आता..एक ने तो स्पष्ट टिप्पणी की थी..

"आई ऐम इन्ट्रेस्टेड इन मेन आलसो"

भाई लजाये तो पर रियेक्शन दिल वाला ही दिये थे..हम सभी ऐसे ही छेड़छाड़ कर ही रहे थे कि सत्ते भाई की एक उदास पोस्ट आयी..

"(पितृपक्ष)मैं तुम्हे भूलूंगा नही....!!!!

बहुत घाटा कराए हो तुम"

चूंकि भाई से स्नेह जैसा हो गया है..भाई की खबर करना आवश्यक हो गया था..भाई की खबर कल्पना तिवारी से बेहतर कौन बताता..तुरंत फोनियाया..और जो जानकारी मिली वह थी कि एक दिन करीब दस बच्चों के अभिभावक भाई के पास अपने अपने बच्चों के टियुशन के लिये गये थे..भाई स्कूल में बच्चों को सूरदास के पद पढ़ा रहे थे..अभिभावक गण से पीरियड समाप्त होने तक बैठने को कहा और पढ़ाने लगे..

पढ़े लिखे अभिभावक अपने बच्चों के भावी टियुटर को परखने लगे..जब भाई ने देखा अभिभावक गण का कान उन्हीं की तरफ है तो और बेहतर ढंग से पढ़ाने लगे..एक से एक उदाहरण द्वारा समझाने लगे..

"जैहौं लोटि धरनि पर तोहरी गोद ना अइहौं "

भाई ने व्याख्या करी..

"बच्चों भगवान कृष्ण कह रहे हैं की हे मैया यदि आप मुझे मक्खन नही देंगी तो धरनि पर लोट जाऊंगा.."
खपरैल छाजन के स्कूल में खप्पर ,पटरा को रोंकने वाली धरनि-बड़ेर की तरफ ऊपर उंगली दिखाते हुये बोले..

"जब वहाँ धरनि पर लोटूंगा तो निश्चित गिरुंगा और हाथ पैर तोड़ लूंगा , सो हे माते आप मुझे मक्खन दे दो "

अभिभावक गण में से एक ने इस अभिरामी व्याख्या पर ताली भी बजायी..भाई और उत्साह से पढ़ाने लगे..

"सूरदास तब विहंसि यसोदा लै उर कण्ठ लगायौ "

भाई अभिभावक की ताली से उल्लासित थे ही..आगे बोले..

"और यसोदा जी ने सूरदास को गले से लगा लिया "

भाई ने देखा अभिभावक गण जा रहे हैं.. दौड़ कर रोंके..

"बस दस मिनट और बैठिये साहब ,खाली हो रहा हूँ"

"वो क्या है अभी पितृ पक्ष चल रहा है..अभी प्रारंभ करना ठीक नही होगा..नवरात्रि में आपसे बात करता हूँ"

कहकर अभिभावक गण चले आये..कल नवरात्रि के पहले दिन जब भाई ने देखा बच्चे अलग पढ़ने जा रहे हैं तो उनमें से एक अभिभावक के घर पहुंच गये..अभिभावक शालीन था ,बोला..

"मास्साब बच्चों का कोर्स पिछड़ रहा था..आपसे उस दिन बात हो नही पायी थी..इसी बीच शर्मा जी के जानने वाले एक मिल गये तो बच्चे अब उन्हीं से पढ़ रहे हैं..पर पितृ पक्ष ने आपका तो नुकसान कर ही दिया..सारी "

सारा मामला जानने के बाद भाई के उस पोस्ट पर मैने विलम्ब से टिप्पणी की..

"मेरी संवेदनायें आपके साथ हैं सत्ते भाई "

बस तभी से सत्ते मास्साब मुह फुलाये बैठे हैं

राजेश ओझा